NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
रोज़गार पर हमला – जनवरी से अब तक 2.5 करोड़ नौकरियां ख़त्म
कंस्ट्रक्शन, मैन्युफैक्चरिंग, हॉस्पिटैलिटी सेक्टर में सबसे ज्यादा रोज़गार खत्म हुए हैं। 1.7 करोड़ से अधिक दिहाड़ी कर्मचरी अपनी नौकरी खो चुके हैं।
सुबोध वर्मा
07 Jun 2021
Translated by महेश कुमार
रोज़गार पर हमला – जनवरी से अब तक 2.5 करोड़ नौकरियां ख़त्म

जनवरी और मई 2021 के बीच 2.5 करोड़ से अधिक मौजूदा नौकरियां खत्म हो गई हैं। इनमें रोज़गार का सबसे बड़ा नुकसान – करीब 2.2 करोड़ नौकरियां - अप्रैल और मई में चली गईं। यह उस अवधि में हुआ जब भारत कोविड-19 की क्रूर और घातक दूसरी लहर से घिरा हुआ था जिसके कारण राज्यों में भिन्न-भिन्न डिग्री के राज्य-स्तरीय लॉकडाउन लगाए गए थे। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) द्वारा किए गए आवधिक सर्वेक्षणों के नवीनतम परिणामों से ये चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं।

ऐसे समय में नौकरी छूटना कोई अनपेक्षित बात नहीं है क्योंकि लॉकडाउन का सीधा असर आबादी के उस बड़े हिस्से की कमाई के अवसरों पर पड़ता है जो अनौपचारिक क्षेत्र में दैनिक रोज़गार और उससे होने वाली कमाई पर निर्भर होते हैं। हालाँकि, महामारी के इस दौर में सरकार की पूर्ण उपेक्षा ने संकट को और गहरा कर दिया है, जैसा कि उसने पिछले साल किया था।

नीचे दिए गए चार्ट से साफ़ पता चलता है कि जनवरी 2021 में रोज़गार करने वाले व्यक्तियों की कुल संख्या (सीएमआईई के नमूना सर्वेक्षण के माध्यम से) लगभग 40.1 करोड़ अनुमानित थी। फरवरी और मार्च में थोड़ा कम होकर यह संख्या 39.8 करोड़ हो गई थी। फिर अप्रैल माह में यह संख्या और गिर गई, खासतौर पर मई में इस गिरावट का खासा असर देखने को मिला। 

दैनिक वेतन भोगी सबसे अधिक पीड़ित हुए, खेती ने दिया सहारा 

सीएमआईई ने 2021 में लॉकडाउन के चलते रोज़गार पर मुख़्तलिफ़ किस्म के प्रभाव को पेश किया है और व्यवसायों के अलग-अलग आंकड़ों में इस प्रभाव को देखा जा सकता है। अप्रैल-मई 2021 में 1.72 करोड़ से अधिक लोगों ने अपनी नौकरियां खो दी थीं जिसके चलते दैनिक वेतन भोगी श्रमिकों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है और उनकी आमदनी चली गई। [नीचे चार्ट देखें]

वेतनभोगी और व्यावसायिक वर्गों ने भी अपनी नौकरी या व्यापार खो दिए। इस तरह के लोगों की पिछले दो महीनों में कुल संख्या लगभग 90 लाख (9 मिलियन) हो गई है। ये मुख्य रूप से शहरी नौकरियां होंगी।

पिछले साल की तरह इस साल भी खेती ने बहुत से बेरोजगारों को सहारा दिया है। जबकि अप्रैल में कृषि क्षेत्र में लगभग 60 लाख नौकरियों का नुकसान हुआ था, संभवतः यह गेहूं और अन्य रबी की फसलों की कटाई सीजन का अंत होने और आने वाले महीनों में खरीफ की बुआई की मई में तैयारियों के कारण हुआ था, जिससे नौकरियों का नुकसान हुआ है। सीएमआईई के अनुमान के अनुसार, इसमें 90 लाख से अधिक रोज़गार की वृद्धि हुई है। इसका शुद्ध परिणाम खेती में लगभग 38 लाख नौकरियों का लाभ हुआ था।

निर्माण कार्य में 88 लाख से अधिक नौकरियां चली गईं

जिन क्षेत्रों में सबसे अधिक रोज़गार का नुकसान हुआ है, उन्हें नीचे चार्ट में दिखाया गया है। सीएमआईई के अनुमानों के अनुसार, निर्माण क्षेत्र जो ज्यादातर बड़े पैमाने पर अनौपचारिक श्रम को रोज़गार और कम वेतन देता है, उसमें भी इन दो महीनों में करीब 88 लाख से अधिक श्रमिक रोज़गार से बाहर हो गए। अन्य बुरी तरह प्रभावित हुए क्षेत्रों में विनिर्माण (जिसमें 42 लाख नौकरियां गईं), होस्पिटलिटी/आतिथ्य (40 लाख) और व्यापार (36 लाख) जैसे रोजगारों का नुकसान शामिल हैं। शेष नौकरी के नुकसान को कई अन्य क्षेत्रों में वितरित किया जा सकता हैं।

उल्लेखनीय बात यह है कि इस अवधि के दौरान विनिर्माण क्षेत्र में भी नौकरियां चली गई हैं, जबकि कई राज्यों में इस क्षेत्र पर प्रतिबंधों में छूट दी गई थी। पूरे देश से ऐसी रिपोर्टें आई हैं कि जहां 50 प्रतिशत कार्यबल को काम पर रखने की अनुमति दी गई थी, वहाँ मालिकों ने बाकी मज़दूरों की नौकरी ही खत्म कर दी। 

नौकरियों के इतने भारी नुकसान से फिर से पता चलता है कि सरकारों (राज्य और केंद्र) ने यह सुनिश्चित करने के कोई उपाय नहीं किए कि नियोक्ता/मालिक कोविड-19 के कारण लॉकडाउन के दौरान अपने कर्मचारियों/मज़दूरों की सेवाओं को समाप्त न करें। कई मामलों में तो कमाई गई मजदूरी का भी भुगतान नहीं किया गया है। कई राज्यों में, संविदा कर्मचारियों (यहां तक कि राज्य सरकारों के साथ काम करने वाले कर्मचारियों, जैसे कि स्कूल शिक्षक) को अप्रैल या मई का वेतन/मजदूरी नहीं मिला है, और कईयों को इससे भी अधिक समय की मजदूरी नहीं मिली है। इन कर्मचारियों को बेरोजगार के रूप में नहीं गिना जाता है, लेकिन वास्तव में वे नौकरी से निकाले गए लोगों से किसी भी हाल में बेहतर नहीं हैं।

शहरी विपत्ति बढ़ी 

मई 2021 में कुल बेरोजगारी दर दोहरे अंक की श्रेणी में पहुंच गई, जिसमें मई की औसत बेरोज़गारी लगभग 12 प्रतिशत पर थी, हालांकि सीएमआईई की रिपोर्ट के मुताबिक 30-दिवसीय चालू औसत 4 जून को लगभग 13 प्रतिशत से भी अधिक थी। 

जैसा कि नीचे दिए गए चार्ट से पता चलता है, शहरी क्षेत्रों में नौकरी का बहुत अधिक नुकसान मई में हुआ है। शहरी बेरोजगारी लगभग 15 प्रतिशत आंकी गई थी। ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी दर लगभग 11 प्रतिशत अनुमानित थी। यह व्यापक अंतर आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि खेती बेरोजगार लोगों के एक बड़े अनुपात को अवशोषित कर रही है। शहरी क्षेत्रों में उस तरह के विकल्प नहीं हैं, सिवाय इसके कि प्रवासी मजदूर पिछले साल की तरह जल्दी शहरों और कस्बों को छोडकर जहाँ वे काम कर रहे थे, वापस अपने गाँव चले गए।

इसका मतलब यह हुआ कि ग्रामीण इलाकों में पहले जितना ही काम–खेती–अब ज़्यादा लोगों द्वारा किया जा रहा है। यानि पहले जितनी ही आमदनी अब ज़्यादा लोगों के बीच बंटेगी, जिससे प्रति व्यक्ति आय कम होगी, यानि काम ज्यादा मजदूरी कम।

उच्च शहरी बेरोज़गारी के मद्देनज़र क्षेत्रीय नौकरी के नुकसान का विश्लेषण यह दर्शाता है कि अधिकांश शहर-आधारित क्षेत्र जिसमें निर्माण, आतिथ्य (रेस्तरां और होटल) और व्यापार (दुकानें, मॉल आदि) में भी  इन महीनों के दौरान काफी श्रमिकों काम से बाहर कर दिया गया है।

बेरोज़गारी में कोई राहत नहीं 

इस विकट और भयंकर स्थिति में, सरकारों को परिवारों को वित्तीय सहायता देने के लिए तत्काल राहत उपायों को लागू करना चाहिए था। नियोक्ताओं को आदेश देना था कि मज़दूरों/कर्मचारियों का वेतन (अर्जित या लॉकडाउन की अवधि के दौरान) न रोका जाए, किरायेदारों की बेदखली को रोकना, मुफ्त चिकित्सा सेवाएं प्रदान करना और मज़दूर वर्ग के परिवारों को अधिक खाद्यान्न और आवश्यक वस्तुएं देने का भी इंतजाम करना चाहिए था।

हालांकि, पिछले साल की तरह, कंजूस नरेंद्र मोदी सरकार की तरफ से इस साल भी कोई कदम नहीं उठाया गया। राज्यों की बात करें तो कुछ राज्यों को छोड़कर, जो वैसे भी अक्सर आर्थिक तंगी का शिकार होते हैं, उन्होंने भी कोई खास कदम नहीं उठाए हैं। केंद्र सरकार की तरफ से एकमात्र राहत राशन कार्ड धारकों को प्रति माह अतिरिक्त 5 किलो खाद्यान्न दिया गया है। अनाज की यह मात्रा न केवल अपने आप में अपर्याप्त है, बल्कि किसी अन्य वित्तीय सहायता के न दिए जाने से पूरे देश में मजदूर वर्ग के परिवार तबाह हो गए हैं। 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें-

Jobs Carnage – 2.5 crore Jobs Lost Since January

May Unemployment
Job Losses
Pandemic Lockdown
CMIE
Manufacturing Sector
indian economy
Labour Distress
working class

Related Stories

डरावना आर्थिक संकट: न तो ख़रीदने की ताक़त, न कोई नौकरी, और उस पर बढ़ती कीमतें

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

आर्थिक रिकवरी के वहम का शिकार है मोदी सरकार

मुंडका अग्निकांड : क्या मज़दूरों की जान की कोई क़ीमत नहीं?

जब 'ज्ञानवापी' पर हो चर्चा, तब महंगाई की किसको परवाह?

मज़बूत नेता के राज में डॉलर के मुक़ाबले रुपया अब तक के इतिहास में सबसे कमज़ोर

क्या भारत महामारी के बाद के रोज़गार संकट का सामना कर रहा है?

मज़दूर दिवस : हम ऊंघते, क़लम घिसते हुए, उत्पीड़न और लाचारी में नहीं जियेंगे

ज़रूरी है दलित आदिवासी मज़दूरों के हालात पर भी ग़ौर करना

मई दिवस: मज़दूर—किसान एकता का संदेश


बाकी खबरें

  • CDSCO
    भाषा
    CDSCO ने कोवोवैक्स, कोर्बेवैक्स और मोलनुपिराविर के आपात इस्तेमाल को स्वीकृति दी
    28 Dec 2021
    सीडीएससीओ की कोविड-19 संबंधी विषय विशेषज्ञ समिति (एसईसी) ने ‘कोवोवैक्स’ और ‘कोर्बेवैक्स’ को कुछ शर्तों के साथ आपात स्थिति में उपयोग की अनुमति देने की सिफारिश की है। कोविड-19 रोधी दवा ‘मोलनुपिराविर’ (…
  • sunil
    भाषा
    पेले से आगे निकले छेत्री, भारत ने आठवां सैफ ख़िताब जीता, महिला टीम भी चमकी
    28 Dec 2021
    भारतीय फुटबॉल को वर्ष 2021 में कोई बड़ी सफलता नहीं मिली । पचास और साठ के दशक का अपना खोया गौरव लौटाने की कोशिश में जुटी टीम उस पल का इंतजार ही करती रही जो देश में इस खेल की दशा और दिशा बदल सके।
  • UP Elections
    न्यूज़क्लिक टीम
    यूपी चुनाव: किसानों की आय दोगुनी होने का टूटता वादा, आत्महत्या का सिलसिला जारी
    28 Dec 2021
    बुंदेलखंड के बाँदा ज़िले में युवा किसान राम रुचि और प्रमोद पटेल ने इसी साल क़र्ज़ के दबाव में आत्महत्या कर ली। न्यूज़क्लिक ने दोनों परिवारों से मिल कर बात की और जानने की कोशिश की कि सरकार का किसानों…
  • officers of Edu dept eating MDM with students
    राजेश डोबरियाल
    उत्तराखंड: 'अपने हक़ की' लड़ाई अंजाम तक पहुंचाने को तैयार हैं दलित भोजन माता सुनीता देवी
    28 Dec 2021
    “...चूंकि क्रिसमस की बैठक में सभी पक्ष अभी क्षेत्र का माहौल सौहार्दपूर्ण बनाए रखने पर सहमत हुए हैं इसलिए वे जांच कमेटी की रिपोर्ट आने का इंतज़ार कर रहे हैं। नियमानुसार तो सुनीता देवी की ही भोजनमाता…
  • UP Election 2022
    लाल बहादुर सिंह
    यूपी चुनाव 2022: बेरोज़गार युवा इस चुनाव में गेम-चेंजर साबित हो सकते हैं
    28 Dec 2021
    मोदी-योगी से नाउम्मीद युवाओं को विपक्ष से चाहिए रोजगार का भरोसा
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License