कोरोना-Lockdown में जितना और जैसा ज़ुल्म मजदूरों और हर तबके के गरीबों पर ढाया गया है, वैसा कभी नहीं देखा गया. इस दौरान देश-विदेश से 'संभ्रांतों' को आने-लाने के बंदोबस्त हुए और हो रहे हैं पर मजदूरों पर लंबे समय तक पाबंदी रही
कोरोना-Lockdown में जितना और जैसा ज़ुल्म मजदूरों और हर तबके के गरीबों पर ढाया गया है, वैसा कभी नहीं देखा गया. इस दौरान देश-विदेश से 'संभ्रांतों' को आने-लाने के बंदोबस्त हुए और हो रहे हैं पर मजदूरों पर लंबे समय तक पाबंदी रही. वे कहीं रास्ते चलते-चलते थककर मर रहे हैं, कहीं बीमारी से तो कहीं टृेन से कुचलकर मर रहे हैं. आजादी के पहले और बाद में मिले मजदूरों के तमाम अधिकारों को भी छीनने का सिलसिला अब शुरू हुआ है. लोकतंत्र कहलाते मुल्क में देश की बड़ी आबादी के लिए 'दास-तंत्र' की वापसी कराई जा रही है! शासन 'कोरोना' को खत्म करना चाहता है या गरीब को? वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश का विश्लेषण:
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