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कोबानी पर कब्ज़ा और मूक दर्शक तुर्की
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
09 Oct 2014

कोबानी, जहाँ पिछले चार हफ्तों से कुर्दिश लड़ाके मोर्चा सम्हाले हुए थे’, अब आईएस के हांथो में जाने के कगार पर आ खड़ा हुआ है. आईएस लड़ाको के पास भारी मात्रा में हथियार,गोला बारूद और तोपे भी हैं वहीँ वायपीजी के लड़ाके बेहद हलके हथियारों से लैस हैं.(अन)इच्छुक देशो के उस समूह ने, जिसने आईएस के खिलाफ लड़ने की बात कही थी, भी कुछ हवाई हमलों के सिवा ज्यादा हासिल नहीं कर पाए हैं. सीमा के दूसरी तरफ खड़ी तुर्की की सेना ने भी कुर्दिश लड़ाकों को कोई सहायता नहीं दी है. उनके लिए आईएस द्वारा वायपीजी को हराना कोई दुख की बात नहीं है.इसका कारण यह है कि वाय.पी.जी की मूल पार्टी पी.वाय.डी, तुर्की में कुर्दिश अधिकारों के लिए लड़ रही पार्टी पी.के.के के काफी करीब है.

सौजन्य: http://www.bbc.com. 

कोबानी में चल रहा युद्ध जिसे अरबी में अयन अल अरब भी कहा जाता है,इस क्षेत्र के इतिहास में एक अहम् क्षण को दिखाता है. यह दिखाता है कि जब तुर्की, सऊदी अरब और खाड़ी अमरीका से हाँथ मिलाने की लिए तैयार है, उसके बाद भी ये सभी सीरिया और ईरान को अपना दुश्मन समझते हैं. इसीलिए वह यह मानते हैं कि आई.एस की क्षमता को तब कम करना चाहिए जब वे सीरिया,ईरान और हिज्बुल्ला, जो की उनका निर्धारित निशाना है,उससे आगे बढ़ने लगे. कुर्द लड़ाकों को भी इस गठबंधन में शामिल कर लेना चाहिए अगर वे बशर अल असद के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार हो. अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो मात्र एक छोटे से सहयोग के साथ,जो केवल दिखावा होगा,उन्हें आई.एस से अकेले लड़ने के लिए छोड़ देना चाहिए.

पी.के.के प्रमुख ओकलान, जो अभी जेल में है, उसने यह चेतावनी दी है कि अगर कोबानी आई.एस के कब्ज़े में चला गया तो तुर्की के साथ चल रही शान्ति वार्ता वहीँ रोक दी जाएगी. कुर्द तुर्की में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं और कोबानी में अंतर्राष्ट्रीय मदद की गुहार लगा रहे हैं. तुर्की में लड़ रहे पी.के.के के लड़ाकों को वाय.पी.जी के साथ लड़ने के लिए जाने से तुर्की सेना द्वारा रोका जा रहा है. और अब जब कोबानी तीन तरफ से घिर चुका है तब एकमात्र मदद की उम्मीद तुर्की के तरफ से की जा सकती है. पर यह मदद आ नहीं रही है और कोबानी कब्जे में आने के कगार पर है. तुर्की मूक दर्शक जैसे यह देख रहा है.

रिपोर्ट के अनुसार वाय.पी.जी और तुर्की के बीच पहले भी बात हुई थी. तुर्की के समर्थन की यह शर्त रखी गई थी कि वह तभी साथ देंगे जब वाय.पी.जी असद सरकार के तख्तापलट में साथ दे. वाय.पी.जी ने मन कर दिया. तुर्की के लिए असद अब भी मुख्य दुश्मन है और आई.एस एक छोटी समस्या.

सौजन्य: vox.com

अमरीका ने सीरिया में कहीं भी बम गिराने की घोषणा कर दी है, और सीरिया ने इसका चुपचाप समर्थन भी कर दिया है पर आधिकारिक तौर पर वे अभी भी अमरीका द्वारा अन्तराष्ट्रीय नियमों के उल्लंघन के खिलाफ आवाज़ उठा रहे हैं. सीरिया को यह पता है कि अमरीका को आई.एस पर सीरिया में कहीं भी बम गिराने की छूट देकर उन्होंने भविष्य में अपने ऊपर भी खतरा खड़ा कर लिया है. पर जब आई.एस ने हारे हुए इराकी सेना के अनेक हथियार अपने कब्ज़े में कर लिए हैं तो सीरिया के पास और कोई रास्ता भी नहीं है.

वहीँ दूसरी तरफ इजराइल अल कायदा से समर्थित अल नुसरा को समर्थन दे रहा है ताकि वे सीरिया के गोलन हाइट्स में सरकारी सेना को हरा कर उसे अपने कब्जे में कर सके और लेबनन में हिजबुल्लाह पर भी हमले कर सके.इजराइल की मदद से अल नुसरा के कब्जे में जोर्डन से लेकर लेबनन का एक ऐसा हिस्सा है जहाँ से वे हमला और आसानी से कर सके.

आई.एस के खिलाफ जंग कई और चल रही जंग का हिस्सा हैं, जिसमे इजराइल का फ़िलिस्तीन और हिजबुल्लाह के खिलाफ युद्ध, असद के खिलाफ अमरीका-तुर्की-सऊदी-क़तर का युद्ध,अमरीका –सऊदी का ईरान के साथ युद्ध,तुर्की का कुर्द के खिलाफ और इराक में शिया सुन्नी के बीच चल रहा युद्ध शामिल है.

जो बिडेन ने खुले आम यह खुलासा किया है कि अमरीका के सहयोगियों ने ही मिल के आई.एस को जन्म दिया है. पर उन्होंने यह जरुर छुपाया है कि अमरीका का इसमें क्या योगदान रहा है, जिसमे सोवियत यूनियन से लड़ने के लिए अफगानिस्तान में अल कायदा को जन्म और सीरिया में असद से लड़ने के लिए आई.एस.आई.एस को जन्म शामिल है. आई.एस के इराकी रूप का बीज भी अमरीकी सेना ने ही अपने “अभियान” के वक़्त बोया था, जब उन्होंने बाथ सदस्यों से लड़ने के लिए इस क्षेत्र में अंधाधुंध पैसे खर्च कर रहे हैं. और आई.एस.आई.एस इतना बड़ा नहीं होता अगर उन्हें नाटो और साथ ही तुर्की-सऊदी-क़तर गठबंधन का सहयोग न मिला होता. साथ ही सीरिया का होना भी इसकी वजह रहा है. सीरिया के कारण ही उन्हें अपनी ताकत बढ़ाने के लिए आर्थिक सहायता, हथियार और वैश्विक जिहाद चलाने के लिए लोग मिले हैं, जिसे अमरीका दे रहा था असद सरकार के तख्तापलट के लिए. ये बिलकुल अफगानिस्तान में घटे हालत की तरह ही है.  

इराकी सत्ता और मोसुल के गिरने के कारण ही आई.एस की संभावनाए और बढ़ गई हैं.उनके पास अब बड़े हथियार,आर्थिक स्थिरता और काफी गतिशीलता है.उनके पास अनेक हमर और टोयोटा गाड़ियाँ हैं जिसमे वे अपने हथियारों को इधर से उधर ले जाने में सक्षम हैं,अपने विरोधियों के ठीक विपरीत. और इस क्षेत्र में गतिशीलता बेहद आवश्यक है. जब आई.एस इराक में कुरर्दिस क्षेत्र की तरफ बढ़ने लगा जो पिछले दो दशकों से अमरीका के कब्जे में है, तब क्षेत्र में खतरे की घंटी बजने लगी. अब यह साफ़ है कि आई.एस का इलाके में एकछत्र राज है और  केलीफेट की घोषणा कर उसने अपने इरादे साफ़ कर दिए हैं.

आई.एस के इस्लाम को अपनाने के भयावाह तरीको के बारे में काफी कुछ लिखा जा चुका है और यह भी लिखा गया है कि यह किस तरह मध्यम इस्लाम जिसका सऊदी प्रचार कर रहा है उससे अलग है. पर सच्चाई यह है कि वहाबी इस्लाम जिसका सऊदी प्रचार कर रहा है,वह भी आई.एस द्वारा प्रचारित इस्लाम का एक हिस्सा ही है. बस फर्क यही है कि वह उसी को क्रिया कलाप में भी प्रयोग में ला रहे हैं जो भ्रष्ट साम्राज्य से बिलकुल अलग है.

जो भी इस बात को मान रहे हैं कि दुनिया भर की सभी आधुनिक ताकतों को मिल कर इस भयावाह संगठन से लड़ना चाहिए, वे पश्चिम एशिया के एक मुख्य पहलु को नजरंदाज कर रहे हैं. इस इलाके में पहले साम्राज्यवादी ताकतों ने फिर चाहे वो ब्रिटेन,फ़्रांस हो या अब अमरीका,सभी ने उग्रवादी ताकतों के साथ हाँथ मिलाया था. उनके दुश्मन पिछले 100 सालों से हमेशा ही धर्मनिर्पेक्ष राष्ट्रवादी रहे हैं और मुख्यतःअरब राष्ट्रवादी रहे हैं. इसी वजह से वे अन्य साम्राज्यवादी ताकतों के साथ मिल गए क्योंकि इनका दुश्मन भी अरब राष्ट्रवाद रहा है. यह आश्चर्य की बात नहीं है कि आखिर क्यों नस्सरिस्म, बाथ समाजवाद,कुर्दिस और ईरानी राष्ट्रवाद जो मोस्सदेक के अन्दर हैं, सभी अमरीका और कट्टरपंथी ताकतों के दुश्मन रहे हैं. पर इनके लिए क्रोधित करने वाली बात यह है कि ये कट्टरवादी ताकतें सिर्फ कुर्द और अरब

का ही नहीं बल्कि अमरीकी,फ़्रांस और ब्रिटिश नागरिकों का भी सर कलम कर रहे हैं.  

पश्चिम एशिया अब क्लाइडस्कोप की तरह हो गया है, जहाँ हर दिन कुछ अलग और नया हो रहा है.कौन किस समय किसके साथ जुड़ रहा है, यह सब अस्थाई है. अमरीका और उसके सहयोगियों के लिए आई.एस को केवल डराना ही काफी है और उनके मुख्य दुश्मन ईरान-सीरिया-हिजबुल्लाह गठबंधन है. वहीँ सऊदी अरब,खाड़ी और अन्य के लिए आई.एस ईरान और सीरिया से लड़ने का एकमात्र जरिया है फिर चाहे वो उनके सिंहासनो के लिए हो दिक्कत क्यूँ न पैदा करे.

पश्चिमी अफ्रीका में चल रहे ये युद्ध अभी कुछ समय के लिए चलेंगे. यह ठीक उसी तरह है जिस तरह यमन अन्य ताकतों के साथ इस क्षेत्र के लिए लड़ रहा हो. यमन के युद्ध का परिणाम यह था कि होउथिस सत्ता में काबिज़ हो गए थे और अमरीका एवं सऊदी के हाँथ से सन्ना निकल गया था. यह देखें योग्य होगा कि यह युद्ध क्या परिणाम सामने लेकर आएगा. शायद इस युद्ध के अंत होने के बाद साम्राज्य बच पायेगा,आखिरकार जो बवंडर को जन्म देते हैं,उन्हें उसका भुगतान भी करना पड़ता है

अनुवाद- प्रांजल

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