NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
शिक्षा
भारत
राजनीति
क्या आप जानते हैं ग़ाज़ीपुर मोर्चे पर एक सावित्रीबाई फुले पाठशाला चलती है?
उत्तर प्रदेश से दिल्ली जाने वाली सड़क ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर किसानों के हरे-पीले-नीले तम्बुओं के बीच एक तम्बू में 'माता सावित्रीबाई फुले पाठशाला' की ओर से छोटे बच्चों की पाठशाला चल रही है। लगभग पचास की संख्या में बच्चे फुले पाठशाला में हिंदी वर्णमाला पढ़ रहे हैं। ग़ाज़ीपुर किसान आंदोलन में यह पाठशाला 22 जनवरी से लगातार चलाई जा रही है।
गौरव गुलमोहर
17 Feb 2021
savitri

"एक सप्ताह पहले मैं दिल्ली सीमा पर चल रहे किसान आंदोलन देखने आई थी। मुझे लगा अपना योगदान देना चाहिए। तबसे मैं यहीं बच्चों को पढ़ा रही हूँ। यहां से जाने का मन नहीं हो रहा है। पता भी नहीं है कब वापस जाऊंगी।"

ये शब्द हैं बस्तर के जगदलपुर से आंदोलन में आईं लिमवती मौर्या के। लिमवती किसान आंदोलन में लगभग सात दिनों से मौजूद हैं और ग़ाज़ीपुर बॉर्डर के आस-पास की झुग्गियों में रहने वाले बच्चों को पढ़ा रही हैं। लिमवती वर्धा के हिंदी विश्वविद्यालय से बीएड कर चुकी हैं। वर्तमान समय में गांधी एवं शांति अध्ययन से एम ए की पढ़ाई कर रही हैं।

उत्तर प्रदेश से दिल्ली जाने वाली सड़क ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर किसानों के आंदोलन का आज 83वां दिन है। आज बसंत पंचमी और सरस्वती पूजन का दिन है। सरस्वती को विद्या की देवी माना जाता है। वहीं आधुनिक युग में शिक्षा का विस्तार करने में सावित्रीबाई फुले का अहम योगदान है।

किसानों के हरे-पीले-नीले तम्बुओं के बीच एक तम्बू में 'माता सावित्रीबाई फुले पाठशाला' की ओर से छोटे बच्चों की पाठशाला चल रही है। लगभग पचास की संख्या में बच्चे फुले पाठशाला में हिंदी वर्णमाला पढ़ रहे हैं। ग़ाज़ीपुर किसान आंदोलन में यह पाठशाला 22 जनवरी से लगातार चलाई जा रही है।

देव कुमार पाठशाला के मुख्य संचालक हैं। वे बताते हैं कि "यह पाठशाला आंदोलन में आने वाले बच्चों के लिए खोला गया था। लेकिन 26 जनवरी को लाल किले पर सिख धर्म का झंडा फहराने के बाद आंदोलन में बच्चों की संख्या कम हो गई। उसके बाद से खोड़ा कालोनी (झुग्गी बस्ती) के बच्चे आना शुरू हुए हैं। लगभग नब्बे से सौ बच्चे प्रतिदिन पाठशाला में पढ़ाई करने आते हैं"

आंदोलन, पढ़ाई और कमाई

ग़ाज़ीपुर सीमा के एनएच-9 पर किसान आंदोलन लगभग दो से ढाई किलोमीटर तक फैला है। आंदोलन में मुजफ़्फ़रनगर, सीतापुर, हरिद्वार, नजीबाबाद जैसी जगहों के सिख और जाट समुदाय के लोगों ने लंगर लगाया है। बड़ी संख्या में प्लास्टिक की बोतलें और कूड़ा निकल रहा है। खोड़ा कालोनी के बच्चे, बूढ़े और महिलाएं आंदोलन में पानी की बोतल और कूड़ा चुनने आती हैं।

किसान आंदोलन में कूड़ा बीनने वाले बच्चों को फुले पाठशाला के शिक्षकों ने बुलाकर पढ़ाना शुरू किया। देखते-देखते पाठशाला में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या बढ़ती गई। आज यह संख्या सौ तक पहुंच गई है।

पाठशाला में बच्चों को पढ़ाने वाले सुरेंद्र पाल बताते हैं कि "लॉकडाउन में बच्चों का स्कूल बंद है। बहुत सारे बच्चों के माता-पिता अपने बच्चों को सुबह पाठशाला में छोड़ जाते हैं। इनमें ऐसे बच्चे भी हैं जो कभी स्कूल नहीं गए। हम उन्हें यहां पेंसिल पकड़ना सिखा रहे हैं। कुछ बच्चों को दो जून का खाना ठीक ढंग से नहीं मिलता था यहां वो आंदोलन में लगे लंगर में तीन टाइम तरह-तरह का खाना खाते हैं और पाठशाला में खुशी-खुशी पढ़ाई करते हैं।"

पाठशाला में ए, बी, सी, डी लिखना सीख रही लाखो के पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं और लाखो की मां चाय की दुकान लगाती हैं। लाखो बताती हैं कि "खोड़ा के सरकारी स्कूल में पढ़ती थी। वहां कुछ नहीं सीखा। वहां कुछ याद नहीं कराते थे सिर्फ लिखकर आने के लिए बोलते थे। यहां मैंने ड्रॉइंग बनाना सीखा, एबीसीडी औए एक से सौ तक गिनती याद किया।"

'कमलान पुलिस बनना चाहता है'

पाठशाला में पांच साल से दस साल तक बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। उन्हें पाठशाला की ओर से कॉपी, पेंसिल, रबर और स्केल जैसी आवश्यक वस्तुएं दी गई हैं। तीन शिक्षक बच्चों को पढ़ा रहे हैं। पाठशाला के तम्बू में संविधान की प्रस्तावना के साथ स्वतंत्रता सेनानियों, समाज सुधारकों और नेताओं की तसवीरें टंगी है। कुछ बच्चे देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को चाचा नेहरू के नाम से पहचानते हैं।

शिक्षक बताते हैं कि वे सुबह बच्चों को प्रेयर करवाते हैं। संविधान की प्रस्तावना पढ़वाते हैं और देश के महापुरुषों, क्रांतिकारियों की पहचान करवाते हैं।

बोतल बीनने वाले कमलान पुलिस बनना चाहते है। वे अपनी उम्र छः साल बताते हैं। कमलान के पिता रिक्शा चलाते हैं। कमलान पाठशाला में पहले दिन से आ रहे हैं। उन्हें अंग्रेजी और हिंदी की वर्णमाला तैयार हो चुकी है। कमलान ड्रॉइंड में तिरंगा भी बना लेते हैं।

"अपनी झुग्गी में बोतल बिनते और बेचते हैं। बोतल दस रुपये किलो बिकता है। अभी भी शाम को बोतल बीनता हूँ।  दो कट्टा सौ रुपये में जाता है। मैं यहां पढ़कर पुलिस बनूंगा।" कमलान ने कहा।

किसान आंदोलन में कई रंग देखने को मिलते हैं। कुछ तम्बुओं में लंगर चल रहा है, कहीं किसान समूह में अख़बार पढ़ रहे हैं और कहीं सड़कों पर किताबें बिक रही हैं। किसान आंदोलन की विविधताओं में ही पाठशाला भी शामिल है।

फुले पाठशाला की एक दूसरी छात्रा साधना (10) के पिता वैशाली की किसी बड़ी कोठी में गॉर्ड हैं। साधना पढ़ने में सभी बच्चों में सबसे तेज हैं। वे बच्चों को हिंदी वर्णमाला भी पढ़ाती हैं। साधना की पांच बहन और तीन भाई हैं। मां और दो बहन घरों में झाड़ू-पोछा का काम करती हैं। बड़ा भाई भी काम पर जाता है। अपने परिवार में साधना अकेली हैं जो पढ़ाई करती हैं। और साधना टीचर बनना चाहती हैं।

साधना कहती हैं कि "पापा बड़ी कोठी में गॉर्ड हैं। बड़े लोगों की गाड़ी आती है तो गेट खोलते हैं। मम्मी के साथ बहन बड़ी कोठी में झाड़ू-पोछा करती है, दो तीन हजार पाती हैं। मैं पढूंगी। मैं टीचर बनना चाहती हूँ।"

 

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।) 
 

Savitribai Phule
sarsawati puja
kisan aandoln
Farmer protest
gazipur border
education

Related Stories

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

पंजाब: आप सरकार के ख़िलाफ़ किसानों ने खोला बड़ा मोर्चा, चंडीगढ़-मोहाली बॉर्डर पर डाला डेरा

गरमाने लगा बनारस: किसान आंदोलन के समर्थक छात्रों के खिलाफ FIR, सिंधोरा थाने पर प्रदर्शन

भारी बारिश, तूफ़ान से तंबू टूटे हैं, किसानों के हौसले नहीं: एसकेएम

किसान आंदोलन: रेप की घटना एक बार फिर किसानों के संघर्ष को बदनाम करने का हथियार बन रही है!

जन आंदोलन की शिक्षा

नारीवादी नवशरन सिंह के विचार: किसान आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी से क्यों घबराती है सरकार

ट्रैक्टर परेड बनाम गणतंत्र दिवस परेड : प्रतीकों का टकराव और इसके मायने

'ज़मीन हमारी माँ है और यह लड़ाई उसके लिए है'

सावित्रीबाई फुले : खेती ही ब्रह्म, धन-धान्य है देती/अन्न को ही कहते हैं परब्रह्म


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    यूपी : आज़मगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनाव में सपा की साख़ बचेगी या बीजेपी सेंध मारेगी?
    31 May 2022
    बीते विधानसभा चुनाव में इन दोनों जगहों से सपा को जीत मिली थी, लेकिन लोकसभा उपचुनाव में ये आसान नहीं होगा, क्योंकि यहां सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है तो वहीं मुख्य…
  • Himachal
    टिकेंदर सिंह पंवार
    हिमाचल में हाती समूह को आदिवासी समूह घोषित करने की तैयारी, क्या हैं इसके नुक़सान? 
    31 May 2022
    केंद्र को यह समझना चाहिए कि हाती कोई सजातीय समूह नहीं है। इसमें कई जातिगत उपसमूह भी शामिल हैं। जनजातीय दर्जा, काग़जों पर इनके अंतर को खत्म करता नज़र आएगा, लेकिन वास्तविकता में यह जातिगत पदानुक्रम को…
  • रबीन्द्र नाथ सिन्हा
    त्रिपुरा: सीपीआई(एम) उपचुनाव की तैयारियों में लगी, भाजपा को विश्वास सीएम बदलने से नहीं होगा नुकसान
    31 May 2022
    हाई-प्रोफाइल बिप्लब कुमार देब को पद से अपदस्थ कर, भाजपा के शीर्षस्थ नेतृत्व ने नए सीएम के तौर पर पूर्व-कांग्रेसी, प्रोफेसर और दंत चिकित्सक माणिक साहा को चुना है। 
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कर्नाटक पाठ्यपुस्तक संशोधन और कुवेम्पु के अपमान के विरोध में लेखकों का इस्तीफ़ा
    31 May 2022
    “राज्य की शिक्षा, संस्कृति तथा राजनीतिक परिदृ्श्य का दमन और हालिया असंवैधानिक हमलों ने हम लोगों को चिंता में डाल दिया है।"
  • abhisar
    न्यूज़क्लिक टीम
    जब "आतंक" पर क्लीनचिट, तो उमर खालिद जेल में क्यों ?
    31 May 2022
    न्यूज़चक्र के इस एपिसोड में आज वरिष्ठ पत्रकार अभिसार शर्मा चर्चा कर रहे हैं उमर खालिद के केस की। शुक्रवार को कोर्ट ने कहा कि उमर खालिद का भाषण अनुचित था, लेकिन यह यह आतंकवादी कृत्य नहीं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License