NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
शिक्षा
भारत
राजनीति
मोदी सरकार में शिक्षा बेहिसाब महंगी हुई है : सर्वे रिपोर्ट
हाल ही में सामने आई एनएसओ की एक सर्वे रिपोर्ट से पता चलता है कि निजी शिक्षण संस्थान अत्यधिक शुल्क ले रहे हैं वहीं सरकारी संस्थान भी इस मामले में पीछे नहीं है।
सुबोध वर्मा
04 Dec 2019
मोदी सरकार में शिक्षा बेहिसाब महंगी हुई है

वर्ष 2014 और 2018 के बीच प्राथमिक शिक्षा (कक्षा 1 से 5) के मूल्य में 31% की वृद्धि हुई है। यह 71वें और 75वें दौर के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय या एनएसओ (पूर्ववर्ती राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय) सर्वेक्षण रिपोर्टों की तुलना से पता चलता है। यह मुख्य रूप से सहायता प्राप्त और ग़ैर सहायता प्राप्त दोनों स्कूलों की संख्या में भारी वृद्धि के चलते हुआ है। इस रिपोर्ट से पता चलता है कि अन्य उच्च स्तरीय शिक्षा में भी इसी तरह की बढ़ोतरी हुई है। [चार्ट नीचे दिया गया है]

chart.jpg

हालांकि इन दोनों रिपोर्टों की कार्यप्रणाली और परिभाषाओं में कुछ अंतर हैं। ये यहां की जा रही वैध तुलना से अलग नहीं हैं।

एनएसओ ने अभी तक 2018 (75वें दौर का) का पूर्ण सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी नहीं किया है। इसने केवल 'मुख्य संकेतक' (की इंडिकेटर्स) जारी किए हैं। परिणाम स्वरूप इसने तकनीकी और व्यावसायिक पाठ्यक्रमों (विशेष रूप से चिकित्सा, विधि, इंजीनियरिंग आदि) के लिए संस्थान के प्रकार (निजी या सरकारी) में पाठ्यक्रम के अनुसार लागत को उजागर नहीं किया है। ये वर्ष 2014 (71वें दौर) की पिछली रिपोर्ट में उपलब्ध है।

यह (ऊपर दिए गए चार्ट में) देखा जा सकता है कि स्नातक स्तर की शिक्षा के ख़र्च में वृद्धि दूसरे पाठ्यक्रमों की तरह ज़्यादा नहीं है। इसमें 6% की औसत वृद्धि है जो निजी और सरकारी कॉलेजों के बीच की तरह ग्रामीण और शहरी कॉलेजों के बीच अधिक अंतर को छुपाता है।

ग्रामीण क्षेत्रों में स्नातक स्तर की प्रतिवर्ष क़ीमत औसतन 16,485 रुपये है जबकि शहरी क्षेत्रों में ये क़ीमत प्रति वर्ष 25,204 रुपये है। सरकार द्वारा वित्त पोषित कॉलेजों और निजी (सहायता प्राप्त या ग़ैर सहायता प्राप्त) कॉलेजों के बीच क़ीमत में भारी अंतर नीचे दिए गए चार्ट में दिखाया गया है।

सरकारी कॉलेज में स्नातक के लिए औसत लागत 9,703 रुपये प्रति वर्ष है जबकि निजी सहायता प्राप्त कॉलेजों में 14,037 रुपये और पूरी तरह से निजी कॉलेजों में 20,462 रुपये है।

chart2_1.jpg

हालांकि स्कूल स्तर पर अभी भी सबसे ज़्यादा चौंकाने वाला अंतर मौजूद है। निजी ग़ैर-सहायता प्राप्त स्कूलों में प्राथमिक स्तर के छात्र सरकारी स्कूलों की तुलना में लगभग 10 गुना अधिक भुगतान करते हैं। इसी तरह माध्यमिक स्तर (कक्षा 6 से 8) के छात्र सरकारी स्कूल की तुलना में निजी ग़ैर-सहायता प्राप्त स्कूलों में चार गुना अधिक भुगतान करते हैं।

तकनीकी और व्यावसायिक पाठ्यक्रमों मेडिसिन, लॉ, प्रबंधन, कंप्यूटर (आईटी), आदि जैसे विभिन्न स्तरों पर इसी तरह का अंतर देखा जा सकता है। [चार्ट नीचे दिया गया है]।

मेडिसिन और इंजीनियरिंग (दोनों स्नातक पाठ्यक्रम) में स्नातक के लिए एक सरकारी वित्तपोषित कॉलेज प्रति वर्ष औसतन 36,180 रुपये शुल्क लेगा, जबकि एक निजी ग़ैर-सहायता प्राप्त कॉलेज या विश्वविद्यालय प्रति वर्ष दोगुना अर्थात 77,712 रुपये का शुल्क वसूलेगा। स्नातकोत्तर शिक्षा के लिए जैसे कि मास्टर ऑफ बिज़नेस एडमिनिस्ट्रेशन या लॉ में सरकारी संस्थानों में 53,797 रुपये प्रति वर्ष ख़र्च होगा, जबकि निजी सहायता प्राप्त कॉलेज में 74,021 रुपये और ग़ैर सहायता प्राप्त निजी कॉलेज में 72,604 रुपये ख़र्च आएगा।

chart3.jpg

स्नातक स्तर से नीचे के पाठ्यक्रम डिप्लोमा या सर्टिफ़िकेट कोर्स में जैसे कम्प्यूटर या अन्य सूचना तकनीक संबंधित कोर्स में सरकारी संस्थानों में औसतन 13,727 रुपये लागत आती है वहीं निजी सहायता प्राप्त या ग़ैर सहायता प्राप्त संस्थानों में सरकारी कॉलेजों की तुलना में ढाई गुना अधिक ख़र्च लगता है।

यह चिंताजनक आंकड़ा दिखाता है कि शिक्षा की लागत में अस्वाभाविक वृद्धि है जो औसत आय वाले परिवारों की पहुंच से काफ़ी अधिक है। इसका वास्तविक प्रभाव यह है कि इन परिवारों को या तो अन्य ख़र्चों (जैसे भोजन, परिवहन या किराए) में कटौती करनी पड़ती है या अपने बच्चों की पढ़ाई बंद करनी पड़ती है। पढ़ाई बंद करने का विकल्प वर्तमान में एक मूर्खतापूर्ण विकल्प माना जाता है क्योंकि ज़्यादातर लोग मानते हैं कि शिक्षा भविष्य की समृद्धि की कुंजी है।

दुर्भाग्य से 75 वें दौर के लिए एकत्र किए गए उपभोक्ता व्यय आंकड़े को एनएसओ द्वारा जारी नहीं किया जाएगा। हालांकि यह पिछले महीने लीक हो गया था। सरकार का दावा है कि यह त्रुटिपूर्ण था। ये आंकड़ा शिक्षा, स्वास्थ्य, भोजन आदि पर ख़र्च के संबंधित शेयरों को दिखा दिया होता। लीक हुए डाटा ने उपभोक्ता ख़र्च में अभूतपूर्व गिरावट को उजागर किया है।

इस तरह ये सरकार आम लोगों के इस दर्द के प्रति अत्यधिक उदासीन प्रतीत दिखाई है क्योंकि यह शिक्षा के निजीकरण की प्रति नतमस्तक है जैसा कि नई शिक्षा नीति में बयान किया गया है।

इसके साथ ही नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार भी उच्च शिक्षा शुल्क और अन्य शुल्कों पर ज़ोर दे रही है जैसा कि दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के मामले में देखा जा सकता है। यह चुनिंदा संस्थानों में कुलीन वर्ग के लिए उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा के पोषण का बहाना करके शिक्षा के क्षेत्र को निजी लाभ कमाने वाली संस्थाओं के हाथों सौंप रही है। यह मॉडल देश के लिए अकल्पनीय परिमाण का एक संकट बयां करता है क्योंकि यह आने वाली पीढ़ियों को निम्न गुणवत्ता वाली शिक्षा की तरफ़ धकेलेगा।

Public Education
Higher education
Govt-Funded Institutions
Exorbitant Fees
new education policy
NSO Survey
Consumer Expenditure
Modi government
Private Colleges

Related Stories

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

बच्चे नहीं, शिक्षकों का मूल्यांकन करें तो पता चलेगा शिक्षा का स्तर

'KG से लेकर PG तक फ़्री पढ़ाई' : विद्यार्थियों और शिक्षा से जुड़े कार्यकर्ताओं की सभा में उठी मांग

डीयूः नियमित प्राचार्य न होने की स्थिति में भर्ती पर रोक; स्टाफ, शिक्षकों में नाराज़गी

शिक्षा को बचाने की लड़ाई हमारी युवापीढ़ी और लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई का ज़रूरी मोर्चा

स्कूलों की तरह ही न हो जाए सरकारी विश्वविद्यालयों का हश्र, यही डर है !- सतीश देशपांडे

नई शिक्षा नीति से सधेगा काॅरपोरेट हित

नई शिक्षा नीति भारत को मध्य युग में ले जाएगी : मनोज झा

नई शिक्षा नीति का ख़ामियाज़ा पीढ़ियाँ भुगतेंगी - अंबर हबीब


बाकी खबरें

  • विजय विनीत
    बनारस को धार्मिक उन्माद की आग में झोंकने का घातक खेल है "अज़ान बनाम हनुमान चालीसा" पॉलिटिक्स
    19 Apr 2022
    हनुमान चालीसा एक धार्मिक पाठ है। इसे किसी को जवाब देने के लिए नहीं, मन और आत्मा की शांति के लिए पढ़ा जाता है। अब इसका इस्तेमाल नफ़रती राजनीति के लिए किया जा रहा है। दिक्कत यह है कि बहुत से पढ़े-लिखे…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    मध्य प्रदेश फसल घोटाला: माकपा ने कहा- 4000 करोड़ के घोटाले में बिचौलिए ही नहीं भाजपाई भी हैं शामिल
    19 Apr 2022
    माकपा ने इस घोटाले का आरोप बीजेपी पर लगाते हुए कहा है कि पिछले डेढ़ दशक से भी लंबे समय से चल रहे गेहूं घोटाले में बिचौलिए ही नहीं प्रशासन और भाजपाई भी बड़े पैमाने पर शामिल हैं। 
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: कई राज्यों में मामले बढ़े, दिल्ली-एनसीआर में फिर सख़्ती बढ़ी 
    19 Apr 2022
    देश के कई राज्यों में कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए राज्य सरकारों ने कोरोना के नियमों का पालन करने जोर दिया है, और मास्क नहीं पहनने वालों पर जुर्माना भी लगाया जाएगा |
  • अजय कुमार
    मुस्लिमों के ख़िलाफ़ बढ़ती नफ़रत के ख़िलाफ़ विरोध में लोग लामबंद क्यों नहीं होते?
    19 Apr 2022
    उत्तर भारत की मज़बूत जनाधार वाली पार्टियां जैसे कि समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, बाकी अन्य दलों के नेताओं की तरफ से ऐसा कुछ भी नहीं कहा गया, जिससे यह लगे कि भारत के टूटते ताने-बाने को बचाने के…
  • संदीप चक्रवर्ती
    केवल आर्थिक अधिकारों की लड़ाई से दलित समुदाय का उत्थान नहीं होगा : रामचंद्र डोम
    19 Apr 2022
    आर्थिक और सामाजिक शोषण आंतरिक रूप से जुड़े हुए हैं। माकपा की पोलिट ब्यूरो में चुने गए पहले दलित सदस्य का कहना है कि सामाजिक और आर्थिक दोनों अधिकारों की लड़ाई महत्वपूर्ण है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License