NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
नज़रिया
भारत
राजनीति
झारखंड : ‘अदृश्य’ चुनावी लहर कर न सकी आदिवासी मुद्दों को बेअसर!
इसी साल चंद महीनों बाद ही झारखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में एक वास्तविक सच यह है कि आज का हर संकट आदिवासी समाज के विवेकपूर्ण आत्मनिर्णय की चेतना की धारा को भी बढ़ा रहा है।
अनिल अंशुमन
30 May 2019
सांकेतिक तस्वीर

'फिर एकबार...' का जनादेश हमारे सामने है। सत्ताधारी दल व गठबंधन की ‘चमत्कारिक जीत‘ ने विपक्षी दल व उनके नेताओं को हतप्रभ व हैरान तो कर ही दिया है। हालांकि इस जीत को लेकर साँप निकाल जाने के बाद लाठी पीटने के अंदाज़ में‘ ईवीएम सेटिंग’ का भी हल्ला मचा हुआ है। जिसकी फिलहाल कोई सुनवाई भी नहीं होनी है। क्योंकि वीवीपैट से मतों की गिनती कराने की सम्पूर्ण विपक्ष की मांग को सुप्रीम कोर्ट पहले ही खारिज कर चुका है। फिलहाल इस ‘अदृश्य अंडर करेंट (चुनावी लहर)’ की चमत्कारिक जीत ने सत्ता के दावेदार महागठबंधनी दलों व उनके नेताओं को कहाँ तक धराशायी किया है और वे इससे कैसे तक उबरेंगे, इसपर चर्चा मंथन जारी रहेगा।

लेकिन दूसरी ओर, सत्ता सुनियोजित प्रपंच और पाखंडों से युक्त इस लहर को धता बताकर अपने ज़मीनी मुद्दों को लेकर मुक़ाबले में खड़ा रहनेवाली लोकतान्त्रिक धारा का टिके रहना भी एक सुखद संकेत है । यह परिदृश्य झारखंड प्रदेश के आदिवासी सुरक्षित संसदीय सीटों पर मजबूती के साथ दिखा। हालांकि पाँच सीटों में से तीन पर भाजपा का ही कब्ज़ा रहा जिसमें दुमका छोड़कर खूंटी और लोहरदगा सीटों पर पूरा प्रशासनिक तिकड़म लगाने के बावजूद जीत का अंतर बहुत कम रहा (लोहरदगा – 10,363 व खूंटी – 1454) । वहीं जिन दो सीटों पर महागठबंधन के झारखंड मुक्ति मोर्चा व कांग्रेस की जीत हुई है, उनपर भाजपा प्रत्याशी को भारी वोटों के अंतर ( राजमहल – 99,195 व सिंहभूम – 72,845 ) से पराजय का सामना करना पड़ा ।

इसके आलवा पूरे राज्य में नोटा दबाने की घटना सबसे अधिक इन्हीं आदिवासी संसदीय क्षेत्र के बूथों पर ही दिखी। जहां आदिवासियों ने सरकार के खिलाफ नोटा दबाने को भी अपने विरोध प्रदर्शन का एक माध्यम बना लिया। इस संदर्भ में उनका स्पष्ट कहना है कि वर्तमान शासन और तंत्र से उनका भरोसा खत्म उठ चुका है तो वोट क्यों दें! हर दिन सरकार हमारे संवैधानिक अधिकारों का खुल्लम खुला उल्लंघन कर रही है और जब हम उसका विरोध करते है तो हमें नक्सली–उग्रवादी और देशद्रोही करार देकर राजद्रोह का मुकदमा कर दे रही है तो फिर हमसे वोट की उम्मीद क्यों की जा रही है! हैरानी की बात है कि जिस पत्थलगड़ी वाले खूंटी में महागठबंधन प्रत्याशी को महज 1455 वोटों से हार का सामना करना पड़ा, वहाँ नोटा दबाने वालों की संख्या 21,236 रही। इसी प्रकार से लोहरदगा सीट पर 10,770, राजमहल – 12,898, सिंहभूम – 24,261 और दुमका में 14,365 मतदाताओं ने नोटा दबाया। जबकि सामान्य सीटों के आदिवासी बूथों में गिरीडीह – 19,669, गोड्डा –18,650 लोगों ने नोटा का प्रयोग किया ।

आदिवासी समाज के मतदाताओं द्वारा इतने बड़े पैमाने पर चुनाव में नोटा का बटन दबाये जाने को लोकतंत्रिक पद्धति के लिहाज से एक नकारात्मक प्रवृति कही जा सकती है। लेकिन आदिवासी समाज का मानना है यह उनका लोकतान्त्रिक अधिकार है जिसके माधायम से वे अपने विरोध प्रदर्शित कर रहें हैं। जो सिर्फ सत्ताधारी दल ही नहीं विपक्षी दलों के भी खिलाफ है। क्योंकि जब खूंटी जल रहा था और पत्थलगड़ी का दमन किया जा रहा था तब कहाँ थे बाकी लोग?

आदिवासी मुद्दों के संदर्भों में ही सिंहभूम क्षेत्र के आदिवासियों का कहना है कि अंडर करंट कि पुरजोर चुनावी लहर बहाये जाने के बावजूद कोल्हान के लोगों ने अपनी समझ के आधार पर भाजपा को नहीं चुना है। संभवतः पूरे राज्य में यही एकमात्र ऐसी सीट है जिसपर मतगणना के पहले चक्र से लेकर अंतिम चक्र तक भाजपा प्रत्याशी लगातार पीछे रहा। दूसरे, यहाँ का चुनावी संघर्ष किसी नेता विशेष की छवि और मीडिया स्थापित प्रभामंडल से परे मोदी व भाजपा की आदिवासी विरोधी नीतियों के विरोध पर लड़ा गया। चुनावी जंग मोदी–भाजपा बनाम यहाँ की आदिवासी जनता की रही। हालांकि प्रधानमंत्री ने खुद चाईबासा में रैली कर हमारे ज़मीनी मुद्दों को दरकिनार करने की पूरी तिकड़म लगा दी। लेकिन अंततोगत्वा हमने चुनावी लड़ाई भी नीतिगत स्तर पर जीतकर अपना अस्तित्व बचाने में सफल रहे। साथ ही मोदी व भाजपा सरकार की–-सीएनटी एक्ट, भूमि अधिग्रहण और वन अधिकार संशोधन जैसी आदिवासी विरोधी नीतियों का प्रबल विरोध दर्ज़ किया है। 

‘अदृश्य’ चुनावी लहर की चमत्कारिक जीत पर ट्रम्प महाशय से लेकर कई अन्य महारथी देशों के नेताओं ने बधाईयों की झड़ी लगा दी है। लेकिन लोकतन्त्र हिमायती विश्व मीडिया के विश्लेषणों में जो चिंताजंक सवाल उठाये जा रहें हैं,कहीं से भी निरधार नहीं हैं । क्योंकि सबने खुली आँखों से देखा है कि किस प्रकार से दुनिया के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली वाला राष्ट्र कहे जानेवाले भारत में इसबार के लोकतन्त्र के महापर्व मनाया गया। जनता के तमाम ज़रूरी मुद्दों को दरकिनार कर छद्म राष्ट्रहित और अंधराष्ट्रवाद का अफीम – नशा फैलाने के साथ साथ एक नेता विशेष की सत्ता स्थापित करने मात्र के लिए जनादेश लिया गया।

चंद महीनों बाद ही इस प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। चर्चा है कि 15 नवंबर को रांची स्थित बिरसा मुंडा के पुराने जेल के स्मारक (इसी जेल में बिरसा मुंडा को रखा गया था।) के उद्घाटन समारोह के बहाने मोदी जी की सभा से ही भाजपा अपने चुनावी अभियान की शुरुआत करेगी। ऐसे में एक वास्तविक सच कि- झारखंड राज्य गठन के आंदोलन में जिस आदिवासी समाज के लोगों ने सबसे बढ़ चढ़कर संघर्ष किया और दमन का सामना किया... राज्य गठन के 19 वर्षों बाद भी उनके जंगल–ज़मीन पर अधिकार के मुद्दे और उनके संवैधानिक अधिकारों को प्रभावी बनाए रखने जैसे जन मुद्दे... कब तक किसी ‘बोल बचन, फूट डालो और लूट–झूठ की नीतियों’ से हाशिये पर नहीं डाले जायेंगे? क्योंकि आज का हर संकट आदिवासी समाज के विवेकपूर्ण आत्मनिर्णय की चेतना की धारा को भी बढ़ा रहा है।

Jharkhand
2019 आम चुनाव
General elections2019
2019 Lok Sabha elections
jharkhand tribals
tribal rights
Raghubar Das
BJP
Narendra modi
birsa munda

Related Stories

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक

ख़बरों के आगे-पीछे: केजरीवाल के ‘गुजरात प्लान’ से लेकर रिजर्व बैंक तक

यूपी में संघ-भाजपा की बदलती रणनीति : लोकतांत्रिक ताकतों की बढ़ती चुनौती

बात बोलेगी: मुंह को लगा नफ़रत का ख़ून

इस आग को किसी भी तरह बुझाना ही होगा - क्योंकि, यह सब की बात है दो चार दस की बात नहीं

ख़बरों के आगे-पीछे: क्या अब दोबारा आ गया है LIC बेचने का वक्त?

ख़बरों के आगे-पीछे: भाजपा में नंबर दो की लड़ाई से लेकर दिल्ली के सरकारी बंगलों की राजनीति

बहस: क्यों यादवों को मुसलमानों के पक्ष में डटा रहना चाहिए!

ख़बरों के आगे-पीछे: गुजरात में मोदी के चुनावी प्रचार से लेकर यूपी में मायावती-भाजपा की दोस्ती पर..


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोदी सरकार के 8 साल: सत्ता के अच्छे दिन, लोगोें के बुरे दिन!
    29 May 2022
    देश के सत्ताधारी अपने शासन के आठ सालो को 'गौरवशाली 8 साल' बताकर उत्सव कर रहे हैं. पर आम लोग हर मोर्चे पर बेहाल हैं. हर हलके में तबाही का आलम है. #HafteKiBaat के नये एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार…
  • Kejriwal
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: MCD के बाद क्या ख़त्म हो सकती है दिल्ली विधानसभा?
    29 May 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस बार भी सप्ताह की महत्वपूर्ण ख़बरों को लेकर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन…
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
    29 May 2022
    गोडसे जी के साथ न्याय नहीं हुआ। हम पूछते हैं, अब भी नहीं तो कब। गोडसे जी के अच्छे दिन कब आएंगे! गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
  • Raja Ram Mohan Roy
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या राजा राममोहन राय की सीख आज के ध्रुवीकरण की काट है ?
    29 May 2022
    इस साल राजा राममोहन रॉय की 250वी वर्षगांठ है। राजा राम मोहन राय ने ही देश में अंतर धर्म सौहार्द और शान्ति की नींव रखी थी जिसे आज बर्बाद किया जा रहा है। क्या अब वक्त आ गया है उनकी दी हुई सीख को अमल…
  • अरविंद दास
    ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली
    29 May 2022
    प्रख्यात निर्देशक का कहना है कि फिल्मी अवसंरचना, जिसमें प्राथमिक तौर पर थिएटर और वितरण तंत्र शामिल है, वह मुख्यधारा से हटकर बनने वाली समानांतर फिल्मों या गैर फिल्मों की जरूरतों के लिए मुफ़ीद नहीं है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License