NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
संस्कृति
भारत
राजनीति
‘राम’ बनाम ‘हज’ : गुजरात में असंतोष दबाने के लिए पुन: साम्प्रदायिक ज़हर फैलाने की भाजपा की साजिश
आरोप है कि संघ (आर.एस.एस.) की स्थानीय इकाई ने एक पोस्टर जारी किया है, जिसमें त्रिमूर्ति (रुपानी, अमित शाह और मोदी) को ‘राम’ यानी हिन्दुओं की आवाज़ और (हार्दिक, अल्पेश और जिग्नेश) को ‘हज’ यानी मुसलमानों के नेता दर्शाया गया है.
तारिक़ अनवर
07 Nov 2017
Translated by महेश कुमार
gujarat elections

जैसे-जैसे गुजरात में चुनाव नज़दीक आ रहे हैं भाजपा विकास के मुद्दे पर काफी रक्षात्मक होती जा रही है इसलिए वे साम्प्रद्दायिक उन्माद को भड़काकर हिन्दू मतों को अपने पक्ष में करना चाहती है, गुजरात में 9 व 14 दिसंबर को होने वाले चुनाव में नई विधानसभा के गठन के लिए 182 सदस्यों का चुनाव होना है.

एक पोस्टर जिसका शीर्षक है ‘पसंगी तमारी’ यानी (पसंद आपकी) को वाट्सएप्प पर चलाया जा रहा है और मतदाता से ‘राम’ और ‘हज’ में से किसी एक को चुनने के लिए कहा जा रहा है.

‘राम’ को गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रमणीकलाल रुपानी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नामों के अगले अक्षर से जोड़कर बनाया गया है. तीनों नेताओं की फोटो को उनके नाम के पहले अक्षर यानी रुपानी से ‘र’ अमित से ‘आ’ की मात्रा और मोदी से ‘म’ लिया गया है.

इनके एकदम दांये में भगवान् राम की आक्रामक मुद्रा में फोटो है और वह अयोध्या में प्रस्तावित राम मंदिर के ऊपर लहरा रही है. भगवान् राम के एक दम ऊपर कमल की तस्वीर है जो भाजपा का चुनाव चिन्ह है.

पोस्टर के एकदम नीचे की तरफ बोल्ड अक्षर में ‘हज’ लिखा है. यंहा ‘हज’ से मतलब है हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोरे, और जिग्नेश मेवानी. इन तीनों, जिन्होंने ने भाजपा के विरुद्ध प्रभावशाली अभियान चलाया था, उनकी फोटो के आगे पाक काबा की तस्वीर है, जहाँ मुसलमान हर वर्ष हज अदा करने जाते हैं.

चुनावों को साम्प्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण करने की नियत से कांग्रेस के चुनावी निशान ‘हाथ’ को पाक काबा के ऊपर मुद्रित किया गया है. पोस्टर पुरानी पार्टी कांग्रेस को इन तीन कार्यकर्ताओं/आन्दोलनकारियों के साथ-साथ, उन्हें मुसलमानों के पक्षधर के रूप में पेश करना रही है.

इसी तरह ‘राम’ की इन तीन मूर्तियों (रुपानी, अमित शाह और मोदी) को हिन्दुओं की आवाज़ के रूप में पेश किया गया है.

अहमदाबाद के अमरावई नगर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस), जोकि भाजपा की राजनीतिक संरक्षक है, की स्थानीय इकाई द्वारा स्थानीय व्हाट्सएप समूह में एक पोस्टर जारी जारी क्या गया और उस पोस्टर को बाकायदा वायरल करवाया गया.

पिछले हफ्ते भगवा पार्टी ने उस वक्त इसका स्वाद चखा जब मुख्यमंत्री विजय रुपानी ने आतंकवादियों की मदद करने के लिए अहमद पटेल पर आरोप लगाया था कि वह एक कथित आई.एस.आई. के सदस्य जिसे उस अस्पताल से गिरफ्तार किया जिसमें वह काम करता था और जहां वरिष्ठ कांग्रेस नेता एक ट्रस्टी थे.

मुख्यमंत्री द्वारा उकसाने के बावजूद कांग्रेस इन आरोपों से अभी तक उत्तेजित नहीं हुई है. ऐसा सुनने में आया कि पार्टी ने अपने नेताओं को आदेश दिया है कि ऐसे मामलों में खासकर गुजरात में बयानबाजी न करें क्योंकि अन्तत ये मुद्दे भाजपा को ही सहायता करते हैं. पार्टी ने 2007 के अनुभव को ध्यान में रखते हुए जिसमें सोनिया गांधी ने मोदी को “मौत का सौदागर” कहा था और उसका उलटा असर हुआ. इस से सबक लेते हुए यह सब हिदायतें दी हैं.

इसलिए, “कांग्रेस आर्थिक मंदी के मुद्दे पर ध्यान आकर्षित करने के प्रतिबद्ध है, इसलिए नोटबंदी, जी.एस.टी. के गलत ढंग से अम्ल, कृषि संकट और दलितों के विरुद्ध उत्पीडन” को मुद्दा बना रही है.

भाजपा ‘हज’ से इतनी घबराई हुई क्यों है?

गुजरात में हर दिन राजनैतिक लहरें नए-नए मौड़ ले रही है, भाजपा जो गुजरात पर दो दशकों से शासन कर रही है अपनी स्थिति को लेकर काफी बेचैन है.

दलित नेता जिग्नेश मेवानी, पाटीदार अमानत आन्दोलन समिति (पास) नेता हार्दिक पटेल और ओ.बी.सी. नेता अल्पेश ठाकोरे ने आपस में गठजोड़ बना लिया है और “दक्षिण पंथ विरोधी” मोर्चा खोल दिया है. मेवानी ने पहले ही दावा किया था कि हम तीनों मिलकर 180 में से 120 सीटों पर असर डाल सकते हैं. अब तीनों गुजरात चुनाव में भाजपा-कांग्रेस के टकराव के बीच फंस गए हैं. जबकि अल्पेश औपचारिक तौर पर कांग्रेस में चले गए हैं, लेकिन जिग्नेश और हार्दिक सीधे कांग्रेस में तो नहीं गए हैं बल्कि वे अपने उम्मीदवारों को कांग्रेस के चुनाव चिन्ह से चुनाव लडवाएंगे ऐसा सुनने में आया है.
 

दलित गुजरात की आबादी का मात्र 7 प्रतिशत हैं. पाटीदार जोकि 13 प्रतिशत हैं उत्तर व दक्षिण गुजरात के चूनावों पर असर डालेंगे. थोकोरे जोकि पिछड़ा वर्ग से हैं की आबादी, ओ.बी.सी. की आबादी का आधा हिस्सा हैं और उत्तर गुजरात में बहुलता में हैं. अल्पेश ठाकोरे का असर वहां पर काम करेगा. गुजरात के पूर्वी हिस्से में आदिवासी भी हैं, जिनकी आबादी का हिस्सा करीब 15 प्रतिशत है, भाजपा इन पर काफी डोरे डाल रही है क्योंकि यह उनका सबसे कमज़ोर क्षेत्र है. कुल निचोड़ यह है कि अभी तक तो यही लगता है कि कांग्रेस एवं भाजपा में कड़ी टक्कर है और ऐसी भी अटकलें है कि भाजपा को कुल 80 सीटों पर सिमित कर दिया जाएगा.

 2015 में पतिदार अमानत आंदोलन (पतिदार आरक्षण आंदोलन) का नेतृत्व करने के बाद हार्दिक पटेल ने 22 वर्ष की उम्र में प्रसिद्धि पा ली और काफी उंचाई पर पहुँच गया. आन्दोलन को संभालने में नाकामयाब तबकी मुख्यमंत्री आनंदीबाई पटेल को आन्दोलन को कुचलने के लिए पुलिस बल का इस्तेमाल करना पडा जिसके चलते हिंसा में पाटीदार समुदाय के 10 नौजवानों की मौत हो गयी.

इसके नतीजे के तौर पर हार्दिक पटेल की प्रसिद्धि में इजाफा हुआ और उसे उत्तर व दक्षिण गुजरात में भारी समर्थन मिला. पाटीदार समुदाय की दो उप-जातियां कडवा और लयूवा पटेल भी हार्दिक के समर्थन में उसके बैनर के पीछे लामबंद हो गए.

ज्यादातर पटेल या तो हीरा या फिर कपड़ा व्यापारी हैं, और राज्य के प्रभावशाली समुदाय से है जो हमेशा से भाजपा के परम्परागत मतदाता रहे हैं.

यहाँ दलित मतदाता 7 प्रतिशत हैं. एक वर्ष पहले, जब उना में 7 दलित युवाओं को पीटा गया था, तो जिग्नेश मेवानी ने इसके विरुद्ध अभूतपूर्व अस्मिता मार्च का अहमदाबाद से उना तक न्रेतत्व किया था, इस कार्यक्रम ने जिग्नेस को समुदाय का बड़ा नेता बना दिया.

दलित समुदाय जिसकी राज्य में कोई आवाज़ न थी, इस मार्च/अभियान के बाद उन्हें अपनी एक आवाज़ मिल गयी. राज्य की चुनावी राजनीती के हिसाब से देखे तो भाजपा चुनाव दलितों के समर्थन से जीतती आई है. लेकिन इस बार हालात बदले हुए हैं. अब, समुदाय के पास अपना नेता है. यद्दपि, मेवानी ने यह स्पष्ट कर दिया है वह कांग्रेस में शामिल नहीं होंगे, लेकिन ये भी स्पष्ट किया है कि वे भजपा को सत्ता से हटाने के मकसद को सर्वोपरि रखेंगे. उल्लेखनीय रूप से, एससी के लिए आरक्षित 13 सीटों में, बीजेपी ने पिछले विधानसभा चुनाव में 10 और कांग्रेस तीन जीती थी.

Gujarat
gujarat elections 2017
Communalism
RSS
BJP

Related Stories

क्या ताजमहल भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं है?

उर्दू पत्रकारिता : 200 सालों का सफ़र और चुनौतियां

सफ़दर: आज है 'हल्ला बोल' को पूरा करने का दिन

सांप्रदायिक घटनाओं में हालिया उछाल के पीछे कौन?

अति राष्ट्रवाद के भेष में सांप्रदायिकता का बहरूपिया

क्या तमिलनाडु में ‘मंदिरों की मुक्ति’ का अभियान भ्रामक है?

ज्ञानवापी मस्जिद : अनजाने इतिहास में छलांग लगा कर तक़रार पैदा करने की एक और कोशिश

‘लव जिहाद’ और मुग़ल: इतिहास और दुष्प्रचार

बनारस: ‘अच्छे दिन’ के इंतज़ार में बंद हुए पावरलूम, बुनकरों की अनिश्चितकालीन हड़ताल

हल्ला बोल! सफ़दर ज़िन्दा है।


बाकी खबरें

  • अनिल सिन्हा
    उत्तर प्रदेशः हम क्यों नहीं देख पा रहे हैं जनमत के अपहरण को!
    12 Mar 2022
    हालात के समग्र विश्लेषण की जगह सरलीकरण का सहारा लेकर हम उत्तर प्रदेश में 2024 के पूर्वाभ्यास को नहीं समझ सकते हैं।
  • uttarakhand
    एम.ओबैद
    उत्तराखंडः 5 सीटें ऐसी जिन पर 1 हज़ार से कम वोटों से हुई हार-जीत
    12 Mar 2022
    प्रदेश की पांच ऐसी सीटें हैं जहां एक हज़ार से कम वोटों के अंतर से प्रत्याशियों की जीत-हार का फ़ैसला हुआ। आइए जानते हैं कि कौन सी हैं ये सीटें—
  • ITI
    सौरव कुमार
    बेंगलुरु: बर्ख़ास्तगी के विरोध में ITI कर्मचारियों का धरना जारी, 100 दिन पार 
    12 Mar 2022
    एक फैक्ट-फाइंडिंग पैनल के मुतबिक, पहली कोविड-19 लहर के बाद ही आईटीआई ने ठेके पर कार्यरत श्रमिकों को ‘कुशल’ से ‘अकुशल’ की श्रेणी में पदावनत कर दिया था।
  • Caste in UP elections
    अजय कुमार
    CSDS पोस्ट पोल सर्वे: भाजपा का जातिगत गठबंधन समाजवादी पार्टी से ज़्यादा कामयाब
    12 Mar 2022
    सीएसडीएस के उत्तर प्रदेश के सर्वे के मुताबिक भाजपा और भाजपा के सहयोगी दलों ने यादव और मुस्लिमों को छोड़कर प्रदेश की तकरीबन हर जाति से अच्छा खासा वोट हासिल किया है।
  • app based wokers
    संदीप चक्रवर्ती
    पश्चिम बंगाल: डिलीवरी बॉयज का शोषण करती ऐप कंपनियां, सरकारी हस्तक्षेप की ज़रूरत 
    12 Mar 2022
    "हम चाहते हैं कि हमारे वास्तविक नियोक्ता, फ्लिपकार्ट या ई-कार्ट हमें नियुक्ति पत्र दें और हर महीने के लिए हमारा एक निश्चित भुगतान तय किया जाए। सरकार ने जैसा ओला और उबर के मामले में हस्तक्षेप किया,…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License