NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
लातेहार लिंचिंगः राजनीतिक संबंध, पुलिसिया लापरवाही और तथ्य छिपाने की एक दुखद दास्तां
इस मामले के मुख्य आरोपी को अभी तक गिरफ़्तार नहीं किया गया है। बताया जाता है कि मुख्य आरोपी बीजेपी का स्थानीय नेता है।
तारिक अनवर
26 Jul 2018
Latehar lynching

मवेशियों का व्यापार करने वाले दो लोग मज़़लूम अंसारी (32) और इम्तियाज खान (11) को भीड़ ने पहले तो बुरी तरह पीटा और जब दोनों बेहोश हो गए तो उन्हें नज़दीक के जंगल में दोनों के गर्दन में फंदा लगाकर पेड़ से लटका दिया। ये घटना 18 मार्च, 2016 को हुई जो झारखंड के लातेहार ज़िले के झाबर गांव की है। गाय के नाम पर राज्य में भीड़ द्वारा हत्या की यह पहली घटना है।

जब दोनों अपने बैल के आख़िरी झुंड को चतरा के पशु मेले मे बेचने जा रहे तो रास्ते में घात लगाए कुछ लोग बैठे थे। मवेशियों के कारोबार को लेकर धमकी मिलने के बाद वे इसे बेचकर दूसरा कोराबार शुरू करने वाले थे।

ये घटना उत्तर प्रदेश के दादरी के निवासी मोहम्मद अख़लाक़ की गोमांस के नाम पर कथित पर हुई हत्या के ठीक पांच महीने बाद हुई थी। भीड़ ने घर में कथित तौर पर गोमांस होने को लेकर अख़लाक़ की पीट पीटकर हत्या कर दी थी।

प्रत्यक्षदर्शी के बयान, सकारात्मक पोस्ट-मॉर्टम रिपोर्ट, इक़बालिया बयान और घटना की पुष्टि करने वाले साक्ष्य के बावजूद झारखंड पुलिस उन लोगों पर मुकदमा चलाने में असमर्थ रही है जिन्होंने दोनों को मार डाला था। पीड़ितों के परिवारों ने आरोप है कि पुलिस मामले को दबाना चाहती है।

कम से कम तीन लोगों ने इस दर्दनाक घटना को होते हुए देखा। आज़ाद खान (मृत इम्तियाज़़ के पिता), मुनव्वर अंसारी (मज़़लूम के छोटे भाई) और मोहम्मद निज़ामुद्दीन जिन्होंने इसे देखा।

आज़ाद खान और मोहम्मद निज़ामुद्दीन मज़़लूम के व्यापारिक साझीदार थे और वे मवेशी व्यापारी थे जो बैल का ख़रीद फ़रोख़्त करते थे।

दोनों पीड़ितों के परिवारों का कहना है कि मॉब लिंचिंग के ये घटना पूर्व-नियोजित थी न कि अचानक हुई घटना थी।

मज़लूम की पत्नी सायरा बीबी ने न्यूज़क्लिक को बताया कि "आरोपी अरुण साओ और बंटी साओ हमारे पति को चेतावनी देने के लिए हमारे घर आए थे जो उस समय स्नान कर रहे थे। उन्होंने पति से कहा कि मवेशियों का कारोबार बंद कर दो नहीं तो तुम्हें मार देंगे।"

सायरा ने आगे कहा, "उन्होंने उन्हें पहले भी धमकी दी थी। इसलिए मेरे पति और उनके साथी ने दूसरे पशु मेले से ख़रीदे गए बैल को बेचने के फैसला किया था और दूसरा कारोबार शुरू करने की योजना बनाई थी।"

उस समय आज़ाद बीमार था इसलिए उसने अपने 11 वर्षीय बेटे को मज़लूम के साथ पशु मेले में अपना बैल बेचने के लिए जाने को कहा था। मवेशियों के झुंड के साथ दोनों सुबह सूर्य निकलने से पहले पशु मेले के लिए पैदल चलने का फैसला किया।

आज़ाद ने रूंधी आवाज़ में कहा, "झुंड के साथ जाने के तुरंत बाद हम लोगों को उनके बारे में जानकारी दी गई कि दोनों को कुछ लोगों ने उठा लिया है और दोनों मज़लूम और मेरे बेटे को चंदवा के जंगल में ले गए हैं। मैं उस जंगल के इलाक़े में पहुंचा। मैंने झाबर के पास मुख्य सड़क पर बैल देखा। इसके बाद मैं जंगल की तरफ बढ़ा, और अपने बेटे को मदद के लिए चिल्लाते सुना। जब मैं क़रीब गया तो मैंने देखा कि एक गुस्साई भीड़ निर्दयतापूर्वक इम्तियाज़़ और मज़़लूम को पीट रही है। हमलावर इतने हिंसक थे कि मैं वहां तक जाने और उन्हें बचाने का साहस नहीं कर सका। डर से मैं झाड़ियों में छुप गया। मुझे डर था कि वे मुझे भी मार सकते हैं। मैं इतना असहाय था कि मैं अपने बेटे और मज़लूम को बचा नहीं सका। इसके बाद भीड़ ने उन्हें एक पेड़ से लटका दिया।"

उन्होंने जनवरी 2017 में अदालत में अपने बयान में यही कहा था।

आज़ाद के बाद, निज़ामुद्दीन भी मौक़े पर पहुंचा जिसने मुनव्वर को फोन किया। मुनव्वर मज़लूम का छोटा भाई है जो उस वक़्त घर पर था। वह भी मौक़े पर पहुंच गया था।

ये तीनों प्रत्यक्षदर्शी ने एफआईआर की जिसमें आज़ाद ने विनोद प्रजापति को मुख्य आरोपी के रूप में बताया और साथ- साथ उसके 12 सहयोगियों के बारे में भी बताया था जिसने मिलकर इस घटना को अंजाम दिया था। बताया जाता है कि प्रजापति बीजेपी का स्थानीय नेता है।

जांच के दौरान पुलिस ने अज्ञात आरोपी की पहचान की और उनमें से आठ को गिरफ्तार कर लिया जिसे बाद में झारखंड उच्च न्यायालय से ज़मानत मिल गई। आरोपपत्र दाखिल होने से पहले ही इनकी ज़मानत हो गई। हालांकि, मामले में एकमात्र नामित और मुख्य आरोपी प्रजापति को आज तक गिरफ़्तार नहीं किया गया है। वास्तव में उक्त आठ आरोपियों की तरह उस पर मुक़दमा भी नहीं चला न ही एफआईआर में नाम दर्ज है।

आरोप है कि पुलिस ने प्रत्यक्षदर्शी के बयानों और साक्ष्यों के आधार पर पेशेवर तरीक़े से इस वीभत्स अपराध की जांच नहीं की थी। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि पुलिस आरोपी के ख़िलाफ़ उचित धारा लगाने में भी असफल रही जिससे मामला काफ़ी कमज़ोर हो गया। और नतीजतन आरोपियों को ज़मानत मिल गई।

मज़लूम और इम्तियाज़ के वकील अब्दुल सलाम ने न्यूज़क्लिक को बताया कि "पुलिस ने मुख्य आरोपी प्रजापति को कभी गिरफ्तार नहीं किया। और आरोपपत्र दाख़िल करने से पहले ही आरोपी झारखंड उच्च न्यायालय से ज़मानत पाने में कामयाब रहे।" महत्वपूर्ण बात यह है कि इस मामले में जहां 11 वर्षीय बच्चे को भीड़ द्वारा मौत के घाट उतार दिया गया वहीं ऐसा लगता है कि फास्ट ट्रैक कोर्ट में मुक़दमा चलाना उचित नहीं समझा गया। उन्होंने कहा, "मैंने न्यायाधीशों से इस मामले को फास्ट ट्रैक कोर्ट में स्थानांतरित करने के लिए कई बार गुहार लगाया लेकिन उन्होंने कभी भी हमारे अनुरोध पर ध्यान नहीं दिया।" ज़मानत ने आरोपियों के मनोबल को और बढ़ा दिया है और उन्होंने कथित तौर पर इस मामले के प्रमुख गवाहों में से एक गवाह आज़ाद को धमकी दी है।

मज़बूत प्रत्यक्षदर्शी बयानों और परिवार के सदस्यों के अन्य साक्ष्य के अलावा अन्य पर्याप्त सबूत जो इस अपराध को पर्याप्त रूप से स्थापित करने में मदद कर सकता है वह है पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट हैं। दोनों ही मामलों में ऑटोप्सी रिपोर्ट से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि पीड़ितों को फांसी के फंदे से लटकाने से पहले बुरी तरह पीटा गया था। दरअसल डॉ लक्ष्मण प्रसाद और डॉ एसके सिंह दोनों सरकारी डॉक्टरों ने ऑटोप्सी किया था उम्होंने स्पष्ट रूप से अपनी टिप्पणी में लिखा था कि मारने के लिए "लंबी, कठोर, रॉड की तरह, मुथरा" हथियारों का इस्तेमाल किया था।

एफआईआर से तथ्य छिपाने की शुरूआत

घटना के बाद से ही ही जानबूझकर या अन्यथा पुलिस की विफलताओं की शुरूआत हुई। यह आश्चर्यजनक है कि हालांकि घटना 3.30 बजे सुबह से 6 बजे सुबह के बीच हुई लेकिन पुलिस ने क़रीब 17 घंटे बाद रात 10.47 बजे एफआईआर दर्ज किया। और आश्चर्यजनक रूप से एफआईआर होने से पहले ही पोस्टमॉर्टम भी करा दिया गया था। एफआईआर इस देरी के बारे में कुछ भी नहीं बताता है।

अगस्त 2016 में शुरू हुए मुक़दमे के दौरान न तो अभियोजन पक्ष और न ही पीठासीन न्यायाधीश ने इस चूक पर कोई चिंता व्यक्त की या स्पष्टीकरण मांगा। निज़ामुद्दीन के बयान पर पुलिस की प्रतिक्रिया में लापरवाही के सिवा कुछ भी नहीं है।

चौंकाने वाला इक़बालिया बयान

आरोपपत्र मई 2016 में दायर किया गया था जिसमें सभी आठ आरोपियों का विस्तृत इक़बालिया बयान शामिल था। आरोपियों ने न केवल अपराध के बारे में बताया बल्कि उन्होंने हत्याओं से पहले अपने गतिविधियों का भी विवरण देते हुए कहा कि इसकी योजना पहले से ही तैयार थी। और फिर भी इस तथ्य के बावजूद कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत पुलिस अधिकारी को दी गई इक़बालिया सबूत के रूप में स्वीकार्य नहीं है, पुलिस ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के समक्ष इन बयानों को दर्ज करने का कोई प्रयास नहीं किया है जो सबूत के रूप में उन्हें स्वीकार्य बना दिया होता।

पुलिस का जवाब

यह पूछे जाने पर कि अभियुक्त कैसे ज़मानत पाने में कामयाब रहे और लतेहार मामले में न्याय में क्यों देरी हो रही है तो झारखंड पुलिस के अतिरिक्त पुलिस महानिरीक्षक आरके मलिक जो राज्य पुलिस के प्रवक्ता भी हैं उन्होंने न्यूज़़क्लिक को बताया "ज़मानत एक सामान्य प्रक्रिया है और अभियुक्त का अधिकार है। हालांकि अंत में आप आरोपी को दंडित होता हुआ देखेंगे। झारखंड में कम से कम तीन लिंचिंग मामलों (रामगढ़, बोकारो और जमशेदपुर) में पुलिस ने न्याय सुनिश्चित किया है और आरोपी को अदालत ने दंडित किया है।"

जब पूछा गया कि मुख्य आरोपी अभी भी फ़रार क्यों है तो उन्होंने कहा कि कभी-कभी अपराधियों को पकड़ने में समय लगता है। उन्होंने कहा, "हम दृढ़-संकल्प हैं कि कोई भी अपराधी बच के न निकले। हम अपनी पूरी कोशिश कर रहे हैं और अपराधी पकड़े जाएंगे।"

न्याय में देरी का मतलब न्याय की हत्या

हालांकि मज़़लूम की विधवा सायरा चाहती है कि जल्दी से न्याय मिले। उसने कहा कि "पांच बच्चों की देखभाल करनी पड़ती है। अदालत में मेरा समय और ऊर्जा ज़्यादा ख़र्च होता है। मैं चाहती हूं कि हमें न्याय जल्दी मिले। मेरे पति को फांसी दी गई थी; मैं चाहती हूं कि उनके हत्यारों को भी फांसी दी जाए।"

लेकिन जिस तरह से मामला अब तक चल रहा है न्याय हासिल करना पीड़ितों के परिवार के लिए बहुत बड़ा काम जैसा लगता है। मुख्य रूप से क्योंकि आरोपियों के कथित तौर पर मज़बूत राजनीतिक संबंध है। मज़़लूम के भाई मुनव्वर के मुताबिक़, "इस दर्दनाक घटना के कुछ दिन पहले ही मुख्य आरोपी ने झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबर दास की अपने घर पर मेजबानी की थी।"

मुनव्वर ने कहा, "इसके अलावा हत्यारों में से एक पैरा-शिक्षक विशाल तिवारी को नौकरी से निलंबित कर दिया गया लेकिन दो साल बाद फिर वह काम पर लौट आया है।" मुनव्वर ने आगे कहा, "हमने डिप्टी कमिश्नर और शिक्षा विभाग के अधिकारी को लिखा था लेकिन उन्होंने अभी तक हमारी शिकायत पर ध्यान नहीं दिया है।"

(झारखंड से रिपोर्ट किए गए मामलों की श्रृंखला की हमारी यह दूसरी रिपोर्ट है। पहली रिपोर्ट आप यहाँ पढ़ सकते हैं।)

mob lynching
mob voilence
Jharkhand
मोदी सरकार
लातेहार

Related Stories

भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल

झारखंड: बोर्ड एग्जाम की 70 कॉपी प्रतिदिन चेक करने का आदेश, अध्यापकों ने किया विरोध

झारखंड : नफ़रत और कॉर्पोरेट संस्कृति के विरुद्ध लेखक-कलाकारों का सम्मलेन! 

झारखंड की खान सचिव पूजा सिंघल जेल भेजी गयीं

सिवनी मॉब लिंचिंग के खिलाफ सड़कों पर उतरे आदिवासी, गरमाई राजनीति, दाहोद में गरजे राहुल

मध्यप्रदेश: गौकशी के नाम पर आदिवासियों की हत्या का विरोध, पूरी तरह बंद रहा सिवनी

झारखंडः आईएएस पूजा सिंघल के ठिकानों पर छापेमारी दूसरे दिन भी जारी, क़रीबी सीए के घर से 19.31 करोड़ कैश बरामद

खबरों के आगे-पीछे: अंदरुनी कलह तो भाजपा में भी कम नहीं

आदिवासियों के विकास के लिए अलग धर्म संहिता की ज़रूरत- जनगणना के पहले जनजातीय नेता

‘मैं कोई मूक दर्शक नहीं हूँ’, फ़ादर स्टैन स्वामी लिखित पुस्तक का हुआ लोकार्पण


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    मुंडका अग्निकांड के खिलाफ मुख्यमंत्री के समक्ष ऐक्टू का विरोध प्रदर्शन
    20 May 2022
    मुंडका, नरेला, झिलमिल, करोल बाग से लेकर बवाना तक हो रहे मज़दूरों के नरसंहार पर रोक लगाओ
  • रवि कौशल
    छोटे-मझोले किसानों पर लू की मार, प्रति क्विंटल गेंहू के लिए यूनियनों ने मांगा 500 रुपये बोनस
    20 May 2022
    प्रचंड गर्मी के कारण पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे गेहूं उत्पादक राज्यों में फसलों को भारी नुकसान पहुंचा है।
  • Worship Places Act 1991
    न्यूज़क्लिक टीम
    'उपासना स्थल क़ानून 1991' के प्रावधान
    20 May 2022
    ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़ा विवाद इस समय सुर्खियों में है। यह उछाला गया है कि ज्ञानवापी मस्जिद विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी। ज्ञानवापी मस्जिद के भीतर क्या है? अगर मस्जिद के भीतर हिंदू धार्मिक…
  • सोनिया यादव
    भारत में असमानता की स्थिति लोगों को अधिक संवेदनशील और ग़रीब बनाती है : रिपोर्ट
    20 May 2022
    प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद की रिपोर्ट में परिवारों की आय बढ़ाने के लिए एक ऐसी योजना की शुरूआत का सुझाव दिया गया है जिससे उनकी आमदनी बढ़ सके। यह रिपोर्ट स्वास्थ्य, शिक्षा, पारिवारिक विशेषताओं…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हिसारः फसल के नुक़सान के मुआवज़े को लेकर किसानों का धरना
    20 May 2022
    हिसार के तीन तहसील बालसमंद, आदमपुर तथा खेरी के किसान गत 11 मई से धरना दिए हुए हैं। उनका कहना है कि इन तीन तहसीलों को छोड़कर सरकार ने सभी तहसीलों को मुआवजे का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License