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‘करुणामय संघर्ष’ : बौद्ध काल की स्वतंत्रचेत्ता महिलाओं की कहानी
यशोधरा, मल्लिका, विशाखा और आम्रपाली ये वे महिलाएं हैं जिन्होंने आज से ढाई हज़ार साल पहले के समय में बेबाकी से स्त्री अधिकारों और स्त्री समानता की बात उठायी।
मुकुल सरल
29 Jun 2019
Dance

इत्तेफ़ाक़ रहा कि कल, शुक्रवार को ही मैंने बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा का महिलाओं के प्रति आपत्तिजनक बयान पढ़ा और कल ही बौद्ध काल की चार स्वतंत्रचेत्ता महिलाओं की कहानी पर आधारित नृत्य नाटिका ‘करुणामय संघर्ष’ देखी।

दलाई लामा ने बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में 2015 में दिए अपने विवादित बयान पर कायम रहते हुए दोहराया है कि अगर किसी महिला को उनका उत्तराधिकारी बनाया जाता है, तो वो महिला आकर्षक होनी चाहिए। क्योंकि अगर वो दिखने में अच्छी नहीं होगी, तो लोग उन्हें देखने नहीं आएंगे।

दलाई लामा तिब्बतियों के सर्वोच्च गुरु हैं और बौद्ध धर्म के प्रवर्तक लेकिन उनके विचार महात्मा बुद्ध के विचारों से मेल नहीं खाते। महात्मा बुद्ध ने हमेशा स्त्री सम्मान और स्त्री को बराबरी के अधिकार की बात कही।

उनके दौर की चार बहादुर स्त्रियों को लेकर सुनाई गई कहानी भी यही संदेश देती है। ये वे महिलाएं हैं जिन्होंने आज से ढाई हज़ार साल पहले के समय में बेबाकी से स्त्री अधिकारों और स्त्री समानता की बात उठायी और गौतम बुद्ध ने भी उनका समर्थन करते हुए जन समुदाय की शंकाओं का समाधान किया। और कुछेक जगह अपने विचारों में भी परिवर्तन किया।

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ये चार स्त्रियां थी, महात्मा बुद्ध की पत्नी यशोधरा, कोसल देश के एक मालाकार की बेटी और बाद में महारानी बनी मल्लिका, कपिलवस्तु के एक बड़े सेठ की बेटी विशाखा और अपूर्व सौंदर्य की स्वामिनी आम्रपाली, जिसे जबरन वैशाली की नगरवधु बना दिया गया।

दिल्ली के सत्य साईं इंटरनेशनल सेंटर में सामाजिक संस्था ‘एक्शन इंडिया’ की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम में अंजना चौधरी के निर्देशन में भरतनाट्यम पर आधारित इस नृत्य नाटिका में इन चार महिलाओं की कहानी को संक्षेप में लेकिन बेहद रोचक और सुंदर ढंग से दिखाया गया। इन कहानियों में ऐतिहासिक तौर पर कुछ फेरबदल हो सकता है लेकिन सभी अपने व्यापक अर्थों में स्त्री अधिकारों की बात करती हैं।

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पहली कहानी में दिखाया गया कि राजकुमारी यशोधरा राजकुमार सिद्धार्थ यानी गौतम बुद्ध के राजमहल छोड़ने के बाद अपने पुत्र राहुल का किस तरह माता और पिता दोनों की जिम्मेदारी निभाते हुए लालन-पालन करती हैं और राहुल को मठ में शामिल किए जाने के गौतम बुद्ध के निर्णय का विरोध करती हैं और अंतत: उन्हें इस बात पर सहमत कर लेती हैं कि मठ में बालकों को प्रवेश देना ठीक नहीं है। और बुद्ध यह नियम बनाते हैं कि मठ में केवल व्यस्क ही अपनी मर्जी से प्रवेश ले सकता है।  

इसी तरह कोसल या कौशल देश की महारानी मल्लिका ने बेटा-बेटी को एक समान बताते हुए स्त्री शिक्षा की बात की। यहां जब राजा प्रसेनजित दूसरी रानी के पुत्र को तो शिक्षा दिलाते हैं लेकिन मल्लिका की बेटी की शिक्षा रोक देते हैं तो मल्लिका इसका विरोध करती हैं और पूरा मामला महात्मा बुद्ध के सामने ले जाती हैं जो बताते हैं कि पुत्र-पुत्री एक समान हैं और दोनों को ही समान शिक्षा का अधिकार है।

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इसी तरह कपिलवस्तु के सेठ की बेटी विशाखा की दानशीलता और स्त्री धन पर अधिकार की कहानी नाटिका में दर्शायी गई। दिखाया गया कि किस तरह विशाखा का विवाह श्रावस्ती में एक कंजूस सेठ के बेटे से हो जाता है और कंजूस सेठ उसके मायके से मिले धन पर भी नज़र रखता है और उसे घर से निकालकर सारा धन हड़प लेना चाहता है। विशाखा इसका विरोध करती हैं। और अंतत: ये मामला भी गौतम बुद्ध के समक्ष जाता है और वे निर्णय देते हैं कि ससुराल में बहू को भी बेटी के सामान स्वतंत्र तौर पर रहने और जीने का अधिकार है।

अंतिम कहानी है आम्रपाली की। अपूर्व सुंदरी आम्रपाली का यही सौंदर्य उसके लिए अभिशाप बन जाता है और वैशाली की सभा उसके प्रेम विवाह पर रोक लगाकर उन्हें पूरे वैशाली की नगर वधु घोषित कर देती है। लेकिन शांति की तलाश में वह बुद्ध की शरण में आती हैं और मठ में प्रवेश चाहती हैं। बुद्ध कहते हैं कि मठ में स्त्रियों का प्रवेश तो वर्जित है तो वो फिर इसी पर तर्क करती हैं कि जब आप स्त्री-पुरुष समानता का सिद्धांत देते हैं तो फिर स्त्री को मठ में प्रवेश क्यों नहीं मिल सकता। बुद्ध इस पर पुनर्विचार करते हैं और मठ को स्त्रियों के लिए खोल देते हैं। तो ये कहानी है इन चार स्त्रियों के ‘करुणामय संघर्ष’ की, जिसे चार युवा नृत्यांगनाओं राशि चौधरी, रम्या कन्नन, वी सरद्विती और के. अभिलाषा ने बड़ी खूबसूरती से पेश किया। इनका साथ दिया नितीश, अंकुश, दानिश, जाकिर, सेहरुनिशा, हलिमा, कल्पना, गरिमा ने। गौतम बुद्ध के रोल में थे आमिर हमज़ा और उनके पुत्र राहुल की भूमिका में थे आदित्य विद्यार्थी।

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इससे पहले एक्शन इंडिया के सहयोग से महिलाओं की महावारी पर बनी ऑस्कर से सम्मानित फिल्म “पीरियड एंड ऑफ सेंटेंस”की स्क्रीनिंग की गई और पैनल डिस्कशन किया गया। फिल्म के बारे में एक्शन इंडिया की डायरेक्टर गौरी चौधरी ने विस्तार से बात रखी जबकि चर्चा में भाषा सिंह, शिप्रा झा, पूनम मुतरेजा ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम का संचालन सुलेखा सिंह और सरोज सागर ने बारी बारी से किया।

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अंत में कल्याणी वी ने धन्यवाद ज्ञापन दिया। कार्यक्रम में संस्था की दिल्ली महिला पंचायत से जुड़ीं महिलाओं और युवाओं ने बड़ी संख्या में शिरकत की।

 

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