NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
भीषण महामारी की मार झेलते दिल्ली के अनेक गांवों को पिछले 30 वर्षों से अस्पतालों का इंतज़ार
दशकों पहले बपरोला और बुढ़ेला गाँवों में अस्पतालों के निर्माण के लिए जिन भूखंडों को दान या जिनका अधिग्रहण किया गया था वे आज तक खाली पड़े हैं।
रवि कौशल
17 Jan 2022
Several Delhi Villages

पश्चिमी दिल्ली में अपने गाँव में यूँ ही घूमते-टहलते हुए जब कभी भी नरेंद्र सिंह की निगाह बंजर पड़े हुए भूखंड पर पड़ती है तो आँखों में रोष और संताप का भाव उमड़ने लगता है। 

बपरोला गाँव के निवासियों द्वारा अस्पताल के निर्माण हेतु 1984 में ही ग्राम सभा के सामूहिक स्वामित्व वाली भूमि के एक हिस्से को सरकार को दान कर दिया गया था। न्यूज़क्लिक से अपनी बातचीत में सिंह का कहना था कि, अड़तीस साल बाद, एक अच्छे अस्पताल-सह-प्रसूति गृह को लेकर अब उनकी सारी उम्मीदें धराशायी हो चुकी हैं।

तमाम नोटिसों और सूचना के अधिकार (आरटीआई) आवेदनों वाली एक भारी-भरकम फाइल दिखाते हुए सिंह कहते हैं कि न तो केंद्र और न ही दिल्ली सरकार अस्पताल के निर्माण में हुई देरी की व्याख्या कर  पाने में समर्थ है। बेहद गुस्से में सिंह पूछते हैं, “गर्भवती महिलाओं की पीड़ा को कोई समझना नहीं चाहता है, जिन्हें प्रसव के लिए जाफरपुर कलां स्थित, राव तुला राम मेमोरियल अस्पताल जाने के लिए कम से कम 11 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। मुझे बताइए कि ऐसा कौन सा देश है जहाँ राष्ट्रीय राजधानी के निवासियों को बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं को हासिल करने के लिए इतनी अधिक दूरी तय करनी पड़ती है? 

ग्रामीणों द्वारा भूखंड दान करने करने के तेईस वर्षों के बाद कहीं जाकर इसे औपचारिक तौर पर जुलाई 2007 में अधिग्रहित कर लिया गया था। अतिरिक्त निदेशक (योजना), स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (डीजीएचएस), अरुण बनर्जी के द्वारा एक आरटीआई आवेदन के जवाब में दिए गये एक पत्र में कहा गया है कि निदेशालय ने अधिग्रहण के बदले में भुगतान कर दिया था और भूमि सार्वजनिक लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) को हस्तांतरित की जा चुकी है। काम के बोझ का हवाला देते हुए पीडब्ल्यूडी ने इस भूखंड को दिल्ली राज्य औद्योगिक एवं बुनियादी ढांचा विकास निगम (डीएसआईआईडीसी) को स्थानांतरित कर दिया, जिसने कथित तौर पर अस्पताल के निर्माण को न कर पाने के पीछे अपनी कमजोर आर्थिक स्थिति का हवाला दिया है।

हालाँकि, सिंह इस बात का दावा करते हैं कि डीएसआईआईडीसी अधिकारियों ने उन्हें सूचित किया था कि भूमि पीडब्ल्यूडी को वापिस कर दी गई है। “इस क्षेत्र ने इस उम्मीद के साथ विभिन्न राजनीतिक दलों के तीन विधायकों को चुनकर भेजा कि अस्पताल का निर्माण कार्य पूरा हो जायेगा। उन सभी के द्वारा आधारशिला तो रखी गई लेकिन निर्माण कार्य कभी भी शुरू न हो सका।”

ग्रामीणों द्वारा दायर की गई एक अन्य आरटीआई आवेदन से पता चला है कि डीजीएचएस ने अभी भी पीडब्ल्यूडी को अस्पताल का विवरण नहीं सौंपा है। आवेदन के जवाब में, पीडब्ल्यूडी के स्वास्थ्य परियोजना विभाग (पश्चिम) के कार्यकारी अभियंता ने कहा है, “डीजीएचएस के द्वारा अस्पताल का दायरे और इसके कार्यात्मक आवश्यकताओं को प्रस्तुत किया जाना शेष है।”

पिछले वर्ष अप्रैल में कोविड-19 की सबसे भयावह लहर को याद करते हुए सिंह कहते हैं, “हमारे गाँव में कोरोना के सैकड़ों मामले थे, जिसमें कुल 50 लोग मारे गये, जिनमें से कुछ तो 30 साल की कम उम्र के थे। कोरोनावायरस की तीसरी लहर की चपेट में हम पहले से ही आ चुके हैं, लेकिन सरकार ने भयावह अनुभव से कुछ भी नहीं सीखा है।”

अन्य ग्रामीणों ने इस बात की शिकायत की कि कैसे सबसे पास वाला अस्पताल सार्वजनिक परिवहन नेटवर्क से खराब तरीके से जुड़ा हुआ है। मालती नाथ अपने अनुभव सहित उन परिवारों जिनके सदस्य अस्पताल जाते समय बीच राह में ही दिल का दौरा पड़ने से गुजर गये, को याद करते हुए कहती हैं, “आप अपने निजी वाहन से भी 30 मिनट से पहले अस्पताल नहीं पहुँच सकते हैं।”

एक अन्य निवासी, राजवीर सोलंकी जो दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ. भीम राव अंबेडकर कालेज से प्रधानाध्यापक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं, ने फोन पर न्यूज़क्लिक को बताया कि स्थानीय लोगों और प्रवासियों के बीच में झगड़े की बात सिर्फ एक मिथक है।

सोलंकी कहते हैं, “राष्ट्रीय राजधानी का विकास विभिन्न चरणों में हुआ है। सबसे पहले, पाकिस्तान से आये शरणार्थियों जिनको विभाजन की भयावहता का सामना करना पड़ा था, यहाँ आकर बसे और शहर को खूबसूरत बनाने के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की। फिर 1990 के दशक में उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल के गरीबी प्रवासियों का पलायन शुरू हुआ, जिन्होंने शहर के विकास को आगे बढ़ाने में आवश्यक कार्य बल प्रदान करने का काम किया।”

सोलंकी ने आगे कहा, बाद की सरकारों ने, “स्थानीय लोगों और प्रवासियों दोनों को विफल कर दिया है, जो बुनियादी सुविधाओं के अभाव से त्रस्त बेहद कम स्थानों पर ठूंस-ठूंस कर रहने के लिए मजबूर हैं। मेरे नाती-पोते अक्सर मुझसे पूछते हैं कि क्यों गाँवों में साफ़ सुथरी सड़कें, किताबों की दुकानें और बाग़-बगीचे नहीं हो सकते?”

विकास पुरी में, पड़ोस के बुढ़ेला गाँव के निवासियों के पास भी बताने के लिए कुछ इसी प्रकार की कहानी है। ग्रामीण पारस त्यागी ने न्यूज़क्लिक को बताया, हालाँकि इस गाँव को 1966 में ही शहरी क्षेत्र घोषित कर दिया गया था, और अधिग्रहण का काम 1972 में पूरा हो गया था। लेकिन दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने काफी अंतराल बाद जाकर 1989 में अस्पताल के लिए भूमि का एक टुकड़ा आवंटित करने के लिए एक आवासीय योजना को अंतिम रूप दिया था। हालाँकि यह जमीन पिछले 32 वर्षों से खाली पड़ी है।

बेहद हैरानगी वाले स्वर में कहते हैं, “दिल्ली सरकार सहित निर्वाचित प्रतिनिधियों ने 1993 के बाद से अस्पताल के निर्माण के लिए कभी कोई पहल नहीं की। 2021 में, जब मैंने प्रस्तावित अस्पताल पर अब तक क्या कार्यवाई की गई है के बारे में पूछताछ की तो इस पर डीडीए का कहना था कि फाइल गायब है।”

बिना किसी स्वास्थ्य सुविधाओं वाले समुदाय में पले-बढ़े होने के अपने अनुभव को याद करते हुए त्यागी कहते हैं, “अस्पताल के अभाव के चलते समुदाय को 1990 के दशक तक अपार कष्टों का सामना करना पड़ा क्योंकि तब न तो उनके पास निजी अस्पतालों का खर्च वहन कर पाने के लिए पैसे थे और न ही आपातकालीन स्थिति में वे एम्स तक की यात्रा करने की स्थिति में थे। बाद के दौर में स्थानीय किराए की अर्थव्यवस्था और व्यावसायिक गतिविधियों में उछाल के कारण यहाँ के निवासियों के लिए स्वास्थ्य संबंधी खर्चों को वहन कर पाना संभव हो गया।”

त्यागी कहते हैं, महामारी के बाद से “स्थिति में बदलाव आया है। ग्रामीण अब निजी अस्पतालों की उदासीनता, अक्षमता और बेरुखी को देखते हुए सरकारी अस्पताल की जरूरत को शिद्दत से महसूस कर रहे हैं। समुदाय को महसूस होता है सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँच के अधिकार से उसे महरूम रखा गया है। इसके अलावा, आवंटित भूमि पर अस्पताल का निर्माण करने के बजाय दिल्ली सरकार पास के हस्तसाल गाँव में एक अन्य अस्पताल का निर्माण कर रही है, हालाँकि यह काम भी पिछले एक साल से बेहद धीमी रफ्तार से चल रहा है।”

त्यागी जो कि सेंटर फॉर यूथ, कल्चर, लॉ एंड एनवायरनमेंट के सह-संस्थापक भी हैं, का कहना है कि दिल्ली के गाँवों में विकास कार्यों की इस धीमी रफ्तार के पीछे की मुख्य वजह मास्टर प्लान के कार्यान्वयन में विसंगतियों में खोजी जा सकती हैं।

त्यागी के मुताबिक, “दिल्ली-2041 के मास्टर प्लान के अनुसार, दिल्ली के गाँवों के प्रबंधन के लिए नियम एवं कानून योजना की मंजूरी मिलने के दो साल के भीतर इन्हें अधिसूचित कर दिया जायेगा- जो कि गांवों के विकास के बारे में सरकार की गंभीरता को दर्शाता है।”

त्यागी के आरटीआई आवेदन से खुलासा हुआ कि डीडीए द्वारा नियुक्त, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ अर्बन अफेयर्स ने इस काम के लिए एक तीसरे पक्ष को इस काम पर तैनात किया था, जिसने दिल्ली के गाँवों की योजना को तैयार करने के लिए कुल 360 गाँवों में से मात्र 4 गाँवों का ही सर्वेक्षण किया था। वे कहते हैं, “अधिकांश ग्रामीणों को इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। जो लोग इस बारे में जानते हैं उनके पास इन फैसला लेने वालों से लड़ने के लिए संसाधन और समर्थन नहीं है।”

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Several Delhi Villages Waiting for Hospitals for 30 Years Amid Raging Pandemic

Baprola
DDA
PWD
DGHS
DSIIDC
Delhi villages
Kejriwal
delhi government

Related Stories

मुंडका अग्निकांड: सरकारी लापरवाही का आरोप लगाते हुए ट्रेड यूनियनों ने डिप्टी सीएम सिसोदिया के इस्तीफे की मांग उठाई

आंगनवाड़ी महिलाकर्मियों ने क्यों कर रखा है आप और भाजपा की "नाक में दम”?

विश्लेषण: दिल्ली को सिंगापुर बनाने के सपने में आंकड़ों का फरेब

हर नागरिक को स्वच्छ हवा का अधिकार सुनिश्चित करे सरकार

दिल्ली के गरीब भूखे और हताश हैं, उनके पेट में भूख की 'आग' जल रही है

दिल्ली सरकार का 27 अक्टूबर से ‘पटाखे नहीं दीया जलाओ’ अभियान

दिल्ली के गांवों के किसानों को शहरीकरण की कीमत चुकानी पड़ रही है

बख्तावरपुर : शहर बसने की क़ीमत गाँव ने चुकाई !

दिल्ली: ट्रेड यूनियन के साइकिल अभियान ने कामगारों के ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा शुरू करवाई

दिल्ली सरकार के विश्वविद्यालय से निकाले गए सफ़ाईकर्मी, नई ठेका एजेंसी का लिया बहाना


बाकी खबरें

  • hisab kitab
    न्यूज़क्लिक टीम
    लोगों की बदहाली को दबाने का हथियार मंदिर-मस्जिद मुद्दा
    20 May 2022
    एक तरफ भारत की बहुसंख्यक आबादी बेरोजगारी, महंगाई , पढाई, दवाई और जीवन के बुनियादी जरूरतों से हर रोज जूझ रही है और तभी अचनाक मंदिर मस्जिद का मसला सामने आकर खड़ा हो जाता है। जैसे कि ज्ञानवापी मस्जिद से…
  • अजय सिंह
    ‘धार्मिक भावनाएं’: असहमति की आवाज़ को दबाने का औज़ार
    20 May 2022
    मौजूदा निज़ामशाही में असहमति और विरोध के लिए जगह लगातार कम, और कम, होती जा रही है। ‘धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाना’—यह ऐसा हथियार बन गया है, जिससे कभी भी किसी पर भी वार किया जा सकता है।
  • India ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    ज्ञानवापी विवाद, मोदी सरकार के 8 साल और कांग्रेस का दामन छोड़ते नेता
    20 May 2022
    India Ki Baat के दूसरे एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, भाषा सिंह और अभिसार शर्मा चर्चा कर रहे हैं ज्ञानवापी विवाद, मोदी सरकार के 8 साल और कांग्रेस का दामन छोड़ते नेताओं की। एक तरफ ज्ञानवापी के नाम…
  • gyanvapi
    न्यूज़क्लिक टीम
    पूजा स्थल कानून होने के बावजूद भी ज्ञानवापी विवाद कैसे?
    20 May 2022
    अचानक मंदिर - मस्जिद विवाद कैसे पैदा हो जाता है? ज्ञानवापी विवाद क्या है?पक्षकारों की मांग क्या है? कानून से लेकर अदालत का इस पर रुख क्या है? पूजा स्थल कानून क्या है? इस कानून के अपवाद क्या है?…
  • भाषा
    उच्चतम न्यायालय ने ज्ञानवापी दिवानी वाद वाराणसी जिला न्यायालय को स्थानांतरित किया
    20 May 2022
    सर्वोच्च न्यायालय ने जिला न्यायाधीश को सीपीसी के आदेश 7 के नियम 11 के तहत, मस्जिद समिति द्वारा दायर आवेदन पर पहले फैसला करने का निर्देश दिया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License