NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
नज़रिया
भारत
राजनीति
क्या वाकई कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है?
लोकसभा में बुरी हार, कर्नाटक संकट, गोवा में विधायकों का पार्टी छोड़ना और मध्य प्रदेश व राजस्थान में पार्टी के भीतर चल रही उठापठक से ‘नेतृत्वविहीन’ कांग्रेस के संकट बढ़ते जा रहे हैं। 
अमित सिंह
12 Jul 2019
फाइल फोटो
image courtesy: DNA

चाय की दुकानों से लेकर सियासी बहसों तक हर जगह अब ये बात सर्वमान्य तौर पर स्वीकार की जा रही है कि ‘नेतृत्वविहीन’ कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। कहते हैं कि हार-जीत तो राजनीति का एक हिस्सा है, लेकिन अभी कांग्रेस की स्थिति शुतुरमुर्ग की तरह हो गई है। जैसे वह खतरा देखते ही मिट्टी में अपना सिर छिपा लेता है वैसे ही कांग्रेस खतरे को देखकर झोल-मोल वाली स्थिति में आ जाती है। 

कांग्रेस इससे पहले भी इंदिरा और राजीव के जमाने में हारी थी, लेकिन इस बार की हार से कांग्रेस का आत्मविश्वास डगमगा गया है। इसमें सबसे बड़ी समस्या नेतृत्व को लेकर है। दरअसल कांग्रेस में नए नेतृत्व का चुनाव होना है। उस नेतृत्व को लोकसभा में बुरी हार, कर्नाटक संकट, गोवा में विधायकों का पार्टी छोड़ना और मध्य प्रदेश व राजस्थान में पार्टी के भीतर चल रही उठापठक जैसी समस्या से निपटना है। पार्टी का जनाधार तेजी से घट रहा है, नेता और कार्यकर्ता हतोत्साहित हैं। ऐसे में निसंदेह चुनौती बड़ी है। 

कांग्रेस कार्यसमिति नये अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया कब तय करेगी, अभी यही निश्चित नहीं है। इस बीच कांग्रेसियों में बेचैनी बढ़ रही है। कांग्रेस विरोधी ताकतें, विशेष रूप से भाजपा, इस कमजोरी का लाभ उठाने से नहीं चूक रही। ये बात भी साफ है कि ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का सपना देखने वाली भाजपा कांग्रेसी नेताओं के सहारे ही इस सपने को पूरा करना चाह रही है।

यहां तक की भाजपा ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ करने की इतनी जल्दी में है कि उसने छह माह पहले कांग्रेस से भाजपा में आए नेता को मुख्यमंत्री बना दिया है। ऐसे दूसरे बहुत से नेता मंत्रिपद हासिल कर लिए हैं। यानी आपका विरोधी खतरनाक खेल खेलने के पूरे मूड में है। हमने यह खेल भाजपा शासन के पहले दौर में अरुणाचल प्रदेश से लेकर उत्तराखंड में देखा। अब दूसरी पारी में बाकी बचे नेताओं को टारगेट करके इस अभियान को पूरा किया जा रहा है। 

दरअसल कांग्रेस में नेतृत्व संकट न होता और कमान मजबूत हाथों में होती, तो कांग्रेसी विधायकों को ‘तोड़ना’ इतना आसान नहीं होता। लेकिन इस बार समस्या यह भी है कि एक युग से कांग्रेसियों को नेहरू-गांधी परिवार के नेतृत्व की आदत हो गयी है। दूसरी समस्या कांग्रेस के भीतर नये और पुराने नेताओं के आसन्न टकराव की है। 

ये टकराव हमने राजस्थान और मध्य प्रदेश में देखा। दोनों राज्यों में विजय के बाद मुख्यमंत्री चुनने में राहुल गांधी को भी पसीने आ गये थे, क्योंकि नई पीढ़ी पुराने कांग्रेसियों को खुली चुनौती दे रही थी। सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया नई पीढ़ी के ऐसे प्रभावशाली प्रतिनिधि हैं, जो पुराने नेतृत्व से कांग्रेस को मुक्त करना चाहते हैं।
 
राहुल गांधी की ताजपोशी के बाद नयी पीढ़ी को ताकत भी मिली थी, किंतु स्वयं राहुल युवा नेतृत्व को राज्यों की कमान देने का साहस नहीं दिखा पाये। उनके अध्यक्ष रहते भी युवा कांग्रेसी नेताओं को दूसरे पायदान से ही संतोष करना पड़ा। 

इसके पीछे शायद राहुल का खुद का भी परफारमेंस रहा होगा। उपाध्यक्ष बनने के बाद से ही राहुल को लगातार हार का सामना करना पड़ा। बाद में जब वो अध्यक्ष बने तो सिर्फ तीन राज्यों छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में पार्टी को जीत हासिल हुई है। इसके बाद भी लोकसभा में पार्टी को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा है। यानी राहुल पार्टी की नई पीढ़ी बनाम पुरानी पीढ़ी की लड़ाई का हल नहीं ढूढ़ पाए और पद छोड़ दिया। 

ऐसे में बहुत सारे सवाल उठ रहे हैं। क्या वाकई कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है? क्या कांग्रेस का कायाकल्प सिर्फ नेहरू-गांधी परिवार के नेतृत्व में ही संभव है? कांग्रेस की ऐसी हालत का ज़िम्मेदार कौन है? इस स्थिति से उबरने का क्या कोई रास्ता नज़र आता है? क्या सॉफ्ट हिंदुत्व और सॉफ्ट सेकुलरिज़्म कांग्रेस को उबार सकते हैं? नए नेतृत्व के सामने सबसे बड़ी चुनौती क्या है? अभी के समय कांग्रेस की जो हालत है वह किस तरफ इशारा कर रही है?

इन सारे सवालों पर वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश कहते हैं, 'इस लोकसभा चुनाव में तमाम क्षेत्रीय दलों के सफाए के बाद बहुत सारे लोगों को सीटें कम होने के बावजूद कांग्रेस का भविष्य बेहतर दिख रहा था लेकिन जो ताजा घटनाक्रम हुए और जिस तरह से नेतृत्व को लेकर अनिश्चितता की स्थिति बनी है, उसके बाद इस तरह के आंकलन करने वाले लोगों को भी निराशा हुई है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि अगर कांग्रेस को राष्ट्रीय राजनीति में अपना महत्व बनाए रखना है तो उसको तत्काल एक निर्वाचित अध्यक्ष सामने लाना चाहिए। राहुल अगर अध्यक्ष नहीं रहना चाहते तो उनका विकल्प ढूंढना चाहिए। निसंदेह कांग्रेस को इस बात को खत्म करना होगा कि नेहरू गांधी परिवार के बगैर पार्टी नहीं चल सकती है। इस तरह की सोच एक पार्टी और संगठन के लिए बहुत नकारात्मक है।'

वे आगे कहते हैं, 'कांग्रेस को इस परिस्थिति को अवसर की तरह लेना चाहिए। पार्टी को दोबारा से संगठित करना चाहिए। नई कतार के नेताओं को सामने लाना चाहिए। हो सकता है कि कांग्रेस के पास अध्यक्ष पद के लिए कोई सर्वमान्य नाम न हो तो इसके बजाय उन्हें टीम वर्क पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उसी टीम में किसी को अध्यक्ष चुनकर पार्टी को आगे बढ़ाया जाय। राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है।'  

गौरतलब है कि राजनीतिक दलों का कमजोर नेतृत्व और मूल्यहीनता जैसे कारक हमारे लोकतंत्र और संविधान की बार-बार परीक्षा लेते हैं। इसीलिए सिर्फ सशक्त सरकार ही नहीं बल्कि सशक्त विपक्ष को भी लोकतंत्र की सेहत के लिए अनिवार्य कहा गया है। मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस की यह स्थिति इसी लिए खतरनाक मानी जा रही है। 

वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी कहते हैं, 'ये जो भी संकट है कांग्रेस के सामने यह लोकसभा चुनाव में मिली हार का परिणाम है जो अब धीरे धीरे सामने आ रहा है। मुद्दा यह है कि क्या पार्टी इन सारे चीजों को संभाल पाएगी? क्या इन चीजों को रोककर कहानी को बदल पाएगी। इसका हमें इतंजार करना होगा। सबसे पहले नए अध्यक्ष और नए नेतृत्व के चुनाव को देखना होगा। उसका स्वरूप कैसा होता है। दरअसल इसी सवाल का जवाब न मिल पाने का कारण संशय, भ्रम और अनिश्चितत की स्थिति बनी है। राज्यों में आए संकट में इसकी भी भूमिका है। अगर स्थिति ऐसी रही तो कुछ और राज्यों में संकट का सामना करना पड़ सकता है। आगामी दिनों में होने वाले विधानसभा चुनाव इस स्थिति को और साफ करेंगे। पार्टी का नेतृत्व और पार्टी का अनुशासन ही इसकी दिशा तय करेगा। कुछ भी कहने से पहले हमें कुछ दिन इंतजार करना होगा।'

 

karnataka
Congress
Rahul Gandhi
goa
Indian National Congress
sonia gandhi

Related Stories

ख़बरों के आगे-पीछे: केजरीवाल के ‘गुजरात प्लान’ से लेकर रिजर्व बैंक तक

ख़बरों के आगे-पीछे: पंजाब में राघव चड्ढा की भूमिका से लेकर सोनिया गांधी की चुनौतियों तक..

हिजाब मामले पर कोर्ट का फ़ैसला, मुस्लिम महिलाओं के साथ ज़्यादतियों को देगा बढ़ावा

त्वरित टिप्पणी: जनता के मुद्दों पर राजनीति करना और जीतना होता जा रहा है मुश्किल

मणिपुरः जो पार्टी केंद्र में, वही यहां चलेगी का ख़तरनाक BJP का Narrative

चुनाव नतीजों के बाद भाजपा के 'मास्टर स्ट्रोक’ से बचने की तैयारी में जुटी कांग्रेस

गोवा चुनाव: सिविल सोसायटी ने जारी किया गोवा का ग्रीन मेनिफेस्टो

यूपी चुनाव हलचल: गठबंधन के सहारे नैया पार लगाने की कोशिश करतीं सपा-भाजपा

गोवा चुनावः क्या तृणमूल के लिये धर्मनिरपेक्षता मात्र एक दिखावा है?

नज़रिया: प्रशांत किशोर; कांग्रेस और लोकतंत्र के सफ़ाए की रणनीति!


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    जम्मू-कश्मीर परिसीमन से नाराज़गी, प्रशांत की राजनीतिक आकांक्षा, चंदौली मे दमन
    07 May 2022
    हफ़्ते की बात के इस अंक में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश बात कर रहे हैं जम्मू-कश्मीर के परिसीमन की। साथ ही वे नज़र डाल रहे हैं प्रशांत किशोर की राजनीतिक सियासत की।
  • रवि शंकर दुबे
    तीन राज्यों में उपचुनाव 31 मई को: उत्तराखंड में तय होगा मुख्यमंत्री धामी का भविष्य!
    07 May 2022
    चुनाव आयोग ने तीन राज्यों की तीन सीटों पर विधानसभा चुनावों की तारीख घोषित कर दी है, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण उत्तराखंड की चंपावत सीट को माना जा रहा है। क्योंकि यहां से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी…
  • पीपुल्स डिस्पैच
    पाकिस्तान में बलूच छात्रों पर बढ़ता उत्पीड़न, बार-बार जबरिया अपहरण के विरोध में हुआ प्रदर्शन
    07 May 2022
    राष्ट्रीय राजधानी इस्लामाबाद में पंजाब विश्वविद्यालय (पीयू) के परिसर से दिन दहाड़े एक बलूच छात्र बेबाग इमदाद को उठाए जाने के बाद कई छात्र समूहों ने इसके विरोध में प्रदर्शन किया।
  • राहुल कुमार गौरव
    पिता के यौन शोषण का शिकार हुई बिटिया, शुरुआत में पुलिस ने नहीं की कोई मदद, ख़ुद बनाना पड़ा वीडियो
    07 May 2022
    पीड़ित बेटी ने खुद अपने पिता की गंदी करतूत का वीडियो बनाया और फिर उसे लेकर थाने पहुंची। पीड़ित की शिकायत के बाद पुलिस ने गुरुवार को 50 वर्षीय आरोपी पिता को गिरफ्तार कर लिया है। लेकिन पीड़िता को अपने…
  • सुबोध वर्मा
    ओडिशा: अयोग्य शिक्षकों द्वारा प्रशिक्षित होंगे शिक्षक
    07 May 2022
    शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए उपलब्ध 8 कॉलेजों में 62 फैकल्टी हैं, जिनमें से सिर्फ 20 रेगुलेटरी बॉडी की योग्यता के मानदंडों को पूरा करते हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License