NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
नाम में क्या रखा है? बहुत कुछ
अंबेडकर के नाम में ‘रामजी‘ पर जोर
राम पुनियानी
09 Apr 2018
अम्बेडकर

इन दिनों कई दलित संगठन, उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा उसके आधिकारिक अभिलेखों में भीमराव अंबेडकर के नाम में ‘रामजी‘ शब्द जोड़े जाने का विरोध कर रहे हैं। यह सही है कि संविधान सभा की मसविदा समिति के अध्यक्ष बतौर, अंबेडकर ने संविधान की प्रति पर अपने हस्ताक्षर, भीमराव रामजी अंबेडकर के रूप में किए थे। परंतु सामान्यतः, उनके नाम में रामजी शब्द शामिल नहीं किया जाता है। तकनीकी दृष्टि से उत्तरदेश सरकार के इस निर्णय को चुनौती नहीं दी जा सकती परंतु यह कहना भी गलत नहीं होगा कि यह निर्णय, अंबेडकर को अपना घोषित करने की हिन्दुत्ववादी राजनीति का हिस्सा है। भाजपा के लिए भगवान राम, तारणहार हैं। उनके नाम का इस्तेमाल कर भाजपा ने समाज को धार्मिक आधार पर ध्रुवीकृत किया - फिर चाहे वह राममंदिर का मुद्दा हो, रामसेतु का या रामनवमी की पूर्व संध्या पर जानबूझकर भड़काई गई हिंसा का। मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से हम भारत में दो विरोधाभासी प्रवृत्तियों का उभार देख रहे हैं। एक ओर दलितों के विरूद्ध अत्याचार बढ़ रहे हैं तो दूसरी ओर, अंबेडकर की जंयतियां जोर-शोर से मनाई जा रही हैं और हिन्दू राष्ट्रवादी अनवरत अंबेडकर का स्तुतिगान कर रहे हैं।

इस सरकार के पिछले लगभग चार वर्षों के कार्यकाल में हमने दलितों के दमन के कई उदाहरण देखे। आईआईटी मद्रास में पेरियार स्टडी सर्किल पर प्रतिबंध लगाया गया, रोहित वेम्यूला की संस्थागत हत्या हुई और ऊना में दलितों पर घोर अत्याचार किए गए। मई 2017, जब योगी आदित्यनाथ उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बन चुके थे, में सहारनपुर में हुई हिंसा में बड़ी संख्या में दलितों के घर जला दिए गए। दलित नेता चंद्रशेखर रावण, जमानत मिलने के बाद भी जेल में हैं क्योंकि उन पर आरोप है कि उन्होंने हिंसा भड़काई। दलितों के घरों को आग के हवाले करने की घटना, भाजपा सांसद के नेतृत्व में निकाले गए जुलूस के बाद हुई जिसमें ‘‘यूपी में रहना है तो योगी-योगी कहना होगा‘‘ व ‘‘जय श्रीराम‘‘ के नारे लगाए जा रहे थे। महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में दलितों के खिलाफ हिंसा भड़काई गई और जैसा कि दलित नेता प्रकाश अंबेडकर ने कहा है, हिंसा भड़काने वालों के मुख्य कर्ताधर्ता भिड़े गुरूजी को अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया है। भाजपा की केन्द्र सरकार में मंत्री व्ही के सिंह ने सन् 2016 में दलितों की तुलना कुत्तों से की थी और हाल में एक अन्य केन्द्रीय मंत्री अनंत कुमार हेगड़े ने भी ऐसा ही कहा। उत्तरप्रदेश के कुशीनगर में जब योगी आदित्यनाथ मुशहर जाति के लोगों से मिलने जा रहे थे, उसके पूर्व अधिकारियों ने दलितों को साबुन की बट्टियां और शेम्पू बांटे ताकि वे नहा-धोकर साफ-सुथरे लग सकें।

मोदी-योगी मार्का राजनीति की मूल नीतियों और चुनाव में अपना हित साधने की उसकी आतुरता के कारण यह सब हो रहा है। सच यह है कि मोदी-योगी और अंबेडकर के मूल्यों में मूलभूत अंतर हैं। अंबेडकर, भारतीय राष्ट्रवाद के हामी थे। वे जाति का उन्मूलन करना चाहते थे और उनकी यह मान्यता थी कि जाति और अछूत प्रथा की जड़ें हिन्दू धर्मग्रंथों में हैं। इन मूल्यों को नकारने के लिए अंबेडकर ने मनुस्मृति का दहन किया था। उन्होंने भारतीय संविधान का निर्माण किया, जो स्वाधीनता संग्राम के वैश्विक मूल्यों पर आधारित था। भारतीय संविधान के आधार थे समानता, बंधुत्व, स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय के मूल्य। दूसरी ओर थीं हिन्दू महासभा जैसी संस्थाएं, जिनकी नींव हिन्दू राजाओं और जमींदारों ने रखी थी और जो भारत को उसके ‘गौरवशाली अतीत‘ में वापस ले जाने की बात करती थीं - उस अतीत में जब वर्ण और जाति को ईश्वरीय समझा और माना जाता था। हिन्दुत्ववादी राजनीति का अंतिम लक्ष्य आर्य नस्ल और ब्राम्हणवादी संस्कृति वाले हिन्दू राष्ट्र का निर्माण है। आरएसएस इसी राजनीति का पैरोकार है।

माधव सदाशिव गोलवलकर व अन्य हिन्दू चिंतकों ने अंबेडकर के विपरीत, हिन्दू धर्मग्रंथों को मान्यता दी। सावरकर का कहना था कि मनुस्मृति ही हिन्दू विधि है। गोलवलकर ने मनु को विश्व का महानतम विधि निर्माता निरूपित किया। उनका कहना था कि पुरूषसूक्त में कहा गया है कि सूर्य और चन्द्र ब्रम्हा की आंखें हैं और सृष्टि का निर्माण उनकी नाभि से हुआ। ब्रम्हा के सिर से ब्राम्हण उपजे, उनके हाथों से क्षत्रिय, उनकी जंघाओं से वेश्य और उनके पैरों से शूद्र। इसका अर्थ यह है कि वे लोग जिनका समाज इन चार स्तरों में विभाजित है, ही हिन्दू हैं।

भारतीय संविधान के लागू होने के बाद, आरएसएस के मुखपत्र आर्गनाईजर ने अपने एक संपादकीय में संविधान की घोर निंदा की। आरएसएस, लंबे समय से कहता आ रहा है कि भारतीय संविधान में आमूलचूल परिवर्तन की जरूरत है। हाल में केन्द्रीय मंत्री अनंत कुमार हेगड़े ने भी यही बात कही। जब अंबेडकर ने संसद में हिन्दू कोड बिल प्रस्तुत किया था, तब उसका जबरदस्त विरोध हुआ था। दक्षिणपंथी ताकतों ने अंबेडकर की कड़ी निंदा की थी। परंतु अंबेडकर अपनी बात पर कायम रहे। उन्होंने कहा, ‘‘तुम्हें न केवल शास्त्रों को त्यागना चाहिए बल्कि उनकी सत्ता को भी नकारना चाहिए, जैसा कि बुद्ध और नानक ने किया था। तुम में यह साहस होना चाहिए कि तुम हिन्दुओं को यह बताओ कि उनमें जो गलत है वह उनका धर्म है - वह धर्म, जिसने जाति की पवित्रता की अवधारणा को जन्म दिया है‘‘।

आज क्या हो रहा है? आज अप्रत्यक्ष रूप से जाति प्रथा को औचित्यपूर्ण ठहराया जा रहा है। भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के अध्यक्ष वाई. सुदर्शन ने हाल में कहा था कि इतिहास में किसी ने जाति प्रथा के विरूद्ध कभी कोई शिकायत नहीं की और इस प्रथा ने हिंदू समाज को स्थायित्व प्रदान किया। एससी-एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम को कमजोर करना और विश्वविद्यालयों में इन वर्गों व ओबीसी के लिए पदों में आरक्षण संबंधी नियमों में बदलाव, सामाजिक न्याय और अंबेडकर की विचारधारा पर सीधा हमला हैं।

जैसे-जैसे हिन्दू राष्ट्रवाद की आवाज बुलंद होती जा रही है उसके समक्ष यह समस्या भी उत्पन्न हो रही है कि वह दलितों की सामाजिक न्याय पाने की महत्वाकांक्षा से कैसे निपटे। हिन्दू राष्ट्रवादी राजनीति, जाति और लैंगिक पदक्रम पर आधारित है। इस पदक्रम का समर्थन आरएसएस चिंतक व संघ परिवार के नेता करते आ रहे हैं। उनके सामने समस्या यह है कि वे इन वर्गों की महत्वाकांक्षाएं पूरी नहीं करना चाहते परंतु चुनावों में उनके वोट प्राप्त करना चाहते हैं। इसी कारण वे एक ओर दलितों के नायक बाबा साहब अंबेडकर को अपना सिद्ध करने का भरसक प्रयास कर रहे हैं तो दूसरी ओर, दलितों को अपने झंडे तले लाने की कोशिश में भी लगे हुए हैं। वे चाहते हैं कि दलित, भगवान राम और पवित्र गाय पर आधारित उनके एजेंडे को स्वीकार करें।
यह एक अजीबोगरीब दौर है। एक ओर उन सिद्धांतों और मूल्यों की अवहेलना की जा रही है, जिनके लिए अंबेडकर ने जीवन भर संघर्ष किया तो दूसरी ओर उनकी अभ्यर्थना हो रही है। और अब तो अंबेडकर के नाम का उपयोग भी हिन्दुत्ववादी शक्तियां, राम की अपनी राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए करना चाहती हैं। (अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)

बाबा साहेब अम्बेडकर
यूपी सरकार
हिंदुत्व
भाजपा सरकार

Related Stories

बढ़ते हुए वैश्विक संप्रदायवाद का मुकाबला ज़रुरी

नारद के बाद, हनुमान का हुआ छत्तीसगढ़ के पत्रकारिता विश्वविद्यालय में प्रवेश

यूपी: योगी सरकार में कई बीजेपी नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप

आज़मगढ़ : रिहाई मंच का रासुका के खिलाफ दौरा

पीएमएफबीवाई: मोदी की एक और योजना जो धूल चाट रही है

राजा महेंद्र प्रताप की प्रगतिशीलता बनाम भाजपा की कट्टरता

बिहार: मंदिर निर्माण से होगा महिला सशक्तिकरण ?

सीपीआई (एम) ने संयुक्त रूप से हिंदुत्व के खिलाफ लड़ाई का एलान किया

पहलू खान की हत्या के एक साल बाद भी हत्यारों की गिरफ्तारी नहीं

बिहार दंगे: हिंदुत्व ने हिन्दुओं को भी न बक्शा


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोदी सरकार के 8 साल: सत्ता के अच्छे दिन, लोगोें के बुरे दिन!
    29 May 2022
    देश के सत्ताधारी अपने शासन के आठ सालो को 'गौरवशाली 8 साल' बताकर उत्सव कर रहे हैं. पर आम लोग हर मोर्चे पर बेहाल हैं. हर हलके में तबाही का आलम है. #HafteKiBaat के नये एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार…
  • Kejriwal
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: MCD के बाद क्या ख़त्म हो सकती है दिल्ली विधानसभा?
    29 May 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस बार भी सप्ताह की महत्वपूर्ण ख़बरों को लेकर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन…
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
    29 May 2022
    गोडसे जी के साथ न्याय नहीं हुआ। हम पूछते हैं, अब भी नहीं तो कब। गोडसे जी के अच्छे दिन कब आएंगे! गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
  • Raja Ram Mohan Roy
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या राजा राममोहन राय की सीख आज के ध्रुवीकरण की काट है ?
    29 May 2022
    इस साल राजा राममोहन रॉय की 250वी वर्षगांठ है। राजा राम मोहन राय ने ही देश में अंतर धर्म सौहार्द और शान्ति की नींव रखी थी जिसे आज बर्बाद किया जा रहा है। क्या अब वक्त आ गया है उनकी दी हुई सीख को अमल…
  • अरविंद दास
    ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली
    29 May 2022
    प्रख्यात निर्देशक का कहना है कि फिल्मी अवसंरचना, जिसमें प्राथमिक तौर पर थिएटर और वितरण तंत्र शामिल है, वह मुख्यधारा से हटकर बनने वाली समानांतर फिल्मों या गैर फिल्मों की जरूरतों के लिए मुफ़ीद नहीं है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License