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स्वास्थ्य
भारत
बिहारः पिछले साल क़हर मचा चुके रोटावायरस के वैक्सीनेशन की रफ़्तार काफ़ी धीमी
ज्ञात हो कि बीते साल पूरे बिहार में विभिन्न जगहों से डायरिया से बच्चों की मौत और बड़ी संख्या में लोगों के बीमार पड़ने की खबरें सामने आई थीं।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
04 May 2022
बिहारः पिछले साल क़हर मचा चुके रोटावायरस के वैक्सीनेशन की रफ़्तार काफ़ी धीमी
हिंदुस्तान

नवजात बच्चों को डायरिया जैसी जानलेवा बीमारी से बचाने के लिए सरकार द्वारा शुरू किया गया रोटावायरस वैक्सीनेशन बिहार में धीमी रफ्तार से चल रहा है जबकि पड़ोसी राज्य झारखंड की स्थिति बेहतर होती जा रही है। राष्ट्रीय अभियान के तहत तीन साल से बच्चों को रोटावायरस की खुराक देने के लिए व्यवस्था सरकारी अस्पतालों को उपलब्ध करा दी गई लेकिन प्रक्रिया काफी सुस्त है। बता दें कि बीते साल पूरे में बिहार में विभिन्न जगहों से जानलेवा बीमारी डायरिया से बच्चों की मौत और बड़ी संख्या में लोगों के बीमार पड़ने की खबरें सामने आई थीं।

हिंदुस्तान की रिपोर्ट के मुताबिक रोटावायरस वैक्सीन को राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम में केंद्र सरकार ने साल 2016 में ही शामिल किया लेकिन इसे यूपी-बिहार व झारखंड तक पहुंचने में दो से तीन साल तक का वक्त लग गया। उत्तर प्रदेश व झारखंड में रोटावायरस वैक्सीन को राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के तहत साल 2018 में लांच किया गया, जबकि बिहार में साल 2019 में।

एनएफएचएस-5 के आंकड़ों में 2019-21 में इसे शामिल किया गया था। एनएफएचएस-5 (साल 2019-21) के आंकड़ों के मुताबिक देशभर में 12 से 23 माह के 36.4 प्रतिशत बच्चों को रोटावायरस की खुराक दी गई। राष्ट्रीय रोटावायरस टीकाकरण 36.4 प्रतिशत की तुलना में उत्तर प्रदेश में 12 से 23 माह के 49.1 प्रतिशत बच्चों को रोटावायरस की खुराक दी गई वहीं बिहार में इसका आंकड़ा महज 3.4 प्रतिशत ही रहा। उधर झारखंड की बात करें तो 12 से 23 माह के 32.3 प्रतिशत बच्चों को रोटावायरस की खुराक दी गई। बिहार के भागलपुर जिले की बात की जाए तो इस दौरान 12 से 23 माह के 15.6 प्रतिशत बच्चों को रोटावायरस की वैक्सीन दी गई।

भागलपुर के मायागंज अस्पताल में रोज़ाना छह से सात बच्चे हो रहे भर्ती

रोटावायरस की चपेट में आकर प्रतिदिन छह से सात बच्चे इलाज के लिए भागलपुर स्थित मायागंज अस्पताल में भर्ती हो रहे हैं। गर्मी के दिनों में ये बीमारी कुछ ज्यादा बढ़ जाती है। शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. राकेश कुमार हिंदुस्तान अखबार से बातचीत में कहते हैं कि अगर लक्षण दिखते ही बच्चे को इलाज के लिए तुरंत अस्पताल में भर्ती कराया जाए तो उनकी हालत को गंभीर होने से बचाया जा सकता है। साथ ही अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने बच्चों को नजदीकी टीकाकरण केंद्र पर ले जाकर रोटावायरस की वैक्सीन जरूर दिलावाएं।

डायरिया से बचाव के लिए लगाई जाती है ये वैक्सीन

मायागंज अस्पताल के शिशु रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. केके सिन्हा बताते हैं कि रोटावायरस एक अत्यधिक तेजी से फैलने वाला विषाणु है जो कि बच्चों विशेषकर नवजातों में गैस्ट्रोएंटेराइटिस (पेट का इन्फेक्शन) का बड़ा कारण है। रोटावायरस मल में मौजूद होता है और यह हाथों के जरिये मुंह से संपर्क स्थापित करते हुए दूषित पानी व अन्य चीजों तक पहुंच जाता है।

इस बीमारी की चपेट में आने से बच्चा विशेषकर नवजात दस्त व उल्टी करने लगता है। इसके अलावा बच्चे में पेट दर्द, बुखार, खांसी व नाक बहने का लक्षण दिखने लगता है। डायरिया होने से बच्चों में लिक्विड व इलेक्ट्रोलाइट्स की कमी होने से उसे डिहाइड्रेशन हो सकता है जिससे बच्चों की जान जा सकती है। इतना ही नहीं रोटावायरस के चलते आंतों में गंभीर संक्रमण भी हो सकता है। ऐसे में रोटावायरस का वैक्सीन बच्चों को डायरिया जैसी जानलेवा बीमारी विशेषकर से बचाता है।

राज्य में मचा चुका है क़हर

ध्यान रहे कि बीते साल सितंबर-अक्टूबर के दौरान पूरे बिहार में कई जगहों पर डायरिया से कई बच्चों की मौत की सूचना सामने आई थी। इस दौरान राज्य भर में बच्चों के बीमार पड़ने और मौत खबरों ने चौंका दिया था। बड़ी संख्या में व्यस्क लोग भी इसकी चपेट में आ रहे थे। बिहार के सहरसा के सिमरी बख्तियारपुर प्रखंड क्षेत्र के बेलवाड़ा पंचायत स्थित औराही में डायरिया से कुछ लोगों की मौत हो गई थी और वहीं कई बच्चों समेत बड़ी संख्या में लोग इस बीमारी के चपेट में आ गए थे।

ज्ञात हो कि इसी समय में राज्य के बांका जिले रजौना प्रखंड के एक गांव में डायरिया से एक बच्चे समेत कुछ लोगों की मौत हो गई थी वहीं बच्चा समेत दर्जनों लोग इस बीमारी की चपेट में आ गए थे।

उधर मुजफ्फरपुर के सरैया प्रखंड के रुपौली गांव में तीन दर्जन बच्चे डायरिया व फूड प्वाइजनिंग से बीमार हो गए थे। इस बीमारी से कुछ बच्चों की मौत हो गई थी जबकि इलाज के बाद बच्चे स्वस्थ्य हो गए थें। बीमार बच्चों को मुजफ्फरपुर स्थित केजरीवाल अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वहीं कुछ बच्चों के जिले के विभिन्न अस्पतालों में इलाज कराया गया था।

 

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