NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आधी आबादी
महिलाएं
भारत
निर्भया फंड: प्राथमिकता में चूक या स्मृति में विचलन?
महिलाओं की सुरक्षा के लिए संसाधनों की तत्काल आवश्यकता है, लेकिन धूमधाम से लॉंच किए गए निर्भया फंड का उपयोग कम ही किया गया है। क्या सरकार महिलाओं की फिक्र करना भूल गई या बस उनकी उपेक्षा कर दी?
भारत डोगरा
09 Mar 2022
nirbhaya fund
चित्र सौजन्य: फेसबुक/@nirbhayafund

यह एक कटु विडम्बना है कि जब दुनिया अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मना रही है, तो भारत महिलाओं की सुरक्षा के उनके सबसे बुनियादी अधिकार के प्रति अपने घृणित दृष्टिकोण का सामना कर रहा है। दिसम्बर ​​2012 ​में दिल्ली में एक पैरामेडिक की छात्रा के खिलाफ क्रूर यौन हमले के बाद संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार ने 2013 ​​में एक विशेष फंड लॉन्च किया था। इसका नाम निर्भया रखा गया था, यह नाम मीडिया ने उक्त पीड़िता को दिया था क्योंकि उन्होंने बड़ी बहादुरी से अपने पर हमला करने वालों का विरोध किया था। हालांकि इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई थी, लेकिन उनकी याद में सरकार ने निर्भया फंड की स्थापना की थी। इसका मकसद “महिलाओं की सुरक्षा या उनकी सुरक्षा को बेहतर बनाने के लिए विशेष रूप से डिजाइन की गई परियोजनाओं” के लिए धन का वितरण करना था।

इस फंड के लिए फ्रेमवर्क दस्तावेज में, सरकार ने स्वीकार किया था कि भारतीय महिलाओं को सार्वजनिक स्थानों पर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जो आर्थिक-सामाजिक जीवन में उनकी भागीदारी को सीमित करता है और "उनके स्वास्थ्य और खुशहाली पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है"। इसलिए, सरकार ने कहा कि निर्भया द्वारा वित्त पोषित सभी परियोजनाओं के नियोजन चरण में ही "गुणात्मक परिणाम" दिलाएंगे। उदाहरण के लिए, यह ट्रैक करेगा कि किसी परियोजना के कारण "महिलाओं के खिलाफ अपराधों के लिए अभियोजन में वृद्धि" हुई है या "अपराध दर में कमी" हुई है आदि।

इस निर्भया फंड बनने के अगले वर्ष केंद्र में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार आ गई, और इसके बाद में देश के कई राज्यों में भी वह सत्ता में आई। सवाल है कि विगत और वर्तमान सरकार के अधीन इस योजना का प्रदर्शन कैसा रहा है? इस गैर-व्यपगत निधि (नन-लैप्सेबल फंड) के लिए पहले के तीन वर्षों में हर साल​1,000​​ करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे। केंद्र सरकार ने सार्वजनिक सड़क परिवहन में और “निर्भया परियोजना” में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक योजना तैयार की थी। बावजूद इसके रकम का ज्यादातर हिस्सा इस्तेमाल ही नहीं हो पा रहा है।

ऐसा लगता है कि इस योजना के लिए प्रारंभिक समय अनिश्चित काल तक बढ़ा है, हाल के आंकड़ों (22​​ जुलाई ​2021 तक) ​से पता चला है कि निर्भया फंड के तहत परियोजनाओं के रोलआउट में मामूली सुधार हुआ है। पर यह रिकॉर्ड तो और भी चौंकाने वाला है कि निर्भया फंड के तहत वास्तविक आवंटन की तुलना में बहुत कम राशि जारी की गई है। 

सेंटर फॉर बजट गवर्नेंस एंड अकाउंटबिलिटी द्वारा हाल ही में प्रकाशित ‘इन सर्च ऑफ इन्क्लूसिव रिकवरी' में कहा गया है, "निर्भया फंड की स्थापना के बाद से इसमें 2021​-22 तक 6213 करोड़ रुपये रुपये आवंटित किए गए हैं और इसमें 4,138 करोड़ रुपये वितरित किए गए हैं, और इनमें से भी केवल ​​2,922​​ करोड़ की राशि का ही उपयोग किया गया है। ये आंकड़े दर्शाते हैं कि कुल आवंटित धन का आधे से कुछ ही अधिक राशि का उपयोग किया गया है।”

भारत अभी तक कोविड​-19​​ महामारी से उबर नहीं पाया है। रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि इस दौरान घरेलू हिंसा चरम पर बढ़ी है और बच्चों एवं महिलाओं की तस्करी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इसलिए, आठ वर्षों में 6,213 करोड़ों रुपये ही आवंटित किए जाने को लेकर सरकार से सवाल पूछा जाना चाहिए। जबकि इस परियोजना में आठ वर्षों में 8,000 करोड़ रुपये जमा होना चाहिए, इसको खर्च किए जाने की बात अलग है। सरकार ने इसकी शुरुआत 1,000 रुपये से की थी, जिससे अगले चार वर्षों में विश्वसनीय तरीके से जमा किया गया था। 

क्या ऐसा देश जो महिला मतदाताओं की भारी तादाद और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्धियां हासिल करने वाली महिलाओं पर फुला नहीं समाता है, उसे निर्भया फंड में राशि-आवंटन करते समय बढ़ती महंगाई का ख्याल नहीं रखना चाहिए? और, घर के अंदर और बाहर महिलाओं की सुरक्षा और रक्षा की बढ़ती आवश्यकताओं के बारे में क्या करना है, इसका ध्यान नहीं रखना चाहिए? अगर महंगाई का हिसाब लगाया जाए तो औसत आवंटन-और इस मद में किया जाने वाला खर्च-प्रति वर्ष 1,600 करोड़ रुपये होना चाहिए था। इसकी बजाय, सरकार ने इस फंड में केवल आधी राशि ही आवंटित की है।

निर्भया फंड पर आधारित महिला सुरक्षा से संबंधित विभिन्न योजनाओं का ढीला-ढाला कार्यान्वयन भी महिला-सुरक्षा के प्रति भारत सरकार के उदासीन रवैये को प्रकट करता है। निर्भया फंड के लिए महिला और बाल विकास मंत्रालय नोडल एजेंसी है, हालांकि इससे संबंधित योजनाएं केंद्र सरकार के कई मंत्रालयों, राज्य सरकारों और गैर सरकारी संगठनों सहित अन्य एजेंसियों द्वारा कार्यान्वित की जाती हैं। दिलचस्प बात यह है कि इस फंड के तहत पहले के आवंटन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा केंद्रीय गृह मंत्रालय को गया था। महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार,​12​​ दिसम्बर ​​2019​ ​तक गृह मंत्रालय को​ 1,672​​ करोड़ रुपये जारी किए गए थे, जिसमें से उसने केवल 9 फीसदी राशि 1,47 करोड़ का ही उपयोग किया था।​ न्याय मंत्रालय को 89​​ करोड़ रुपये जारी किए गए थे,लेकिन इसने उस अवधि तक एक भी पाई का उपयोग नहीं किया था। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने आवंटित किए गए कुल 132 करोड़ रुपये में से महज 35 करोड़ रुपये या 26 फीसदी धन ही खर्च किया था। 

अब कोई भी उम्मीद कर सकता है कि जानकारों और विशेषज्ञों के भारी अमले के साथ, महिला और बाल विकास मंत्रालय इस फंड का उपयोग करने में बेहतर प्रदर्शन करेगा। फिर भी आंकड़े ये दर्शाते हैं कि आवंटित 381 करोड़ रुपये में से तीन साल पहले 72 करोड़ रुपये यानी 19 फीसदी धन का ही उपयोग किया जा सका था। गृह मंत्रालय के तहत साइबर अपराध रोकथाम इकाई को निर्भया कोष से अपने कुछ संसाधनों की आवश्यकताओं को पूरा करना था। फिर भी, लोकसभा में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में, सरकार के इस प्रकोष्ठ ने इस मद में एक भी पैसा अब तक इस्तेमाल न किए जाने की ही सूचना दी। 

इतना ही नहीं,गृह मंत्रालय के तहत 'महिलाओं की सुरक्षा के लिए योजनाओं' के लिए आवंटन,2020-21 ​​(​​बजट अनुमान या बीई) से 2021-22 (बीई) तक ​88 फीसदी ​​कम हो गया है। 

किंतु जुलाई 2021 तक निर्भया कोष से महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को​ ​660​​ करोड़ रुपये जारी किए गए थे।​ इनमें से मंत्रालय ने 181​​ करोड़ रुपये या 27 फीसदी धन का उपयोग किया है-इसका मतलब है कि उपलब्ध धन का एक चौथाई ही काम में लाया गया है। स्थिति हैरान करने वाली है,यह देखते हुए कि राज्य सरकारों की महिलाओं से संबंधित योजनाओं के लिए फंड से आवंटन की मांग को ठुकरा दिया जा रहा है या उन्हें पूरा नहीं किया जा रहा है। राज्य सरकारों की ओर से महिलाओं से संबंधित उनकी योजनाओं के लिए आवंटन की मांग पर विचार करते हुए इस फंड से आवंटन को अस्वीकार कर दिया गया है या इसे पूरा नहीं किया गया है। 

रेल मंत्रालय को 312 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। लेकिन इनमें से केवल 104 करोड़ या 33 फीसद राशि ही जुलाई ​2021 तक​ उपयोग किया गया है। न्याय विभाग ने राशि का उपयोग करने में अपनी क्षमता में सुधार किया है और उसने 340 करोड़ के फंड में से 121 करोड़ यानी 36 फीसदी राशि का इस्तेमाल किया था। हालांकि, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के उपयोग की गति में भारी गिरावट आई है और उसने जारी राशि का केवल ​10 फीसदी ही उपयोग किया है। 

महिलाओं को सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षित रखने के लिए की गई इस महत्त्वपूर्ण पहल की अपेक्षित क्षमता अब एक बिखर हुआ सपना लगता है। सरकार ने इस फंड में बहुत कम धन आवंटित किया है, यहां तक कि उसे कम वितरित किया है, और बहुत ही कम राशि का उपयोग किया है। बेशक, अगर आवंटित धन का सही उपयोग किया जाता, तो भारत कुछ हासिल करने के मार्ग पर बढ़ सकता था। महिलाओं के समूहों ने संरचनात्मक और रचनात्मक सुझाव दिए हैं और निर्भया फंड की ओर तत्काल ध्यान देने के लिए कहा है। लेकिन इस योजना के अब तक के प्रदर्शन में समर्थन की कमी से स्पष्ट दिखती है। 

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर, कम से कम इस मामले में किसी को उम्मीद की कोई किरण नहीं दिखेगी। अगर काफी समय से लंबित सुधार कल से इस योजना के कामकाज में सुधार ला दे तो सब कुछ खत्म नहीं होगा। यह लैप्स न होने वाला फंड महिलाओं के खिलाफ क्रूर हमले का निवारण करता है। क्या हम, कम से कम आज, जहां आवश्यक हो, वहां जीवित बचे लोगों या उनके परिवार के सदस्यों के लिए पर्याप्त मात्रा में और सटीक समय पर उनकी मदद करने का वादा कर सकते हैं? निर्भया कोष का उपयोग महिलाओं की सुरक्षा के निवारक पहलुओं के वित्तपोषण के लिए किया जाना चाहिए। महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए पर्याप्त कदम उठाने की जरूरत है। 

निर्भया फंड महिलाओं के संरक्षण के लिए नियमित धन नहीं है। केंद्र द्वारा इस विशेष निधि को स्थापित करने से पहले ही इस मद में रोजाना स्तर पर धन खर्च किया गया है या किया जाता था। निर्भया फंड काम के लिए एक पूरक आवंटन नहीं है जिसे कम वित्तपोषित या अक्षम सरकारी विभाग पूरा नहीं कर सके। यह असाधारण, सार्थक काम के लिए समर्पित है, जो महिलाओं की सर्वांगीण सुरक्षा और स्थिति में गुणात्मक बदलाव ला सकता है। तभी एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक सरोकार की इसकी क्षमता पूर्ण मानी जाएगी। 

(लेखक सेव अर्थ नाउ अभियान के संयोजक हैं। आलेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं) 

https://www.newsclick.in/nirbhaya-fund-lapse-priority-memory

Nirbhaya
gender justice
Women Rights

Related Stories

मायके और ससुराल दोनों घरों में महिलाओं को रहने का पूरा अधिकार

यूपी से लेकर बिहार तक महिलाओं के शोषण-उत्पीड़न की एक सी कहानी

सोनी सोरी और बेला भाटिया: संघर्ष-ग्रस्त बस्तर में आदिवासियों-महिलाओं के लिए मानवाधिकारों की लड़ाई लड़ने वाली योद्धा

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस: महिलाओं के संघर्ष और बेहतर कल की उम्मीद

बढ़ती लैंगिक असमानता के बीच एक और अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस

ईरान के नए जनसंख्या क़ानून पर क्यों हो रहा है विवाद, कैसे महिला अधिकारों को करेगा प्रभावित?

विशेष: लड़ेगी आधी आबादी, लड़ेंगे हम भारत के लोग!

राष्ट्रीय बालिका दिवस : लड़कियों को अब मिल रहे हैं अधिकार, पर क्या सशक्त हुईं बेटियां?

मैरिटल रेप: घरेलू मसले से ज़्यादा एक जघन्य अपराध है, जिसकी अब तक कोई सज़ा नहीं

तमिलनाडु: महिलाओं के लिए बनाई जा रही नीति पर चर्चा नाकाफ़ी


बाकी खबरें

  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    'राम का नाम बदनाम ना करो'
    17 Apr 2022
    यह आराधना करने का नया तरीका है जो भक्तों ने, राम भक्तों ने नहीं, सरकार जी के भक्तों ने, योगी जी के भक्तों ने, बीजेपी के भक्तों ने ईजाद किया है।
  • फ़ाइल फ़ोटो- PTI
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: क्या अब दोबारा आ गया है LIC बेचने का वक्त?
    17 Apr 2022
    हर हफ़्ते की कुछ ज़रूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन..
  • hate
    न्यूज़क्लिक टीम
    नफ़रत देश, संविधान सब ख़त्म कर देगी- बोला नागरिक समाज
    16 Apr 2022
    देश भर में राम नवमी के मौक़े पर हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद जगह जगह प्रदर्शन हुए. इसी कड़ी में दिल्ली में जंतर मंतर पर नागरिक समाज के कई लोग इकट्ठा हुए. प्रदर्शनकारियों की माँग थी कि सरकार हिंसा और…
  • hafte ki baaat
    न्यूज़क्लिक टीम
    अखिलेश भाजपा से क्यों नहीं लड़ सकते और उप-चुनाव के नतीजे
    16 Apr 2022
    भाजपा उत्तर प्रदेश को लेकर क्यों इस कदर आश्वस्त है? क्या अखिलेश यादव भी मायावती जी की तरह अब भाजपा से निकट भविष्य में कभी लड़ नहींं सकते? किस बात से वह भाजपा से खुलकर भिडना नहीं चाहते?
  • EVM
    रवि शंकर दुबे
    लोकसभा और विधानसभा उपचुनावों में औंधे मुंह गिरी भाजपा
    16 Apr 2022
    देश में एक लोकसभा और चार विधानसभा चुनावों के नतीजे नए संकेत दे रहे हैं। चार अलग-अलग राज्यों में हुए उपचुनावों में भाजपा एक भी सीट जीतने में सफल नहीं हुई है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License