NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
क्या उत्तर प्रदेश ही बाधा है भाजपा के विजयपथ में?
आख़िर यूपी में क्या कुछ बदल रहा है?, क्यों तमाम अनुकूल परिस्थितियों के बावजूद आज केंद्र में सरकार बनाने में सबसे बड़ी बाधा यूपी ही नज़र आ रहा है? क्यों चुनाव बाद योगी की विदाई की बात की जा रही है? ख़ास विश्लेषण...
संजय भटनागर
14 May 2019
सांकेतिक तस्वीर
Image Courtesy: Business Today

लोकसभा चुनाव प्रक्रिया अंतिम चरण में पहुँचते पहुँचते अचानक उत्तर प्रदेश के राजनीतिक हलकों में चर्चा ज़ोर पकड़ने लगी कि चुनाव के बाद क्या योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री पद से हटाया जायेगा। इस चर्चा में एक तर्क यह भी आता है कि भारतीय जनता पार्टी लोकसभा में उत्तर प्रदेश से कितनी सीटें पाती है, यह संख्या योगी का भविष्य निर्धारित करेगी।  साफ़ है कि पूरे देश के साथ साथ भाजपा का कलेजा भी उत्तर प्रदेश में ही अटका है और 2019 के चुनाव में केंद्र सरकार की रूपरेखा 80 लोकसभा सीट वाले उत्तर प्रदेश से ही तय होनी है। 

अब वापस योगी आदित्यनाथ पर आते हैं और उनके शासनकाल की ओर नज़र डालते हैं और फिर दूसरी दृष्टि डालते हैं भाजपा की चुनावी व्यूह-रचना पर। योगी को उत्तर प्रदेश (यूपी) में शासन करते हुए दो वर्ष हुए हैं।  उन्हें एक भगवाधारी महंत के रूप में प्रदेश का मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया और ऐसा आभास दिया कि वह भाजपा के हिंदुत्व की मशाल थामकर हिन्दुओं के पहरुए के रूप में अपनी छवि बनाएंगे।  किसी हद तक ऐसा हुआ भी और गोवध जैसे तमाम मुद्दे सामने आ गए और योगी कट्टर हिंदूवाद के पर्यायवाची के रूप में देखे जाने लगे। 

मतलब यह कि सब कुछ भाजपा की योजना और रणनीति के अनुसार हुआ। केंद्र में भाजपा, प्रदेश में बड़े बहुमत के साथ भाजपा, दोनों ही स्थानों पर विपक्ष कमज़ोर अर्थात राजनीतिक रूप से बेहद आरामदेह स्थिति।  पिछले विधानसभा चुनाव का बहुमत देखते हुए और 2014 लोकसभा में 80 में से 73 (भाजपा 71 और 2 सहयोगी दल) सीटें पाने के बाद भाजपा के दोनों हाथ घी में लग रहे थे। 

यह भाजपा के लिए विडंबना ही कही जाएगी कि इतनी अनुकूल परिस्थितियों के बावजूद आज केंद्र में सरकार बनाने में सबसे बड़ी बाधा उत्तर प्रदेश ही नज़र आ रहा है।  समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन ने भाजपा के सामने जो कड़ी चुनौती पेश की है उसे देखते हुए योगी के हिंदुत्व पर एक दो सवाल तो उठाये ही जा सकते हैं।  देखा जाये तो मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान को तीन बार लगातार करीब 13 बरस मुख्यमंत्री रहने के बाद ही हटाया जा सका, राजस्थान में वसुंधरा राजे और छत्तीसगढ़ में रमन सिंह की सरकार को भी अलोकप्रिय होने में समय लगा लेकिन योगी के सिर्फ दो साल के कार्यकाल में ऐसी स्थिति क्योंकर हो गयी कि भाजपा अगर 73 से घटकर 45-50 सीटें ही पा ले तो अपने को धन्य समझेगी।  यह बिलकुल सत्य है कि उत्तर प्रदेश में लोकसभा सीटों की संख्या पर ही केंद्र में भाजपा सरकार का भविष्य टिका है। 

अब स्वाभाविक प्रश्न यह है कि योगी सरकार ने ऐसा क्या कर दिया जो उत्तर प्रदेश भाजपा की लीडरशिप के लिए फाँस बन गया है। वास्तविकता यह है कि योगी सरकार ने कुछ भी नहीं किया यानी ऐसा कुछ नहीं किया जिससे जनता वाह-वाह कर उठे।  शुरू से ही नकारात्मकता धारण किये योगी सरकार ने अपनी योजनाओं पर ध्यान न देते हुए पिछली सरकार की कमियां ढूढ़ने में इतना अधिक वक्त लगा दिया कि उन्हें आभास ही नहीं हुआ कि समय मुट्ठी में रेत  की तरह फिसलता है। हिंदुत्व की ओवरडोज़ में वह और पार्टी यह भूल गए कि इतने बड़े बहुमत की मांग कुछ और ही है। 

दो साल, जी हाँ! दो साल में योगी आदित्यनाथ ने यह स्थिति ला दी है कि भाजपा को सोचना पड़ेगा कि क्या हिंदुत्व के किसी विशेष चेहरे की उसे आवश्यकता भी है कि नहीं।  अगर यह सही कदम था तो लोकसभा चुनाव में उसे उत्तर प्रदेश में इतना संघर्ष क्यों करना पड़ रहा है।  कल तक पार्टी के आँख का तारा बने योगी आज अपनी ही पुरानी सीट गोरखपुर के बारे में भी पूर्णतया आश्वस्त नहीं होंगे। उनको हटाने की चर्चा ग़लत भी हो सकती है लेकिन अगर है तो क्यों उठी, वह भी इस समय जब लोकसभा चुनाव अपने अंतिम चरण में है।  एक बात तो तय है कि मतदाता सकारात्मक विकास चाहता है, झंडे और झंडाबरदारों को किनारे करने में उसे तनिक भी देर नहीं लगती है। 

आने दीजिये 23 मई और उत्तर प्रदेश के परिणाम निश्चित रूप से भारतीय राजनीति की एक दिशा निर्धारित करेंगे और आने वाले समय में मुद्दों का भी। 

2019 आम चुनाव
General elections2019
2019 Lok Sabha elections
Uttar pradesh
Narendra modi
Yogi Adityanath
BJP
Hindutva
Gathbandhan
SP-BSP-RLD
MAYAWATI
AKHILESH YADAV
AJIT SINGH
Congress
Rahul Gandhi

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

डिजीपब पत्रकार और फ़ैक्ट चेकर ज़ुबैर के साथ आया, यूपी पुलिस की FIR की निंदा


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोदी सरकार के 8 साल: सत्ता के अच्छे दिन, लोगोें के बुरे दिन!
    29 May 2022
    देश के सत्ताधारी अपने शासन के आठ सालो को 'गौरवशाली 8 साल' बताकर उत्सव कर रहे हैं. पर आम लोग हर मोर्चे पर बेहाल हैं. हर हलके में तबाही का आलम है. #HafteKiBaat के नये एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार…
  • Kejriwal
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: MCD के बाद क्या ख़त्म हो सकती है दिल्ली विधानसभा?
    29 May 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस बार भी सप्ताह की महत्वपूर्ण ख़बरों को लेकर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन…
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
    29 May 2022
    गोडसे जी के साथ न्याय नहीं हुआ। हम पूछते हैं, अब भी नहीं तो कब। गोडसे जी के अच्छे दिन कब आएंगे! गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
  • Raja Ram Mohan Roy
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या राजा राममोहन राय की सीख आज के ध्रुवीकरण की काट है ?
    29 May 2022
    इस साल राजा राममोहन रॉय की 250वी वर्षगांठ है। राजा राम मोहन राय ने ही देश में अंतर धर्म सौहार्द और शान्ति की नींव रखी थी जिसे आज बर्बाद किया जा रहा है। क्या अब वक्त आ गया है उनकी दी हुई सीख को अमल…
  • अरविंद दास
    ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली
    29 May 2022
    प्रख्यात निर्देशक का कहना है कि फिल्मी अवसंरचना, जिसमें प्राथमिक तौर पर थिएटर और वितरण तंत्र शामिल है, वह मुख्यधारा से हटकर बनने वाली समानांतर फिल्मों या गैर फिल्मों की जरूरतों के लिए मुफ़ीद नहीं है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License