NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
संस्कृति
भारत
राजनीति
"खाऊंगा, और खूब खाऊंगा" और डकार भी नहीं लूंगा !
सरकार यहां खा यहीं पचाने देने के लिए तैयार नहीं है। हां, यहां खा कर पचाने के लिए विदेश गये लोगों को हर संभव सहायता प्रदान करेगी।
डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
03 Feb 2019
सांकेतिक तस्वीर
Image Courtesy : Satyaday News

आदरणीय प्रधानमंत्री जी की दो घोषणायें बहुत ही प्रसिद्ध हुई हैं। आज भी उनकी इन दोनों बातों का जिक्र बार बार होता रहता है। पहली, प्रधानमंत्री बनने से पहले- हर एक के अकाउंट में पन्द्रह लाख रुपये आने की। दूसरी, प्रधानमंत्री बनाने के बाद- "न खाऊंगा न खाने दूंगा"। पहली तो जुमला निकली। यह मेरा मानना नहीं है, उनके पार्टी अध्यक्ष ही पंद्रह लाख रुपये वाली बात को जुमला बता चुके हैं, इसलिए दूसरी घोषणा की बात करते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा था कि "न खाऊंगा, न खाने दूंगा"। मोदी जी ने यह बात तब कही, जब वे जम्मू कश्मीर में भाषण दे रहे थे। जैसे जब किसी पड़ोसी से लड़ाई झगड़ा हो और जो कुछ उससे कहना हो, उसके घर जा कर तो कह नहीं सकते। अपने और उसके घर की बीच की दीवार के पास जा कर जो कुछ उसे सुनाना हो, जोर जोर से बोल देते हैं। मुझे लगा, ऐसा ही कुछ मोदी जी ने किया है। पाकिस्तान की सीमा के पास जा कर बोल दिया "न खाऊंगा, न खाने दूंगा"। कि मोदी जी पाकिस्तान के लोगों को कह रहे हैं, मैं न तो तुम्हें खाने दूंगा और न ही खुद खाऊंगा। दोनों भूखे मरेंगे। मुझे समझ में आया कि पाकिस्तान की कारस्तानियों को रोकने के लिए मोदी जी उन्हें तो भूखा मारना चाहते हैं, खुद भी भूखा मरने के लिए तैयार हैं। मैं बहुत प्रभावित हुआ। देश के प्रधानमंत्री, देश के लिए भूखे मरने को भी तैयार!

Teerchi-nazar 2 (1)_2.jpg

तभी किसी मित्र ने बताया, मोदी जी बोल भले ही कश्मीर में रहे थे पर बोल वे भारत के बारे में ही रहे थे। मुझे लगा, देश की भुखमरी के बारे में बोल रहे होंगे। बोलना चाहते थे, तब तक नहीं खाऊंगा जब तक सबको खिला नहीं दूंगा। पर बोल गए, न खाऊंगा न खाने दूंगा। पर एक उलझन अभी भी बरकरार थी। अगर भुखमरी पर ही बोलना था तो कहीं भी बोल सकते थे, कश्मीर में ही बोलने की क्या जरूरत थी। और कालाहांडी में बोलते तो बात और भी समझ में आती कि प्रधानमंत्री जी भुखमरी से चिंतित हैं। चलो, फिर भी शायद अमीरों से कह रहे हों कि तब तक न तो तुम्हें खाने दूंगा और न ही खुद खाऊंगा जब तक गरीबों को भरपेट खाना नहीं खिला देता।

अब भी वही मित्र काम आये। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री जी रिश्वत के बारे में बोल रहे थे न कि भुखमरी के बारे में। न रिश्वत खाऊंगा और न रिश्वत खाने दूंगा। पर यह बात बोलनी थी तो दिल्ली में बोलते, मुम्बई या कोलकाता में बोलते। जहां सभी, मंत्री से संतरी तक विराजमान हैं और वहीं सबसे ज्यादा रिश्वत ली और दी जाती है। कश्मीर में बोलने का क्या फायदा। पर उलझन बनी ही रही। अभी हाल में ही समझ आया है कि प्रधानमंत्री जी का असली मतलब क्या था।

प्रधानमंत्री जी असलियत में कहना चाहते थे कि अब वे प्रधानमंत्री बन गये हैं इसलिए न खायेंगे न खाने देंगे। कम से कम देश में खाना मना है। इसीलिए प्रधानमंत्री जी ने पहले खाने पीने की चीजें खूब महंगी की। महंगाई थोड़ी कंट्रोल हुई तो नोट बंदी और फिर जीएसटी। यानी जो लोग थोड़ा बहुत खा पी सकते हैं वे भी न खा पायें। और जो लोग खा पी चुके हैं, चाहे पहले के शासन काल में खाये पीये हों या फिर इस शासन काल में, पचाने के लिए विदेश चले जायें। सरकार यहां खा यहीं पचाने देने के लिए तैयार नहीं है। हां, यहां खा कर पचाने के लिए विदेश गये लोगों को हर संभव सहायता प्रदान करेगी। और जिन्हें देश में खाने में शर्म आती है या फिर अपनी इमेज की चिंता है, विदेश जा कर, अमेरिका, इंग्लैंड या फ्रांस जा कर खा सकते है।

अंततः- "न खाऊंगा, न खाने दूंगा" की परिणिति हुई है, "खाऊंगा, और खूब खाऊंगा"  और डकार भी नहीं लूंगा।

Satire
Political satire
hindi literature
व्यंग्य
राजनीतिक व्यंग्य
Narendra modi
Modi Govt

Related Stories

समीक्षा: तीन किताबों पर संक्षेप में

इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय में 9 से 11 जनवरी तक अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन

एक का मतलब एकता होना चाहिए एकरूपता नहीं!

हिंदी आख़िर किसकी मातृभाषा है?

नए भारत के विचार को सिर्फ़ जंग चाहिए!

आतिशी के ख़िलाफ़ पर्चा अदब ही नहीं इंसानियत के ख़िलाफ़ है

तिरछी नज़र : प्रधानमंत्री का एक और एक्सक्लूसिव इंटरव्यू

मोदी VS विवेक ओबेरॉय : कौन है बेहतर अभि-नेता? भारत एक मौज, सीज़न-3, एपिसोड-2

वीडियो : अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमले के ख़िलाफ़ कलाकार हुए एकजुट

बनारसियों को ख़ारिज कर कौन सा बनारस बना रहे हो बाबू!


बाकी खबरें

  • राज वाल्मीकि
    दलितों पर बढ़ते अत्याचार, मोदी सरकार का न्यू नॉर्मल!
    27 May 2022
    दलित परिप्रेक्ष्य से देखें तो इन आठ सालों में दलितों पर लगातार अत्याचार बढ़े हैं। दलित हत्याओं के मामले बढ़े हैं। दलित महिलाओं पर बलात्कार बढ़े हैं। जातिगत भेदभाव बढ़े हैं।
  • रवि शंकर दुबे
    उपचुनाव:  6 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश में 23 जून को मतदान
    27 May 2022
    उत्तर प्रदेश की आज़मगढ़ और रामपुर लोकसभा सीट समेत 6 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश में 23 जून को मतदान होंगे।
  • एजाज़ अशरफ़
    ज्ञानवापी कांड एडीएम जबलपुर की याद क्यों दिलाता है
    27 May 2022
    आपातकाल के ज़माने में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले ने ग़लत तरीक़े से हिरासत में लिये जाने पर भी नागरिकों को राहत देने से इनकार कर दिया था। और अब शीर्ष अदालत के आदेश से पूजा स्थलों को लेकर विवादों की झड़ी…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 2,710 नए मामले, 14 लोगों की मौत
    27 May 2022
    महाराष्ट्र में 83 दिनों के बाद कोरोना के 500 से ज़्यादा 511 मामले दर्ज किए गए है | महराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कहा है की प्रत्येक व्यक्ति को सावधान और सचेत रहने की जरूरत है, क्योंकि कोरोना…
  • एम. के. भद्रकुमार
    90 दिनों के युद्ध के बाद का क्या हैं यूक्रेन के हालात
    27 May 2022
    रूस की सर्वोच्च प्राथमिकता क्रीमिया के लिए एक कॉरिडोर स्थापित करना और उस क्षेत्र के विकास के लिए आर्थिक आधार तैयार करना था। वह लक्ष्य अब पूरा हो गया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License