NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
डेनमार्क: प्रगतिशील ताकतों का आगामी यूरोपीय संघ के सैन्य गठबंधन से बाहर बने रहने पर जनमत संग्रह में ‘न’ के पक्ष में वोट का आह्वान
वर्तमान में जारी रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में, यूरोपीय संघ के समर्थक वर्गों के द्वारा डेनमार्क का सैन्य गठबंधन से बाहर बने रहने की नीति को समाप्त करने और देश को ईयू की रक्षा संरचनाओं और सैन्य युद्धाभ्यासों में एकीकृत करने पर जोर दिया जा रहा है।
पीपल्स डिस्पैच
01 Jun 2022
Denmark

जैसा कि डेनमार्क की जनता बुधवार, 1 जून को यूरोपीय संघ(ईयू) के साथ देश की रक्षा से संबंधित बाहर रहने के विकल्प वाली नीति पर जनमत संग्रह में मतदान के जरिये देश के भविष्य का फैसला करने के लिए तैयार हो रहे हैं, जिस पर प्रगतिशील एवं वामपंथी धड़े की ओर से ‘नहीं’ पर वोट करने का आह्वान किया जा रहा है। जनमत संग्रह साझा सुरक्षा एवं रक्षा नीति (सीएसडीपी) या यूरोपीय संघ के सैन्य अभियानों में भाग नहीं लेने की डेनमार्क की नीति के भविष्य को तय करेगा। वामपंथी पार्टियों में रेड-ग्रीन एलायन्स, कम्युनिस्ट पार्टी (केपी), डेनिश कम्युनिस्ट यूथ (डीकेयू), रेड-ग्रीन यूथ सहित विभिन्न ट्रेड यूनियनों की ओर से आगामी जनमत संग्रह में लोगों से ‘नहीं’ पर मतदान करने के लिए एक अभियान शुरू किया गया है। हालाँकि, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी सहित प्रमुख दलों ने, जो मेटे फ्रेड्रिकसेन की अगुवाई वाली सत्तारूढ़ गठबंधन सरकार में अग्रणी भूमिका में हैं, ने यूरोपीय संघ के रक्षा तंत्र से बाहर बने रहने की डेनमार्क की 30 साल पुरानी स्थिति को खत्म करने के लिए जनमत संग्रह में ‘हाँ’ के पक्ष में मतदान को अपना समर्थन दिया है। 

भले ही डेनमार्क 1973 से ही यूरोपीय संघ (ईयू) के पूर्ववर्ती संगठन का सदस्य रहा है, किंतु देशवासियों ने 1992 के जनमत संग्रह में मैस्ट्रिच संधि (यूरोपीय संघ की संधि) को ख़ारिज कर दिया था। ऐसी परिस्थिति में यूरोपीय संघ के नेतृत्व को एडिनबर्ग समझौते के हिस्से के तौर पर इस क्षेत्र को चार अपवाद (बाहर बने रहने के विकल्प) को प्रदान करने के लिए बाध्य होना पड़ा, जिसके चलते अंततः डेनमार्क ने 1993 के जनमत संग्रह में जाकर संधि पर अपनी मंजूरी दी। बाहर बने रहने के विकल्प में साझा सुरक्षा एवं रक्षा नीति (सीएसडीपी), न्याय एवं आतंरिक मामले (जेएचए), यूरोपीय संघ की नागरिकता, एवं यूरोपीय मौद्रिक विनिमय दर तंत्र शामिल थे। 

बाहर बने रहने के विकल्प को समाप्त करने के लिए किये गए पहले के प्रयासों में - 2000 में यूरो को राष्ट्रीय मुद्रा के तौर पर अपनाने और 2015 में न्याय व्यवस्था को संशोधित करने पर इससे बाहर बने रहने के विकल्प को जनमत संग्रह में डेनिश नागरिकों के द्वारा ख़ारिज कर दिया गया था। वर्तमान में जारी रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में, देश के भीतर मौजूद ईयू-समर्थक वर्गों ने रक्षा से बाहर बने रहने के विकल्प को खत्म कर डेनमार्क को यूरोपीय संघ के रक्षा तंत्र एवं सैन्य युद्धाभ्यासों के साथ एकीकृत करने के लिए अपने अभियान को तेज कर दिया है। देश के प्रगतिशील वर्गों ने इस बारे में चेताया है कि सैन्य गठजोड़ से बाहर रहने के विकल्प को समाप्त करना दरअसल डेनमार्क की संप्रभुता से समझौता करना होगा। इस बीच, कुछ वर्गों ने इस क्षेत्र को और अधिक सैन्यीकृत करने के अपने एजेंडे के तहत लोगों को आतंकित करने का सहारा लिया है।

एन्हेड्सलिसेन (रेड-ग्रीन एलायन्स) की माई विलाडसेन ने 25 मई को कहा, “जब हम 1 जून को मतदान के लिए जायेंगे, तो हम यूरोपीय संघ के देशों की रक्षा में शामिल होने के लिए मतदान नहीं करेंगे। हमें इस बात पर मतदान करना होगा कि क्या संसद में एक अल्प बहुमत यूरोपीय संघ की सीमाओं से काफी दूर मिशन पर युवाओं को भेज पाने में सक्षम हो पायेगी या नहीं। ये मिशन मेरी निगाह में अक्सर चिंताजनक एवं समस्याग्रस्त होते हैं।”

उन्होंने कहा कि यूरोपीय संघ के सैन्य अभियानों का उद्येश्य मुख्यतया जीवाश्म उर्जा में प्रमुख यूरोपीय कंपनियों के जलवायु को नुकसान पहुंचाने वाले हितों की रक्षा करने या भूमध्य सागर में शरणार्थी नावों को पकड़ने और उन्हें अफ्रीका के शिविरों में डालने का रहा है, जहाँ पर वे हमलों और मानवाधिकारों के उल्लंघनों के संपर्क में आ जाते हैं।

उन्होंने आगे कहा, “इस प्रकार के मिशनों के लिए हम मतदान करने जा रहे हैं। क्या हमें उनको धन और सैनिकों के माध्यम से मदद करनी चाहिए? मेरे और एन्हेड्सलिसेन के लिए, इसका जवाब बेहद सरल है। और जवाब है नहीं। इसीलिए हमारा कहना है: सुरक्षा पर आपत्ति दर्ज करो और ‘नहीं’ के पक्ष में मतदान करें।

जनमत संग्रह में ‘नहीं’ के पक्ष में मतदान करने के लिए केपी के कार्यकर्ता सक्रिय रूप से लोगों के बीच में प्रचार-प्रसार में जुटे हैं। पार्टी ने अपनी घोषणा में कहा है, “यह यूरोपीय संघ और नाटो दोनों के विरुद्ध है। और हम साम्राज्यवाद, सैन्यवाद और युद्ध के खिलाफ अपनी लड़ाई को को नहीं छोड़ने का आग्रह करते हैं।”

डीकेयू ने अपने बयान में कहा है, “आगामी जनमत संग्रह इस बात को लेकर है कि क्या हमें अपनी रक्षा आपत्तियों पर कायम रहना चाहिए या उन्हें समाप्त कर देना चाहिए। यह एक ऐसा विषय है, जो हमारे बीच में दूरियों को पैदा कर रहा है। हाँ कहने वाले यूक्रेन में युद्ध के लगातार विस्तार से लोगों की भावनाओं और उनका भयादोहन करने के विकल्प को पसंद करते हैं, ताकि उन्हें इस बात के लिए राजी किया जा सके कि डेनमार्क खतरे में है और सिर्फ यूरोपीय संघ ही हमें इससे बचा सकता है। डीकेयू इसकी निंदा करता है।” 

“भावनात्मक मुद्दों में फंसने के बजाय, हालात का सूक्ष्म एवं व्यवहारिक विश्लेषण करना महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि डेनमार्क, यूरोप और समूचे विश्व भर के लिए में यह स्थिति बनी हुई है। डेनमार्क की कम्युनिस्ट यूथ रक्षा पर आपत्ति को समाप्त किये जाने को लेकर ना कहती है!”

 

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें

https://peoplesdispatch.org/2022/05/31/progressives-in-denmark-call-to-vote-no-in-upcoming-eu-defense-opt-out-referendum/

 

Europe/Denmark
European Union
Russia
Russia Ukraine war

Related Stories

बर्तोल्त ब्रेख्त की कविता 'लेनिन ज़िंदाबाद'

डेनिश सरकार द्वारा सीरियाई शरणार्थियों का निवास परमिट रद्द करने के फ़ैसले का बढ़ता विरोध

लुकाशेंको के समर्थन में मिंस्क में हज़ारों लोग इकठ्ठा हुए 

सिर्फ़ कश्मीर ही नहीं, देश का लोकतंत्र ख़तरे में है: ग़ुलाम नबी आज़ाद


बाकी खबरें

  • शिव इंदर सिंह
    मोदी का ‘सिख प्रेम’, मुसलमानों के ख़िलाफ़ सिखों को उपयोग करने का पुराना एजेंडा है!
    28 May 2022
    नामवर सिख चिंतक और सीनियर पत्रकार जसपाल सिंह सिद्धू का विचार है, “दिल्ली के लाल किले में गुरु तेग बहादुर जी के 400वें प्रकाशपर्व मनाने का मोदी सरकार का मुख्य कारण, भाजपा के शासन में चल रहे मुस्लिम…
  • ज़ाहिद खान
    देवेंद्र सत्यार्थी : भारत की आत्मा को खोजने वाला लोकयात्री
    28 May 2022
    जयंती विशेष: ‘‘सत्यार्थी जी निरंतर गाँव-गाँव भटककर, लोकगीतों के संग्रह के जरिए भारत की आत्मा की जो खोज कर रहे हैं, वही तो आज़ादी की लड़ाई की बुनियादी प्रेरणा है...’’
  • अभिवाद
    केरल उप-चुनाव: एलडीएफ़ की नज़र 100वीं सीट पर, यूडीएफ़ के लिए चुनौती 
    28 May 2022
    थ्रीक्काकर सीट से जीते यूडीएफ़ के विधायक के निधन के बाद हो रहा उप-चुनाव, 2021 में एलडीएफ़ की लगातार दूसरी बार ऐतिहासिक जीत के बाद, पहली बड़ी राजनीतिक टक्कर के रूप में महत्वपूर्ण हो गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,685 नए मामले दर्ज
    28 May 2022
    देश में अब एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 0.04 फ़ीसदी यानी 16 हज़ार 308 हो गयी है। 
  • शारिब अहमद खान
    ईरानी नागरिक एक बार फिर सड़कों पर, आम ज़रूरत की वस्तुओं के दामों में अचानक 300% की वृद्धि
    28 May 2022
    ईरान एक बार फिर से आंदोलन की राह पर है, इस बार वजह सरकार द्वारा आम ज़रूरत की चीजों पर मिलने वाली सब्सिडी का खात्मा है। सब्सिडी खत्म होने के कारण रातों-रात कई वस्तुओं के दामों मे 300% से भी अधिक की…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License