NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
घटना-दुर्घटना
फिल्में
कला
साहित्य-संस्कृति
भारत
राजनीति
मोदी युग में डॉक्यूमेंट्री : आनंद पटवर्धन की फिल्म 'विवेक' यू ट्यूब पर किस्तों में जारी
आनंद पटवर्धन की डॉक्यूमेंट्री "विवेक" (रीज़न) के पहले दो अध्यायों का प्रिव्यू 6 अप्रैल को यूट्यूब पर विवेक रीज़न नाम से जारी किया गया।
सौजन्य: इंडियन कल्चरल फोरम
10 Apr 2019
vivek
image courtesy- you tube

आनंद पटवर्धन की डॉक्यूमेंट्री "विवेक" (रीज़न) के पहले दो अध्यायों का प्रिव्यू 6 अप्रैल को यूट्यूब पर विवेक रीज़न नाम से जारी किया गया। लोगों को देखने के लिए अब तक चार वीडियो यूट्यूब पर उपलब्ध हैं। ये 13 मिनट का लंबा प्रिव्यू 240 मिनट के एक डॉक्यूमेंट्री का हिस्सा है जिसमें आठ अध्याय हैं। साथ ही वे उन भयावह घटनाओं को दिखाते हैं कि कैसे भारत के "धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र को व्यवस्थित तरीक़े से  नाश करने के लिए हत्या और दिमाग को नियंत्रित किया जा रहा है"। "रीज़़न" का प्रीमियर पिछले साल सितंबर महीने में टोरंटो अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव में हुआ था और नवंबर महीने में एम्स्टर्डम में 31 वें अंतर्राष्ट्रीय डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म महोत्सव में सर्वश्रेष्ठ फीचर-लेंथ डॉक्यूमेंट्री अवार्ड जीता था।

पटवर्धन चार दशकों से ज्वलंत मुद्दों पर डॉक्यूमेंट्री बनाते रहे हैं। इनकी "फादर, सन एंड होली वार" (1995) और "जय भीम कॉमरेड" (2011) जैसी फ़िल्में देश में सत्तावादी एवं जातिवादी, दक्षिणपंथी ताक़तों द्वारा किए गए हिंसक हमलों के प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। इनकी फ़िल्मों में ज्वलंत मुद्दों को उठाया गया है। "रीज़न" में प्रमुख तर्कवादियों और विचारकों की मौत, दलितों को लेकर उच्च-जाति का प्रतिरोध, सफाई कर्मचारियों से संबंधित घटनाओं तथा कट्टरपंथी संगठनों के तरीकों और दक्षिणपंथ के साथ जुड़े इसके तार की आधिकारिक तथा अनौपचारिक दोनों ही रूपों में चर्चा की गई है।

पहले दो अध्यायों में तर्कवादियों और नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसरे तथा गौरी लंकेश जैसे बुद्धिजीवियों की मौत के कारणों की पड़ताल की गई है। वर्ष 2013 में पुणे में सुबह के वक़्त टहलने के दौरान दाभोलकर को गोली मार दी गई थी। वे अंधविश्वास के ख़िलाफ़ लंबे समय से चलने वाले अभियान में अग्रणी थें और महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति से जुड़े थें। पानसरे की श्रंखला में दाभोलकर की हत्या के बाद उनके सार्वजनिक भाषणों के फुटेज शामिल हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और उसके सहयोगी संगठनों के शामिल होने की तरफ इशारा करते हुए पानसरे कहते हैं, “महात्मा गांधी की हत्या किसने की? यह वही विचारधारा है जिसने दाभोलकर की भी हत्या की।”

अंतिम दो अध्यायों में हाल के दिनों में गाय के नाम पर दलितों और मुसलमानों की हत्याओं की पड़ताल की गई है। वर्ष 2014 में बीजेपी सरकार के केंद्र की सत्ता में आने के बाद से गोरक्षा के नाम पर होने वाली हिंसा अब एक नई सामान्य घटना हो गई है। उत्तर प्रदेश के दादरी में रहने वाले 52 वर्षीय व्यक्ति मोहम्मद अख़़लाक़ की हत्या पड़ोसी के बछड़े को कथित तौर पर मारने और उसके मांस का इस्तेमाल करने के आरोप में भीड़ द्वारा 28 सितंबर 2015 को कर दी गई थी। पुलिस जांच में पाया गया कि उसके घर में गोमांस नहीं था। तब से गाय के नाम पर अल्पसंख्यकों पर हमला बढ़ गया है। पिछले महीने अमेरिका में स्थित ह्यूमन राइट्स वॉच ने भारत में सभी गोरक्षक समूहों और हिंदुत्व संगठनों के बीच संबंधों का खुलासा किया। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि गोरक्षा के नाम पर हत्या करने वालों को राजनीतिक और प्रशासनिक संरक्षण हासिल है।

पिछले सप्ताह भारत के फिल्मी दुनिया के 100 से अधिक हस्तियों ने आगामी लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को वोट न देने की अपील की थी। आनंद पटवर्धन हस्ताक्षर करने वाले इन हस्तियों में शामिल थें। इसमें वेट्री मारन, सनलकुमार ससिधरन, दीपा धनराज और संपादक बीना पॉल जैसे अन्य प्रसिद्ध नाम शामिल थें।"प्रोटेक्ट द डेमोक्रेसी ऑफ द कंट्री (देश के लोकतंत्र की रक्षा करें)" के अपील के रूप में लिखा गया, इस बयान में दक्षिणपंथी सरकार पर "ध्रुवीकरण और घृणा की राजनीति करने"; गोरक्षा; दलितों, मुस्लिमों और किसानों का हाशिए पर जाना और बढ़ते सेंसरशिप का आरोप लगाया।" पटवर्धन की फ़िल्म,"रीज़़न" इन सभी मुद्दों की बेहद कटु पड़ताल करती है।

Narendra modi
loksabha election 2019
gauri lankesh
dabholkar
RSS
BJP-RSS

Related Stories

ग़ाज़ियाबाद: श्मशान घाट हादसे में तीन गिरफ़्तार, प्रशासन के खिलाफ़ लोगों का फूटा गुस्सा!

गौरी लंकेश : आँखें बंद कर जीने से तो अच्छा है आँखें खोलकर मर जाना

चक्रवात ‘अम्फान’ से बंगाल में 80 लोगों की मौत, हज़ारों बेघर, एक लाख करोड़ से ज़्यादा के नुकसान का दावा

फिर हादसा, फिर मौतें : यूपी के औरैया में 24 मज़दूरों की जान गई, एमपी के सागर में 5 की मौत

महाराष्ट्र से पैदल ही अपने गांव-घर लौट रहे 14 प्रवासी मज़दूरों की मालगाड़ी से कुचलकर मौत

विशाखापत्तनम: एलजी पॉलिमर प्लांट से गैस का रिसाव, आठ की मौत, सैकड़ों मुश्किल में

नागरिकों ने की शांति की अपील, हिंसा में अब तक 22 मौतें और अन्य ख़बरें

दिल्ली : कुछ इलाकों में फिर से हिंसा, मरने वालों की संख्या बढ़ कर सात हुई

दिल्ली पुलिस का झूठ: ABVP का पर्दाफ़ाश

सुरक्षा बलों में भी कम नहीं है महिलाओं का शोषण-उत्पीड़न : ITBP की पूर्व डिप्टी कमांडेंट की कहानी


बाकी खबरें

  • मुकुल सरल
    मदर्स डे: प्यार का इज़हार भी ज़रूरी है
    08 May 2022
    कभी-कभी प्यार और सद्भावना को जताना भी चाहिए। अच्छा लगता है। जैसे मां-बाप हमें जीने की दुआ हर दिन हर पल देते हैं, लेकिन हमारे जन्मदिन पर अतिरिक्त प्यार और दुआएं मिलती हैं। तो यह प्रदर्शन भी बुरा नहीं।
  • Aap
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: केजरीवाल के ‘गुजरात प्लान’ से लेकर रिजर्व बैंक तक
    08 May 2022
    हर हफ़्ते की ज़रूरी ख़बरों को लेकर एक बार फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: हम सहनशील तो हैं, पर इतने भी नहीं
    08 May 2022
    हम ग़रीबी, बेरोज़गारी को लेकर भी सहनशील हैं। महंगाई को लेकर सहनशील हो गए हैं...लेकिन दलित-बहुजन को लेकर....अज़ान को लेकर...न भई न...
  • बोअवेंटुरा डे सौसा सैंटोस
    यूक्रेन-रूस युद्ध के ख़ात्मे के लिए, क्यों आह्वान नहीं करता यूरोप?
    08 May 2022
    रूस जो कि यूरोप का हिस्सा है, यूरोप के लिए तब तक खतरा नहीं बन सकता है जब तक कि यूरोप खुद को विशाल अमेरिकी सैन्य अड्डे के तौर पर तब्दील न कर ले। इसलिए, नाटो का विस्तार असल में यूरोप के सामने एक…
  • जितेन्द्र कुमार
    सवर्णों के साथ मिलकर मलाई खाने की चाहत बहुजनों की राजनीति को खत्म कर देगी
    08 May 2022
    सामाजिक न्याय चाहने वाली ताक़तों की समस्या यह भी है कि वे अपना सारा काम उन्हीं यथास्थितिवादियों के सहारे करना चाहती हैं जो उन्हें नेस्तनाबूद कर देना चाहते हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License