NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
SC ST OBC
आंदोलन
उत्पीड़न
भारत
राजनीति
‘माओवादी इलाकों में ज़िंदगी बंदूक की नाल पर टिकी होती है’
आत्मसमर्पण कर चुके एक गुरिल्ला का कहना है कि आदिवासी ज़हन और ज़मीन पर कब्ज़े को लेकर माओवादियों और सुरक्षा बलों के बीच में जारी युद्ध अंतहीन नज़र आता है।
सौरव कुमार
29 Sep 2021
maoist
रमेश पुडियामी, उर्फ़, बदरन्ना, बस्तर का एक पूर्व माओवादी कमांडर।

रमेश पुडियामी उर्फ़ बदरन्ना का कहना है कि वो चाहे आदिवासी हों, माओवादी या सुरक्षा बल ही क्यों न हों, भारत के सबसे भयावह संघर्ष क्षेत्र में जिंदगी बंदूक की नाल पर टिकी होती है। छत्तीसगढ़ के पहले माओवादी रंगरूट होने और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की गुरिल्ला आर्मी में डेढ़ दशक तक अपना जीवन गुजारने के साथ वे पहाड़ी इलाकों में बस्तर के हिंसक जीवन के चश्मदीद गवाह रहे हैं।

अविभाजित मध्य प्रदेश के बीजापुर जिले में पामेद गाँव में जन्मे बदरन्ना वन अधिकारियों और ठेकेदारों के हाथों डोरला जनजाति के बड़े पैमाने पर होते शोषण को देखकर 80 के दशक के उत्तरार्ध में 15 वर्ष की उम्र में प्रतिबंधित पीपुल्स वार ग्रुप (पीडब्ल्यूजी) में शामिल हो गए थे। उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया “मैं डोरला समुदाय से ताल्लुक रखता हूँ और मेरा परिवार और अन्य ग्रामवासी तेंदू पत्ता (बीड़ी बनाने के लिए इस्तेमाल में आता है) चुनने का काम करते थे। ठेकेदार उन्हें प्रति बण्डल तेंदू पत्ते के बदले में कुछ पैसे देते थे और अक्सर उनकी बकरियों और मुर्गियों को अपने साथ ले जाते थे। यह एक रोजमर्रा का मामला बन चुका था और हमारे बचाव के लिए कोई भी आगे नहीं आ रहा था।”

1984-87 में माओवादी अक्सर पामेड का दौरा करते थे, जिसकी सीमा आन्ध्र प्रदेश से लगती है। विद्रोही दस्तों द्वारा अक्सर आन्ध्र के खम्मम जिले से बीजापुर तक गुरिल्लाओं के लिए एक सुरक्षित आधार खड़ा करने के लिए मार्च किया जाता था – और बदरन्ना का देश के सबसे प्राणघातक गुरिल्ला विद्रोहियों के साथ अप्रत्याशित भेंट का सपना एक वास्तविकता में तब्दील हो गया था।

सबसे पहले, बदरन्ना को आदिवासियों के साथ बातचीत करने और उन्हें माओवादियों के उद्देश्यों और आदर्शों की व्याख्या करने का कार्यभार सौंपा गया था। 1992 के बाद, दंडकारण्य आदिवासी किसान मजदूर संघ का गठन एक फ्रंट संगठन के तौर पर किया गया था। जंगलात के अधिकारियों और तेंदू पत्ते के ठेकेदारों को निशाना बनाया गया और ग्रामीणों को बेहतर मजदूरी देने के लिए बाध्य किया गया, जिसने व्यवस्थित शोषण को समाप्त कर दिया। बदरन्ना ने बताया “इसने गावों पर हमारी पकड़ को मजबूत करने का काम किया। ग्रामीणों ने माओवादियों पर भरोसा करना शुरू कर दिया था। यह आदिवासियों के दिलों को जीतने का युद्ध था जो कि पहाड़ों और जंगलों के वास्तविक उत्तराधिकारी थे।”

अगला नंबर जमींदारों और छोटे व्यवसाइयों का था। जंगलों में कुछ साल भटकने के पश्चात, बदरन्ना को ग्राम रक्षक दल बनाने का काम सौंपा गया, जिसने सुरक्षा बलों को गुरिल्लों के खिलाफ एक आक्रामक अभियान छेड़ने के लिए प्रेरित किया। सहकार संघ के गठन के बाद खेती के माध्यम से और बीजों की निरंतर आपूर्ति और कुओं और तालाबों की सुरक्षा के माध्यम से माओवादियों ने आदिवासियों पर अपनी पकड़ को बेहद मजबूत कर लिया था। बाद में जाकर, बदरन्ना को स्थानीय गुरिल्ला दस्ते का कमांडर बना दिया गया और बीजापुर (बासागुडा और भोलापट्टनम) और सुकमा जिलों में सुरक्षा बलों पर घात लगाकर हमले किये गए।

शारीरिक कार्यभारों से इतर विचारधारात्मक विकास के लिए मार्क्सवादी साहित्य का पठन-पाठन एवं दैनिक प्रातःकालीन समूह चर्चा में हिस्सा लेना अनिवार्य था।

maoist

बदरन्ना अपनी पत्नी लताक्का उर्फ़ सुशीला के साथ।

एक रोचक किस्से में, बदरन्ना ने खुलासा किया कि उनके समर्पण के महीनों पहले उन्होंने और उनकी पत्नी लताक्का ने संगठन की नीतियों के खिलाफ जाकर एक गुप्त फोटो खिंचवाया था। पार्टी उस दौरान वित्तीय संकट से जूझ रही थी। पार्टी ने अपने कार्यकर्ताओं के लिए वेलुपिल्लई प्रभाकरन के लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम से पोशाकें उधार लेने का फैसला लिया था, जिसे इस जोड़े को फोटो में पहने हुए देखा जा सकता है जो दोनों के बीच में एक प्रासंगिक कार्यनीतिक लेन-देन का संकेत देता है।

बदरन्ना के अनुसार “नए रंगरूटों को प्रशिक्षण देने की जिम्मेदारी उठाने की प्रकिया मनमुटाव और आंतरिक संघर्षों के कारण पतित होनी शुरू हो चुकी थी। निरक्षर होने के बावजूद मेरे कंधों पर बड़ी जिम्मेदारियां सौंपे जाने के कारण मैं पीडब्ल्यूजी में नए-नए रंगरूटों के लिए असुरक्षा की वजह बनता जा रहा था।”

जनवरी 2000 में बदरन्ना और लताक्का ने आत्मसमर्पण कर दिया। युद्ध से नाता तोड़ना आसान नहीं था। सुरक्षा बलों द्वारा उनके ऊपर लगातार मुखबिर के रूप में काम करने का दबाव दिया जाने लगा। जब उन्होंने इसका प्रतिरोध किया तो बदरन्ना को न तो वादे के मुताबिक 5 एकड़ और न ही 10,000 रूपये वाली सरकारी नौकरी ही मिली। इसके बजाय उन्हें दो साल कारावास में बिताना पड़ा। 2008 तक जारी क़ानूनी लड़ाई लड़ने के बाद इस दंपत्ति को रोजगार हासिल हुआ और इसके बाद जाकर उन्होंने एक सम्मानजनक जीवन जीना शुरू किया। वर्तमान में लताक्का छत्तीसगढ़ पुलिस बल में कार्यरत हैं जबकि बदरन्ना जगदलपुर शहर के एक पार्क में सुरक्षा कर्मी के तौर पर तैनात है। हिसंक जीवन से नाता तोड़ने के बावजूद वामपंथी विचारधारा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता उनकी आँखों में साफ़ झलकती है।

बस्तर में माओवादियों का बंदूकें छोड़ने का मामला संदेहास्पद विषय होने के साथ-साथ ही राज्य पुलिस की छवि को उज्ज्वल दिखाने के लिए फर्जी आत्मसमर्पणों को प्रायोजित करने के साथ जुड़ा हुआ है। इस प्रकार की आधिकारिक करतब-बाजियों का नतीजा आदिवासियों के मानवाधिकारों के हनन और उत्पीड़न पर खत्म होता है। सामाजिक कार्यकर्त्ता सोनी सोरी के अनुसार, निर्दोष आदिवासियों को लगातार डराने-धमकाने के कारण कई आक्रोशित व्यक्ति परोक्ष या प्रत्यक्ष तौर पर माओवादियों के साथ काम करने के लिए मजबूर हो जाते हैं। बस्तर के इतिहास में सोरी पुलिस और केन्द्रीय बालों के हाथों शारीरिक शोषण की सबसे बुरी तरह से शिकार होने वाले लोगों में से एक रही हैं। 

जनवरी 2020 में दंतेवाड़ा जिला पुलिस ने लोन वर्रातु (जिसका स्थानीय बोली में अर्थ है ‘घर वापस आ जाओ’) नामक एक अभियान शुरू किया था। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक इसमें 403 माओवादियों सहित कई हार्ड-कोर नेताओं, जिनके सिर पर ईनाम था, ने पिछले महीने तक आत्मसमर्पण कर दिया था। इस पहल के तहत आत्मसमर्पण कर चुके विद्रोहियों का पुनर्वासन काम पूरा हो गया है, जिसमें वित्तीय सहायता भी शामिल है।

जिन माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया है उनमें से एक सुंदरी (37) भी हैं, जो नारायणपुर जिले के अभुजमाड़ की रहने वाली हैं, जो कि उग्रवाद के लिए एक अन्य प्रजनन स्थल है। उनके सिर पर 8 लाख रूपये का ईनाम रखा गया था। सुंदरी ने सुरक्षा बलों पर हुए कई घातक हमलों में हिस्सा लिया था। 2014 में माओवादी पार्टी से नाता तोड़ने के बाद से वे लोन वर्रातु अभियान के तहत छत्तीसगढ़ पुलिस बल को अपनी सेवाएं प्रदान कर रही हैं।

maoist

दंतेवाड़ा में आत्मसमर्पण कर चुकी माओवादी सदस्या सुंदरी।

अपने बगावती दिनों के दौरान, सुंदरी ने एक दशक से भी अधिक समय तक अपनी गुरिल्ला बटालियन के साथ कठोर गर्मियों और कंपकंपाती सर्दियों के मौसम में घने जंगलों, नदियों और नालों को पार किया था। न्यूज़क्लिक के साथ अपनी बातचीत में सुंदरी ने खुलासा किया कि वे तीन साल तक कुख्यात वरिष्ठ माओवादी नेता मंडावी हिडमा की सुरक्षा प्रभारी थीं। पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी के बटालियन 1 के कमांडर हिडमा ने ताडमेटला में सीआरपीएफ के 78 जवानों पर हमले और 2013 के झीरम घाटी हमले में हिस्सा लिया था, जिसमें राज्य कांग्रेस नेतृत्व का सफाया कर दिया था। सुंदरी ने उल्लेख किया कि कैसे हिडमा को निशाना बना पाना अत्यंत कठिन कार्य है क्योंकि उसके चारों ओर हमेशा बहुस्तरीय सुरक्षा घेरा बना रहता है।

एक बंदूकधारी होने और हिडमा की करीबी होने के नाते सुंदरी के द्वारा दी जाने वाली जानकारी पुलिस के लिए बेहद काम की हैं। खेतों में एके-47 ढोने के अलावा, वे स्थानीय लोगों के साथ बातचीत करके माओवादी संगठन के भ्रामक दावों का भंडाफोड़ करने का काम कर रही हैं।

एक किशोरी सुंदरी की पहचान एक महिला कैडर द्वारा की गई थी और उसके परिवार के विरोध के बावजूद उसे घर से उठा लिया गया था। उसकी गायन क्षमता को देखते हुए उसे माओवादियों की सांस्कृतिक ईकाई, चेतना नाट्य मंच में शामिल कर लिया गया था, जिसका काम ‘राज्य-प्रायोजित बर्बरता’ और ग्रामीणों के शोषण को उजागर करने का था। यह एक दिलचस्प रणनीति के रूप में सामने आई है जिसमें माओवादी, स्कूली बच्चों और किशोरों के साथ बातचीत करते हैं। अपने प्रभाव के क्षेत्रों में स्थानीय आबादी को स्वेच्छा से या अनजाने में माओवादियों के आँख और कान के रूप में काम करना पड़ता है, जिसका अंत पुलिसिया दमन में होता है।

जब संगठन द्वारा एक सदस्य के साथ पुलिस के लिए मुखबिरी करने के संदेह के आधार पर दुर्व्यवहार किया जा रहा था, तो उसी दौरान सुंदरी को अपने माता-पिता की मौत की खबर मिली थी, जिसने उसे टूटने की कगार तक पहुंचा दिया था। परिवार को हुई अपूर्णीय क्षति को स्वीकार करते हुए, वे दोबारा कभी माओवादी पाले में नहीं लौटी और उन्होंने कृषि भूमि पर अपना काम करना जारी रखा हुआ है। पुलिस की नौकरी से मिलने वाली प्रति-माह 18,000 रूपये की रकम ने वित्तीय स्थिरता के साथ एक बेहतर जीवन जीने की उनकी उम्मीदों को जगा दिया है। 

बदरन्ना के शब्दों में आदिवासी मानस और जमीन पर कब्जे को लेकर माओवादियों और सुरक्षा बलों के बीच में जारी युद्ध अंतहीन नजर आता है।

अंग्रेजी में मूल रूप से प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

https://www.newsclick.in/life-maoist-belt-hinges-barrel-gun

MAOISTS
Chhattisgarh
Andhra pradesh

Related Stories

कोरबा : रोज़गार की मांग को लेकर एक माह से भू-विस्थापितों का धरना जारी

माओवादियों के गढ़ में कुपोषण, मलेरिया से मरते आदिवासी

बीजापुर एनकाउंटर रिपोर्ट: CRPF की 'एक भूल' ने ले ली 8 मासूम आदिवासियों की जान!

हसदेव अरण्य: केते बेसन पर 14 जुलाई को होने वाली जन सुनवाई को टाले जाने की मांग ज़ोर पकड़ती जा रही है

छत्तीसगढ़ : सिलगेर में प्रदर्शन कर रहे आदिवसियों से मिलने जा रहे एक प्रतिनिधिमंडल को पुलिस ने रोका

छत्तीसगढ़: आदिवासियों के ख़िलाफ़ दर्ज 718 प्रकरणों की वापसी

छत्तीसगढ़: लड़ेंगे, लेकिन पुरखों की ज़मीन कंपनी को नहीं देंगे

छत्तीसगढ़ : भू-अधिकारों के बावजूद जनजातीय परिवार लगातार हो रहे हैं ज़मीन से बेदख़ल


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License