NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
विधानसभा चुनाव
भारत
राजनीति
मणिपुर चुनाव: आफ्सपा, नशीली दवाएं और कृषि संकट बने  प्रमुख चिंता के मुद्दे
जहां कांग्रेस और एनपीएफ़ ने अपने घोषणापत्र में आफ्सपा को वापस लेने का ज़िक्र किया है, वहीं भाजपा इसमें चूक गई है।
तृप्ता नारंग
22 Feb 2022
Translated by महेश कुमार
Manipur Elections
मणिपुर विधान सभा का एक सामान्य दृश्य

मणिपुर समेत चार अन्य राज्यों में इसी महीने विधानसभा चुनाव होने हैं। उत्तर पूर्वी राज्य की 60 सीटों के लिए दो चरणों में मतदान होगा – यह मतदान 28 फरवरी और 5 मार्च को होगा।

कांग्रेस, नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी), नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ), भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), वाम दल, तृणमूल कांग्रेस सहित अन्य प्रमुख पार्टियां मैदान में हैं।

उत्तर पूर्वी राज्यों की सात बहनों में से एक, मणिपुर उत्तर में नागालैंड, दक्षिण में मिजोरम और पश्चिम में असम से घिरा हुआ है। यह म्यांमार के दो इलाकों के साथ सीमाएँ भी साझा करता है, अर्थात् पूर्व में सेसिंग और दक्षिण में चिन राज्य है।

लगभग तीस लाख की आबादी वाले राज्य में बहुसंख्यक समूह, मैतेई 53 प्रतिशत है और  नागा जनजातियों का हिस्सा 24 प्रतिशत है और इसके अलावा विभिन्न कुकी-जो जनजातियों का मिश्रित हिस्सा लगभग 16 प्रतिशत है। राज्य की मुख्य भाषा मैतेई (मणिपुरी के नाम से भी जानी जाती है) है और उनका मुख्य धर्म हिंदू धर्म है जिसके बाद ईसाई धर्म है।

छोटे उत्तर पूर्वी राज्य की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि, वानिकी, कुटीर और महत्वपूर्ण जलविद्युत उत्पादन क्षमता के साथ व्यापार के आधार पर चलती है। यह भारत के 'पूर्व’ का प्रवेश द्वार' के रूप में भी काम करता है और भारत और म्यांमार और दक्षिण पूर्व एशिया, पूर्वी एशिया के अन्य देशों के बीच व्यापार के लिए भूमि या सड़क मार्ग भी है।

आगामी चुनावों में विभिन्न पहलुओं को समझने के लिए, मणिपुर में जातीय विभाजन, राजनीतिक विभाजन और लोगों के मुद्दों को समझने के लिए, न्यूज़क्लिक ने राज्य में राजनीति के दो मुख्य पर्यवेक्षकों - प्रदीप फांजौबम, (वरिष्ठ पत्रकार और लेखक, और जो इंफाल स्थित रिवियु ऑफ आर्ट एंड पॉलिटिक्स के संपादक भी हैं) और मणिपुर स्थित मानवाधिकार कार्यकर्ता बबलू लोइटोंगबाम के साथ ईमेल से बातचीत की गई है। 

जातीय (एथनिक)विभाजन और यह चुनाव को कैसे प्रभावित करता है

फांजौबम के अनुसार, जातीय (एथनिक) विभाजन जटिल है, जिसमें सबसे सरल - ईसाई और आदिवासी धर्म का पालन करने वाले आदिवासियों की आबादी है जो पहाड़ियाँ में रहती है और घाटी में गैर-आदिवासियों का कब्जा है, जो ज्यादातर हिंदू धर्म का पालन करते हैं।

मणिपुर में 60 सीटें हैं, जिनमें से 40 पर कोई भी चुनाव लड़ सकता है, हालांकि आमतौर पर बहुसंख्यक समूह यहां से चुनाव लड़ते हैं, जबकि हिल्स में 19 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं।

“एक समय ऐसा था कि एक सीट न तो पहाड़ियों में आती थी और न ही घाटी में और इसलिए, इसे अनारक्षित छोड़ दिया गया था। यह क्षेत्र अब कुकी और नेपाली आबादी से आबाद है। नेपाली समुदाय से इस निर्वाचन क्षेत्र से एक बार जीत भी हासिल की है।

फांजौबम ने कहा कि मणिपुर में 33-34 मान्यता प्राप्त आदिवासी समूह हैं, जो मुख्य रूप से कुकी जो और नागा जनजातियों में अलग-अलग संबद्धता और मतदान पैटर्न के तहत बंटे हुए हैं।

नगा लोग कोहिमा स्थित एनपीएफ से संबद्ध हैं और 2017 के चुनावों में चार सीटें जीतने में सफल रहे थे। इन चुनावों में एनपीएफ 10 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।

फांजौबम ने कहा कि यह निश्चित नहीं है कि सभी नगा जनजाति इस बार एनपीएफ उम्मीदवारों को या फिर दो बड़ी पार्टियों - कांग्रेस और भाजपा के समर्थन में मतदान करेंगे, जिन्होंने करीब-करीब सभी सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए हैं।

उन्होंने कहा, "एक तरह से, बड़ी पार्टियां सभी चुनावी घटकों को चुनावी अंकगणित एक साथ बांधने का प्रयास कर रही हैं, जबकि छोटी पार्टियां केवल अपने विशिष्ट क्षेत्रों/समुदाय के भीतर प्रचार कर रही हैं या मौजूदा विभाजन को संरक्षित कर रही हैं।"

जातीयता से परे हटकर, मणिपुर में बहुत मजबूत महिला और नागरिक समाज आंदोलन हुए भी हैं।

हालांकि, चुनावी राजनीति दुर्भाग्य से विचारधारा पर नहीं लड़ी जाती है, लेकिन सरकार में आने, सत्ता में रहने और अमीर बनने के मामले में इस पर अमीरों का वर्चस्व है, वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि यही एक कारण है कि मणिपुर में चुनावी राजनीति खरीद-फ़रोख्त का मैदान बन गई है। खंडित जनादेश के मामले में, विशेष रूप से छोटे दल व्यापार और सौदेबाजी करते हैं।

इसके अलावा अन्य राज्यों के विपरीत, मणिपुर में कोई पहचान की राजनीति नहीं है। फांजौबम कहते हैं कि “लोग चुनावों को सतही तौर पर देखते हैं और वे वास्तव में अपने जीवन में बदलाव की उम्मीद किए बिना मतदान करने जाते हैं।”

लोइटोंगबाम ने भी इसी तरह के विचार साझा किए, यह कहते हुए कि वैचारिक संबद्धता के अभाव में, मणिपुर में दलबदल बहुत आम बात है। 

क्या आफ्सपा लोगों के लिए एक बड़ा मुद्दा है?

सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम 1958 या आफ्सपा, जो सशस्त्र बलों को "अशांत क्षेत्रों" में "सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने" के लिए बेलगाम शक्ति देता है, जिसमें मारने का अधिकार, घरों पर छापा मारने और किसी भी संपत्ति को नष्ट करने का अधिकार जिसे उग्रवादी समूह द्वारा इस्तेमाल करने की संभावना है, और साथ ही "उचित संदेह" पर भी "बिना वारंट के उस व्यक्ति को गिरफ्तार किया जा सकता है" जिसने अपराध किया है या “संगीन अपराध”  करने वाला है। सेना को दंड से छूट देने वाले इस कठोर अधिनियम का मणिपुर के लोगों ने लंबे समय से विरोध किया है। आफ्सपा को खत्म करने की मांग को लेकर चल रहे आंदोलन में मणिपुर की महिलाएं सबसे आगे रही हैं।

फांजौबम ने कहा कि आफ्सपा मणिपुर के लोगों के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है, और  तथ्य यह कि इसे अदालत में भी चुनौती नहीं दी जा सकती है, यह और भी "खतरनाक" है। उनके विचार में, यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम) जैसा कठोर अधिनियम, जिसका मनमाने ढंग से इस्तेमाल किया गया है, आफ्सपा से बेहतर है, क्योंकि इसे अदालत में चुनौती दी जा सकती है और कुछ मामलों में इसमें सफलता भी मिली है।

लोइटोंगबाम ने भी कहा कि आगामी चुनावों में एएफपीएसए एक प्रमुख मुद्दा है। एनपीएफ और कांग्रेस जैसे राजनीतिक दल अपने चुनावी घोषणापत्र में इसे रद्द करने की बात कर रहे हैं, लेकिन यह भाजपा के घोषणापत्र से गायब है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के हालिया दौरे के दौरान सशस्त्र समूहों के साथ शांति वार्ता शुरू करने की बात करने के बावजूद, भाजपा ने इसे घोषणापत्र में शामिल नहीं किया है।

लोइटोंगबाम ने कहा कि केंद्र द्वारा आफ्सपा का विस्तार "दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि भाजपा कानून और व्यवस्था की स्थिति में 80 प्रतिशत सुधार का दावा करती है।"

उनके अनुसार, हिंसा के स्तर में कमी आई है और कानून और व्यवस्था में धीरे-धीरे सुधार हुआ है क्योंकि कई सशस्त्र समूह किसी न किसी तरह के संघर्ष विराम समझौते या हमलों के निलंबन के पक्ष में थे। उन्होंने कहा, "हालांकि, अभी भी कुछ समूह ऐसे हैं जिन्हें भारत सरकार के साथ किसी भी किस्म की बातचीत में शामिल होना बाकी है।"

मानवाधिकार कार्यकर्ता ने बताया कि हिंसा में कमी एक्स्ट्रा-ज्यूडिशियल एक्ज़ीक्यूशन विक्टिम्स फ़ैमिली एसोसिएशन मणिपुर के हस्तक्षेप के कारण भी आई है, जिस संस्था को गैर-कानूनी ढंग से पीड़ित परिवारों ने बनाया था। 

“सुप्रीम कोर्ट ने उपरोक्त मामले में सरकार को आड़े हाथों लिया था और सरकार को जवाबदेह बनने का निर्देश दिया था। तब से गैर-कानूनी उत्पीड़न बंद हो गया है। इसलिए, दिलचस्प बात यह है, उन्होंने कहा, कि जब राज्य खुद को संयमित करता है, तो दूसरी तरफ भी संयम होता है, यही वजह है कि भीतरघाट करने वालों की तरफ से हिंसा में काफी कमी आई है।”

लोइटोंगबाम ने कहा, "जमीन पर स्थिति में उल्लेखनीय बदलाव आया है। लेकिन यह भी आश्चर्यचकित करता है कि अगर स्थिति में 80 प्रतिशत सुधार हुआ है (जैसा कि रक्षा मंत्री ने दावा किया है) तो राज्य में कानून और व्यवस्था से निपटने के लिए सेना की क्या जरूरत है”।

उन्होंने कहा: “हो सकता है कि सत्ता, पूर्ण अगोचर सत्ता बनाए रखने के लिए आफ्सपा की एक तरह की लत लग गई हो। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारी सरकार आफ्सपा की दीवानी हो गई है।

लोगों के मुख्य मुद्दों में नशीली दवाओं का ख़तरा

उत्तर पूर्वी राज्य अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम और नागालैंड म्यांमार के साथ 1,643 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं। म्यांमार से पूर्वोत्तर क्षेत्र में अफीम, हेरोइन, मेथामफेटामाइन और कई अन्य दवाओं की तस्करी की जाती है।

'गोल्डन ट्राएंगल' में उत्पादित दवाएं (द गोल्डन ट्राएंगल म्यांमार, लाओस और थाईलैंड के ग्रामीण पहाड़ों के साथ मेल खाने वाले क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करती है- यह दक्षिण पूर्व एशिया का मुख्य अफीम उत्पादक क्षेत्र है और यूरोप और उत्तरी अमेरिका को नशीले पदार्थों की आपूर्ति का सबसे पुराने मार्गों में से एक है), फिर चंपाईन मिजोरम, मोरेहिन मणिपुर, और असम में दीमापुर नागालैंड और गुवाहाटी के माध्यम से म्यांमार में भामो, लैशियो और मांडले से भारत में प्रवेश किया जाता है।

कभी गोल्डन ट्राएंगल के माध्यम से म्यांमार से ड्रग्स पहुंचाने का एक मार्ग होने के बाद, मणिपुर अब एक महत्वपूर्ण बाजार बन गया है।

लोइटोंगबाम ने आरोप लगाया कि "ड्रग के कई सरगनाओं को वास्तव में चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया जाता है, मेरा मतलब है कि जिन लोगों पर सीबीआई के मुक़दमें चल रहे हैं, वे भाजपा के उम्मीदवार हैं"।

उन्होंने कहा कि इन चुनावों के दौरान, नागरिक समाज समूहों ने एक जन घोषणा पत्र निकाला और इसे सभी राजनीतिक दलों को सौंप दिया गया है। कांग्रेस और एनपीएफ ने अपने घोषणापत्र में नशीली दवाओं के मुद्दे को शामिल किया है।

नशीली दवाओं के अलावा, कृषि और बेरोजगारी के मुद्दे, भ्रष्टाचार राज्य में महत्वपूर्ण मुद्दे बने हुए हैं। कोविड-19 ने लोगों, विशेष रूप से खाद्य आपूर्ति ने, दुखों को और बढ़ा दिया है।

किसानों के आंदोलन का कोई असर?

फांजौबम महसूस करते हैं कि पूर्वोत्तर और मुख्यधारा के बीच खराब संपर्क के कारण मणिपुर में किसानों के एक साल के आंदोलन का ज्यादा असर नहीं पड़ा है। "शायद एक या दो छोटी रैली हुई थी, लेकिन ज्यादा कुछ नहीं हुआ है।"

लोइटोंगबाम संपर्क की कमी पर सहमत थे, लेकिन महसूस किया कि राज्य में देशव्यापी किसान आंदोलन का "सकारात्मक प्रभाव" था।

“मणिपुर के किसान किसी किसान यूनियन का हिस्सा नहीं हैं। देश में आंदोलन की सफलता के बाद, राज्य-विशिष्ट जरूरतों को समझने के लिए राज्य में एक संवाद आयोजित किया गया था। दिलचस्प बात यह है कि पिछले 60-70 वर्षों से, राज्य में किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य कोई मुद्दा नहीं रहा है, लेकिन किसान आंदोलन से सीखकर सभी राजनीतिक दलों को इस बाबत एक घोषणा प्रस्तुत की गई है। 

तो, मणिपुर के लोग किसको वोट देंगे?

लोइटोंगबाम ने कहा कि लोग बेरोजगारी, ड्रग्स, कृषि, आफ्सपा मुद्दे पर वोट करेंगे, जबकि फांजौबम ने कहा, "हम केवल इंतजार कर सकते हैं और देख सकते हैं", क्योंकि "जिनकी यादाश्त कमजोर है वे लोग रैलियों और रंगीन राजनीतिक अभियानों से प्रभावित हो जाते हैं।"

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Manipur Elections: AFSPA, Drug Menace, Agri Distress key Issues of Concern

Manipur elections
Congress
NFP
BJP
AFSPA
NE Drug Menace

Related Stories

हार्दिक पटेल का अगला राजनीतिक ठिकाना... भाजपा या AAP?

लोकसभा और विधानसभा उपचुनावों में औंधे मुंह गिरी भाजपा

ख़बरों के आगे-पीछे: गुजरात में मोदी के चुनावी प्रचार से लेकर यूपी में मायावती-भाजपा की दोस्ती पर..

विश्लेषण: विपक्षी दलों के वोटों में बिखराव से उत्तर प्रदेश में जीती भाजपा

आर्थिक मोर्चे पर फ़ेल भाजपा को बार-बार क्यों मिल रहे हैं वोट? 

पांचों राज्य में मुंह के बल गिरी कांग्रेस अब कैसे उठेगी?

विचार: क्या हम 2 पार्टी सिस्टम के पैरोकार होते जा रहे हैं?

यूपी चुनाव के मिथक और उनकी हक़ीक़त

विधानसभा चुनाव: एक ख़ास विचारधारा के ‘मानसिक कब्ज़े’ की पुष्टि करते परिणाम 

उत्तर प्रदेशः हम क्यों नहीं देख पा रहे हैं जनमत के अपहरण को!


बाकी खबरें

  • सत्यम् तिवारी
    वाद-विवाद; विनोद कुमार शुक्ल : "मुझे अब तक मालूम नहीं हुआ था, कि मैं ठगा जा रहा हूँ"
    16 Mar 2022
    लेखक-प्रकाशक की अनबन, किताबों में प्रूफ़ की ग़लतियाँ, प्रकाशकों की मनमानी; ये बातें हिंदी साहित्य के लिए नई नहीं हैं। मगर पिछले 10 दिनों में जो घटनाएं सामने आई हैं
  • pramod samvant
    राज कुमार
    फ़ैक्ट चेकः प्रमोद सावंत के बयान की पड़ताल,क्या कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार कांग्रेस ने किये?
    16 Mar 2022
    भाजपा के नेता महत्वपूर्ण तथ्यों को इधर-उधर कर दे रहे हैं। इंटरनेट पर इस समय इस बारे में काफी ग़लत प्रचार मौजूद है। एक तथ्य को लेकर काफी विवाद है कि उस समय यानी 1990 केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी।…
  • election result
    नीलू व्यास
    विधानसभा चुनाव परिणाम: लोकतंत्र को गूंगा-बहरा बनाने की प्रक्रिया
    16 Mar 2022
    जब कोई मतदाता सरकार से प्राप्त होने लाभों के लिए खुद को ‘ऋणी’ महसूस करता है और बेरोजगारी, स्वास्थ्य कुप्रबंधन इत्यादि को लेकर जवाबदेही की मांग करने में विफल रहता है, तो इसे कहीं से भी लोकतंत्र के लिए…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    फ़ेसबुक पर 23 अज्ञात विज्ञापनदाताओं ने बीजेपी को प्रोत्साहित करने के लिए जमा किये 5 करोड़ रुपये
    16 Mar 2022
    किसी भी राजनीतिक पार्टी को प्रश्रय ना देने और उससे जुड़ी पोस्ट को खुद से प्रोत्सान न देने के अपने नियम का फ़ेसबुक ने धड़ल्ले से उल्लंघन किया है। फ़ेसबुक ने कुछ अज्ञात और अप्रत्यक्ष ढंग
  • Delimitation
    अनीस ज़रगर
    जम्मू-कश्मीर: परिसीमन आयोग ने प्रस्तावों को तैयार किया, 21 मार्च तक ऐतराज़ दर्ज करने का समय
    16 Mar 2022
    आयोग लोगों के साथ बैठकें करने के लिए ​28​​ और ​29​​ मार्च को केंद्र शासित प्रदेश का दौरा करेगा।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License