NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
झारखंड रिपोर्ट : बात निकली है... जंगल जंगल आग लगी है!
झारखंड में आदिवासियों का प्रतिवाद बढ़ रहा है और आदिवासी अपने अधिकारों के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं...।
अनिल अंशुमन
05 Mar 2019
आदिवासियोें का प्रतिवाद।
आदिवासियोें का प्रतिवाद। फोटो साभार : सोशल मीडिया

वैसे तो झारखंड प्रदेश में इन दिनों प्राकृतिक मौसम बड़ा सुहाना सा रहता है। सारे जंगल–पहाड़ों की घाटी–वादियों को वसंत की नयी हरियाली के बीच यहाँ वहाँ फैले पलाश के लाल–लाल फूलों के गुच्छे, पूरे वातावरण को लालमय कर देते हैं। साथ ही इसी मौसम में ‘कतिपय कारणों’ से जंगलों–पहाड़ों में आग लगने अथवा लगा दिये जाने से पूरी वादी आगमय सी होने लगती है। लेकिन इन दिनों यहाँ के सारे जंगल-पहाड़ और वादी-घाटियां, यहाँ के मूल निवासियों के प्रतिवाद आंदोलनों से सरगर्म हैं। ये प्रतिवाद आंदोलन, सुप्रीम कोर्ट द्वारा उनके ‘देस (वन भूमि क्षेत्र) निकाला’ के हुक्म आने से हुई पीड़ा और आक्रोश की अभिव्यक्ति बन रहे हैं। जो राजधानी रांची से लेकर राज्य के सभी आदिवासी इलाकों में सड़कों पर मुखर हो रहे हैं। इधर सुप्रीम कोर्ट ने ही  सरकार की याचिका पर संज्ञान लेकर अपने आदेश पर 10 जुलाई तक के लिए रोक लगा दी है। लेकिन व्यापक मांग यही हो रही है कि – ‘स्टे नहीं संसद में अध्यादेश’ और ‘वन अधिकार कानून 2006’ का अक्षरश: पालन चाहिए।

jangal  mov. 3.jpg

हैरानी की बात है कि इसी सुप्रीम कोर्ट में 5 जनवरी 2011 को महाराष्ट्र की एक भील आदिवासी महिला की याचिका के पक्ष में फैसला देते हुए तत्कालीन खंडपीठ ने स्पष्ट टिप्पणी दी थी कि “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज आदिवासी, जो कि संभवतः भारत के मूल निवासियों के वंशज हैं, जो गरीबी–बेरोजगारी–बीमारियों और भूमीहीनता से ग्रस्त हैं, इनके साथ बहुसंख्यक आबादी जो अप्रवासी जातियों की वंशज है इनके साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार करती है। यही वह समय है कि हम इतिहास में उनके साथ हुए अन्याय को दुरुस्त कर सकें।” बावजूद इसके आज उसी कोर्ट के वर्तमान माननीय न्यायाधीशों की पीठ ने आदिवासी–वनवासियों की बेदखली का फैसला दे दिया। हालांकि उसी पीठ द्वारा फैसले के तत्काल लागू होने पर रोक लगाने का आदेश स्वागत योग्य है । जिसमें उसने राज्यों की सरकारों से आदिवासियों को वनाधिकार दिये जाने संबंधी वर्तमान स्थिति पर हलफनामा भी मांगा है। लेकिन सुनवाई के दौरान पीठ के माननीय न्यायामूर्ति ने केंद्र व राज्यों की सरकारों को जो कड़ी फटकार लगाई है कि- “जब कोर्ट आदेश पारित कर रहा था तो सो रहे थे? किसी ने भी इस पर आवाज़ क्यों नहीं उठायी?” – वाक़ई गौरतलब है। खबर है कि कोर्ट की इस टिप्पणी पर महाराष्ट्र सरकार ने कोर्ट से माफी मांगी है।

jangal  mov.  6.jpg

उक्त प्रकरण, आदिवासी समुदाय के लोगों द्वारा केंद्र और राज्यों की वर्तमान सरकारों पर निजी व कॉर्पोरेट कंपनियों के फायदे के लिए उन्हें जंगल–ज़मीनों से बेदखल करने की साजिश करने के आरोप को सही साबित करता है। इनका यह भी आरोप है कि जब से केंद्र व झारखंड जैसे राज्यों की सत्ता में जो राजनीतिक पार्टी काबिज हुई है, वह आदिवासी विरोधी है। इसीलिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के दौरान सरकार की भूमिका सुनियोजित और नकारात्मक रही है। इसी के तहत 2006 के वनधिकार कानून को सही ढंग से नहीं लागू होने देने के साथ साथ आदिवासियों के विशेष संरक्षण हेतु बनाए गई पाँचवी अनुसूची जैसे तमाम संवैधानिक प्रावधानों को बिलकुल शिथिल किया जा रहा है। तमाम नियम क़ायदों को धता बताकर आदिवासी इलाकों में ‘विकास’ के नाम पर निजी व कॉर्पोरेट कंपनियों से खनन व बड़ी परियोजनाओं के कई एमओयू किए गए हैं। इसका विरोध करनेवाले आदिवासियों को विकास विरोधी, माओवादी–उग्रवादी और देशद्रोही करार देकर गाँव के गाँव पर काले कानूनों सहित फर्जी मुकदमे थोप दिये गए हैं।  

ज्ञात हो कि वन भूमि के पारंपरिक वासी रहे आदिवासियों को ज़मीन का मालिकाना हक़ देने के लिए ही 2006 में वनाधिकार कानून लागू किया गया था। लेकिन इस सरकार के अघोषित निर्देश से ही वनभूमि पट्टा लेने के अनगिनत दावों को वन विभाग ने खारिज कर रखा है। दिखावे के तौर पर कुछ लोगों को निजी पट्टा तो दिया गया लेकिन जिन जंगलों को आदिवासियों ने अपनी सामुदायिक सक्रियता से बचाए रखा है उसके सामुदायिक वन पट्टा लेने का कानूनी प्रावधान ही गायब कर दिया गया। आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ताओं का यह भी आरोप है कि जंगलों के संरक्षण–संवर्धन हेतु विश्व बैंक से आए हुए ‘कैम्पा फंड’ के 55 हज़ार करोड़ पर सरकार और वन विभाग की नज़रें लगीं हुईं हैं।

आज अगर सुप्रीम कोर्ट ने वर्तमान केंद्र व राज्य सरकारों से आदिवासियों को वनाधिकार दिये जाने और उसमें इनकी ग्राम सभाओं भागीदारी की प्रक्रियाओं के पालन किए जाने संबंधी मामलों पर हलफनामा मांगा है, तो यह सरकारों की असली मंशा को उजागर करता है कि किस प्रकार से 2006 के वनाधिकार कानून लागू कराने में ये न सिर्फ फिसड्डी बनी रहीं, बल्कि आदिवासियों के प्रति इनका रवैया कितना असंवेदनशील रहा है। इसे देखकर ही आदिवासी विषयों व अधिकारों के जानकारों–विशेषज्ञों का स्पष्ट कहना है कि आदिवासियों के संवैधानिक अधिकरों की गारंटी के लिए 1997 में सुप्रीम कोर्ट के  ‘समता जजमेंट’ के फैसले को ही प्रभावी बनाया जाय।

jangal  mov. 5.jpg

देश का इतिहास बताता है कि आज़ादी के पूर्व से ही ‘संताल – हूल और बिरसा मुंडा के उलगुलान’ समेत जितने भी आदिवासी विद्रोह हुए हैं , सबके मूल में आज़ादी के सवाल के बाद दूसरा केंद्रीय मुद्दा, जंगल–ज़मीन पर उनके अधिकारों का सवाल ही रहा है। इसीलिए वर्तमान प्रकरण में भी प्रतिवाद अभियानों से आदिवासी ऐलानिया कह रहे हैं कि जंगल के असली दावेदारों को उजाड़ने के लिए ही वर्तमान सरकार ने उनके खिलाफ ‘ सर्जिकल स्ट्राइक’ करवाई है। खैर, 2019 की चुनावी बेला सर पर खड़ी है तो आशा की जानी चाहिए कि देश की आज़ादी और विकास के लिए हर कीमत चुकाने वाले आदिवासी समुयदायों के साथ अतीत के “ऐतिहासिक अन्याय” की पुनरावृति नहीं होगी ।

Jharkhand
tribal communities
tribal land
Supreme Court
aadiwasi
BJP Govt
TRIBAL PROTEST
Protests
Forest Rights Act
forest policy

Related Stories

ज्ञानवापी मस्जिद के ख़िलाफ़ दाख़िल सभी याचिकाएं एक दूसरे की कॉपी-पेस्ट!

हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन

आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल

मायके और ससुराल दोनों घरों में महिलाओं को रहने का पूरा अधिकार

जब "आतंक" पर क्लीनचिट, तो उमर खालिद जेल में क्यों ?

विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश : सेक्स वर्कर्स भी सम्मान की हकदार, सेक्स वर्क भी एक पेशा

तेलंगाना एनकाउंटर की गुत्थी तो सुलझ गई लेकिन अब दोषियों पर कार्रवाई कब होगी?

मलियाना कांडः 72 मौतें, क्रूर व्यवस्था से न्याय की आस हारते 35 साल


बाकी खबरें

  • बिहार में ज़िला व अनुमंडलीय अस्पतालों में डॉक्टरों की भारी कमी
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    बिहार में ज़िला व अनुमंडलीय अस्पतालों में डॉक्टरों की भारी कमी
    18 May 2022
    ज़िला अस्पतालों में डॉक्टरों के लिए स्वीकृत पद 1872 हैं, जिनमें 1204 डॉक्टर ही पदस्थापित हैं, जबकि 668 पद खाली हैं। अनुमंडल अस्पतालों में 1595 पद स्वीकृत हैं, जिनमें 547 ही पदस्थापित हैं, जबकि 1048…
  • heat
    मोहम्मद इमरान खान
    लू का कहर: विशेषज्ञों ने कहा झुलसाती गर्मी से निबटने की योजनाओं पर अमल करे सरकार
    18 May 2022
    उत्तर भारत के कई-कई शहरों में 45 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पारा चढ़ने के दो दिन बाद, विशेषज्ञ जलवायु परिवर्तन के चलते पड़ रही प्रचंड गर्मी की मार से आम लोगों के बचाव के लिए सरकार पर जोर दे रहे हैं।
  • hardik
    रवि शंकर दुबे
    हार्दिक पटेल का अगला राजनीतिक ठिकाना... भाजपा या AAP?
    18 May 2022
    गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले हार्दिक पटेल ने कांग्रेस को बड़ा झटका दिया है। हार्दिक पटेल ने पार्टी पर तमाम आरोप मढ़ते हुए इस्तीफा दे दिया है।
  • masjid
    अजय कुमार
    समझिये पूजा स्थल अधिनियम 1991 से जुड़ी सारी बारीकियां
    18 May 2022
    पूजा स्थल अधिनयम 1991 से जुड़ी सारी बारीकियां तब खुलकर सामने आती हैं जब इसके ख़िलाफ़ दायर की गयी याचिका से जुड़े सवालों का भी इस क़ानून के आधार पर जवाब दिया जाता है।  
  • PROTEST
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    पंजाब: आप सरकार के ख़िलाफ़ किसानों ने खोला बड़ा मोर्चा, चंडीगढ़-मोहाली बॉर्डर पर डाला डेरा
    18 May 2022
    पंजाब के किसान अपनी विभिन्न मांगों को लेकर राजधानी में प्रदर्शन करना चाहते हैं, लेकिन राज्य की राजधानी जाने से रोके जाने के बाद वे मंगलवार से ही चंडीगढ़-मोहाली सीमा के पास धरने पर बैठ गए हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License