NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
मानवाधिकार दिवस पर 100 जनसंगठनों ने मनाया “जश्न-ए-संविधान”
10 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के मौके पर एनएपीएम, पीयूसीएल, किसान मजदूर शक्ति संगठन, किसान संघर्ष समन्वय समिति के साथ तकरीबन 100 जन संगठनों ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर “जश्न-ए-संविधान” का आयोजन किया।
मुकुंद झा
10 Dec 2018
जश्न-ए-संविधान

पिछले चार वर्षों के राजनीतिक सफर और बहस ने हमारे देश के संवैधानिक ढांचे और उसके चरित्र को ख़त्म करने, उसे तोड़ने की कोशिश की। इस ख़तरे को देश की तमाम बौद्धिक और प्रगतिशील ताकतों ने महसूस किया और इसके खिलाफ लगातार संघर्ष किया जा रहा है। इनका कहना है कि वर्तमान सरकार और उनके मित्र संगठन और संघ परिवार नारों, जुमलों, ट्रोल आर्मी और हिंसक भीड़ के माध्यम से लोगों का ध्यान अपने कट्टरपंथी, कॉरपोरेट और जन विरोधी आर्थिक नीतियों से हटाने की कोशिश कर रही है। 

इस दौर में हमने देखा कि मुखर आवाज़ों को दबाने की खूब कोशिश हुई और उन पर हमले किए गए। दलित, अल्पसंख्यको खासतौर पर मुसलमानों पर हमले बढ़े हैं। किसानों और श्रमिकों की स्थिति और खराब हुई है। छात्र, बुद्धिजीवी या कोई और वर्ग से कोई प्रश्न करता है तो उन्हें चुप कराने के लिए उन्हें देशद्रोही साबित कर उन्हें जेल में डाल दिया जाता है। इसलिए एक्टिविस्ट इसे एक अघोषित आपातकाल बता रहे हैं। ऐसा नहीं है कि हमारा समाज इससे अनभिज्ञ है। वो इस खतरे को समझ रहा है। इसके खिलाफ सड़कों पर उतरकर प्रतिरोध कर रहा है।

अभी 6 दिसंबर को देश के तमाम वाम दलों ने देशभर में “संविधान बचाओ-लोकतंत्र बचाओ” मार्च निकाला। इससे पूर्व  बिहार में पटना के गाँधी मैदान में “भाजपा भगाओ-लोकतंत्र बचाओ” रैली की थी, जिसमें लाखों की संख्या में लोगों ने भागीदारी की।

इसी क्रम में आज 10 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के मौके पर नेशनल एलायंस फॉर पब्लिक मूवमेंट (एनएपीएम) , पीयूसीएल, किसान मजदूर शक्ति संगठन, किसान संघर्ष समन्वय समिति के साथ तकरीबन 100 जन संगठनों ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर “जश्ने संविधान” का आयोजन किया। इसमें देश भर के किसान, मजदूर, महिला, मनरेगा मजदूर समेत छात्रों ने हजारों की संख्या में भाग लिया। ये लोग पहले रामलीला मैदान में जमा हुए जहां से मार्च करते हुए जंतर-मंतर पहुंचे।  

जश्ने संविधान.jpg

संविधान स्वाभिमान यात्रा

इससे पहले नेशनल एलायंस फॉर पीपल्स मूवमेंट (एनएपीएम) की ओर से संविधान स्वाभिमान यात्रा 2 अक्टूबर को दांडी से शुरू होकर 26 राज्यों से 65 दिन में चलकर दस दिसंबर को दिल्ली पहुंची। इसने सभी राज्यों में  स्थानीय जनसंगठनों के साथ मिलकर मजदूर किसानों की आम सभा का आयोजन किया गया। जिसमें सैकड़ों संख्या में स्थनीय लोगों शामिल हो रहे थे।

एनएपीएम का कहना है की "यह यात्रा देश के हज़ारों-लाखों किसानों, मजदूरों, महिलाओं और नौजवानों को साथ लाने के लिए चल रही है। हम लोग तमिलनाडु, तेलंगाना, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, गुजरात और असम, बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और उत्तराखंड के जैसे राज्यों में संविधान सम्मान यात्रा कर के दिल्ली आए हैं। हज़ारों साथी अब हमारे साथ हैं। आने वाले चुनावों के पहले ये हम सबके लिए एक मौका है कि सरकार से सवाल करें।"

एनएपीएम के विजय ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि इस यात्रा में मूल भावना यह थी कि संविधान के मूल्यों के रक्षा की जाए जिस पर से वर्तमान सरकार ने बीते चार सालों में लोगो के बोलने पर प्रतिबन्ध लगाया है। पत्रकारों की हत्या हुई है, दाभोलकर से लेकर पानसरे, कलबुर्गी और गौरी लंकेश ऐसे पत्रकार और बुद्धिजीवियों की हत्या कर दी वो भी केवल इसलिए क्योंकि वो एक विचारधारा के खिलाफ लिखते और बोलते थे। इसके साथ ही गाय के नाम पर जिस तरह से लोगों को मारा जा रहा है, ये हमारे देश के संविधान पर हमला था।  इन सबके खिलाफ  पूरे देश में 65 दिनों की यात्रा देश के 26 राज्यों में हुई इस दौरान हमारे सामने अलग अलग मुद्दे आये। चाहे वो किसानों, मज़दूरों का  मुद्दा हो या महिलाओं का मुद्दा हो या फिर मछुआरों का हो या विकास के नाम पर जिस तरह से आदिवासियों का विनाश किया जा रहा है। इन तमाम मुद्दों को लेकर आज हम यहाँ आए हैं। 

48175123_1994079177349260_5731726773834481664_n.jpg

सीतापुर  से आये मनरेगा मजदूर ने कहा कि न उन्हें काम मिल रहा है, न ही समय पर पैसा मिलता है। कई बार 6-6 महीने तक भुगतान नहीं होता है। लेकिन हमारी सरकार रोजगार कि जगह हमें मंदिर में उलझा रही है, लेकिन हमें रोजगार चाहिए, मंदिर नहीं।

अररिया से आई तकरीबन 80 वर्षीय वृद्ध महिला शबाना ने बताया कि बिहार में उन्हें पेंशन बहुत ही कम मिलती है और जो मिलती है वो भी समय पर नहीं मिलती है। पिछले 8 महीने से उन्हें किसी भी तरह कि राशि नहीं मिली है। सर्वजनिक वितरण प्रणाली से मिलने वाला राशन भी नहीं मिल रहा है।

बिहार के किसान रामप्रवेश ने कहा कि आज भारत में सबसे गहरा किसान संकट है। पूरे बिहार में सूखा आये पर नीतीश सरकार ने किसी भी तरह की न तो आर्थिक मदद दी और न बीमा का पैसा मिला है।

सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि नेता आज भारत के संविधान की शपथ ले रहे हैं लेकिन वो ही संविधान के खिलाफ काम कर रहे हैं। वो किसान और मजदूरों के पक्ष में कानून नहीं बदल रहे बल्कि ये इनके खिलाफ बदलाव कर रहे हैं। इसके खिलाफ हमारा संघर्ष है, इसलिए हम आज दिल्ली आए हैं। हम सर्वधर्म सद्भाव और समानता के मूल्यों को स्थापित करने के लिए लड़ रहे हैं, लेकिन हम आज देख रहे हैं कि देश में जातिगत हिंसा, धार्मिक हिंसा और अन्याय बढ़ रहा है जिसके खिलाफ प्रतिरोध जरूरी है।

मेधा पाटेकर.jpg

मेधा आगे कहती हैं कि संविधान का सम्मान होना चाहिए और वो तभी होगा जब सभी को शिक्षा, स्वास्थ्य का लाभ मिले। गाँव सभा को जल, जंगल और जमीन पर अधिकार होना चाहिए पर हमारी सरकार इन पर काम न करके जाति-धर्म के नाम पर लोगों को बाँट रही है, जो संविधान की मूलभावना के खिलाफ है।

 


 

NAPM
PUCL
AIKSCC
“जश्न-ए-संविधान”
संविधान सम्मान यात्रा
Medha patkar

Related Stories

नर्मदा के पानी से कैंसर का ख़तरा, लिवर और किडनी पर गंभीर दुष्प्रभाव: रिपोर्ट

करौली हिंसा को रोकने में विफल रहे अधिकारियों को निलंबित करें: PUCL

बेंगलुरु: बर्ख़ास्तगी के विरोध में ITI कर्मचारियों का धरना जारी, 100 दिन पार 

कांग्रेस पर वार का ममता का दांव और दलितों की नृशंस हत्या पर योगी की लीपापोती

मध्य प्रदेश : सेंचुरी मिल के प्रदर्शनकर्मियों पर पुलिस कार्रवाई, 800 से अधिक की गिरफ़्तारी

‘लंबी सुनवाई प्रक्रिया एक सज़ा’: पूर्व न्यायाधीशों ने यूएपीए के अंतर्गत ज़मानत और जेल के विधान की आलोचना की

महाराष्ट्र : कोरोना ने जेलों में भी दी दस्तक, न्यायलय ने जताई चिंता!

असम, उत्तर प्रदेश और हरियाणा में किस तरह काम करता है निवारक निरोध कानून 

आपातकाल नहीं, किसान को 2021 दिख रहा है , मोदीजी !

किसान संगठनों की देशभर में ‘चक्का जाम’ की पूरी तैयारी, दिल्ली-यूपी में नहीं करेंगे सड़क जाम


बाकी खबरें

  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?
    22 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने पत्रकार और मेरठ दंगो को करीब से देख चुके कुर्बान अली से बात की | 35 साल पहले उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हुए बर्बर मलियाना-…
  • Modi
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक
    22 May 2022
    हर बार की तरह इस हफ़्ते भी, इस सप्ताह की ज़रूरी ख़बरों को लेकर आए हैं लेखक अनिल जैन..
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'
    22 May 2022
    बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।
  • diwakar
    अनिल अंशुमन
    बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका
    22 May 2022
    बिहार के चर्चित क्रन्तिकारी किसान आन्दोलन की धरती कही जानेवाली भोजपुर की धरती से जुड़े आरा के युवा जन संस्कृतिकर्मी व आला दर्जे के प्रयोगधर्मी चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर को एक जीवंत मिसाल माना जा…
  • उपेंद्र स्वामी
    ऑस्ट्रेलिया: नौ साल बाद लिबरल पार्टी सत्ता से बेदख़ल, लेबर नेता अल्बानीज होंगे नए प्रधानमंत्री
    22 May 2022
    ऑस्ट्रेलिया में नतीजों के गहरे निहितार्थ हैं। यह भी कि क्या अब पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन बन गए हैं चुनावी मुद्दे!
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License