NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
क्या झारखंड सरकार पत्रकारों को 'रिश्वत' दे रही है?
प्रदेश सरकार द्वारा जारी एक विज्ञापन के अनुसार पत्रकारों को सरकार की कल्याणकारी यो़जनाओं पर लिखने के ऐवज में सरकार की ओर से 15,000 रुपये दिए जाएंगे।
सोनिया यादव
18 Sep 2019
jharkhand

झारखंड में जल्द ही विधानसभा के चुनाव होने हैं। ऐसे में बीजेपी की रघुबरदास सरकार ने प्रदेश में पत्रकारों को लुभाने की कवायद शुरू कर दी है। झारखंड सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग द्वारा जारी किए गए एक विज्ञापन के अनुसार सरकार की कल्याणकारी योजनाओं पर लेख लिखने वाले पत्रकारों को सरकार द्वारा 15 हजार रुपए दिए जाएंगे।

क्या छपा है विज्ञापन में?

सरकार द्वारा 14  सितंबर को जारी इस विज्ञापन में सूचना दी गई है कि 16 सितंबर तक अपना विषय बताने वाले 30 पत्रकारों का चयन जनसंपर्क विभाग द्वारा गठित एक समिति करेगी। जिसके बाद पत्रकारों को संबंधित विषयों पर लिखने के लिए एक महीने का समय दिया जाएगा। इस दौरान पत्रकारों को अपना लेख अख़बार या किसी और जगह छपवाना होगा। फिर छपे लेख की कतरन को जनसंपर्क विभाग में जमा कराना होगा। वहीं, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकारों को अपने लेख के वीडियो प्रसारण का क्लिप जमा कराना होगा। इसके बाद इन पत्रकारों को प्रति आलेख अधिकतम 15 हजार रुपये तक का भुगतान किया जायेगा।
वहीं 25 लेखों को जनसंपर्क विभाग की विमोचित पुस्तिका में भी छापा जायेगा। इसके लिए लिखने वाले पत्रकारों को 5-5 हजार रुपये दिए जाएंगे।

quint-hindi%2F2019-09%2F125d1b85-8a6c-43eb-9cbe-7908d80dce7a%2Fpatrakaar(1).jpg

न्यूज़क्लिक से बातचीत में झारखंड सरकार के जनसंपर्क विभाग ने इस विज्ञापन की पुष्टि की है।

झारखंड भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता दीनदयाल वर्णवाल ने मीडिया से बातचीत में यह दावा किया कि पत्रकार लंबे समय से इसकी मांग कर रहे थे इसलिए सरकार ने यह कदम उठाया है। उन्होंने आगे कहा कि भाजपा सरकार ने अलग से कोई निर्णय नहीं लिया है। प्रदेश में अगर सरकार से पत्रकार कुछ मांग करते हैं तो सरकार उसे पूरा करती है।

क्या ये पत्रकारों की मदद है, मेहनताना है या खुलेआम रिश्वत देना है? क्यों न इसे पेड न्यूज़ कहा जाए? इस विज्ञापन के बाद पत्रकारों और अन्य हलकों में ये बहस शुरू हो गई है।

इस पूरे प्रकरण पर पत्रकारों की इस मांग का पता लगाने के लिए न्यूज़क्लिक ने प्रेस क्लब, रांची के अध्यक्ष राजेश कुमार सिंह ने बातचीत की। उन्होंने बताया कि रांची प्रेस क्लब द्वारा सरकार से या सरकार के किसी भी अधिकारी से ऐसी कोई मांग नहीं की गई है। सरकार अपनी वेलफेयर योजनाओं पर लेख लिखवाना चाहती है, ये सरकार का अपना फैसला है।
आगे उन्होंने कहा, 'अगर इस संबंध में किसी पत्रकार की कोई व्यक्तिगत मांग रही हो तो इसकी जानकारी उन्हें नहीं है।'

झारखंड में सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय सौरभ सिंह बताते हैं कि ये सरकार द्वारा अपनी योजनाओं का प्रचार-प्रसार का तरीका है। पहले जनसंपर्क क्षेत्र से जुड़े लोग यह काम करते थे लेकिन अब पत्रकारों को इसमें शामिल किया गया है। जाहिर है सरकार इसके जरिये पत्रकारों को अपने पक्ष में करना चाहती है।

झारखंड की ही पत्रकार ऋचा सिंह कहती हैं, ‘अगर कोई पत्रकार सरकार से पैसे लेगा तो वह सरकारी योजनाओं की खामियों को कैसे उजागर करेगा। ये सीधा-सीधा पत्रकारों को लुभाने का तरीका है।'

न्यूज़क्लिक ने इस तरह के विज्ञापनों पर अन्य पत्रकारों की राय जानने की कोशिश की...

कई सालों से मीडिया में कार्यरत विकास सिंह इस बारे में बताते हैं, 'सरकारें किसी न किसी तरह से मीडिया को अपने कंट्रोल में करना चाहती है। फिर चाहे वो दबाव बनाकर हो या रिश्वत देकर। ये पहले भी होता रहा है, लेकिन अब ये बीते कुछ सालों में अधिक हो गया है।'

पत्रकार प्रतीक्षा कहती हैं कि पहले पत्रकारों को टेबल के नीचे से या फिर अप्रत्यक्ष रूप से लालच दिया जाता था। लेकिन अब सरकार सीधा विज्ञापनों के माध्यम से खुलेआम लालच दे रही है। इस तरह सरकार अपनी योजनाओं का प्रचार करने के साथ-साथ पत्रकारों को खरीद भी रही है।

इस संदर्भ में झारखंड कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने मी़डिया से कहा कि बीजेपी सरकार मीडिया को अपने हक़ में करने का काम कर रही है और जो पत्रकार भाजपा का साथ नहीं देते, उनकी तारीफ नहीं करते हैं उन्हें नौकरी से निकलवा दिया जाता है। साथ ही उन्होंने सवाल किया कि भाजपा चुनावों से पहले ये क्यों कर रही है।

प्रसाद ने आगे कहा कि भाजपा सरकार के दौरान पत्रकारों का क्या हाल है सबको मालूम है जिस प्रकार से पत्रकारों का शोषण, प्रताड़ना और मीडिया मालिकों का प्रबंधन हो रहा है यह आम जनता देख रही है। भाजपा ये काम निहित स्वार्थ के लिए कर रही है और इस प्रकार का कदम लोकतंत्र को प्रभावित करेगा।

गौरतलब है कि पत्रकारों का काम सरकारों से सवाल करना है। प्रशासन की ख़ामियों और योजनाओं की नाकामियों को उजागर करना है, लेकिन अगर पत्रकार ही सरकार का गुणगान करेंगे तो निश्चित ही ख़बरें प्रभावित होंगी। 

Jharkhand government
Raghubar Das
Journalists
Paid News
Congress
BJP

बाकी खबरें

  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?
    22 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने पत्रकार और मेरठ दंगो को करीब से देख चुके कुर्बान अली से बात की | 35 साल पहले उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हुए बर्बर मलियाना-…
  • Modi
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक
    22 May 2022
    हर बार की तरह इस हफ़्ते भी, इस सप्ताह की ज़रूरी ख़बरों को लेकर आए हैं लेखक अनिल जैन..
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'
    22 May 2022
    बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।
  • diwakar
    अनिल अंशुमन
    बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका
    22 May 2022
    बिहार के चर्चित क्रन्तिकारी किसान आन्दोलन की धरती कही जानेवाली भोजपुर की धरती से जुड़े आरा के युवा जन संस्कृतिकर्मी व आला दर्जे के प्रयोगधर्मी चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर को एक जीवंत मिसाल माना जा…
  • उपेंद्र स्वामी
    ऑस्ट्रेलिया: नौ साल बाद लिबरल पार्टी सत्ता से बेदख़ल, लेबर नेता अल्बानीज होंगे नए प्रधानमंत्री
    22 May 2022
    ऑस्ट्रेलिया में नतीजों के गहरे निहितार्थ हैं। यह भी कि क्या अब पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन बन गए हैं चुनावी मुद्दे!
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License