NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
समाज
भारत
राजनीति
फेसबुक क्या आपकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रहा है?
फेसबुक ने 2012 में अपनी ख़बरों की फीड में बदलाव करके इससे लोगों में हो रहे भावनात्मक बदलावों का अध्ययन किया।
सिरिल सैम, परंजॉय गुहा ठाकुरता
06 Apr 2019
सांकेतिक तस्वीर
Image Courtesy: google

फेसबुक कोई साधारण कारोबारी कंपनी नहीं है। हाल ही में न्यू यॉर्क टाइम्स ने फेसबुक के बारे में जानकारी दी, ‘एक दशक से थोड़े ही अधिक वक्त में फेसबुक ने 2.2 अरब लोगों को जोड़ने का काम किया है। यह अपने आप में एक वैश्विक राष्ट्र बन गया है। पूरी दुनिया में चुनावी अभियानों, विज्ञापन अभियानों और रोजमर्रा के जीवन को इसने बदलने का काम किया है। इस प्रक्रिया में फेसबुक ने निजी डाटा का सबसे बड़ा जखीरा तैयार कर लिया है। फोटो, संदेशों और लाइक्स का जो अकूत भंडार इसने बनाया है उससे यह दुनिया की शीर्ष कंपनियों की फॉर्चून 500 सूची में शामिल हो गई है।’

फेसबुक अपने प्लेटफॉर्म पर लोगों की सक्रियता से काफी पैसे कमाता है। सेंटर फॉर दि स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटी के ‘सराय’ कार्यक्रम के तहत काम कर रहे मीडिया शोधार्थी डॉ. रवि सुंदरम कहते हैं, ‘कारोबारी, राजनीतिक और निजी बातें अलग हैं। फेसबुक इनके बीच के फर्क को मिटाकर लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाने का काम कर रहा है। यह एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जो हर तरह के संदेशों और संवाद को कारोबारी बातों में तब्दील करके पैसे कमाने के काम में लगा है।’

फेसबुक, व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम तीनों मिलकर दुनिया में एक ऐसी कंपनी बन गई जो पूरी दुनिया में विचारों को अपने हिसाब से प्रभावित कर रही है। विश्व के इतिहास में इससे पहले कभी ऐसा नहीं देखा गया। 

2012 में फेसबुक ने एक बड़ा ही अजीब प्रयोग किया था। इसने अपनी ख़बरों की फीड में बदलाव करके यह पता लगाने की कोशिश की थी कि इससे फेसबुक इस्तेमाल करने वालों पर क्या भावनात्मक असर पड़ता है। 2014 में इस अध्ययन के परिणाम प्रकाशित हुए। इसके नतीजे हैरान करने वाले नहीं थे। जब फेसबुक इस्तेमाल करने वाले सकारात्मक सामग्री देखते थे तो वे ऐसी ही सामग्री पोस्ट भी कर रहे थे। वहीं जब उन्हें नकारात्मक सामग्री ख़बरों की फीड के जरिये दी गई तो उन्होंने नकारात्मक सामग्री पोस्ट करना शुरू कर दिया।

इसका मतलब यह हुआ कि फेसबुक अपने उपभोक्ताओं के भावनाओं पर असर डालकर उन्हें प्रभावित कर रहा है। किसी चीज के अतिरेक को दिखाने वाली सामग्री इसी तरह की प्रतिक्रिया पैदा करती है। इससे लोग फेसबुक पर अधिक सक्रिय बने रहते हैं। 

भावनाओं के इस खिलवाड़ के खेल को विज्ञापनदाताओं ने जल्दी ही पहचान लिया। राजनीतिक हैकरों ने जो तरीका अपनाया वह विज्ञापनदाताओं के तौर-तरीकों से ही लिया गया था। फेसबुक ने इसमें उनकी मदद की। फेसबुक ने उनकी मदद करके उन्हें इस काम में सक्षम बनाया कि बेहतर, अधिक प्रभावी और अधिक ध्रुवीकरण करने वाले संदेश तैयार कर सकें और इसे प्रभावी ढंग से लोगों तक पहुंचा सकें। 

हमारे सोशल मीडिया सीरीज़ के अन्य आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :-

फ़ेसबुक को लगता है कि मोदी की जीत में उसकी अहम भूमिका रही?

मोदी का चुनाव अभियान, शिवनाथ ठुकराल और फेसबुक इंडिया

कैसे फेसबुक और भाजपा ने एक-दूसरे की मदद की?

2014 में मोदी का चुनाव अभियान गढ़ने वाले राजेश जैन आज विरोधी क्यों हो गए हैं?

चार टीमों ने मिलकर गढ़ी नरेंद्र मोदी की बड़ी छवि!

सोशल मीडिया पर मोदी के पक्ष में माहौल बनाने वाले अहम किरदार कौन-कौन हैं?

#सोशल_मीडिया : लोकसभा चुनावों पर फेसबुक का असर?

किसने गढ़ी मोदी की छवि?

क्यों फेसबुक कंपनी को अलग-अलग हिस्सों में बांटने की मांग उठ रही है?

मुफ्त इंटरनेट के जरिये कब्ज़ा जमाने की फेसबुक की नाकाम कोशिश?

#सोशल_मीडिया : लोकसभा चुनावों पर फेसबुक का असर?

क्या सोशल मीडिया पर सबसे अधिक झूठ भारत से फैलाया जा रहा है?

#सोशल_मीडिया : सत्ताधारियों से पूरी दुनिया में है फेसबुक की नजदीकी

जब मोदी का समर्थन करने वाले सुषमा स्वराज को देने लगे गालियां!

फेसबुक पर फर्जी खबरें देने वालों को फॉलो करते हैं प्रधानमंत्री मोदी!

फर्जी सूचनाओं को रोकने के लिए फेसबुक कुछ नहीं करना चाहता!

#सोशल_मीडिया : क्या सुरक्षा उपायों को लेकर व्हाट्सऐप ने अपना पल्ला झाड़ लिया है?

#सोशल_मीडिया : क्या व्हाट्सऐप राजनीतिक लाभ के लिए अफवाह फैलाने का माध्यम बन रहा है?

#सोशल_मीडिया : क्या फेसबुक सत्ताधारियों के साथ है?

#सोशल_मीडिया : क्या नरेंद्र मोदी की आलोचना से फेसबुक को डर लगता है?

#सोशल_मीडिया : कई देशों की सरकारें फेसबुक से क्यों खफा हैं?

सोशल मीडिया की अफवाह से बढ़ती सांप्रदायिक हिंसा

 

#socialmedia
Social Media
Facebook India
Real Face of Facebook in India
General elections2019

Related Stories

'बॉयज़ लॉकर रूम' जैसी घटनाओं के लिए कौन ज़िम्मेदार है?

तीन तलाक पर बने कानून से मुस्लिम औरतों का कितना भला होगा?

#metoo : जिन पर इल्ज़ाम लगे वो मर्द अब क्या कर रहे हैं?

सोशल मीडिया का आभासी सम्मोहन और उसके ख़तरे

सीएम योगी पर टिप्पणी को लेकर पत्रकार प्रशांत कनौजिया गिरफ़्तार

नए भारत का जटिल जनादेश

दुराचार कर सोशल मीडिया पर वायरल किया वीडियो : मुकदमा दर्ज

झारखंड : लोकसभा चुनाव : प्रवासी मजदूरों का दर्द नहीं बन सका मुद्दा

क्या ये एक चुनाव का मामला है? न...आप ग़लतफ़हमी में हैं

भारतीय लोकतंत्र की चुनौतियां और जलियांवाला बाग नरसंहार के 100 साल


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोदी सरकार के 8 साल: सत्ता के अच्छे दिन, लोगोें के बुरे दिन!
    29 May 2022
    देश के सत्ताधारी अपने शासन के आठ सालो को 'गौरवशाली 8 साल' बताकर उत्सव कर रहे हैं. पर आम लोग हर मोर्चे पर बेहाल हैं. हर हलके में तबाही का आलम है. #HafteKiBaat के नये एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार…
  • Kejriwal
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: MCD के बाद क्या ख़त्म हो सकती है दिल्ली विधानसभा?
    29 May 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस बार भी सप्ताह की महत्वपूर्ण ख़बरों को लेकर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन…
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
    29 May 2022
    गोडसे जी के साथ न्याय नहीं हुआ। हम पूछते हैं, अब भी नहीं तो कब। गोडसे जी के अच्छे दिन कब आएंगे! गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
  • Raja Ram Mohan Roy
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या राजा राममोहन राय की सीख आज के ध्रुवीकरण की काट है ?
    29 May 2022
    इस साल राजा राममोहन रॉय की 250वी वर्षगांठ है। राजा राम मोहन राय ने ही देश में अंतर धर्म सौहार्द और शान्ति की नींव रखी थी जिसे आज बर्बाद किया जा रहा है। क्या अब वक्त आ गया है उनकी दी हुई सीख को अमल…
  • अरविंद दास
    ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली
    29 May 2022
    प्रख्यात निर्देशक का कहना है कि फिल्मी अवसंरचना, जिसमें प्राथमिक तौर पर थिएटर और वितरण तंत्र शामिल है, वह मुख्यधारा से हटकर बनने वाली समानांतर फिल्मों या गैर फिल्मों की जरूरतों के लिए मुफ़ीद नहीं है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License