NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
कर्ज़ माफ़ी : किसान आंदोलन की जीत, लेकिन संघर्ष अभी लंबा है
“हमारी लड़ाई तब तक जारी रहेगी जब तक किसान विरोधी नीतियों को वापस नहीं लिया जाता और कृषि में वैकल्पिक नीतियाँ नहीं लागू की जातीं।”
ऋतांश आज़ाद
18 Dec 2018
kisan

छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में कांग्रेस की नई सरकारों ने शपथ ग्रहण के तुरंत बाद किसानों की कर्ज़ माफी का ऐलान कर दिया है। अब देखना होगा यह ऐलान ज़मीन पर कब तक उतरेगा। इसे किसान आंदोलन की जीत के तौर पर देखा जा रहा है। जानकार कह रहे हैं कि यह किसान आंदोलन ही है जिसके चलते कर्ज़ माफी का मुद्दा चुनावी मुद्दा बना और सरकारों को यह कदम उठाना पड़ा। इससे पहले आंदोलनों के चलते ही महाराष्ट्र और राजस्थान की बीजेपी सरकारों ने भी कर्ज़ माफ किए थे हालांकि इन्हें ढंग से लागू नहीं किया गया था । 

छत्तीसगढ़ सरकार ने 16.65 लाख किसानों का सरकारी बैंकों से लिया 6100 करोड़ रुपये का कर्ज़ माफ करने का ऐलान कियाI मुख्यमंत्री भूपेश बाघेल का कहना है कि सहकारी बैंकों के कर्ज़ तुरंत माफ कर दिये जाएंगे और व्यावसायिक बैंको के कर्ज़ जाँच के बाद माफ किए जाएंगे। यह कर्ज़ माफी 30 नवंबर तक के कर्ज़ों के लिए होगी। साथ ही मुख्यमंत्री ने प्रति क्विंटल मक्के पर न्यूनतम समर्थन मूल्य को 1700 रुपये से  2500 रुपये करने का भी ऐलान किया।

मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस सरकार ने किसानों के 2 लाख तक के कर्ज़ माफ करने का ऐलान किया है। यह ऐलान कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनते ही हुआ। कहा जा रहा है कि इससे 34 लाख किसानों को फायदा होगा। 

किसान नेताओं ने इसे किसान आंदोलन की जीत तो कहा है लेकिन कुछ सावधानी बरतने की मांग भी की है। अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक धावले का कहना है “यह हक़ किसानों को भीख में नहीं मिला है यह छीन के लिया गया है।" उन्होंने कहा कि "महाराष्ट्र में भी इसी तरह कर्ज़ माफी का वादा किया गया था लेकिन उसमें इतनी पेचीदगियाँ डाल दीं गईं कि उससे किसानों का करीबन आधा हिस्सा कर्ज़ माफी से बाहर हो गया। एक अनुमान के अनुसार महाराष्ट्र के 80 लाख किसानों में से कर्ज़ माफी सिर्फ 35 लाख किसानों की हुई और वह भी पूरी नहीं हुई। बाकी हमारी आगे की प्रतिक्रिया ज़मीन पर इन नीतियों के उतरने के बाद ही ली जाएगी, अगर छोटे और मध्यम किसानों के सम्पूर्ण कर्ज़ माफ नहीं किए गए तो हम फिर से आंदोलन करेंगे।"

राजस्थान में भी इसी तरह 50,000 रुपये के कर्ज़ माफ किए गए थे। लेकिन यह सिर्फ सहकारी बैंकों के कर्ज़ों के लिए था, व्यावसायिक बैंक इसमें शामिल नहीं थे और न ही साहूकारों से लिए गए कर्ज़। बहुत बड़े स्तर पर किसान साहूकारों से कर्ज़ लेते हैं और इसपर बहुत ज़्यादा ब्याज भी देना पड़ता है।  यही वजह रही कि राजस्थान में किसान सभा ने इसके खिलाफ आंदोलन किया और सभी प्रकार की कर्ज़ माफी कि मांग की। 

साथ ही एक मुद्दा जो सामने आया वह यह भी है कि सरकारें न्यूनतम समर्थन मूल्य का ऐलान तो कर देती हैं। लेकिन किसानों से लाभकारी मूल्यों पर फसल कि खरीद नहीं करती, मजबूरन कम दाम पर किसानों को फसल बाज़ार में बेचनी पड़ती है। इसीलिए किसान स्वामीनाथन कमीशन के हिसाब से उपज के डेढ़ गुना दाम की मांग कर रहे हैं और यह भी माँग कर रहे हैं कि सरकार खुद इसी दाम पर फसल कि खरीद करे। 

उत्तर प्रदेश में भी कर्ज़ माफी का ऐलान हुआ था लेकिन वहाँ इसके नाम पर किसानों के साथ भद्दा मज़ाक किया गया। उत्तर प्रदेश सरकार ने हज़ारों किसानों के एक रुपये से लेकर 100 रुपये तक माफ किए। 

किसान सभा के सहसचिव  वीजू कृष्णन ने कहा "मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ ने किसानों की कर्ज़ माफी का ऐलान किया। यह किसानों के लगातार किए गए संघर्षों का नतीजा है। सरकार को भूमिहीन, किरायेदार किसानों और गरीब किसानों को कर्ज़ माफी के दायरे से बाहर नहीं रखना चाहिए। साहूकारों से लिए गए कर्ज़ों को भी इससे बाहर नहीं रखना चाहिए और केरल की तरह कर्ज़ मुक्ति कमीशन यहाँ भी बनाया जाना चाहिए। यह एक तथ्य है कि कर्ज़ माफी सिर्फ कुछ समय तक राहत देती है, जो कि कृषि संकट के दौर में ज़रूरी है। लेकिन यह बेकार है अगर नवउदारवादी नीतियों को न पलटा जाये, अगर ऐसा नहीं हुआ तो यह संकट बार-बार  दोहराता रहेगा और किसान फिर से कर्ज़ों  तले दब जाएंगे। हमारी लड़ाई तब तक जारी रहेगी जब तक किसान विरोधी नीतियों को वापस नहीं लिया जाता और कृषि में वैकल्पिक नीतियाँ नहीं लागू की जातीं।"
 

loan weaver
farmers movement
Chattisgarh
Madhya Pradesh
BJP
Congress

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    बिहार : गेहूं की धीमी सरकारी ख़रीद से किसान परेशान, कम क़ीमत में बिचौलियों को बेचने पर मजबूर
    30 Apr 2022
    मुज़फ़्फ़रपुर में सरकारी केंद्रों पर गेहूं ख़रीद शुरू हुए दस दिन होने को हैं लेकिन अब तक सिर्फ़ चार किसानों से ही उपज की ख़रीद हुई है। ऐसे में बिचौलिये किसानों की मजबूरी का फ़ायदा उठा रहे है।
  • श्रुति एमडी
    तमिलनाडु: ग्राम सभाओं को अब साल में 6 बार करनी होंगी बैठकें, कार्यकर्ताओं ने की जागरूकता की मांग 
    30 Apr 2022
    प्रदेश के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 22 अप्रैल 2022 को विधानसभा में घोषणा की कि ग्रामसभाओं की बैठक गणतंत्र दिवस, श्रम दिवस, स्वतंत्रता दिवस और गांधी जयंती के अलावा, विश्व जल दिवस और स्थानीय शासन…
  • समीना खान
    लखनऊ: महंगाई और बेरोज़गारी से ईद का रंग फीका, बाज़ार में भीड़ लेकिन ख़रीदारी कम
    30 Apr 2022
    बेरोज़गारी से लोगों की आर्थिक स्थिति काफी कमज़ोर हुई है। ऐसे में ज़्यादातर लोग चाहते हैं कि ईद के मौक़े से कम से कम वे अपने बच्चों को कम कीमत का ही सही नया कपड़ा दिला सकें और खाने पीने की चीज़ ख़रीद…
  • अजय कुमार
    पाम ऑयल पर प्रतिबंध की वजह से महंगाई का बवंडर आने वाला है
    30 Apr 2022
    पाम ऑयल की क़ीमतें आसमान छू रही हैं। मार्च 2021 में ब्रांडेड पाम ऑयल की क़ीमत 14 हजार इंडोनेशियन रुपये प्रति लीटर पाम ऑयल से क़ीमतें बढ़कर मार्च 2022 में 22 हजार रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गईं।
  • रौनक छाबड़ा
    LIC के कर्मचारी 4 मई को एलआईसी-आईपीओ के ख़िलाफ़ करेंगे विरोध प्रदर्शन, बंद रखेंगे 2 घंटे काम
    30 Apr 2022
    कर्मचारियों के संगठन ने एलआईसी के मूल्य को कम करने पर भी चिंता ज़ाहिर की। उनके मुताबिक़ यह एलआईसी के पॉलिसी धारकों और देश के नागरिकों के भरोसे का गंभीर उल्लंघन है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License