NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
केंद्र और राज्य सरकार कर रही है पोलावरम बाँध से प्रभावित आदिवासियों को नज़रअंदाज़
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि बीजेपी और टीडीपी दोनों ही पार्टियाँ इस बाँध के बनने से फायदा उठाना चाहती हैं लेकिन दोनों ही बाँध से प्रभावित परिवारों के हक़ों को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर रही हैं।
पृथ्वीराज रूपावत
19 Jul 2018
National Alliance of People’s Movement

पोलावरम बांध के कारण पश्चिमी गोदावरी के इलाके के कई गाँव डूब जाने के खिलाफ 10 से 16 जुलाई के बीच सैकड़ों आदिवासियों ने मार्च  निकला। उन्होंने माँग की कि सरकार उन्हें जंगल में उनके ज़मीन के पट्टे दे और Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement (LARR) Act, 2013 के हिसाब से  उन्हें मुआवज़ा मिले और उनका स्थानांतरण किया जाए। एंजेंसी पोरू नामक इस  यात्रा के बाद आदिवसियों ने 16 जुलाई को इलूरू के ज़िला कलेक्टर के कार्यालय के सामने एक बड़ा जन विरोध  प्रदर्शन  किया। ये प्रदर्शन आंध्रा प्रदेश गिरीजन संग्राम नामक एक संगठन  द्वारा  किया गया जो कि माकपा  से जुड़ा हुआ है। 

पोलावरम बाँध परियोजना से प्रभावित परिवार पिछले चार साल से इस बाँध के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। उनका कहना है कि इस बाँध को बनाये जाने के दौरान सरकार ने उनके अधिकारों का हनन  किया है। गोदावरी नदी पर बनायी जा रही पोलावरम परियोजना का मकसद 2.91 हैक्टेयर ज़मीन के लिए सिंचाई की व्यवस्था करना  है और 540 गॉंवों के लोगों के लिए पीने का पानी प्रदान करना है। इसकी वजह से करीब तीन  लाख  लोग विस्थापित होंगे जिसमें 150000 आदिवासी और 50000 दलित शामिल हैं , इसके साथ ही बाँध की वजह से 300 आदिवासी बस्तियाँ भी डूप जायेंगे। 

एक राष्ट्रीय परियोजना होने के बावजूद 2014 से आंध्र प्रदेश की टीडीपी सरकार ने पोलावरम बांध के निर्माण की ज़िम्मेदारी ली हुई है। हाल में इस परियोजना की कुल लागत 57,940 करोड़ रुपये (2013 -14 की कीमतों के हिसाब से ) बताई जा रही है लेकिन पहले बताया गया था कि इसमें कुल 16,010.45 करोड़ रुपये (2010 -11 की कीमतों के हिसाब से) का खर्च आएगा। जब टीडीपी बीजेपी के नेतृत्व वाले NDA गंठबंधन से बाहर हुई तो केंद्रीय जल संसाधन मंत्री नितिन गड़करी ने राज्य पूछा था कि इस परियोजना के खर्च  में इतनी बढ़ौतरी कैसे हुई। अब तक Polavaram Project Authority (PPA) के ज़रिये केंद्र सरकार ने इस परियोजना के लिए 8,662 करोड़ रुपये दिए हैं जबकि राज्य सरकार के अनुसार मई 2018 तक परियोजना में 13,798. 54 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। 

मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि बीजेपी और टीडीपी दोनों ही पार्टियाँ इस बाँध के बनने से फायदा उठाना चाहती हैं लेकिन दोनों ही बाँध से प्रभावित परिवारों के हक़ों को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर रही हैं। Andhra Pradesh Vyavasaya Vruttridarula Union (APVVU)के राज्य सचिव बाबजी जुवुला जो कि पोलावरम परियोजना की फैक्ट फाइंडिंग टीम का हिस्सा थे और हाल ही में उन गॉवों में गए थे जो इस परियोजना प्रभावित हैं,ने बताया कि इलाके में सत्ताधारी टीडीपी नेता , विभिन्न पार्टियों के स्थानीय नेता और बिचौलिए वहाँ पुर्नवास प्रक्रिया में भ्रष्टचार के ज़रिये दखल दे रहे हैं। जुवुला ने कहा "पिछले तीन सालों से मैंने परियोजना से जुड़े हुए गुमशुदा दस्तावेज़ों के रिकॉर्ड पाने के लिए कई RTI फाइल कीं थी , ये सभी दस्तावेज़ सरकार के पास हैं और उन्होंने अब एक कोई जवाब नहीं दिया है। इस मामले में एक के बाद एक भष्टाचार मामले बाहर आ रहे हैं इसीलिए APVVU राज्य सरकार के खिलाफ कानूनी लड़ाई भी लड़ रहा है। "

National Alliance of People’s Movement (NAPM) के पर्यावरण कार्यकर्ता प्रफुल्ल सामंतरा, जो कि फैक्ट फाइंडिंग कमिटी से जुड़े हुए थे , ने भी पोलवरम परियोजना में भष्टाचार पर चिंता जताई है। प्रफुल्ल सामंतरा ने कहा "दुर्भाय ये है कि इस परियोजना की वजह से इस इलाके में भष्टाचार प्रवेश कर गया है। जब इलाके में गए तो लोगों ने बताया कि मुआवज़े का बहुत सा पैसा इलाके के राजनीतिक रूप से प्रभावशाली लोगों और उनके साथियों के खतों में जमा हो चुका है।" 3 जुलाई को National Commission for Scheduled Tribes (NCST) ने आंध्र प्रदेश सरकार को कहा है कि वह 55000 आदिवासी परिवारों का पुर्नवास ठीक तरीके से करें और जहाँ पुर्नवास किया जाए वहॉं उपजाऊ ज़मीन हो , जीवनयापन का प्रबंध हो , उन्हें बढ़ाकर मुआवज़ा दिया जाए और उन्हें अच्छे घर मिलें। यह दिशा निर्देश  NCST ने 26 से 28 मार्च तक इलाके का दौरा करने के बाद दिए। 

National Alliance of People’s Movement
NAPM
आदिवासियों के अधिकार
आंध्रप्रदेश
TDP
BJP
ज़मीन अधिग्रहण

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?


बाकी खबरें

  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?
    22 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने पत्रकार और मेरठ दंगो को करीब से देख चुके कुर्बान अली से बात की | 35 साल पहले उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हुए बर्बर मलियाना-…
  • Modi
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक
    22 May 2022
    हर बार की तरह इस हफ़्ते भी, इस सप्ताह की ज़रूरी ख़बरों को लेकर आए हैं लेखक अनिल जैन..
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'
    22 May 2022
    बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।
  • diwakar
    अनिल अंशुमन
    बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका
    22 May 2022
    बिहार के चर्चित क्रन्तिकारी किसान आन्दोलन की धरती कही जानेवाली भोजपुर की धरती से जुड़े आरा के युवा जन संस्कृतिकर्मी व आला दर्जे के प्रयोगधर्मी चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर को एक जीवंत मिसाल माना जा…
  • उपेंद्र स्वामी
    ऑस्ट्रेलिया: नौ साल बाद लिबरल पार्टी सत्ता से बेदख़ल, लेबर नेता अल्बानीज होंगे नए प्रधानमंत्री
    22 May 2022
    ऑस्ट्रेलिया में नतीजों के गहरे निहितार्थ हैं। यह भी कि क्या अब पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन बन गए हैं चुनावी मुद्दे!
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License