NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कला
भारत
राजनीति
मिथिला पेंटिंग : कला को चाहने वाले बहुत, कलाकारों को सराहने वाला कोई नहीं
हाल के दिनों में मिथिला पेंटिंग का दायरा बढ़ा है लेकिन कलाकारों की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ है। बिहार की जिस ट्रेन को मिथिला पेंटिग से सजाया गया था, उसके कलाकारों को 6 महीने गुज़र जाने के बाद भी कोई भुगतान नहीं दिया गया है।
मुकुंद झा
11 Jan 2019
mithila painting
Image Courtesy:womeniaworld.com

एक ऐसी कला जिसने बिहार और खासतौर पर मिथिला के पुरुष प्रधान और सामंती समाज में नारी मुक्ति और सामाजिक न्याय के नए रास्ते खोले हैं। शुरुआती विरोध के बाद जातियों में बंटे समाज में इस कला से समरसता भी आई। उस कला और उसके कलाकारों की हालत में सुधार केवल सरकारी फाइलों और राजनेताओं के भाषण में है।

आप सोच रहे होंगे कि हम किस कला की बात कर रहे हैं, तो आपको बता दें कि हम मिथिला की सैकड़ों साल पुरानी कला मिथिला पेंटिग जिसे मधुबनी पेंटिग भी कहते हैं क्योंकि मधुबनी इस कला का केंद्र है, हम उसकी बात कर रहे हैं, जिसकी तस्वीरें आपको कभी कभार मीडिया में राजनेताओ द्वारा किसी को गिफ्ट के तौर देते हुए दिख जाती है, पर सवाल है इसके ख़रीददार कौन हैं?

आजकल मिथिला पेंटिग में परंपरा के साथ ही समकालीन मुद्दों का भी चित्रण दिख जाता है। वैसे भी कला अपने समय को प्रतिबिंबित करती ही है। हाल के दिनों में मिथिला पेंटिंग का दायरा बढ़ा है। दिल्ली जैसे शहर में आपको दिल्ली हाट और ट्रेड फेयर समेत अन्य प्रदर्शनियों में ये पेंटिंग्स देखने को मिल जाएंगी लेकिन कलाकारों की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ है। क्योंकि बिचौलिये इस कला के बाज़ार में वर्षों पहले सेंध लगा चुके हैं, जिस कारण कलाकारों तक उनकी कला का पूरा मेहनताना नहीं पहुँच पाता है।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कल गुरुवार को मधुबनी जिले के रहिका प्रखंड के सौराठ में मिथिला चित्रकला संस्थान एवं मिथिला ललित संग्रहालय का शिलान्यास किया जहाँ नीतीश अपने भाषण में कई बार यह कहने का प्रयास कर रहे थे कि वो कितना अधिक मिथिला पेंटिग को लेकर चिंतित है और उसके विकास के लिए प्रतिबद्ध हैं।

उन्होंने अपने भाषण में कहा कि वो वर्ष 2012 में यहाँ आए थे तब उन्होंने लोगों कि मिथिला पेंटिंग के प्रति लगाव को देखते हुए इसके विस्तार और विकास के लिए चित्रकला प्रशिक्षण संस्थान बनाने का ऐलान किया। सितंबर 2013 में मंत्रिपरिषद ने स्वीकृति भी दे दी थी इसके महत्व को देखते हुए ललित संग्रहालय बनाने का निर्णय लिया था। मुख्यमंत्री ने 2020 तक इसका निर्माण कार्य पूरा होने की संभावना जताई।

इस पूरे कार्यक्रम के दौरान नीतीश ने मिथिला पेंटिग की तारीफ और उसके महत्व के बारे में बात की। यह कोई नई बात नहीं है। सभी सरकारें चाहे वो राज्य की हों या फिर केंद्र की, सभी ने इस कला के विस्तार और कलाकारों के विकास के बड़े बड़े वादे किये है लेकिन हकीकत में ऐसा होते नहीं दिखता है।

सच्चाई यह है कि बिहार कि मिथिला पेंटिग करने वाले कलाकारों की कोई भी सुध लेने वाला नहीं है। आपने अभी कुछ महीने पहले सुना होगा कि बिहार की ट्रेन बिहार संपर्क क्रांति को मिथिला पेंटिग से सजाया गया था। इसकी तारीफ देश सहित पूरी दुनिया में हुई थी। संयुक्त राष्ट्र ने भी इसकी तारीफ की थी परन्तु क्या आप जानते हैं कि बिहार के कलाकार जिन्होंने इस ट्रेन को सजाया था, उन्हें 6 महीने गुज़र जाने के बाद भी उनकी कला और मेहनत का भुगतान नहीं किया गया है। इसी से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि सरकारें इनके उत्थान के लिए कितनी चिंतित हैं।

इस कार्य को करने में तकरीबन  45 अलग-अलग कलाकारों ने कार्य किया है। और लगभग हर कलाकार को 15,000 से 20,000 रुपये के बीच भुगतान किया जाना था, परन्तु अभी तक कोई भुगतान नहीं हुआ है। इसके लिए विभाग और ठेकेदार जिससे इनका भुगतान करना है वो इसके लिए तकनीकी कारणों का हवाला दे रहे हैं और कह रहे हैं कि जल्द सभी का भुगातन कर दिया जाएगा।

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार , भारतीय रेलवे ने मिथिला की इस मधुबनी पेंटिंग से ट्रेन को सजाने के लिए प्रति कोच लगभग 1 लाख रुपये खर्च किए थे लेकिन कलाकरों के अनुसार “हमने इस परियोजना पर जुलाई से अक्टूबर तक काम किया।  हमें बताया गया था कि हमें दिसंबर तक भुगतान कर दिया जाएगा, लेकिन यह जनवरी है अभी तक भुगतान नहीं किया गया है।

आपको यह समझना होगा कि ये इस कला से जुड़े अधिकतर कलाकार ग्रामीण परिवेश से हैं, जिन्हें भारतीय रेलवे ने काम दिया तो ये मना नहीं कर पाए और पूरे उत्साह के साथ काम लिया और किया। इन कलाकारों के मुताबिक उन्हें काम के ऐसे मौके कम ही मिलते हैं।

हमारी सरकारों और समाज दोनों को कला को लेकर सोचना पड़ेगा क्योंकि यह सर्विदित है कि लोककला लोक से ही जीवन पाती है। हमें उम्मीद करनी चाहिए कि हमारा समाज और सरकारें भारत की इस सालों पुरानी कला और कलाकारों को बचाने के लिए काम करेंगे।

Madhubani Art
Bihar
mithila painting
indian railways
Mithila Art
United nations
Nitish Kumar
BJP Govt

Related Stories

बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका

समाज में सौहार्द की नई अलख जगा रही है इप्टा की सांस्कृतिक यात्रा

राम कथा से ईद मुबारक तक : मिथिला कला ने फैलाए पंख

बिहार: मिथिला पेंटिंग ने पुरुष प्रधान और सामंती समाज में नारी मुक्ति और सामाजिक न्याय के खोले रास्ते!

बिहार चुनाव: मधुबनी पेंटिंग का भरपूर उपयोग लेकिन कलाकारों की सुध लेने वाला कोई नहीं

कल इरफ़ान, आज ऋषि...दो दिन में डूब गए दो सितारे

मधुबनी स्टेशन को सजाने वाले कलाकारों को मिला गिरफ़्तारी वारंट का तोहफा!


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ः 60 दिनों से हड़ताल कर रहे 15 हज़ार मनरेगा कर्मी इस्तीफ़ा देने को तैयार
    03 Jun 2022
    मनरेगा महासंघ के बैनर तले क़रीब 15 हज़ार मनरेगा कर्मी पिछले 60 दिनों से हड़ताल कर रहे हैं फिर भी सरकार उनकी मांग को सुन नहीं रही है।
  • ऋचा चिंतन
    वृद्धावस्था पेंशन: राशि में ठहराव की स्थिति एवं लैंगिक आधार पर भेद
    03 Jun 2022
    2007 से केंद्र सरकार की ओर से बुजुर्गों को प्रतिदिन के हिसाब से मात्र 7 रूपये से लेकर 16 रूपये दिए जा रहे हैं।
  • भाषा
    मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चंपावत उपचुनाव में दर्ज की रिकार्ड जीत
    03 Jun 2022
    चंपावत जिला निर्वाचन कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, मुख्यमंत्री को 13 चक्रों में हुई मतगणना में कुल 57,268 मत मिले और उनके खिलाफ चुनाव लड़ने वाल़ कांग्रेस समेत सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो…
  • अखिलेश अखिल
    मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 
    03 Jun 2022
    बिहार सरकार की ओर से जाति आधारित जनगणना के एलान के बाद अब भाजपा भले बैकफुट पर दिख रही हो, लेकिन नीतीश का ये एलान उसकी कमंडल राजनीति पर लगाम का डर भी दर्शा रही है।
  • लाल बहादुर सिंह
    गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया
    03 Jun 2022
    मोदी सरकार पिछले 8 साल से भारतीय राज और समाज में जिन बड़े और ख़तरनाक बदलावों के रास्ते पर चल रही है, उसके आईने में ही NEP-2020 की बड़ी बड़ी घोषणाओं के पीछे छुपे सच को decode किया जाना चाहिए।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License