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ट्रांसजेंडर लोगों के समावेश पर बनाए गए मॉड्यूल को वापस लेने पर मद्रास हाई कोर्ट ने सीबीएसई को फटकार लगाई
पिछले दिनों सीबीएसई ने अपनी वेबसाइट से ट्रांसजेंडर बच्चों की शिक्षा से संबंधित एक शिक्षक प्रशिक्षण नियमावली को हटा दिया था, मद्रास हाईकोर्ट ने इसपर चिंता जताई है।
गौरी आनंद
13 Dec 2021
Madras High Court

गौरी आनंद लिखती हैं कि मद्रास हाई कोर्ट ने एनसीईआरटी के उस फैसले पर चिंता जताई है, जिसमें ट्रांसजेंडर बच्चों के स्कूलों में समावेश पर आधारित शिक्षक प्रशिक्षण नियमावली को हटाने का आदेश दिया गया है।

 ————

मद्रास हाई कोर्ट ने एनसीईआरटी द्वारा अपनी वेबसाइट से ट्रांसजेंडर बच्चों पर आधारित शिक्षक प्रशिक्षणत नियमावली (मैनुअल) को हटाने पर फटकार लगाई है। "इन्क्लूजन ऑफ ट्रांसजेंडर चिल्ड्रेन इन स्कूल एजुकेशन: कंसर्न एंड रोड मैप" शीर्षक का यह मैनुअल समाज के कुछ हिस्सों द्वारा विरोध किए जाने के बाद हटाया गया है।

इस मैनुअल का उद्देश्य शिक्षकों, पालकों और दूसरे लोगों को ज्यादा धैर्यवान और ट्रांसजेंडर व अपना लिंग निर्धारण ना करने वाले बच्चों के प्रति कक्षाओं में ज्यादा समावेशी और संवेदनशील माहौल का निर्माण करना था।

इसके प्रकाशित होने के कुछ ही घंटों में यह नियमावली और इसके निर्माता सोशल मीडिया पर लोगों के निशाने पर आ गए। ना केवल इन लोगों की योग्यता पर सवाल उठाए गए, बल्कि नियमावली की बुनियाद पर सवाल उठाते हुए कहा गया कि यह बच्चों को "डराने की एक साजिश" है।

एलजीबीटीक्यू+  वर्ग में शामिल लोगों द्वारा समाज में जो वंचना झेली जाती है, उसके समाधान के लिए किए गए सुधारों का विश्लेषण करते हुए जस्टिस एन आनंद वेंकटेश ने एनसीईआरटी द्वारा इस मैनुअल को वापस लिए जाने पर सवाल उठाए। यह मैनुअल हाई कोर्ट के आदेश की पृष्ठभूमि में बनाया गया था। आदेश के बाद बोर्ड ने शिक्षकों को संवेदनशील बनाने के लिए कार्य योजना बनाई थी, ताकि ट्रांसजेंडर छात्रों के एक अनुकूल माहौल तैयार करने में शिक्षक अपनी भूमिका निभा सकें। इस साल जून में आए मुख्य आदेश में कहा गया कि तमिलनाडु में जेल सुधार, मेडिकल कॉलेजों के पाठयक्रम में बदलाव और जजों को ट्रांसजेंडरों की जरूरतों और उनके सामने आने वाली मुख्य चुनौतियों के मुताबिक संवेदनशील बनाए जाने की जरूरत है। आगे की सुनवाई में संबंधित प्रशासन द्वारा लागू किए गए कदमों को बताने वाली रिपोर्टों को जमा किया गया।

जून में आए मुख्य आदेश में कहा गया कि तमिलनाडु में जेल सुधार, मेडिकल कॉलेजों के पाठयक्रम में बदलाव और जजों को ट्रांसजेंडरों की जरूरतों और उनके सामने आने वाली मुख्य चुनौतियों के मुताबिक संवेदनशील बनाए जाने की जरूरत है।

हाई कोर्ट ने मैनुअल को एलजीबीटीक्यू+ बच्चों को मदद देने में एक अहम कदम बताया था। कोर्ट ने सामग्री के वेबसाइट से हटाने और इसे बनाने वालों के दूसरे विभागों में स्थानांतरण पर हैरानी जताई।  कोर्ट ने कहा, "यह कोर्ट यह नहीं समझ पा रहा है कि वेबसाइट पर सामग्री डाले जाने के कुछ ही घंटों में इस तरीके की  तुरत-फुरत की प्रतिक्रिया की क्या जरूरत थी। अगर किसी को दिक्कत थी, तो उसका निदान सही ढंग से जरूरी परामर्श और बैठकों के बाद किया जाना था। किसी को भी राज्य द्वारा संचालित परिषद को एक सामग्री को हटवाने के लिए मजबूर करने का अधिकार नहीं है। जबकि यह सामग्री समिति के लंबे अध्ययन के बाद बनाई गई थी। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस तरह की कार्रवाई की गई।"

कोर्ट ने कहा कि भारत जैसे एक लोकतांत्रिक देश में विमर्श और सुझाव किसी भी नीति का अहम तत्व हैं और इतनी अहमियत रखने वाले इस घटनाक्रम को विपक्षियों और चंद लोगों की दबावपूर्ण तरकीबों के चलते वापस नहीं लिया जाना चाहिए।" कोर्ट ने बोर्ड को अगली सुनवाई के पहले मामले पर रिपोर्ट जमा करने को कहा है, जिसमें इस मुद्दे पर प्रगति को दर्शाना होगा।

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Madras HC Slams NCERT Decision to Revoke Module on Inclusion of Transgender Persons

Madras High Court
NCERT
transgender Student
LGBTQI+ children

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