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भारत
राजनीति
नासिक में 25000 किसानों ने किया विरोध प्रदर्शन , सरकार को दी चेतावनी
उनकी यह माँग भी है कि सरकार उन्हें एक हेक्टेयर ज़मीन पर 50,000 रुपये का मुआवज़ा दे। किसान पानी की तात्कालिक सुविधा देने और मवेशियों के लिए चारे की माँग कर रहे हैं। सूखे की वजह से किसान और खेत मज़दूर बेरोज़गार हो गए हैं यही वजह है कि उनकी माँगों में रोज़गार की माँग भी शामिल है।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
15 Nov 2018
farmers protest

कृषि संकट के गहरे होने के साथ ही महाराष्ट्र के किसानों का संघर्ष भी तेज़ होता जा रहा है। 14 नवंबर, शनिवार को महाराष्ट्र के नासिक के किसानों ने फिर एक विरोध प्रदर्शन किया। अखिल भारतीय किसान सभा के बैनर तले नासिक के गोल्फ क्लब से अंबेडकर स्टेचू तक मार्च निकाला, जिसमें किसान 25,000 मौजूद थे।

दरअसल, नासिक इलाके के किसान इस समय सूखे की मार को झेल रहे हैं। किसानों की माँग है कि सरकार इस इलाके को सूखा ग्रस्त घोषित करे और उन्हें राहत प्रदान करे। उनकी यह माँग भी है कि सरकार उन्हें एक हेक्टेयर ज़मीन पर 50,000 रुपये का मुआवज़ा दे। किसान पानी की तात्कालिक सुविधा देने और मवेशियों के लिए चारे की माँग कर रहे हैं। सूखे की वजह से किसान और खेत मज़दूर बेरोज़गार हो गए हैं यही वजह है कि उनकी माँगों में रोज़गार की माँग भी शामिल है।

किसान नेताओं का कहना है कि इलाके में भू-जल स्तर बहुत गिर गया है और कुएँ सूख गए हैं। इस वजह से खरीफ की फसल खराब हो गयी है और बारिश की कमी की वजह से रबी के मौसम की फसलों पर भी असर पड़ा है।

किसान मार्च का नेतृत्व किसान सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक धावले, मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी के पूर्व विधायक जे पी गवित और किसान सभा के दूसरे नेताओं ने किया। सभी नेताओं ने अपनी बात रही और ज़िला कलेक्टर को माँगपत्र दिया।

नासिक के किसान पश्चिम से जाने वाली नदियों के पानी को रोककर उसे मराठवाड़ा की ओर संचालित करने की माँग भी कर रहे हैं। किसानों का कहना है कि मराठवाड़ा के किसानों लगातर सूखे से प्रभावित रहे हैं, इसीलिए इस तरह की योजना सरकार को लागू करनी चाहिए।

इन माँगों के अलावा किसान अपनी पुरानी माँगों पर टिके हुए हैं। जिनमें कर्ज़ माफी, जंगल की ज़मीन के पट्टे और लागत का डेढ़ गुना दाम आदि माँगें शामिल हैं।

कुछ ही दिन पहले किसान सभा ने मुंबई में इन्हीं मुद्दों को लेकर एक अधिवेशन किया था। 12 नवंबर को हुए इस अधिवेशन में किसान सभा और माकपा के नेताओं के अलावा राष्ट्रीय काँग्रेस पार्टी के शरद पवार और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज चौहान भी शामिल हुए। नेताओं ने मौजूदा सरकार के खिलाफ भाषण दिये और कहा कि लोकसभा चुनावों में इस किसान विरोधी सरकार को हटाने का काम करेंगे। इस अधिवेशन में महाराष्ट्र के 23 ज़िलों से आए 5,000 किसान शामिल हुए।

किसान सभा ने इस बार के संसद सत्र में किसानों के हक़ में दो बिल पास करने की माँग की है। इन बिलों के ज़रिये किसान कर्ज़ माफी और लागत का डेढ़ गुना दाम पाने का प्रयास कर रहे हैं। यहाँ मार्च महीने में हुए नासिक से मुंबई के ऐतिहासिक किसान लॉन्ग मार्च पर एक फिल्म भी दिखाई गयी।

अक्टूबर में पालघर और ठाणे में किसानों ने ज़ोरदार आंदोलन किया और उनकी कई माँगों को मनवाया था। माकपा के नेतृत्व में 10 से 13 अक्टूबर तक किसानों ने सात तहसीलों का घेराव किया था। वह बुलेट ट्रेन परियोजना, मुंबई-वडोदरा हाईवे और नदी जोड़ने की योजना के खिलाफ थे और वन अधिकार अधिनियम के लागू किये जाने की माँग कर रहे थे। साथ ही स्वास्थ्य, शिक्षा, रोज़गार के बाकी स्थानीय मुद्दों को भी पार्टी उठा रही थी। 

इस प्रदर्शन के बाद सरकार ने वन अधिनियम 2006 के तहत आदिवासी किसानों को जंगल ज़मीन के पट्टे देने का आदेश दिया। साथ ही राशन कार्ड बनवाने और दूसरी माँगों को भी माना गया। लेकिन ज़मीन के पट्टे अब तक नहीं मिले हैं।

इस साल मार्च के महीने में हुए किसान लॉन्ग मार्च, जिसमें 40,000 से ज़्यादा किसान शामिल थे, के बाद किसान लगातार अपनी माँगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं। यह सभी उन्हीं प्रदर्शनों की कड़ी हैं। इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए देश भर के किसान 29 नवंबर को दिल्ली में पैदल चलकर आएंगे। इस मार्च को किसान मुक्ति मार्च कहा जा रहा है।

किसान सभा के नेता अशोक धावले ने कहा है कि "महाराष्ट्र सरकार ने मार्च में हुए लॉन्ग मार्च के समय जो माँगे मानी गयी थी, उन्हें ठीक ढंग से लागू नहीं किया गया है। किसान सभा छोटे और माध्यम किसानों के लिए पूरी कर्ज़ माफी की माँग की थी, लेकिन कर्ज़ माफी पूरे तरीके से नहीं की है। साथ ही ज़मीन के पट्टे की माँग और न्यूनतम समर्थन मूल्य की माँग भी नहीं मानी गयी है।"

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