NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कानून
नज़रिया
संस्कृति
समाज
भारत
राजनीति
क्यों आदित्यनाथ और खट्टर को नौजवान महिलाओं को लेक्चर नहीं देना चाहिये?
ये दोनों ही मुख्यमंत्री ऐसे राज्यों की अगुआई कर रहे हैं, जिसमें हरियाणा जहाँ 2011 में लिंगानुपात के मामलों में सबसे बदतर हाल में था और उत्तरप्रदेश राज्य के हालात भी उससे कुछ खास बेहतर नहीं कहे जा सकते हैं। 
 
सुहित के सेन
04 Nov 2020
y

शनिवार को देवरिया में एक सार्वजनिक जनसभा को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने “लव जिहाद” के खिलाफ अपनी पुरानी जुमलेबाजी को झाड़पोंछकर पेश करने का काम किया और वादा किया कि इस संबंध में वे एक कानून लाकर इसे अमली जामा पहनाएंगे। जबकि रविवार के दिन करनाल में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने करनाल में उनकी बातों को ही प्रतिध्वनित किया।

आदित्यनाथ ही वो पहले इंसान थे जिन्होंने “लव जिहाद” जैसे मुहावरे को लोकप्रियता दिलाने का काम किया था, जब उन्होंने इस दशक के मध्य में इसे भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के शब्दकोष का हिस्सा बनाया। पार्टी के विचारधारात्मक हथियारों के हिस्से के तौर पर इसकी विशेषता 2017 में तब बढ़ी, जब अपने चुनाव अभियान में उन्होंने इस शब्द को तकियाकलाम की तरह उपयोग में लाना शुरू कर दिया। इसके बाद से तो उन्होंने इस प्रयोग को नियमित तौर पर लागू करना शुरू कर दिया था।

जो इस बारे में अनभिज्ञ हैं, उनके लिए बता दें कि “लव जिहाद” को एक ऐसी रणनीति माना जाता है जिसमें मुस्लिम पुरुष विभिन्न प्रकार के धोखे के जरिये हिन्दू महिलाओं को अपने साथ भगाने, उनका धर्म परिवर्तन कर उनके साथ शादी कर लेने में इस्तेमाल में लाते हैं। इसके बारे में यह भी अनुमान लगाया जाता है कि यह भारत की जनसांख्यिकी प्रोफाइल को पलट कर रख देने की यह बहुत बड़ी साजिश है। शैतानी षड्यंत्रकारियों की वह कौन सी समिति इस साजिश को निर्देशित करने में लगी है, यह पता नहीं चल पा रहा है।

सिर्फ रिकॉर्ड के लिए बता दें कि इस वर्ष 5 फरवरी को केंद्र ने “लव जिहाद” नामक चीज के बारे में किसी भी प्रकार की जानकारी से इंकार कर दिया था। केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने लोक सभा में इसके बारे में स्पष्ट तौर पर अपने बयान में कहा था कि यह कानून में परिभाषित नहीं था और इस सम्बंध में केन्द्रीय एजेंसियों की और से कोई भी मामला दर्ज नहीं किया गया था। इस सन्दर्भ में संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लेख करना समीचीन होगा, जो सार्वजनिक आदेश, नैतिकता और स्वास्थ्य के तहत धार्मिक प्रचार करने, अपने जीवन में लागू करने और धर्म का प्रचार करने की आजादी देता है।

हालाँकि शनिवार को आदित्यनाथ ने एक बार फिर से “लव जिहाद” के वजूद को लेकर अपने आधारहीन, मनगढ़ंत आरोपों को दुहराने का काम किया है, जो कि हकीकत में उनके अल्पसंख्यक-विरोधी अभियान में एक बार फिर से शूल चुभोने जैसी हरकत है। और अन्य मौकों पर जब वे प्रस्तावित कानून के बारे में बातें करते हैं तो जिस प्रकार की भाषा का इस्तेमाल उनके द्वारा किया जाता है, उस तरह की भाषा किसी मुख्यमंत्री को शोभा नहीं होती। अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा था “यह उन लोगों के लिए एक चेतावनी है जो लोग गलत नामों और पहचान का इस्तेमाल कर महिलाओं का शोषण करते हैं कि वे इस प्रकार की अपनी हरकतों को बंद कर दें, अन्यथा उनकी अंतिम यात्रा शुरू हो जायेगी।” हम उनके हत्या कर दिए जाने वाले सुझाव पर लौटेंगे। लेकिन जब तक हम इस पर लौटते हैं, तब तक हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि क्या उन्हें इसके लिए और प्रोत्साहन की दरकार है। इस काम को अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने मुहैय्या कराने का काम किया है, जिसने रविवार के दिन “लव जिहाद” के मामलों में मृत्युदण्ड दिए जाने की माँग की है।

वहीँ हरियाणा में खट्टर ने आदित्यनाथ की बात को ही प्रतिध्वनित किया है, लेकिन कुछ हद तक संयमित भाषा के साथ। 26 अक्टूबर को बल्लभगढ़ में एक मुस्लिम द्वारा एकतरफा प्यार में एक हिन्दू लड़की की हत्या के सन्दर्भ में उन्होंने कहा कि इस मामले पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। इस संबंध में कानून का मसौदा तैयार करने के लिए सलाह माँगी जा रही है जिससे कि जबरन धर्मांतरण को रोका जा सके। 

आइये इन दोनों राज्यों के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण सामाजिक सूचकांक - उनके लिंगानुपात पर एक नजर डालते हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार हरियाणा में प्रत्येक 1,000 लड़कों पर 879 लडकियाँ थीं और उत्तरप्रदेश यह संख्या 912 थी। सभी राज्यों में हरियाणा सबसे निचले पायदान के साथ 29 वें स्थान पर और उत्तरप्रदेश 25वें स्थान पर था। इसका कारण यह है कि दोनों राज्य लिंग आधारित गर्भपात के मामलों में निरंतर अभियान से उबर पाने में कामयाबी हासिल नहीं कर सके हैं। इसके साथ ही हरियाणा और पश्चिमी उत्तरप्रदेश कई दशकों से “ऑनर किलिंग” के गढ़ रहे हैं, जिसे खाप पंचायतों की मध्ययुगीन सत्ता द्वारा निर्देशित किया जाता रहा है। इसके चलते अनेकों युवा लड़के एवं लड़कियों को जिन्होंने अपने वैवाहिक विकल्प के लिए अपनी पसंद के साथी को चुनने का फैसला किया उन्हें पित्रसत्तात्मक और “सम्मान” के दकियानूसी “फरमानों” को संतुष्ट करने के नाम पर मार दिया जाता रहा है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि आदित्यनाथ और खट्टर यदि अपने राज्यों में युवा महिलाओं के प्रति चिंता भाव को लेकर जितना कम लेक्चर झाडें, उतना ही बेहतर रहेगा।

जैसा कि मीडिया रिपोर्टों और अकादमिक अध्ययनों में प्रचुर मात्रा में देखने को मिला है कि हरियाणा कई वर्षों से देश के तमाम हिस्सों से (आमतौर पर गरीब घरों से) महिलाओं की तस्करी के लिए प्रमुख गंतव्य के तौर पर विख्यात रहा है। एक बार जब ये महिलाएं अपने गंतव्य तक पहुंचा दी जाती हैं तो इन्हें शादियों के नाम पर उन आदमियों के हाथ बेच दिया जाता है, जिनके पास विवाह के लिए राज्य में कोई महिला उपलब्ध नहीं होती। ये विवाह, जैसा कि तथ्यात्मक तौर पर इन्हें प्रलेखित किया गया है, इसमें दाम्पत्य जीवन के बजाय कई प्रकार की बंधुआ जीवन बिताने के लिए अभिशप्त होना पड़ता है। लेकिन इसके पडोसी राज्य उत्तरप्रदेश की तुलना में यह कई मायनों में यह किसी पिकनिक से कम नहीं है।

उत्तरप्रदेश में पिछले तीन वर्षों से अधिक समय से जबसे आदित्यनाथ मुख्यमंत्री की गद्दी पर आसीन हुए हैं, यह किसी दुःस्वप्न के समान तबाहो बर्बाद हो चुका है। अल्पसंख्यकों को अभी भी पीट-पीटकर अपने अधीन किये जाने की प्रक्रिया जारी है, जबकि दलितों के हालात तो कहीं ज्यादा जोखिम भरे और दयनीय हो चले हैं। लेकिन लव जिहाद के कचरे के बनिस्बत देखें तो महिलाओं के खिलाफ अपराध का ग्राफ आसमान छू रहे हैं। केवल बयानबाजी के जरिये इस हकीकत को नहीं छुपाया जा सकता है।

 इस सब इसलिए घट रहा है क्योंकि आदित्यनाथ और उनकी सरकार ने राज्य में पुलिस बल को इस बात की पूरी आजादी दे रखी है कि वे जो जी में आये कर सकते हैं। यह एक ऐसा बल है जो जितना भ्रष्ट और अक्षम है उतना ही क्रूर भी। ये सभी विशेषतायें उग्र तौर पर जुलाई में विकास दूबे वाले मामले में अंकित हो गई थीं, जब इस गैंगस्टर ने आठ पुलिस कर्मियों की हत्या कर दी थी और बाद में उसकी गिरफ्तारी और हत्या कर दी गई थी। पुलिस को अभयदान किस हद तक प्राप्त है वह इस तथ्य से साफ़ हो जाता है कि इसने इस बीच में 6,145 एनकाउंटर कर डाले हैं। इस साल जुलाई तक सौ से अधिक आरोपी मारे जा चुके हैं।

इस सन्दर्भ में हमें आदित्यनाथ के एक दूसरे बड़े विचार - “एंटी रोमियो” दस्तों का उल्लेख करना नहीं भूल जाना चाहिए। इसमें तीन पुलिस कर्मियों का समूह होता था, जिन्हें उन स्थानों पर भेजा जाता था जहाँ नौजवान लड़के-लड़कियां जमा होते थे। यहाँ पर वे इस बात की खोजबीन करते थे की नौजवान कुछ ऐसी-वैसी हरकत तो नहीं कर रहे, जो मुख्यमंत्री को मंजूर नहीं है। जल्द ही यह एक निगरानी आन्दोलन में तब्दील हो गया था जिसने सार्वजनिक स्थलों पर एकांतवास के प्रति फोबिया, प्रताड़ना और भयावह स्थिति उत्पन्न कर दी थी। 

यदि उत्तर प्रदेश कानून-विहीन जंगलराज जैसे रंगमच के तौर पर रसातल में धंस चुका है तो इसमें से कुछ ऐसा भी है जिससे हम दिल को कुछ तसल्ली दे सकते हैं। मुख्यमंत्री द्वारा नौजवानों को जान से मार दिए देने की धमकी एक बात है, लेकिन “लव जिहाद” को लेकर वे वास्तव में कोई कानून बना पाने में सफल हो सकते हैं, इसकी संभावना काफी क्षीण है। सबसे पहली बात तो यह है कि वास्तव में बीजेपी सरकार ने पहले ही ऐसी किसी भी संभावना को ख़ारिज कर दिया था और अनुच्छेद 25 के तहत मिलने वाली सुरक्षा को इंगित किया था।

 दूसरा, संविधान के अनुच्छेद 21 में भी यह बात निहित है। यह कहता है “किसी भी व्यक्ति को व्यक्तिगत स्वतंत्रता या उसके जीवन के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता, सिवाय मान्य जीवन की प्रक्रियाओं के अनुसार।” प्रभावी तौर पर, जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय ने अगस्त 2017 के अपने फैसले में सुनाया, यह निजता के लिए मौलिक अधिकार के आधार को मुहैय्या कराता है, ऐसे में जिस प्रकार का कानून आदित्यनाथ चाहते हैं, वह उसका अतिक्रमण करने वाला साबित होगा।

हालाँकि इस बात की संभावना है कि आदित्यनाथ चूँकि एक चुनावी सभा को संबोधित कर रहे थे और ऐसा उन्होंने सिर्फ अपने बयान को भड़काऊ बनाने के लिए किया। उनका मकसद स्पष्ट तौर पर अपने निर्वाचन क्षेत्र को अपने इर्दगिर्द समेटे रखने और मुस्लिम समुदाय पर और अधिक दबाव डालने का नजर आता है। दुर्भाग्य यह है कि ये दोनों ही लक्ष्य हासिल किये जा सकते हैं।
 
लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार एवं शोधकर्ता हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
 

https://www.newsclick.in/Yogi-Adityanath-Manohar-Lal-Khattar-Should-Not-Lecture-Young-Women

love jihad
Yogi Adityanath
manohar laal khattar
bihar election

Related Stories

उत्तर प्रदेश: योगी के "रामराज्य" में पुलिस पर थाने में दलित औरतों और बच्चियों को निर्वस्त्र कर पीटेने का आरोप

कौन हैं ओवैसी पर गोली चलाने वाले दोनों युवक?, भाजपा के कई नेताओं संग तस्वीर वायरल

भारत में हर दिन क्यों बढ़ रही हैं ‘मॉब लिंचिंग’ की घटनाएं, इसके पीछे क्या है कारण?

"लव जिहाद" क़ानून : भारत लड़ रहा है संविधान को बचाने की लड़ाई

जनसंख्या नियंत्रण तो केवल बहाना है योगी जी को हिंदू मुस्लिम दीवार को तीखा बनाना है!

गोरखनाथ मंदिर प्रकरण: क्या लोगों को धोखे में रखकर ली गई ज़मीन अधिग्रहण की सहमति?

न्यायालय ने पत्रकार कप्पन को बेहतर इलाज के लिए राज्य के बाहर भेजने का योगी सरकार को दिया निर्देश

यूपी में पत्रकार लगातार सरकार के निशाने पर, एक ख़बर को लेकर 3 मीडियाकर्मियों पर मुक़दमा

सुप्रीम कोर्ट धर्मांतरण रोकने के विवादास्पद कानूनों पर विचार को तैयार  

क्या यूपी वाकई ‘नफ़रत की राजनीति का केंद्र बन चुका है’?


बाकी खबरें

  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?
    22 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने पत्रकार और मेरठ दंगो को करीब से देख चुके कुर्बान अली से बात की | 35 साल पहले उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हुए बर्बर मलियाना-…
  • Modi
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक
    22 May 2022
    हर बार की तरह इस हफ़्ते भी, इस सप्ताह की ज़रूरी ख़बरों को लेकर आए हैं लेखक अनिल जैन..
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'
    22 May 2022
    बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।
  • diwakar
    अनिल अंशुमन
    बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका
    22 May 2022
    बिहार के चर्चित क्रन्तिकारी किसान आन्दोलन की धरती कही जानेवाली भोजपुर की धरती से जुड़े आरा के युवा जन संस्कृतिकर्मी व आला दर्जे के प्रयोगधर्मी चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर को एक जीवंत मिसाल माना जा…
  • उपेंद्र स्वामी
    ऑस्ट्रेलिया: नौ साल बाद लिबरल पार्टी सत्ता से बेदख़ल, लेबर नेता अल्बानीज होंगे नए प्रधानमंत्री
    22 May 2022
    ऑस्ट्रेलिया में नतीजों के गहरे निहितार्थ हैं। यह भी कि क्या अब पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन बन गए हैं चुनावी मुद्दे!
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License