NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
सीपीआई (एम) ने संयुक्त रूप से हिंदुत्व के खिलाफ लड़ाई का एलान किया
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार और हिंदुत्व की सांप्रदायिक और फासीवादी ताकतों के खिलाफ बडे संघर्ष का संकल्प प्रमुख मुद्दों में से एक था।
टी. जयरामन
23 Apr 2018
Translated by महेश कुमार
cpim

भारतीय राजनीतिक मंच पर शायद ही कभी न दिखने वाले लोकतांत्रिक निर्णय लेने की अनुकरणीय प्रक्रिया, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के 22 वें अखिल भारतीय सम्मेलन में 1 9 अप्रैल, 2018 को मुख्य राजनीतिक प्रस्ताव पर अपनी बहस समाप्त करने में दिखी। संकल्प के मुख्य मुद्दे में (हालांकि किसी भी तरह से यह अकेला मुद्दा नहीं) निश्चित रूप से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार और हिंदुत्व की सांप्रदायिक और फासीवादी ताकतों के खिलाफ बड़े संघर्ष के खिलाफ लड़ाई में आगे बढ़ने का तरीका तय किया गया।

सीपीआई (एम) ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है कि भाजपा विरोधी संघर्ष के तरीके के कुछ पहलुओं पर गंभीर आंतरिक बहस हुई थी। उत्साह से भरी, और अक्सर गर्म बहस, इस संदर्भ में कांग्रेस के साथ सीपीआई (एम) के रिश्ते के सवाल पर केन्द्रित थी। सीपीआई (एम) केंद्रीय समिति के अधिकांश सदस्यों का मानना ​​था कि कांग्रेस को सांप्रदायिकता के आधार पर बीजेपी के समान नहीं समझा जा सकता, क्योंकि कांग्रेस उन आर्थिक नीतियों की वास्तुकार है जिन्हें वामपंथी गहराई से विरोध करते हैं, यह भी माना कि कांग्रेस ही है जिसने हिंदुत्व के पुनरुत्थान के लिए मार्ग प्रशस्त किया। इस प्रकार तर्क यह है कि हिंदुत्व के खिलाफ लड़ाई में निर्णायक योगदान केवल एक मजबूत बाएं बाजू और लोकतांत्रिक मोर्चे द्वारा ही किया जा सकता है जिसने हिंदुत्व और नव उदारवाद दोनों के खिलाफ दृढ़ स्थिति ली। केंद्रीय समिति में अल्पसंख्यक विचार हालांकि, कांग्रेस सरकार के धर्मनिरपेक्ष चरित्र पर जोर देते हुए सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ लड़ाई पर अधिक जोर देने के इच्छुक थे, जिससे मोदी सरकार को बेदखल करने की तत्काल आवश्यकता के आधार पर इसकी समझ की संभावना बढ़ गई। इस दृष्टिकोण में नव-उदार आर्थिक सुधारों को एक साथ लड़ने पर जोर दिया गया था, लेकिन सांप्रदायिक खतरे से लड़ने के लिए कांग्रेस के साथ समझ को बनाने के लिए पूर्ण बाधा के रूप में नहीं देखा गया था।

महीनों से मुख्यधारा का मीडिया इस बहस को व्यक्तित्व या गुट के संघर्ष के रूप में चित्रित करने पर जोर डे रहा था। यह इशारा किया गया था कि यह पार्टी के मौजूदा महासचिव सीताराम येचुरी के बीच संघर्ष है, जिसे अल्पसंख्यक रेखा के वास्तुकार के रूप में स्वीकार किया गया है, और पिछले पदाधिकारी प्रकाश करात, जिन्होंने केंद्रीय समिति के बहुमत को व्यक्त किया है। चूंकि सीपीआई (एम) एक ऐसी पार्टी है जो राष्ट्रीय राजनीतिक क्षेत्र में अपने चुनावी भार से ऊपर है, मिश्रित राजनीतिक टिप्पणीकारों और "उदारवादी" विविधता के बुद्धिजीवियों ने अनिवार्य रूप से एक अंतर-पार्टी बहस के पानी में मछली पकड़ना शुरू कर दिया था, खुलेआम मुख्यधारा और सोशल मीडिया दोनों में, एक या दूसरे व्यक्तियों के महत्वपूर्ण नेताओं की आलोचनात्मक टिप्पणियां की गयी। कुछ मौकों पर, इस तरह की टिप्पणियों ने स्वीकार्य टिप्पणी की सीमाओं को पार कर लिया था, और बहस की एक तरफ की तस्वीर उभारा, जिसमें वे पक्षपात करने के लिए प्रतिबद्ध थे, दुसरे मीडिया व्यक्तिगत विद्रोह की खुराक भी कभी-कभी सिस्में मिलाते रहे।  

जोकि मीडिया के चरित्र में निहित है, अब वे इसे अल्पसंख्यक 'लाइन' की व्यक्तिगत जीत के रूप में अपनी राजनीतिक रणनीति पर सीपीएम की चर्चा के अंतिम परिणाम की व्याख्या कर रहा है। यह पूरी तरह गलतफहमी है जो इस तथ्य पर आधारित है कि मूल मसौदे पर की बहस की गई बहस जिसने किसी भी "कांग्रेस के साथ समझ या चुनावी गठबंधन" को मना कर दिया था, अंत में सम्मेलन द्वारा पारित संस्करण में हटा दिया गया है।

लेकिन एक निष्पक्ष बहस अलग ही कहानी बताती है। हैदराबाद में दो दिनों से चली खुली और मुक्त बहस के बाद, यह स्पष्ट था कि मुद्दों पर किसी भी बहस को एक ऐसे फैसले पर पहुँचाना चाहिए जो उपस्थित प्रतिनिधियों के विशाल बहुमत की गहन इच्छा का सम्मान करता हो  जो किसी भी विभाजन के बजाय सभी को एकजुट करती हो। यह इस रौशनी में है कि अंतिम फॉर्मूलेशन एकता के लिए इस इच्छा का सम्मान करते हुए केंद्रीय समिति के मूल संकल्प को मजबूत करती है। अंतिम प्रस्ताव स्पष्ट करता है कि "कांग्रेस पार्टी के साथ कोई राजनीतिक गठबंधन नहीं होगा।" हिंदुत्व के खिलाफ लड़ाई में एकता की इच्छा का सम्मान करते हुए,  "समझ" बनाने के शब्द के दायरे और सीमाओं को समझते हुए, हिंदुत्व के खिलाफ बड़ी, एकीकृत कार्रवाई के लिए एक विशिष्ट दिशा-निर्देश के रूप में काम करेगा। यह सांप्रदायिक खतरे के खिलाफ लोगों को संगठित करने और उन कार्रवाइयों को बढ़ावा देने के लिए निर्देश देता है और अन्य पक्षों के अनुयायियों जो समस्त वर्ग और सामूहिक आंदोलन का नेतृत्व करते हैं, जबकि विशिष्ट मुद्दों पर बीजेपी को अलग करने के लिए संसद में संभावनाओं को तलाशता है। यह बाएं और लोकतांत्रिक मोर्चे के निर्माण के महत्व को भी दोहराता है, इस निष्कर्ष को दोहराता है जिस पर सीपीआई (एम) चार साल पहले विशाखापत्तनम में अपने आखिरी अखिल भारतीय सम्मेलन में नतीजे पर पहुंचा था।

सभी कम्युनिस्ट दलों को उस वक्त कठिन परीक्षा में डाल दिया जाता है जब भी उन्हें एक तरफ राजनीतिक विकास के लिए चुनावी लाभ के आसान भ्रमित रस्ते और दूसरी तरफ, जन आंदोलन पर निर्मित अपनी स्वतंत्र राजनीतिक ताकत बढ़ाने के आधार पर राजनीतिक विकास और संघर्ष के बीच चयन करना होता है। सीपीआई (एम) कोई अपवाद नहीं है और इसे इस स्तर पर बार-बार परीक्षण में डाल दिया गया है, जिन परीक्षणों से यह बड़े पैमाने पर है, हालांकि हमेशा नहीं, सफलतापूर्वक उभरा। यह स्पष्ट है कि सीपीआई (एम) ने अपने लिए चुने गए मार्ग पर  प्रगति आसान नहीं होगी। सामूहिक कार्रवाई का निर्माण और वामपंथी और लोकतांत्रिक मोर्चे की स्वतंत्र ताकत प्रयास का करेगी, हालांकि हाल के कार्यक्रमों से पता चलता है कि कई अवसर मौजूद हैं। लेकिन तथ्य यह है कि सीपीआई (एम) नवजात और सांप्रदायिक बीजेपी की अगुआई वाली सरकार से लड़ने के अपने संकल्प में एकजुट हो गया है, मुख्य रूप से, राजनीतिक आंदोलन, उत्साह के लिए कुछ कारण देता है।

CPIM
22nd party congress
Hyderabad
बीजेपी
हिंदुत्व
नवउदारवाद

Related Stories

त्रिपुरा: सीपीआई(एम) उपचुनाव की तैयारियों में लगी, भाजपा को विश्वास सीएम बदलने से नहीं होगा नुकसान

आशा कार्यकर्ताओं को मिला 'ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड’  लेकिन उचित वेतन कब मिलेगा?

श्रृंगार गौरी के दर्शन-पूजन मामले को सुनियोजित रूप से ज्ञानवापी मस्जिद-मंदिर के विवाद में बदला गयाः सीपीएम

झारखंड : हेमंत सरकार को गिराने की कोशिशों के ख़िलाफ़ वाम दलों ने BJP को दी चेतावनी

मुंडका अग्निकांड: लापता लोगों के परिजन अनिश्चतता से व्याकुल, अपनों की तलाश में भटक रहे हैं दर-बदर

शाहीन बाग़ : देखने हम भी गए थे प तमाशा न हुआ!

शाहीन बाग़ ग्राउंड रिपोर्ट : जनता के पुरज़ोर विरोध के आगे झुकी एमसीडी, नहीं कर पाई 'बुलडोज़र हमला'

LIC के कर्मचारी 4 मई को एलआईसी-आईपीओ के ख़िलाफ़ करेंगे विरोध प्रदर्शन, बंद रखेंगे 2 घंटे काम

जम्मू-कश्मीर: अधिकारियों ने जामिया मस्जिद में महत्वपूर्ण रमज़ान की नमाज़ को रोक दिया

कोलकाता : वामपंथी दलों ने जहांगीरपुरी में बुलडोज़र चलने और बढ़ती सांप्रदायिकता के ख़िलाफ़ निकाला मार्च


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    मुंडका अग्निकांड: सरकारी लापरवाही का आरोप लगाते हुए ट्रेड यूनियनों ने डिप्टी सीएम सिसोदिया के इस्तीफे की मांग उठाई
    17 May 2022
    मुण्डका की फैक्ट्री में आगजनी में असमय मौत का शिकार बने अनेकों श्रमिकों के जिम्मेदार दिल्ली के श्रम मंत्री मनीष सिसोदिया के आवास पर उनके इस्तीफ़े की माँग के साथ आज सुबह दिल्ली के ट्रैड यूनियन संगठनों…
  • रवि शंकर दुबे
    बढ़ती नफ़रत के बीच भाईचारे का स्तंभ 'लखनऊ का बड़ा मंगल'
    17 May 2022
    आज की तारीख़ में जब पूरा देश सांप्रादायिक हिंसा की आग में जल रहा है तो हर साल मनाया जाने वाला बड़ा मंगल लखनऊ की एक अलग ही छवि पेश करता है, जिसका अंदाज़ा आप इस पर्व के इतिहास को जानकर लगा सकते हैं।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    यूपी : 10 लाख मनरेगा श्रमिकों को तीन-चार महीने से नहीं मिली मज़दूरी!
    17 May 2022
    यूपी में मनरेगा में सौ दिन काम करने के बाद भी श्रमिकों को तीन-चार महीने से मज़दूरी नहीं मिली है जिससे उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
  • सोन्या एंजेलिका डेन
    माहवारी अवकाश : वरदान या अभिशाप?
    17 May 2022
    स्पेन पहला यूरोपीय देश बन सकता है जो गंभीर माहवारी से निपटने के लिए विशेष अवकाश की घोषणा कर सकता है। जिन जगहों पर पहले ही इस तरह की छुट्टियां दी जा रही हैं, वहां महिलाओं का कहना है कि इनसे मदद मिलती…
  • अनिल अंशुमन
    झारखंड: बोर्ड एग्जाम की 70 कॉपी प्रतिदिन चेक करने का आदेश, अध्यापकों ने किया विरोध
    17 May 2022
    कॉपी जांच कर रहे शिक्षकों व उनके संगठनों ने, जैक के इस नए फ़रमान को तुगलकी फ़ैसला करार देकर इसके खिलाफ़ पूरे राज्य में विरोध का मोर्चा खोल रखा है। 
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License