न्यूज़क्लिक से ख़ास बातचीत में मियाँ कवि अशरफ़ुल हुसैन और हुसैन अहमद मदानी तथा मानव अधिकार कार्यकर्ता अब्दुल कलाम आज़ाद ने बताया कि कैसे उनकी कविता दरअसल असम की शोषित जनता के आत्म-सम्मान और अस्मिता का मुद्दा है।
न्यूज़क्लिक से ख़ास बातचीत में मियाँ कवि अशरफ़ुल हुसैन और हुसैन अहमद मदानी तथा मानव अधिकार कार्यकर्ता अब्दुल कलाम आज़ाद ने बताया कि कैसे उनकी कविता दरअसल असम की शोषित जनता के आत्म-सम्मान और अस्मिता का मुद्दा है। इनके शब्दों में बाहरी समझे जाने वाले बंगाली मूल के असमिया लोगों के दुःख-दर्द बसे हैं। असम का समाज और असम के बाहर बहुत लोग इन्हें गलत समझ रहे हैं। उनका कहना है कि "हम न एनआरसी के विरुद्ध हैं और न ही असमिया अस्मिता के। हम बस एनआरसी की प्रक्रिया पर सवाल उठा रहे हैं। और हम उतने ही असमिया हैं जितने कि दूसरे असमिया लोग, इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि हम कौन सी भाषा या बोली बोलते हैं।"
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