NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
लॉकडाउन ने लम्बी खींची बेरोज़गारी, अनौपचारिक क्षेत्र में बढ़ोतरी
एक सर्वे  में खुलासा हुआ है कि पर्याप्त सरकारी समर्थन तथा सुरक्षित आजीविका के अभाव ने लोगों को गहरे कर्ज में धकेल दिया है। इसने लोगों को अपने गुजर-बसर के लिए ज्यादा से ज्यादा जोखिम भरे उपायों को आजमाने पर मजबूर कर दिया है।
दित्सा भट्टाचार्य
12 Feb 2021
बेरोज़गारी
प्रतीकात्मक  चित्र। सबरंग इंडिया के सौजन्य से।

अनौपचारिक क्षेत्र के कामगार अभी भी वैश्विक महामारी कोविड-19 के गहरे दुष्प्रभावों को झेल रहे हैं, जबकि राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन को खत्म हुए महीनों  बीत गए हैं। अधिक से अधिक कामगार लॉकडाउन खत्म होने के बाद दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम कर रहे हैं, तो नियमित कामगारों की तादाद में भी भारी गिरावट आई है। देश में अनौपचारिक कामगारों के हालात को लेकर हाल ही में किये गये एक सर्वे में यह खुलासा हुआ है। 

अनौपचारिक कामगारों पर यह राष्ट्रीय सर्वेक्षण, एक्शन एड एसोसिएशन ने किया है, जो सामाजिक और पर्यावरण न्याय के लिए काम करता है। एक्शन एड देश के 24 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों में अनेक सहयोगियों और अनुषंगी संगठनों के साथ मिलकर काम करता है। यह उसका दूसरे चरण का सर्वे है जो देश के 23 राज्यों के 400 जिलों में काम करने वाले 16,900 से ज्यादा कामगारों के बीच किया गया है। यह सर्वेक्षण तीसरे और चौथे चरण के अनलॉक के समय में 23 अगस्त से 8 सितंबर 2020 के दौरान किया गया है। 

पहले से ही तनावपूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए, महामारी के प्रकोप से पूर्व अनलॉक के दौरान की प्रक्रिया और उसके बाद के राष्ट्रीय लॉकडाउन के कारण होने वाली क्षति की सीमा अधिक हो गई है। रिपोर्ट के अनुसार “पर्याप्त सरकारी समर्थन तथा सुरक्षित आजीविका के अभाव में लोग बुरी तरह कर्ज पर निर्भर हो रहे हैं, परिवारों और मित्रों से आर्थिक मदद न मिलने के कारण वे साहूकारों के चंगुल में फंस रहे हैं। ये लोग अपनी जीविका के लिए ज्यादा से ज्यादा जोखिम भरे क्षेत्रों की तरफ बढ़ रहे हैं। कई रिपोर्टों में बाल मजदूरी बढ़ने की घटनाओं की तस्दीक भी की गई है।”

एक्शन एड के सर्वे में पाया गया कि कुल 16,961 प्रतिभागियों में से लगभग आधे लोग बेरोजगार थे, और एक चौथाई  लोग शून्य मजदूरी पर काम कर रहे थे। इन प्रतिभागियों में से 42 फ़ीसदी ने कहा कि वे लॉकडाउन के दौरान ही बेरोजगार हो गए थे। तब एक्शन एड के पहले राउंड का सर्वे, पिछले साल मई में हुआ था और सितंबर महीने में दूसरे राउंड का सर्वे किया गया था, तब तक ये लोग बेरोजगार ही थे।  रोजगार वापसी की प्रक्रिया, खासकर शहरी क्षेत्रों में, उम्मीद के विपरीत बहुत ही धीमी है। जबकि औपचारिक और अनौपचारिक दोनों ही क्षेत्रों में, मजदूरी में तेजी से भारी गिरावट आई है।

यहाँ तक कि जिन लोगों के पास रोजगार थे, उनमें से ज्यादातर लॉकडाउन लागू होने के पहले की तुलना में कुछ ही घंटे काम कर पा रहे थे या उन्हें कभी-कभार ही काम मिल रहा था। इस वजह से इनमें से बहुतों को रोजगार के अन्य वैकल्पिक स्रोत भी तलाश करने पड़ी हैं, जिनमें भवन-निर्माण और विनिर्माण से मुख्यत: खेती का आश्रय लिया गया है। 

सर्वे के निष्कर्षों में यह बात प्रमुखता से उभर कर आई है कि इस दौरान लोग नियमित कामगार से दिहाड़ी मजदूर बन गये हैं। दिहाड़ी मजदूरों की जीविका की सुरक्षा बेहद कम हैं। सर्वे में भाग लेने वाले प्रतिभागियों में से 60 फीसदी दिहाड़ी मजदूर थे और 22.5  फ़ीसदी ही नियमित थे।  जबकि 71 फीसदी नियमित मजदूर  रोजाना 8 घंटे काम कर रहे थे, जिसमें उन्हें आधे घंटे का विश्राम भी दिया जाता था, यह सुविधा भी केवल 50 फ़ीसदी दिहाड़ी मजदूरों को ही हासिल थी; जबकि 34 फ़ीसदी नियमित कामगारों को 24 फ़ीसदी दिहाड़ी मजदूरों की तुलना में कम मजदूरी मिल रही थी।

लॉकडाउन खुलने के बाद भी मजदूरी की दर को गलत तरीके से कम रखा गया है।  सर्वे के प्रतिभागी कामगारों में से लगभग आधे लोग महीने में 5,000 से भी कम कमा रहे थे।  इन प्रतिभागियों में से केवल 8 फीसदी ही 10 हजार रुपये प्रति महीना कमा रहे थे। 

एक्शन एड की रिपोर्ट में कहा गया है, “मजदूरी के मामले में जेंडर के स्तर पर बड़ा भेदभाव था। एक महिला कामगार  खेती, निर्माण कार्य, विनिर्माण कार्य, साफ सफाई के काम, फेरी के काम, होटल-रेस्टोरेंट्स के काम और मछली से जुड़े कार्य सहित सभी तरह के बड़े काम-धंधों, में पुरुष की औसत मजदूरी की तुलना में काफी कम मजदूरी पा रही थी।”

सर्वे में यह रेखांकित किया गया है कि यहां तक कि गारमेंट उद्योग, जहां पुरुषों के मुकाबले महिला कामगार अधिक हैं, वहां भी महिलाएं अपने सहयोगी पुरुषों की तुलना में कम मजदूरी पा रही थीं।  रिपोर्ट में कहा गया है, “यह संभवतः महिलाओं को कम मजदूरी वाले कामों से जुड़े जाने की वजह से पुरुषों की तुलना में उन्हें कम मजदूरी  दी जा रही थी। वहीं, जो पुरुष हमारे इस सर्वेक्षण में शामिल हुए, उनमें बहुत कम ही घरेलू काम-धंधे और साल्ट पैन जैसे कम आय वाले रोजगारों से जुड़े थे, जहां 60 से 80 फ़ीसदी कामगार प्रति महीने 5,000  रुपये से भी कम कमा पाते थे।” 

सर्वेक्षण की इस रिपोर्ट को जारी करने के अवसर पर एक्शन एड के कार्यकारी निदेशक संदीप चाचरा ने कहा: “पूरे देश के अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले कामगारों के हालात को जानने के लिए एक्शन एड एसोसिएशन ने यह सर्वे किया है।  इसके आधार पर हमें यह समझने की आवश्यकता है कि कोविड-19 से पैदा हुए हालात और इससे रोजगार के क्षेत्र में बढ़ी असुरक्षा के मद्देनजर अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में काम करने वालों  और इस पर आश्रित लोगों के लिए क्या उपयुक्त कदम उठाए जाने चाहिए।  हम उम्मीद करते हैं कि अनेक  ट्रेड यूनियनों,  वर्कर्स कलेक्टिव्स और  सिविल सोसाइटी नेटवर्क से मिली सूचनाओं के आधार पर इस रिपोर्ट में जो सुझाव दिये गए हैं, उन पर तत्काल कदम उठाए जाएंगे और अनौपचारिक क्षेत्र के कामगारों की आवश्यकताओं पर ध्यान दिया जाएगा।”

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें ।

Lockdown Caused Prolonged Unemployment, Shift to Informal Work: Survey

COVID 19
Lockdown
unemployment
informal sector
indian economy
minimum wage

Related Stories

डरावना आर्थिक संकट: न तो ख़रीदने की ताक़त, न कोई नौकरी, और उस पर बढ़ती कीमतें

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

आर्थिक रिकवरी के वहम का शिकार है मोदी सरकार

उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा

मोदी@8: भाजपा की 'कल्याण' और 'सेवा' की बात

UPSI भर्ती: 15-15 लाख में दरोगा बनने की स्कीम का ऐसे हो गया पर्दाफ़ाश

मोदी के आठ साल: सांप्रदायिक नफ़रत और हिंसा पर क्यों नहीं टूटती चुप्पी?

जन-संगठनों और नागरिक समाज का उभरता प्रतिरोध लोकतन्त्र के लिये शुभ है

ज्ञानव्यापी- क़ुतुब में उलझा भारत कब राह पर आएगा ?

पश्चिम बंगालः वेतन वृद्धि की मांग को लेकर चाय बागान के कर्मचारी-श्रमिक तीन दिन करेंगे हड़ताल


बाकी खबरें

  • भाषा
    श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मामले में फ़ैसला सुरक्षित
    06 May 2022
    अदालत ने बृहस्पतिवार को इस मामले की पोषणीयता पर फैसला सुरक्षित रखते हुए निर्णय सुनाने के लिए 19 मई की तिथि नियत की है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    लंबे समय के बाद RBI द्वारा की गई रेपो रेट में बढ़ोतरी का क्या मतलब है?
    06 May 2022
    रेपो दरों में 40 बेसिस पॉइन्ट की बढ़ोतरी मतलब है कि पहले के मुकाबले किसी भी तरह का क़र्ज़ लेना महंगा होगा। अब तक सरकार को तकरीबन 7 से 7.5 फीसदी की दर से क़र्ज़ मिल रहा था। बैंक आरबीआई से 4.40 फ़ीसदी दर पर…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    WHO और भारत सरकार की कोरोना रिपोर्ट में अंतर क्य़ों?
    06 May 2022
    कोरोना में हुई मौतों पर डब्ल्यूएचओ ने रिपोर्ट जारी की है, जो भारत सरकार द्वारा पेश की गई रिपोर्ट से बिल्कुल अलग है।
  • भाषा
    पंजाब पुलिस ने भाजपा नेता तेजिंदर पाल बग्गा को गिरफ़्तार किया, हरियाणा में रोका गया क़ाफ़िला
    06 May 2022
    भाजपा की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने कहा कि पंजाब पुलिस द्वारा बग्गा के पिता को पीटे जाने के आरोप में राष्ट्रीय राजधानी के जनकपुरी थाने में शिकायत दर्ज कराई गई है।
  • सारा थानावाला
    क्या लिव-इन संबंधों पर न्यायिक स्पष्टता की कमी है?
    06 May 2022
    न्यायालयों को किसी व्यक्ति के बिना विवाह के किसी के साथ रहने के मौलिक अधिकार को मान्यता देनी होगी। 
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License