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भारत
राजनीति
कटाक्ष: झूठ की सीमा न कहो इसको!
आखिरकार, बनारस है तो यूपी में और यूपी में चुनाव आ रहा है और चुनाव में मोदी की पार्टी जिस घोड़े पर दांव लगा रही है, उसकी तारीफ़ अगर मोदी जी भी नहीं करेंगे तो क्या उनके विरोधी करेंगे।
राजेंद्र शर्मा
18 Jul 2021
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भाई ये विरोधी भी एकदम हद्द ही करते हैं। कह रहे हैं कि मोदी जी को बनारस में जाकर योगी जी की तारीफ नहीं करनी चाहिए थी। बनारस में जाकर ही तारीफ करनी थी, योगी जी की ही तारीफ करनी थी, तो तारीफ भी कर लेते, पर कम से कम कोविड की दूसरी लहर का मुकाबला करने में कामयाबी के लिए तारीफ नहीं करनी चाहिए थी। और अगर बनारस जाकर ही करनी थी, योगी जी तारीफ ही करनी थी, कोविड की दूसरी लहर का मुकाबला करने के लिए ही तारीफ करनी थी, तो हल्की-फुल्की तारीफ भी कर लेते।

आखिरकार, बनारस है तो यूपी में और यूपी में चुनाव आ रहा है और चुनाव में मोदी की पार्टी जिस घोड़े पर दांव लगा रही है, उसकी तारीफ अगर मोदी जी भी नहीं करेंगे तो क्या उनके विरोधी करेंगे। चुनाव के लिए अपने गधे को भी घोड़ा बताना ही पड़ता है। सो कर लेते थोड़ी तारीफ भी। ‘‘प्रशंसनीय’’ कह तो दिया था, देश में सबसे ज्यादा टीका लगवाने के लिए; उतने पर ही रुक जाते। पर मोदी जी को योगी जी के कोविड योग को ‘‘अभूतपूर्व’’ नहीं कहना चाहिए था। लेकिन क्यों? क्योंकि झूठ की भी एक सीमा होती है!

हम पूछते हैं कि योगी जी के कोविड योग को ‘‘अभूतपूर्व’’ कहने में झूठ की सीमा कहां से आ गयी? माना कि योगी जी के राम राज में कोरोना की दूसरी लहर में श्मशान-कब्रिस्तान सब छोटे पड़ गए और लाशें गंगा मैया में भी नहीं समायीं, तो मैया के तट ने रेत का आंचल ओढ़ा कर सुला लीं। माना कि जब लोग आक्सीजन के लिए तड़प-तड़पकर पर रहे थे, तो योगी के राम राज ने एलान कर दिया कि कमी किसी भी चीज ही नहीं है, न आक्सीजन की, न दवा की, न अस्पताल में बैड की। अब से जो कमी-कमी चिल्लाएगा, योगी जी के राम राज्य की बदनामी करने के लिए सीधे जेल जाएगा; कोरोना चाहे छोड़ भी दे, पर राम राज्य के डंडे से नहीं बच पाएगा।

माना कि जब लोग अस्पतालों में भर्ती के लिए मिन्नतें कर रहे थे, तब योगी राज ने हुकुम निकाला था कि जो सीएमओ की पर्ची लेकर आएगा, सिर्फ वही अस्पताल में दाखिला पाएगा। और जब आक्सीजन की मारा-मारी मची, तो एक और हुकुम निकला, सरकारी हुकुम के बिना कोई आक्सीजन नहीं दे पाएगा।

माना कि बिना अस्पताल, बिना दवा, बिना आक्सीजन के, राम राज्य में मरीज पीपल और बड़ के पेड़ के नीचे खटिया बिछा रहे थे और सीधे पेड़ों से आक्सीजन पा रहे थे। माना कि यह सब सही है। माना कि इसके अलावा भी और भी बहुत कुछ सही है। मसलन गिनती मैनेजमेंट, मरने वालों तो मरने वालों, बीमारी की चपेट में आने वालों से लेकर टैस्टों तक की गिनती का मैनेजमेंट। लेकिन इस सब के बाद भी योगी जी के कोरोना प्रबंधन को मोदी जी का ‘‘अभूतपूर्व’’ कहना झूठ कैसे हो जाएगा? और प्लेन झूठ भी कहां, भाई लोग तो इसे झूठ की सीमा लांघना साबित करने पर तुले हुए हैं। कमाल है!

कहीं इसे झूठ की सीमा इसलिए तो नहीं कहा जा रहा है कि योगी जी के कोविड प्रबंधन को, मोदी जी ने ‘‘अभूतपूर्व’’ कहा है। माना कि मोदी जी पीएम हैं और सिर्फ  गुजरात तथा बनारस के ही नहीं, पूरे इंडिया दैट इज भारत के पीएम हैं। कहते हैं कि पीएम के पद की अपनी भी कोई मर्यादा वगैरह होती है। लेकिन, इसमें झूठ की सीमा कहां से आ गयी। और ‘‘अभूतपूर्व’’ कहने भर से झूठ की सीमा कहां से आ गयी। पीएम के झूठ के लिए यह सीमा खींची किस ने है--पूछता है नया इंडिया! क्या झूठ की यह सीमा यूरोप वालों ने ही नहीं खींची है? उनके अखबारों-चैनलों ने, उनकी पत्रिकाओं ने, श्मशानों में जलती चिताओं, आक्सीजन के लिए तड़पते लोगों और मोदी-योगी पार्टी की चुनाव रैलियों और उनके परिवारियों के कुंभ की भीड़ों की, दानिश सिद्दीकी जैसों की तस्वीरों की कवर स्टोरियां छाप-छापकर? (मोदी जी क्यों जताएं शोक, ऐसे एंटीनेशनलों के जाने पर!) मोदी जी यूरोपियों की खींची झूठ की यह सीमा कैसे मान लें, जबकि उनकी सरकार को पहले दिन से पता है कि यह सब भारतविरोधी टूल किट का मामला है। इक्कीसवीं सदी, मानवता आदि-आदि की दुहाइयों की आड़ में ये एंटी-इंडिया ताकतें, उनके लिए झूठ की सीमा को छोटा से छोटा करने की साजिशें रचे जा रही हैं।

भारत में जब अंगरेजी राज था, तब तो भाई लोगों ने झूठ की सीमा इतनी आगे रखी थी कि उस तक कोई पहुंच ही नहीं पाता था। स्पेनिश फ्लू याद है या जलियां वाला बाग या बंगाल का अकाल? क्या हुआ था और क्या बताया था? तब कहां पर थी झूठ की सीमा! और अब मोदी जी बारी आयी तो योगी जी के राम राज्य की मामूली चूकों की तरफ से आंख मूंदकर उसे ‘‘अभूतपूर्व’’ कहते ही, रैफ्री बनकर सीटी बजाने लगे--झूठ की सीमा पार हो गयी, झूठ की सीमा पर हो गयी! मोदी जी क्यों स्वीकार कर लें झूठ की ऐसी तंग सीमा! झूठ की इतनी छोटी सीमा मानेंगे तो फिर चुनाव के लिए अपने घोड़ों की तारीफ कैसे करेंगे? और मोदी जी भी तारीफ नहीं करेंगे तो चुनाव में उनके घोड़े जीतेंगे कैसे? वास्तव में यही तो साजिश है। झूठ की सीमा में उलझकर, मोदी जी और उनके घोड़े पब्लिक को भरमा ही नहीं पाएं और या तो चुनाव हार जाएं या योगी ने जैसे जिला और ब्लाक पंचायतों में जीत मचायी है, वैसी जीत मचाने से ही काम चलाएं। मोदी जी झूठ-वूठ की सीमाओं के चक्कर में हर्गिज नहीं आएंगे और जहां तब बने झूठ से ही काम चलाएंगे। झूठ से भी काम नहीं चले तो फिर तो जीत मचाने का योगी दांव ही सही।

और प्लीज मोदी भक्तों को यह समझाने की सवा चतुराई कोई नहीं करे कि मोदी जी ने बनारस में झूठ की सीमा पार करना तो दूर, सिर्फ सच बोला है, सोलह आना सच। योगी राज का कोविड प्रबंधन ‘‘अभतपूर्व’’ ही तो था--शव वाहिनी गंगा की कसम। इसे भक्तों ने योगी राज की प्रशंसा मान लिया, तो इसमें मोदी जी का क्या कसूर!   

(इस व्यंग्य आलेख के लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोकलहर के संपादक हैं।) 

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