NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
पुतिन ने मध्य यूरोप में शक्ति वितरण को दोबारा स्थापित किया
रूसी राष्ट्रपति साफ़ कर चुके हैं कि युद्ध उनका प्राथमिक विकल्प नहीं है, लेकिन उन्होंने जो ‘रेड लाइन्स’ बनाई हैं, उन्हें भी पार नहीं किया जा सकता।
एम.के. भद्रकुमार
28 Apr 2021
पुतिन ने मध्य यूरोप में शक्ति वितरण को दोबारा स्थापित किया

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन की तुलना जर्मनी का एकीकरण करने वाले, पहले चांसलर ऑटो वॉन बिस्मार्क से की जा सकती है। पुतिन जर्मनी के इतिहास, संस्कृति और वहां के समाज से अच्छी तरह परिचित हैं।

इस तरह की तुलनाओं की हमेशा अपनी सीमाएं होंगी। लेकिन दोनों में हैरान करने वाली समानताएं भी हैं। बिस्मार्क और पुतिन दोनों ही रूढ़ीवाद को मानने वाले और भगवास में अटूट विश्वास रखने वाले रहे हैं, ऐसा भगवान जो उनसे सारे मुद्दों पर उनसे सहमत हो। दोनों ही अराजकता से बचाव के लिए मौजूदा सामाजिक और राजनैतिक ढांचे को संरक्षित की मंशा रखने वाले व्यक्तित्व हैं। लेकिन इस दौरान दोनों को उनके अशांत दौर में प्रगतिशील ताकतों से अलग नहीं देखा जा सकता।

इसलिए रूस के रक्षामंत्री सर्जी शोइघु का पिछले गुरुवार को दिया गया वक्तव्य बेहद अहम हो जाता है, जिसमें रूस के दक्षिण और पश्चिमी सैन्य जिलों से रूसी सैनिकों की हमला करने वाली आकस्मिक क्षमताओं को बंद करने का ऐलान किया गया। पश्चिम में यह चर्चा काफ़ी तेज थी कि रूस ने यूक्रेन पर हमला करने का विकल्प खुला रखा है।

इसलिए शोइघु की टिप्पणी ने अब पश्चिम में उलझन पैदा कर दी है। लेकिन अब जब धूल बैठ रही है, तब दिखाई दे रहा है कि पुतिन ने शानदार ढंग से अमेरिका और नाटो को पछाड़ दिया है। यूक्रेन की पूर्वी सीमा पर फौज की बड़ी तैनाती और क्रीमिया में अतिरिक्त फौज़ भेजकर यूक्रेन पर रूसी हमले का डर पैदा किया गया। इससे पश्चिमी देशों में यह बात बैठा दी गई कि ना तो अमेरिका और ना ही नाटो, यूक्रेन की रक्षा के लिए रूस से युद्ध करने की स्थिति में है।

इससे यूक्रेन को भी महसूस हुआ है कि पश्चिमी शक्तियों की मदद के खोखले वायदों के दम पर रूस को चुनौती देना मूर्खता है। शोइघु की टिप्पणी के बाद यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्किय ने तुरंत ट्विटर पर एक ख़त डाला, जिसमें "डोंबास में स्थिति को शांत करने और सैन्य उपस्थिति को कम करने वालों कदमों का स्वागत किया गया"।

रूस की तैनाती दिल दहला देने वाली थी। यूक्रेन की सीमा से 130 किलोमीटर दूर वोरोनेज्ह शहर में 40 हजार से 1 लाख (यूरोपीय अनुमानों के मुताबिक़) सैनिकों की तैनाती थी। विशेषज्ञ मानते हैं कि 2014 के बाद यह रूस की सबसे बड़ी सैन्य तैनाती थी।

रूस इसके लिए अलग-अलग तर्क देता रहा, जैसे; यह तैनाती पूर्वी यूक्रेन में यूक्रेन की फौज़ की तैनाती के जवाब में की गई है; नाटो फौज़ें जिस तरीके से व्यवहार कर रही हैं, उनसे बचने के लिए यह तैनाती की गई है; रूसी सैनिकों की तैनाती सिर्फ़ एक अनिश्चित अभ्यास के लिए हुई है। जैसा एक पश्चिमी विशेषज्ञ ने कहा, लेकिन अंत में पता चला कि यह "यूक्रेन पर दबाव डालने और वाशिंगटन को संदेश देने के लिए उठाया गया भूराजनीतिक कदम था।" रूस, इसके ज़रिए अमेरिका को संदेश देना चाहता था कि वह इस क्षेत्र में बहुत मुश्किलें पैदा कर सकता है या करेगा।

शोइघु ने आदेश दिया कि सैनिकों को हटाने के प्रक्रिया पारंपरिक मई दिवस के पहले हो जानी चाहिए। उनके शब्दों में कहें तो, "एक मई, 2021 तक दक्षिणी सैन्य जिले की 58वीं सेना और मध्य सैन्य जिले की 41 वीं सेना, 76 वें हवाई दस्ते के 7वें और 76वें दस्ते और 98वें हवाई डिवीज़न के सैनिकों की वापसी उनके स्थायी केंद्रों पर हो जाएगी।"

लेकिन फिर शोइघु ने यह भी तय किया कि 41वीं सेना का भारी बख़्तर काफ़िला यूक्रेन की सीमा के पास रहेगा। इसकी तैनाती बड़े स्तर के सैन्य अभ्यास, जापाद 2021 के होने तक "किसी तरह की अवांछित स्थिति" से निपटने के लिए हो रही है। इसके अलावा क्रीमिया में तैनात 56वीं VBD ब्रिगेड खुद को रेजीमेंट में बदलकर स्थायी तौर पर वहां रहेगी।

जापाद (रूसी भाषा में जापाद का मतलब पश्चिम होता है) एक वार्षिक सैन्य अभ्यास है, जिसमें पश्चिम से होने वाले हमले से अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए रूसी फौज़ को उतारा जाता है। इस दिशा से पारंपरिक तौर पर हमले होते रहे हैं। इस अभ्यास में पूरे पश्चिमी मोर्चे पर तीन प्रमुख लड़ाकू समूहों को उतारा जाता है। साफ़ शब्दों में कहें तो यह रूस की सैन्य शक्ति का नाटो के साथ अपनी सीमा पर प्रदर्शन है, जिसका संदेश ब्रूसेल्स (नाटो मुख्यालय) तक पहुंचाना होता है।

सैनिकों को पीछे खींचने का यह कदम पुतिन की अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ शिखर सम्मेलन करने की मंशा भी दिखाता है, जिसके बारे में बाइडेन ने हाल में फोन पर चर्चा की थी। इस बीच पेंटागन ने भी काला सागर में दो जंगी जहाज़ों की तैनाती रद्द कर अपनी आक्रामक मुद्रा को ढीला किया है। वहीं ब्रिटेन ने भी काला सागर में एक और जंगी जहाज़ को भेजने की योजना रोक दी है। दूसरी तरफ, अमेरिकी और ब्रिटिश इंटेलीजेंस की मॉस्को के साथ ठनी एक कूटनीतिक तनातनी भी ख़त्म हो गई है, जिसमें चेक रिपब्लिक, अमेरिका और ब्रिटेन का प्रतिनिधि था। चेक ने अपने हाथ इस योजना से खींच लिए हैं।

लेकिन दूसरी तरफ़, क्रेमलिन ने बेलारूस के मुद्दे पर अमेरिका के ऊपर बंदूक भी तान दी है। रूस ने दावा किया है कि बेलारूस में राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंका के तख़्ता पलट की कोशिश और उनकी हत्या से संबंधित सभी जरूरी सबूत उसके पास मौजूद हैं।

बाइडेन प्रशासन के सामने यह साफ़ हो गया है कि पुतिन ने अब नई लक्ष्मण रेखा खींच दी है, जिसे गंभीरता से लेने की जरूरत है।  22 अप्रैल को मॉस्को में एक अहम भाषण में पुतिन ने कहा, "हम बीच के पुलों को जलाना नहीं चाहते। लेकिन अगर कोई हमारी अच्छी मंशाओं को हमारी कमज़ोरियां समझने की भूल करता है और इन पुलों को जलाने या उन्हें नुकसान पहुंचाने की मंशा रखता है, तो रूस की प्रतिक्रिया बेहद तेज और कठोर होगी। मुझे उम्मीद है कि कोई भी रूस के संबंध में इस लक्ष्मण रेखा को पार करने के बारे में नहीं सोचेगा। हर अलग मामले में हम यह तय करेंगे कि इस रेखा को कहां खींचा जाना है।"

यहां दिमाग में बिस्मार्क के वह क्रांतिकारी तरीके आते हैं, जिनका इस्तेमाल वे अपने रूढ़ीवादी लक्ष्यों के लिए करते थे। कोनिग्गार्ट्ज की मशहूर लड़ाई (1866) के बाद लोगों को आश्चर्य हुआ कि बिस्मार्क ने राजा और अपने जनरलों की सलाह मानने से इंकार कर दिया और प्रूशिया की सेना को विएना पर हमला ना करने का आदेश दिया। बिस्मार्क इस बात पर अडिग थे कि उनका उद्देश्य ऑस्ट्रिया की जगह पर कब्ज़ा करने या उसे नीचा दिखाने की नहीं है। ना ही वे तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप का ख़तरा चाहते हैं।

बिस्मार्क के उद्देश्य पूरी तरह केंद्रित थे। यूरोप को यह बात समझने में थोड़ा वक़्त लगा कि यूरोप ने मध्य यूरोप में सत्ता का वितरण बदल दिया है और इस क्षेत्र में शताब्दियों से प्रभुत्वशाली शक्ति रहे ऑस्ट्रिया को दोयम दर्जे तक समेट दिया है।

ठीक इसी तरह, हाल के हफ़्तों में यू्क्रेन और क्रीमिया में रूस की चालबाजी ने साफ़ कर दिया है कि डोंबास या क्रीमिया में मौजूदा स्थिति बदलने के उद्देश्य से उठाए गए यूक्रेन प्रशासन के कोई भी मूर्खतापूर्ण कदम को कुचलने के लिए रूस के पास बहुत ज़्यादा ताकत मौजूद है। लेकिन पुतिन इसका इस्तेमाल लड़ाई में करना नहीं चाहेंगे। क्योंकि किसी भूभाग पर कब्जा करना उनका उद्देश्य नहीं है। ना ही वे पश्चिमी देशों के साथ किसी भी तरह के टकराव की मंशा रखते हैं।

हाल में यूएस मरीन कॉर्प्स में इंटेलीजेंस ऑफिसर रहे, लेखक स्कॉट रिटर ने लिखा- बाइडेन प्रशासन की यूक्रेन सीमा और क्रीमिया में भूराजनीतिक वास्तविकता को समझने की असफलता "आधुनिक रूस को समझने की आड़ में दिखाई जाने वाली आक्रामकता और खुद के लिए घातक घमंड को प्रदर्शित करता है।"

फ्रांस की जनता को कोन्निग्गार्ट्ज की लड़ाई में प्रूशिया की जीत पसंद नहीं आई और उन्होंने "बदले" की मांग की। इस मांग से वह विमर्श बना, जिससे 1870 में फ्रांस-प्रूशिया का युद्ध हुआ, जिसकी मूल वज़ह महाद्वीपीय यूरोप में फ्रांस की अपनी प्रभुत्वशाली स्थिति को वापस पाने की इच्छा थी।

आजतक इतिहासकार इस बात पर सहमत नहीं हो सके कि बिस्मार्क ने जानबूझकर फ्रांस को प्रूशिया से युद्ध के लिए उकसाया या जैसी-जैसी स्थितियां बनती गईं, बिस्मार्क उनका फायदा उठाते गए। लेकिन कूटनीतिक संशयात्मकता हमेशा दूरदृष्टि रखने वाले बिस्मार्क की विशेषता रही।

पुतिन साफ़ कर चुके हैं कि युद्ध उनका प्राथमिक विकल्प नहीं है, लेकिन उनके द्वारा बनाई गई लक्ष्मण रेखा को भी पार नहीं किया जाना चाहिए। पुतिन ने यह भी स्पष्ट किया है कि "हर अलग-अलग मामले में रूस तय करेगा कि यह लक्ष्मण रेखा कहां खींची जानी है।" केंद्रीय यूरोप में शक्ति का वितरण बदल चुका है।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Putin Recites Distribution of Power in Central Europe

Putin
Russia
Central Europe
USA
Biden

Related Stories

भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आईपीईएफ़ पर दूसरे देशों को साथ लाना कठिन कार्य होगा

रूस की नए बाज़ारों की तलाश, भारत और चीन को दे सकती  है सबसे अधिक लाभ

गुटनिरपेक्षता आर्थिक रूप से कम विकसित देशों की एक फ़ौरी ज़रूरत

रूस पर बाइडेन के युद्ध की एशियाई दोष रेखाएं

पश्चिम बनाम रूस मसले पर भारत की दुविधा

रूस पर लगे आर्थिक प्रतिबंध का भारत के आम लोगों पर क्या असर पड़ेगा?

यूक्रेन संकट : वतन वापसी की जद्दोजहद करते छात्र की आपबीती

यूक्रेन संकट, भारतीय छात्र और मानवीय सहायता

यूक्रेन में फंसे बच्चों के नाम पर PM कर रहे चुनावी प्रचार, वरुण गांधी बोले- हर आपदा में ‘अवसर’ नहीं खोजना चाहिए


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोदी सरकार के 8 साल: सत्ता के अच्छे दिन, लोगोें के बुरे दिन!
    29 May 2022
    देश के सत्ताधारी अपने शासन के आठ सालो को 'गौरवशाली 8 साल' बताकर उत्सव कर रहे हैं. पर आम लोग हर मोर्चे पर बेहाल हैं. हर हलके में तबाही का आलम है. #HafteKiBaat के नये एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार…
  • Kejriwal
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: MCD के बाद क्या ख़त्म हो सकती है दिल्ली विधानसभा?
    29 May 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस बार भी सप्ताह की महत्वपूर्ण ख़बरों को लेकर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन…
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
    29 May 2022
    गोडसे जी के साथ न्याय नहीं हुआ। हम पूछते हैं, अब भी नहीं तो कब। गोडसे जी के अच्छे दिन कब आएंगे! गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
  • Raja Ram Mohan Roy
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या राजा राममोहन राय की सीख आज के ध्रुवीकरण की काट है ?
    29 May 2022
    इस साल राजा राममोहन रॉय की 250वी वर्षगांठ है। राजा राम मोहन राय ने ही देश में अंतर धर्म सौहार्द और शान्ति की नींव रखी थी जिसे आज बर्बाद किया जा रहा है। क्या अब वक्त आ गया है उनकी दी हुई सीख को अमल…
  • अरविंद दास
    ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली
    29 May 2022
    प्रख्यात निर्देशक का कहना है कि फिल्मी अवसंरचना, जिसमें प्राथमिक तौर पर थिएटर और वितरण तंत्र शामिल है, वह मुख्यधारा से हटकर बनने वाली समानांतर फिल्मों या गैर फिल्मों की जरूरतों के लिए मुफ़ीद नहीं है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License