NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
सरकार और सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम में एक बार फिर टकराव के आसार!
इलाहाबाद हाईकोर्ट में 13 वकीलों को जज नियुक्त करने के सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम की सिफारिश पर केंद्र सरकार ने रोक लगा दी है।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
09 Sep 2019
alhabad court
Image Courtesy: Live Law

मोदी सरकार और सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम में एक बार फिर टकराव के आसार दिख रहे हैं।  ताजा मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट में 13 न्यायधीशों की नियुक्ति से जुड़ा है। केंद्र सरकार ने 13 वकीलों को जज नियुक्त करने के सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम की सिफारिश पर फिलहाल रोक लगा दी है।

खबरों के अनुसार इसमें से 10 वकील भर्ती संबंधी न्यूनतम आय की योग्यता को पूरा नहीं करते हैं, जो उच्च न्यायिक व्यवस्था में नियुक्ति के लिए अनिवार्य है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट में कम से कम 13 नियुक्तियों को सरकार ने लंबित कर रखा है। इनमें से 10 उम्मीदवार न्यूनतम आय के मानकों को पूरा नहीं करते हैं। सरकार ने तीन अन्य वकीलों को जज के रूप में नियुक्त करने से भी रोक दिया है, जबकि वे इस पात्रता को पूरा करते हैं। गौरतलब है कि हाईकोर्ट का जज बनने के लिए कोलेजियम की सिफारिश से पहले वकील को बीते पांच साल में कम से कम सात लाख रुपये वार्षिक आय होना आवश्यक है।

खबरों के अनुसार कोलेजियम द्वारा सिफारिश किए गए तीन वकीलों की वार्षिक आय 4 से 4.5 लाख रुपये वार्षिक थी। वहीं, अन्य की वार्षिक आय सात लाख रुपये सालाना से कम थी, लिहाजा उन्हें नियुक्तियों के लिए अयोग्य कर दिया गया।

कोलेजियम ने इन वकीलों की वार्षिक आय को नजरअंदाज कर इस साल 12 फरवरी को उनकी पदोन्नति की सिफारिश की थी। आरोप यह भी है कि जिन वकीलों को जज बनाने की सिफारिश कोलेजियम ने की थी, उसमें सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायलय के पूर्व जज के रिश्तेदार भी शामिल हैं।

ऐसे में सवाल यह उठाया जा रहा है कि क्या इलाहाबाद हाईकोर्ट में नियुक्ति के लिए कोलेजियम को योग्य वकील नहीं मिल पा रहे या फिर इस प्रक्रिया के जरिए चहेतों और रिश्तेदारों को फायदा पहुंचाने की कोशिश की जा रही है?

इलाहाबाद हाईकोर्ट में कार्यरत एक वकील बताते हैं कि कोलेजियम व्यवस्था के तहत जिन वकीलों की जज के तौर पर नियुक्ति की सिफरिश की गई है उनमें ज्यादातर वो लोग शामिल हैं जो या तो किसी के रिश्तेदार हैं या जिनकी पहुंच ऊपर तक है।

हाल ही में मद्रास हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश विजया के. ताहिलरमानी ने सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम के मेघालय हाईकोर्ट स्थानांतरित करने के आदेश पर पुनर्विचार करने का उनका अनुरोध ठुकराए जाने के बाद इस्तीफा दे दिया था। उन्हें पिछले साल आठ अगस्त को ही मद्रास उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया था। कोलेजियम ने 28 अगस्त को उन्हें स्थानांतरित करने की सिफारिश की थी, जिस पर उन्होंने पुनर्विचार करने का अनुरोध किया था। उन्होंने कोलेजियम के फैसले का विरोध भी किया था।

इससे पहले मद्रास उच्च न्यायालय के ही एक न्यायाधीश ने अपने कामकाज का विवरण सार्वजनिक करते हुए न्यायपालिका में जवाबदेही की जरूरत को रेखांकित किया था। इसके बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर कोलेजियम व्यवस्था को कठघरे में खड़ा करते हुए साफ तौर पर कहा कि हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्तियों में परिवारवाद और जातिवाद का बोलबाला है।

क्या है कोलेजियम व्यवस्था?

कोलेजियम प्रणाली सुप्रीम कोर्ट की दो सुनवाई का नतीजा है। पहला 1993 का और दूसरा 1998 का है। कोलेजियम बनाने के पीछे न्यायपालिका की स्वतंत्रता को सुरक्षित रखने की मानसिकता सुप्रीम कोर्ट की रही।

कोलेजियम पांच लोगों का समूह है। इन पांच लोगों में भारत के मुख्य न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जज हैं। कोलेजियम द्वारा जजों के नियुक्ति का प्रावधान संविधान में कहीं नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के पांच वरिष्ठतम जजों की कमेटी (कोलेजियम) नियुक्ति व तबादले का फैसला करती है। कोलेजियम की सिफारिश मानना सरकार के लिए जरूरी होता है। यह व्यवस्था 1993 से लागू है।

लखनऊ हाई कोर्ट में वकील महेश का कहते हैं कि ये कोलेजियम व्यवस्था पारदर्शी नहीं है। इस पर पहले भी कई बार सवाल उठते रहे हैं। लेकिन न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता के लिए ये जरूरी भी है।

कोलेजियम व्यवस्था का विकल्प बनने वाले राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्त आयोग को खारिज करते समय सुप्रीम कोर्ट ने यह तो माना था कि इस व्यवस्था में खामियां हैं, लेकिन उन्हें दूर करने का काम अब तक नहीं हो सका है।

दुनिया के किसी भी लोकतांत्रिक देश में न्यायाधीश ही न्यायाधीश की नियुक्ति नहीं करते। आखिर जैसा दुनिया के अन्य लोकतांत्रिक देशों में नहीं होता वैसा भारत में क्यों होना चाहिए?

जरूरी केवल यही नहीं है कि न्यायाधीशों की ओर से अपने साथियों की नियुक्ति की अलोकतांत्रिक व्यवस्था खत्म हो, बल्कि यह भी है कि न्यायिक क्षेत्र में इस तरह के सुधार बिना किसी देरी के किए जाएं कि समय पर न्याय मिलना संभव हो सके।

साकेत कोर्ट में वकील श्वेता का कहना है कि कोलेजियम व्यवस्था में कुछ खामियां हो सकती हैं लेकिन ये सरकारी दबावों से मुक्त है। राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग में सरकार और राजनेताओं की दखल था जो निश्चित ही न्यायिक व्यवस्था को प्रभावित कर सकता था।

आज चाहे आम लोग हों या खास, वे इस पर भरोसा नहीं कर पाते कि उन्हें समय पर न्याय मिलेगा। भरोसे की यह कमी न्यायपालिका की प्रतिष्ठा और गरिमा पर एक सवाल ही है।

फिलहाल इलाहाबाद हाईकोर्ट की भर्तियों में उम्मीदवारों का पात्रता मानकों को ही पूरा ना कर पाना चिंताजनक है। इस पर केवल चर्चा ही नहीं होनी चाहिए, बल्कि ऐसे कदम भी उठाए जाने चाहिए जिससे न्यायपालिका भरोसे की कमी के संकट से मुक्त हो।

Allahabad court
UttarPradesh
yogi sarkar
modi sarkar
BJP
Supreme Court
National Judicial Appointments Commission

Related Stories

बदायूं : मुस्लिम युवक के टॉर्चर को लेकर यूपी पुलिस पर फिर उठे सवाल

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

ज्ञानवापी मस्जिद के ख़िलाफ़ दाख़िल सभी याचिकाएं एक दूसरे की कॉपी-पेस्ट!

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट


बाकी खबरें

  • corona
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के मामलों में क़रीब 25 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई
    04 May 2022
    देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 3,205 नए मामले सामने आए हैं। जबकि कल 3 मई को कुल 2,568 मामले सामने आए थे।
  • mp
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    सिवनी : 2 आदिवासियों के हत्या में 9 गिरफ़्तार, विपक्ष ने कहा—राजनीतिक दबाव में मुख्य आरोपी अभी तक हैं बाहर
    04 May 2022
    माकपा और कांग्रेस ने इस घटना पर शोक और रोष जाहिर किया है। माकपा ने कहा है कि बजरंग दल के इस आतंक और हत्यारी मुहिम के खिलाफ आदिवासी समुदाय एकजुट होकर विरोध कर रहा है, मगर इसके बाद भी पुलिस मुख्य…
  • hasdev arnay
    सत्यम श्रीवास्तव
    कोर्पोरेट्स द्वारा अपहृत लोकतन्त्र में उम्मीद की किरण बनीं हसदेव अरण्य की ग्राम सभाएं
    04 May 2022
    हसदेव अरण्य की ग्राम सभाएं, लोहिया के शब्दों में ‘निराशा के अंतिम कर्तव्य’ निभा रही हैं। इन्हें ज़रूरत है देशव्यापी समर्थन की और उन तमाम नागरिकों के साथ की जिनका भरोसा अभी भी संविधान और उसमें लिखी…
  • CPI(M) expresses concern over Jodhpur incident, demands strict action from Gehlot government
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    जोधपुर की घटना पर माकपा ने जताई चिंता, गहलोत सरकार से सख़्त कार्रवाई की मांग
    04 May 2022
    माकपा के राज्य सचिव अमराराम ने इसे भाजपा-आरएसएस द्वारा साम्प्रदायिक तनाव फैलाने की कोशिश करार देते हुए कहा कि ऐसी घटनाएं अनायास नहीं होती बल्कि इनके पीछे धार्मिक कट्टरपंथी क्षुद्र शरारती तत्वों की…
  • एम. के. भद्रकुमार
    यूक्रेन की स्थिति पर भारत, जर्मनी ने बनाया तालमेल
    04 May 2022
    भारत का विवेक उतना ही स्पष्ट है जितना कि रूस की निंदा करने के प्रति जर्मनी का उत्साह।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License