NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
संस्कृति
भारत
राजनीति
राजसमन्द: भयावह अपराध, डरावनी नफरत
कानून तो अपना काम करेगा और उसे करना भी चाहिए, परंतु उस दुष्प्रचार का क्या, उन अफवाहों का क्या, जो समाज के एक हिस्से को दूसरे हिस्से के खून का प्यासा बना रही हैं?
राम पुनियानी
26 Dec 2017
राजसमन्द
patrika.com

 राजसमन्द, राजस्थान में 6 दिसंबर को घटी घटना, दिल दहलाने वाली है और यह रेखांकित करती है कि नफरत फैलाने वाले अभियान हमें कितना नीचे गिरा रहे हैं। शम्भूलाल रेगर नामक एक व्यक्ति, जो पहले संगमरमर का व्यापारी था, ने इस दिन वहां अफराजुल खान नाम के एक मुसलमान श्रमिक की हत्या कर दी। शम्भू ने अफराजुल को इस बहाने अपने पास बुलवाया कि उसे, उससे कुछ काम करवाना है। पश्चिम बंगाल से आये कई अन्य प्रवासी मजदूरों की तरह अफराजुल भी राजस्थान में सड़क निर्माण और अन्य कार्यों में मेहनत-मजदूरी कर अपना पेट पाल रहा था। इस घटना का सबसे चिंताजनक और भयावह पहलू यह है कि शम्भूलाल ने अपने 14 साल के भतीजे से अफराजुल की हत्या का वीडियो बनवाया। बाद में उसने इस वीडिओ को सोशल मीडिया पर अपलोड भी किया। अफराजुल को कुल्हाड़ी से काटने और फिर उसकी लाश को जलाने का पूरा घटनाक्रम सोशल मीडिया पर डाला गया।

शम्भू को गिरफ्तार कर लिया गया है परन्तु उसकी इस बर्बर हरकत के समर्थन में कुछ लोग सामने आये हैं। एक वकील ने शम्भू के परिवार को 50,000 रुपये की सहायता उपलब्ध करवाई और पूरे देश से उसके लिए 3 लाख रुपये चंदे के रूप में एकत्रित किये गए। हिन्दू सनातन संघ नामक एक दक्षिणपंथी संगठन के उपदेश राणा ने उदयपुर में शम्भूलाल के समर्थन में रैली निकालने की घोषणा की, जिसके बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस को कई स्थानों पर शम्भूलाल का समर्थन करने के लिए इकट्टा भीड़ को तितर-बितर करने के लिए बल प्रयोग करना पड़ा। कई लोग शम्भूलाल को हीरो बता रहे हैं। यह घटना, ओडिशा में बजरंग दल के एक कार्यकर्ता द्वारा पास्टर ग्राहम स्टेंस को जिंदा जलाए जाने की लोमहर्षक घटना की याद दिलाती है। यह तथ्य कि कई लोग शम्भूलाल जैसे घृणित अपराधियों के समर्थन में सामने आ रहे हैं, बताता है कि नफरत का जहर हमारे समाज में कितने गहरे तक घर कर गया है।

इस घटना पर पीयूसीएल की रपट कहती है कि “शम्भूलाल, आरएसएस की घृणा फैलाने वाली फैक्ट्री का क्लोन था और इसीलिये उसने यह भयावह और बर्बर अपराध अंजाम दिया”। इस घटना से आतंकित पश्चिम बंगाल के कई प्रवासी मजदूर परिवार, राजस्थान से अपने घर भागने लगे हैं। यह घटना दारा सिंह द्वारा पास्टर स्टेन्स और उनके दो मासूम लड़कों की जिंदा जलाकर हत्या से भी भयावह है। उस घटना के बाद भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति के.आर. नारायणन ने कहा था कि ‘‘यह घटना दुनिया की काली करतूतों की सूची में शामिल होगी‘‘। दारा सिंह, हिन्दू दक्षिणपंथी समूहों में सक्रिय था और साम्प्रदायिक हिन्दुओं का एक वर्ग उसे अत्यंत सम्मान की दृष्टि से देखता था। उन्होंने मुकदमा लड़ने में भी उसकी मदद की और उसे अदालत द्वारा दिए गए मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदलवाने की कोशिश भी की।

शंभू, संगमरमर का व्यापारी था और बताया जाता है कि उसका व्यापार अच्छा-खासा चल रहा था। नोटबंदी के बाद उसे काफी नुकसान हुआ और वह अपना अधिकांश समय वाट्सएप पर गुजारने लगा। उसके द्वारा अपलोड किए गए वीडियो को देखने से पता चलता है कि वह मुसलमानों के प्रति कितनी नफरत से भरा हुआ था। उसे ऐसा लगता था कि मुस्लिम पुरूष, लव जिहाद के जरिए हिन्दू महिलाओं को अपने जाल में फंसा रहे हैं। उसका मानना था कि मुसलमान, हिन्दू समुदाय के लिए बड़ा खतरा हैं। अपने वीडियो में उसने बाबरी मस्जिद, पद्मावती, लव जिहाद इत्यादि जैसे शब्द चिल्ला-चिल्लाकर कहे और यह भी कहा कि ‘इन लोगों‘ से बदला लिया जाना चाहिए।

कुछ लोग इस घटना की तुलना कर्नाटक में एक हिन्दू लड़के की हत्या से कर रहे हैं। इस लड़के का लिंग भी काट दिया गया था। इसमें कोई संदेह नहीं कि हमारे समाज में इन दिनों नफरत से उपजे अपराध बड़ी संख्या में हो रहे हैं। यद्यपि इनके पीड़ितों में कुछ गैर-मुस्लिम भी शामिल हैं, परंतु इनके ज्यादातर शिकार धार्मिक अल्पसंख्यक और दलित ही हैं। इनमें भी मुसलमान सबसे अधिक पीड़ित हैं। पिछले कुछ वर्षों में देश में साम्प्रदायिक हिंसा तेजी से बढ़ी है और बांटने वाली विचारधारा का बोलबाला हो गया है। पिछले तीन वर्षों में यह प्रक्रिया और तेज हुई है। हम सब को यह याद रखना चाहिए कि धार्मिक आधार पर देश को बांटने की प्रक्रिया की शुरूआत अंग्रेज़ों के शासनकाल में हुई थी। यह मुसलमान शासकों द्वारा जज़िया लगाए जाने, मंदिरों को ढहाने और लोगों को जबरदस्ती मुसलमान बनाने जैसे मुद्दों को उछाल कर किया गया। ये गलत धारणाएं अब सामूहिक सामाजिक सोच का हिस्सा बन गई हैं और इनका इस्तेमाल नफरत फैलाने के लिए किया जा रहा है। समाज में इस तरह के पूर्वाग्रह पहले से ही व्याप्त थे परंतु वैश्विक आतंकवाद, जिसकी जड़ें तेल की राजनीति में हैं, ने हालात को और खराब किया है।

भारत में सन 1980 के दशक से मुसलमानों के तथाकथित तुष्टिकरण, उनके पर्सनल लॉ, उनमें व्याप्त अशिक्षा और उनके द्वारा बहुत सारे बच्चे पैदा करने जैसे मुद्दों का इस्तेमाल कर पूरे समुदाय की छवि को धूमिल करने के प्रयास शुरू हुए। जहां ईसाईयों का दानवीकरण करने के लिए धर्मपरिवर्तन के मुद्दे को उछाला गया वहीं मुसलमानों के मामले में पवित्र गाय, लवजिहाद आदि का इस्तेमाल किया गया।

पिछले कुछ वर्षों में जो बदला है वह यह है कि शम्भू और अखलाक, पहलू व जुन्नैद के हत्यारों और ऊना में दलितों के साथ हिंसा करने वालों को ऐसा लगने लगा है कि वे कानून की पकड़ से बच सकते हैं। उनकी हिम्मत इसलिए बढ़ गई है क्योंकि सत्ता में बैठे लोग उनकी ही भाषा में बात कर रहे हैं। उन्हें ऐसा लगता है कि उनकी ही सरकार सत्ता में है। जब केन्द्रीय मंत्री अखलाक की हत्या के आरोपी के शव पर तिरंगा लिपटाएंगे तो देश में क्या संदेश जाएगा? अखलाक की हत्या के आरोपी को दिया गया सम्मान, शम्भू जैसे लोगों को ऐसे अपराध करने का साहस और प्रेरणा देता है। ऐसे अपराधों की कल्पना तक कुछ वर्षों पहले नहीं की जा सकती थी।

इस घटना की तुलना कर्नाटक में हुई हत्या से करना देश के बढ़ते साम्प्रदायिकीकरण से लोगों का ध्यान हटाने की साजिश के अलावा कुछ नहीं है। कानून तो अपना काम करेगा और उसे करना भी चाहिए, परंतु उस दुष्प्रचार का क्या, उन अफवाहों का क्या, जो समाज के एक हिस्से को दूसरे हिस्से के खून का प्यासा बना रही हैं? जब हमारे प्रधानमंत्री जानबूझकर ऐसे अपराधों के बारे में चुप्पी साध लेते हैं, जब यह पता चलता है कि वे ट्विटर इत्यादि पर नफरत के सौदागरों के फालोअर हैं तो इससे भविष्य के शम्भुओं को क्या संदेश जाता है?

इस देश का इतिहास, विभिन्न समुदायों के लोगों द्वारा मिलजुलकर एक जीवंत और रंग-बिरंगी संस्कृति के निर्माण का इतिहास है। इस देश में विभिन्न धर्मों के लोगों ने कंधे से कंधा मिलाकर आजादी के लिए लंबी और कठिन लड़ाई लड़ी। वह देश आज कहां पहुँच गया है? हमें इस देश को फिर से एक करना होगा। उपदेश राणा और उनके जैसे अन्यों को धार्मिक राष्ट्रवाद के चंगुल से निकालकर हर धर्म में निहित प्रेम और सद्भाव के मूल्यों से परिचित करवाना होगा।

(अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया) . लेखक राम पुनियानी आई.आई.टी. मुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं।)

Courtesy: द सिटिज़न
rajsamand
Rajasthan sarkar
Hindu Nationalism
Hinduva
BJP-RSS

Related Stories

मथुरा: शाही ईदगाह पर कार्यक्रम का ऐलान करने वाले संगठन पीछे हटे, पुलिस ने बढ़ाई सुरक्षा

सांप्रदायिक घटनाओं में हालिया उछाल के पीछे कौन?

अति राष्ट्रवाद के भेष में सांप्रदायिकता का बहरूपिया

निक्करधारी आरएसएस और भारतीय संस्कृति

"न्यू इंडिया" गाँधी का होगा या गोडसे का?

चाँदनी चौक : अमनपसंद अवाम ने सांप्रदायिक तत्वों के मंसूबे नाकाम किए

वाराणसी: कारमाइकल लाइब्रेरी ढहाए जाने पर सुप्रीम कोर्ट की रोक, योगी सरकार से मांगा जवाब

क्या संत रविदास के केसरियाकरण की कोशिशें रवां है?

तिरछी नज़र : कराची हलवा और जिह्वा का राष्ट्रवाद

क्या आज गाँधी और अम्बेडकर के धर्मनिरपेक्ष देश के सपने को ख़तरा है?


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोदी सरकार के 8 साल: सत्ता के अच्छे दिन, लोगोें के बुरे दिन!
    29 May 2022
    देश के सत्ताधारी अपने शासन के आठ सालो को 'गौरवशाली 8 साल' बताकर उत्सव कर रहे हैं. पर आम लोग हर मोर्चे पर बेहाल हैं. हर हलके में तबाही का आलम है. #HafteKiBaat के नये एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार…
  • Kejriwal
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: MCD के बाद क्या ख़त्म हो सकती है दिल्ली विधानसभा?
    29 May 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस बार भी सप्ताह की महत्वपूर्ण ख़बरों को लेकर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन…
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
    29 May 2022
    गोडसे जी के साथ न्याय नहीं हुआ। हम पूछते हैं, अब भी नहीं तो कब। गोडसे जी के अच्छे दिन कब आएंगे! गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
  • Raja Ram Mohan Roy
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या राजा राममोहन राय की सीख आज के ध्रुवीकरण की काट है ?
    29 May 2022
    इस साल राजा राममोहन रॉय की 250वी वर्षगांठ है। राजा राम मोहन राय ने ही देश में अंतर धर्म सौहार्द और शान्ति की नींव रखी थी जिसे आज बर्बाद किया जा रहा है। क्या अब वक्त आ गया है उनकी दी हुई सीख को अमल…
  • अरविंद दास
    ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली
    29 May 2022
    प्रख्यात निर्देशक का कहना है कि फिल्मी अवसंरचना, जिसमें प्राथमिक तौर पर थिएटर और वितरण तंत्र शामिल है, वह मुख्यधारा से हटकर बनने वाली समानांतर फिल्मों या गैर फिल्मों की जरूरतों के लिए मुफ़ीद नहीं है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License