NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
फिक्स्ड टर्म जॉब्स (सिमित अवधि के रोज़गार) के तहत : मोदी सरकार ने "हायर एंड फायर" की निति को दी स्वतंत्रता
सरकार गुप्त ढंग से औद्योगिक नियमों में बदलाव ले आई, जिससे मजदूरों के लिए सभी तरह की सुरक्षा को नष्ट कर दिया गया है।
सुबोध वर्मा
24 Mar 2018
Translated by महेश कुमार
Unemployment

पिछले हफ्ते, श्रम मंत्रालय ने एक प्रमुख कानून में संशोधन किया और एक गजट अधिसूचना जारी की और एक नया प्रावधान किया जिससे नियोक्ताओं को उद्योग के किसी भी क्षेत्र में मजदूरों को "एक निश्चित अवधि के लिए रोजगार के अनुबंध" पर भर्ती करने की अनुमति मिल सके। साधारण अंग्रेजी में इसका अर्थ है कि नियोक्ता एक मजदूर को तीन महीने या छह महीने या जब तक चाहे रख सकते हैं और वह नियत अवधि समाप्त होने के बाद, उसे रोजगार से बाहर कर दिया जाएगा अगर नियोक्ता चाहता है तो, वह फिर उस मजदूर को नौकरी पर रख र सकता है - या नहीं, यह सब मालिक की मर्ज़ी पर निर्भर होगा।  

इसके साथ ही, मोदी सरकार ने सभी उद्योगपतियों और अन्य बड़े नियोक्ताओं के लिए आने वाले समय के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाये हैं – जिसमें जब चाहे मजदूर को भर्ती करो और जब चाहे उसे निकाल दो, ट्रेड यूनियनों ने दशकों से इस तरह के क़दमों का विरोध किया है, लेकिन लगातार सरकारें इन मजदूर विरोधी क़दमों को सख्ती से आगे बढाने की कोशिश कर रही थी।

2003 में, पिछली भाजपा सरकार अटल बिहारी वाजपेयी के तहत निश्चित अवधि के मजदूरों की अनुमति के खिलाफ व्यापक विरोध के बाद, इसे यूपीए सरकार ने 2007 में खत्म कर दिया था। अब, भाजपा सरकार फिर से इसे वापस ले आई और यह विचार 2015 में मोदी सरकार के काल में लाया गया था।

औद्योगिक रोजगार (स्थायी आदेश) अधिनियम (1946) के तहत नियमों के मसले में संशोधन करके क़ानून की पुस्तकों में तकनीकी रूप से आसान कर दिया गया। ये नियम केंद्रीय क्षेत्र के लिए या फिर 100 से अधिक श्रमिकों के रोज़गार वाले उद्यमों के लिए लागू होते हैं। जब तक संशोधन नहीं हुआ था, तब तक केवल निश्चित अवधि के रोज़गार या ठेका श्रमिकों को परिधान उद्योग में ही अनुमति थी, वह भी केवल परिधान निर्यात उद्योग के दबाव में 2016 में दी गयी थी। लेकिन अब नवीनतम अधिसूचना के साथ, इस सुविधा को सभी प्रकार के रोजगारों तक बढ़ा दिया गया है I

इसे उद्योगपतियों और उनके लॉबी समूहों द्वारा "व्यापार करने में आसानी" का हिस्सा होने के रूप में इस कदम का स्वागत किया गया है। फिक्की ने कहा है कि यह कदम "नौकरी सृजन को बढ़ाएगा" यह विचित्र ही है कि नौकरी की सुरक्षा के अधिकार को ख़त्म करने वाली एक चाल उद्योगपति उसकी नौकरी सृजन के तौर पर प्रशंसा कर रहे है - लेकिन फिर, यह उनके द्वारा चीजों का विश्लेषण करने का प्रचलित तरीका है। फिक्की का तर्क यह है कि श्रमिक एक नौकरी से दूसरी नौकरी तक जाने के लिए स्वतंत्र होंगे, हमेशा अच्छे रोज़गार ढूँढने के लिए स्वतंत्र (और प्राप्त करने) होंगे, जबकि नियोक्ता सबकों नौकरी न देकर वे अपनी जरूरत के मुताबिक नौकरी पर रखने के लिए उन्हें अधिक स्वतत्रता मिलेगी।

हालांकि, भारत में (और वास्तव में दुनिया भर में) अल्पावधि संविदात्मक रोजगार बढ़ रहा है जैसे-जैसे दुनिया और देश में बेरोजगारी बढ़ रही है। नवीनतम सीएमआईई आंकड़ों के मुताबिक, बेरोजगारों की संख्या श्रम शक्ति का करीब 7 प्रतिशत थी, जबकि श्रम भागीदारी दर पिछले दो सालों में घट गई है, जिससे नौकरियों का एक बड़ा संकट पैदा होने का संकेत मिलता है। तो, फिक्की और अन्य क्या कह रहे हैं, सिर्फ खुश करने के लिए यह कहा जा रहा है कि इससे रोज़गार बढेगा बल्कि बेरोज़गारी बढ़ने के सही कारण तो इस आवरण में छिप गए हैं - नए नियमों से श्रमिकों को कम अवधि के लिए रोज़गार से उन्हें और कुचला जाएगा, शायद उत्पादन ऑर्डर चक्र को पूरा करने के लिए। यह नियोक्ताओं को बहुत अधिक लागत से बचाएगा, और उनके अंध मुनाफे को बढ़ाएगा।

पूरे देश में ट्रेड यूनियनों ने नए नियमों का कड़ा विरोध किया है और जब तक वे वापस नहीं हो जाते, तब तक लड़ाई लड़ने की कसम खाई है।

"हम लगातार श्रम क्षेत्र को नष्ट करने के लिए इस सरकार की निरंतर कवायद का विरोध करते रहे हैं। लेकिन सरकार जिद पर अड़ी हैं। सीआईटीयू के महासचिव तपन सेन ने कहा, "इस अधिसूचना के माध्यम से अब उन्होंने स्थायी रोजगार की अवधारणा को नष्ट कर दिया है।"

आरएसएस से संबद्ध ट्रेड यूनियन बीएमएस भी नए नियमों की एक मजबूत निंदा जारी करने के लिए मजबूर हो गयी और कहा कि "सिमित अवधि के रोज़गार” मजदूरी के क्षेत्र में एक वैध नियम बन जाएगा"। बीएमएस ने वित्त मंत्री अरुण जेटली को आईएलओ कन्वेंशन 144 का उल्लंघन करते हुए ट्रेड यूनियन परामर्श के उल्लंघन के लिए भी जिम्मेदार ठहराया, जिसे भारतीय संसद ने भी स्वीकृति दी थी, जब उन्होंने नियत अवधि के रोजगार को लागू करने के लिए एकतरफा घोषणा की थी।

ट्रेड यूनियनों ने यह भी बताया है कि चूंकि औद्योगिक कानूनों के किसी भी प्रकार के संशोधन में संसद और इसकी समितियों द्वारा जांच की आवश्यकता होगी, इसलिए सरकार कार्यकारी आदेश के माध्यम से नियमों को बदलने की पिछली विधि को अपनाया है

कई राज्य सरकार राजस्थान, महाराष्ट्र और झारखंड सहित भाजपा द्वारा संचालित श्रम कानूनों में नियोक्ताओं के लिए बेहतर स्थिति बनाने के लिए कामगारों के अधिकारों को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा रही हैं। हालांकि, केंद्रीय सरकार द्वारा प्रस्तावित चार प्रमुख 'कोड' अभी भी हवा में लटके पड़े हैं क्योंकि मजदूरों के विरोध ने संसद में इनका मार्ग रोक दिया है। पिछले चार वर्षों में, दस केंद्रीय व्यापार संघों और दर्जनों अन्य महासंघों ने भारत में दो प्रमुख अखिल भारतीय हड़ताल और तीन दिवसीय पड़ाव का आयोजन किया था जिसमें प्रस्तावित श्रम कानून में बदलाव और मोदी सरकार के अन्य मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन किया गया था।

unemployment
बेरोज़गारी
नरेन्द्र मोदी
CITU
BJP
ILO

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

डरावना आर्थिक संकट: न तो ख़रीदने की ताक़त, न कोई नौकरी, और उस पर बढ़ती कीमतें

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

मुंडका अग्निकांड: 'दोषी मालिक, अधिकारियों को सजा दो'


बाकी खबरें

  • भाषा
    ईडी ने फ़ारूक़ अब्दुल्ला को धनशोधन मामले में पूछताछ के लिए तलब किया
    27 May 2022
    माना जाता है कि फ़ारूक़ अब्दुल्ला से यह पूछताछ जम्मू-कश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन (जेकेसीए) में कथित वित्तीय अनिमियतता के मामले में की जाएगी। संघीय एजेंसी इस मामले की जांच कर रही है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    एनसीबी ने क्रूज़ ड्रग्स मामले में आर्यन ख़ान को दी क्लीनचिट
    27 May 2022
    मेनस्ट्रीम मीडिया ने आर्यन और शाहरुख़ ख़ान को 'विलेन' बनाते हुए मीडिया ट्रायल किए थे। आर्यन को पूर्णतः दोषी दिखाने में मीडिया ने कोई क़सर नहीं छोड़ी थी।
  • जितेन्द्र कुमार
    कांग्रेस के चिंतन शिविर का क्या असर रहा? 3 मुख्य नेताओं ने छोड़ा पार्टी का साथ
    27 May 2022
    कांग्रेस नेतृत्व ख़ासकर राहुल गांधी और उनके सिपहसलारों को यह क़तई नहीं भूलना चाहिए कि सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता की लड़ाई कई मजबूरियों के बावजूद सबसे मज़बूती से वामपंथी दलों के बाद क्षेत्रीय दलों…
  • भाषा
    वर्ष 1991 फ़र्ज़ी मुठभेड़ : उच्च न्यायालय का पीएसी के 34 पूर्व सिपाहियों को ज़मानत देने से इंकार
    27 May 2022
    यह आदेश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बृजराज सिंह की पीठ ने देवेंद्र पांडेय व अन्य की ओर से दाखिल अपील के साथ अलग से दी गई जमानत अर्जी खारिज करते हुए पारित किया।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    “रेत समाधि/ Tomb of sand एक शोकगीत है, उस दुनिया का जिसमें हम रहते हैं”
    27 May 2022
    ‘रेत समाधि’ अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाला पहला हिंदी उपन्यास है। इस पर गीतांजलि श्री ने कहा कि हिंदी भाषा के किसी उपन्यास को पहला अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार दिलाने का जरिया बनकर उन्हें बहुत…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License