आखिर न्यूज़ चैनल ऐसा क्यों हो गये हैं? इसकी जड़े व्यापार में हैं या राजनीति में? सेल्फ़-रेगुलेशन क्यों विफल रहा है, क्या इसके लिए सन् 2013 में संसदीय समिति द्वारा प्रस्तावित 'मीडिया कौंसिल' एक बेहतर विकल्प है? वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश का विश्लेषण:
सुप्रीम कोर्ट के सुदर्शन टीवी मामले में दिये मंगलवार के महत्वपूर्ण फैसले से संवैधानिकता की तो रक्षा हुई पर इससे ज्यादातर न्यूज़ चैनलों के रवैये और नफ़रत भरा कंटेंट परोसने की उनकी आदत में भी बदलाव होगा; ऐसा नहीं लगता! आखिर न्यूज़ चैनल ऐसा क्यों हो गये हैं? इसकी जड़े व्यापार में हैं या राजनीति में? सेल्फ़-रेगुलेशन क्यों विफल रहा है, क्या इसके लिए सन् 2013 में संसदीय समिति द्वारा प्रस्तावित 'मीडिया कौंसिल' एक बेहतर विकल्प है? वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश का विश्लेषण:
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