NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कोविड-19
नज़रिया
स्वास्थ्य
विज्ञान
भारत
राजनीति
अबाध लहर की बजाय अनियमित और अव्यवस्थित कोविड-19 की तैयारी की जानी चाहिए थी : सत्यजीत रथ
प्रतिरोधक क्षमता पर काम करने वाले एक जाने-माने विशेषज्ञ का कहना है कि भारत ने जहां-तहां से उभरते सुबूतों को गुलाबी चश्मे से देखा, और दिल को तसल्ली देने का मुग़ालता पाल लिया था कि यह वैश्विक महामारी भारत को उस तरह से पीड़ित-प्रभावित नहीं करेगी, जिस क़दर उसने पश्चिम देशों में “तबाही” बरपायी है।
संदीपन तालुकदार
19 Apr 2021
Corona
फ़ोटो साभार: बिजनेस स्टैन्डर्ड

रोज़ाना बढ़ते ताज़ा मामलों को देखते हुए भारत में कोविड-19 की स्थिति लगातार बदतर होती जा रही है। अब तो यह संख्या दो लाख रोजाना से भी ऊपर पहुंच गई है और मरने वालों की तादाद एक हजार के पार हो गयी है।  कोरोना से बुरी तरह संक्रमित-पीड़ित राज्यों में पहले से ही खस्ताहाल स्वास्थ्य सेवा प्रणाली अचानक बढ़ते बोझ से चरमराने लगी है। वहां मरीज़ों को रखने की जगह तथा ऑक्सीजन की भारी क़िल्लत हो गयी है। 

क्या भारत को कोरोना के इस तरह तेज़ी से होते मौजूदा संक्रमण का अंदाज़ा था? भारत से इस जटिल होती जा रही स्थिति से निपटने लायक तैयारी को लेकर किस तरह की भूल हुई है? इस बारे में न्यूज़क्लिक ने रोग प्रतिरोधक क्षमता विशेषज्ञ (Immunologist) सत्यजीत रथ से बातचीत की,जो देश में कोविड-19 की स्थिति से निपटने के लिए आइआइएसईआर,पुणे में संकाय सहायक हैं। 

जबकि दिसंबर 2020 में कोरोना से संक्रमित होने वालों की संख्या में जबरदस्त गिरावट आयी थी और सीरो-सर्वेक्षणों ने दिखाया था कि दिल्ली, मुंबई, पुणे आदि नगरों में 50 फ़ीसदी से ज़्यादा नागरिक संक्रमित हुए थे। क्या इन आंकड़ों से ग़लत मतलब निकाला गया कि कोरोना की दूसरी लहर नहीं आने वाली?

जिस चीज़ की हमें उम्मीद करनी चाहिए थी, वह उस 'लहर' के विचार से कहीं ज़्यादा बारीक़ थी, जो 'आती है' और 'चली जाती' है। 'लहर’ के विचार में तो समानता है, लेकिन समुदायों में महामारी का प्रसार, ख़ासकर हवा से सांस में होने वाला संक्रमण अपने स्वरूप में एक समान नहीं है। जिस चीज़ को लेकर हमें अंदाज़ा लगाना  चाहिए था और जिसके लिए हमें योजना बनानी चाहिए थी, वह संक्रमण का एक अराजक और असमान प्रसार था। जिससे अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग समय में बहुत ही ज़बरदस्त स्थानीय प्रकोप (और उसके ख़ात्मे) वाली देशव्यापी 'सिहरन’ की स्थिति पैदा हो गयी है,और कभी-कभी तो स्थिति ऐसी होती है कि एक ही साथ ‘लहर’ के ‘आने’ और ‘जाने’ की घटना होती रहती है। 

इस व्यापक भिन्नता को लेकर जो जानकारी थी, वह भी उस कथित सीरो-सर्वेंक्षणों की मनमाफिक व्याख्या में नदारद थी। वास्तव में, उनमें से किसी ने भी इसका सुबूत नहीं दिया कि ‘50 फ़ीसदी से ज़्यादा नागरिक कथित रूप से वायरस से संक्रमित हुए थे।’ दरअसल, उन्होंने वायरस से संक्रमित होने वाले बाशिंदों के अनुपात में स्थानीय समुदाय से स्थानीय समुदाय में व्यापक भिन्नता को दिखाया था।  उदाहरण के लिए पुणे में इसका प्रमाण था कि संक्रमण के शीर्ष मामलों में प्रभाग-स्तर के छोटे-छोटे क्षेत्रों में भी ये समानुपात 30 फ़ीसदी से लेकर 70 फ़ीसदी और इससे भी ज़्यादा का अंतर था। यहां तक कि प्रदत्त प्रभाग, झुग्गी बस्तियों और अपार्टमेंट्स कॉम्पलेक्स में रहने वाले समुदाय, जो महज़ एक चारदीवारी के आर-पार रहते थे, उनके संक्रमण के अनुपातों में भी भारी अंतर था। 

इन आंकड़ों को संक्रमण के प्रसार की हद में व्यापक स्थानीय भिन्नता को दर्शाने वाले एक संकेतक के रूप में देखा जाना चाहिए था। यह भी रेखांकित किया जाना चाहिए था कि सबूत-इकट्ठा करने का यह दयनीय पैमाना पूरी तरह से एक सार्थक तस्वीर प्रदान करने में असमर्थ था, इसके बजाय, हमने अपने मन से “50 फ़ीसदी में से औसत 10 फ़ीसदी और 100 फ़ीसदी औसत निकाल लिया” और स्वयं संतुष्ट हो गये। 

विज्ञान और तकनीकी विभाग (डीएसटी) भी कथित तौर पर एक ऐसे सुपर मॉडल के साथ सामने आया,जिसमें कहा गया कि भारत के कोविड-19 के मामले खत्म हो जायेंगे। क्या यह गुमराह करने वाला पूर्वानुमान नहीं है? क्या आपको लगता नहीं है कि इससे स्वास्थ्य अधिकारियों में भ्रम पैदा हुआ?

जैसा कि मैंने पहले ही कहा है कि हमारे साक्ष्य-एकत्रीकरण का पैमाना पूरी तरह से अपर्याप्त था, जिसमें शामिल विविधताओं को समझना मुश्किल था, लेकिन उसे देखने के बजाय हमने इन डेटा के आधार पर अपना मॉडल (या, ‘सुपर मॉडल्स’ भी) बनाया और उन पूर्वानुमानों के साथ हम सामने आ गये, जिसके बारे में यही कहा जा सकता है कि वह कभी साबित ही नहीं हो पाया था। 

इसी के साथ भारत ने जहां-तहां से उभरते सुबूतों को गुलाबी चश्मे से देखा है, और दिल को तसल्ली देने का मुग़ालता पाल लिया कि यह वैश्विक महामारी भारत को उस तरह से पीड़ित-प्रभावित नहीं करने वाली है,जिस क़दर उसने पश्चिम देशों में “तबाही” बरपायी है। इसने तुलनात्मक अर्थों में इस धारणा को पोषित किया कि भारत को कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से निबटने के लिए बहुत लम्बे समय तक ज़्यादा धन जैसे संसाधनों के निवेश की आवश्यकता नहीं है और यह भी कि भारत की अर्थव्यवस्था अपने आप तेज़ी से पटरी पर लौटने जा रही है,यहां तक कि ‘पश्चिम’ के मुक़ाबले तीव्र ढलुआ यानी ‘V’ होने भी जा रहा है।

यह धारणा अपनी उस सामाजिक ज़िम्मेदारियों से पीछे हटने वाले राज्य के लिए भी उपयोगी थी, जिसमें अपने लोगों को पर्याप्त स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराना, और दूसरे देशों के प्रति ईर्ष्याभाव से पैदा होने होती अतिराष्ट्रवादी विचारधाराओं और प्राचीन भारत की श्रेष्ठता की ओर बढ़ना भी शामिल है। इस धारणा में विश्वास के प्रचलित वे पूंजीवादी सामग्री भी शामिल हैं, जिसके लिए 'बाजार' जो कुछ कर सकता है, वह सब करता है, यह बाज़ार महामारी सहित सभी स्थितियों के लिए 'अनुरूप' प्रतिक्रिया देगा। 

लोग किस हद तक मॉस्क पहनने और मानक फिज़िकल डिस्टेंसिंग का निर्वाह इत्यादि जैसे कोविड-19 के सुरक्षा निर्देशों के नहीं पालन करने को लेकर जवाबदेह हैं ?

अच्छा सवाल है। चूंकि वायरस हवा के जरिए फैलता है, यह ‘एक व्यक्ति की सांस से दूसरे व्यक्ति की सांस’ को संक्रमित कर देता है। ज़ाहिर है कि ऐसे में यह कहना बिल्कुल संभव है कि अगर लोग-बाग उसके घातक परिणामों को जानते हुए भी एक दूसरे से सटे-सटे रहें, तो यह वायरस तेज़ी से एक दूसरे में फैलता है। अब सवाल है कि क्या हम व्यक्तिगत या समुदायों के तौर पर कोरोना के फैलाने के लिए ज़िम्मेदार हैं? निस्संदेह, हम ज़िम्मेदार तो हैं। 

ऐसे में यह सवाल करना अहम हो जाता है कि अगर हमारे नेतृत्व ने हमें ऊपर उल्लिखित भ्रमों का एक नियमित खुराक नहीं दिया होता,तो क्या हम इस तरह का व्यवहार कर पाते? सवाल है कि अगर शासन के सक्षम और सहयोगी ढ़ांचे फ़िज़िकल डिस्टेंसिंग को क़ायम रखने में एक मददगार के रूप में विकसित हुए होते, अगर ये ढांचे आजीविका को बेहतर तरीके से बनाये रखने में मददगार होती, अगर उस विश्वसनीय स्वास्थ्य सेवा का व्यापक विस्तार हुआ होता, जिसका द्रुत गति से यहां स्थायी रूप से विकसित किये जाने की ज़रूरत थी, तो क्या हम इसके बजाय और तरह का आचरण कर पाते?

इसका एक मिलता-जुलता उदाहरण गांव से गुज़रते हुए उस हाईवे का निर्माण करना है, और फिर जब उसे पार करते हुए होने वाली दुर्घटनाओं में बड़ी संख्या में लोग मारे जायें तो यह कहते हुए पल्ला झाड़ लिया जाए कि वे कितने बेवकूफ हैं कि उन्हें हाईवे पार करना भी नहीं आता। 

जब वायरस का बदला हुआ रूप (म्यूटन्ट वेरिएंट) समाने आया, तभी भारत को चुस्ती के साथ स्ट्रेन की मौजूदगी का पता करना चाहिए था। इसमें तब कोताही बरती गयी थी और अब भी बरती जा रही है। क्या इसे कोरोना की मौजूदा दूसरी बड़ी लहर के पैदा होने का एक प्राथमिक कारक माना जा सकता है?

जैसा कि मैंने बातचीत की शुरुआत में ही कहा है कि यह स्थिति बुरी तरह से हमारे साक्ष्य-जुटान के अपर्याप्त पैमाने को सामने लाता है। हम इस समय भी सही मायने में कोरोना वायरस के विभिन्न रूपों के बारे में विश्वसनीयता के साथ जवाब देने की हालत में नहीं हैं। अब भी विभिन्न वायरस स्ट्रेन्स की निगरानी के प्रयास का स्तर ज़रूरत के हिसाब से काफी छोटा है। हालांकि, इसका नतीजा यह हुआ है कि वायरस के ये रूप (यह बिल्कुल संभव है कि अलग-अलग जगहों पर उनके प्रकार भिन्न होंगे) आज की स्थिति में चुपचाप अपनी भूमिका निभा रहे हैं। इस बारे में यक़ीनी तौर पर ज़्यादा कुछ कह पाना मुमकिन नहीं है। 

वायरस की लगभग तीन महीने की उस अप्रकट अवधि के दौरान जिस समय मृत्यु दर में गिरावट के साथ संक्रमण के रोज़ाना उभरने के मामलों में भी कमी आयी थी, भारत को इसकी दूसरी लहर के आने का पूर्वानुमान लगाना चाहिए था और उससे जूझने के लिए अपनी तैयारी मुकम्मल करनी चाहिए थी। जैसे कि कोरोना के समुचित इलाज को लेकर अपने अस्पतालों की क्षमताओं का सभी तरह से सुसज्जित करना, अस्पतालों का निर्माण करना, अतिरिक्त ऑक्सीजन का उत्पादन करना, अतिरिक्त स्वास्थ्यकर्मियों की तैनाती करना आदि। लेकिन,ये काम अब भी वास्तविकताओं से मीलों दूर हैं। इनके न होने ने किस तरह उन भारी तबाही की स्थिति को पैदा किया है, जिसका हम आज सामना कर रहे हैं?

इस भयानक तथ्य को देखते हुए कि समुचित देखभाल के अभाव में बड़े पैमाने पर लोग मर रहे हैं, ऐसे में इस सवाल का मतलब नहीं रह जाता कि हम टर्शियरी मेडिकल रिसोर्सेज (ऐसे संसाधन से लैस होना,जहां यह विशेष परामर्श स्वास्थ्य देखभाल की जाए, जहां आला दर्जे के चिकित्साकर्मियों के साथ-साथ उन्नत मेडिकल जांच और इलाज की अत्याधुनिक सुविधाएं हों) में पिछड़े हैं, जिसकी हमें दरकार है और हमें जिनका इंतज़ाम करना चाहिए था। मौजूदा समय में उस कहावत की तरह हम पेश आ रहे हैं कि प्यास लगने पर कुंआ खोदा जा रहा है। हालांकि, इस बारे में सोचने लायक सवाल यही है कि क्या हमें इस तरह के इंतज़ाम को लेकर उस तरह सोचना चाहिए था कि बतौर समुदाय और सरकार हम सभी को  तेज़ और एक छोटी अवधि के इस संकट से निपटने को लेकर किस तरह की तैयारी करनी थी। (और जैसा कि यह सवाल ही सुझाव के साथ ख़त्म हो जाता है!)। 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

https://www.newsclick.in/should-have-planned-uneven-chaotic-spread-COVID-19-rather-smooth-wave-satyajit-rath 

 

Coronavirus
COVID-19
Covid-19 Vaccination
Second wave of coronavirus

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 84 दिन बाद 4 हज़ार से ज़्यादा नए मामले दर्ज 

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के मामलों में 35 फ़ीसदी की बढ़ोतरी, 24 घंटों में दर्ज हुए 3,712 मामले 

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में 2,745 नए मामले, 6 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में नए मामलों में करीब 16 फ़ीसदी की गिरावट

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 2,706 नए मामले, 25 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,685 नए मामले दर्ज

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 2,710 नए मामले, 14 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली में फिर से बढ़ रहा कोरोना का ख़तरा


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोदी सरकार के 8 साल: सत्ता के अच्छे दिन, लोगोें के बुरे दिन!
    29 May 2022
    देश के सत्ताधारी अपने शासन के आठ सालो को 'गौरवशाली 8 साल' बताकर उत्सव कर रहे हैं. पर आम लोग हर मोर्चे पर बेहाल हैं. हर हलके में तबाही का आलम है. #HafteKiBaat के नये एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार…
  • Kejriwal
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: MCD के बाद क्या ख़त्म हो सकती है दिल्ली विधानसभा?
    29 May 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस बार भी सप्ताह की महत्वपूर्ण ख़बरों को लेकर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन…
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
    29 May 2022
    गोडसे जी के साथ न्याय नहीं हुआ। हम पूछते हैं, अब भी नहीं तो कब। गोडसे जी के अच्छे दिन कब आएंगे! गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
  • Raja Ram Mohan Roy
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या राजा राममोहन राय की सीख आज के ध्रुवीकरण की काट है ?
    29 May 2022
    इस साल राजा राममोहन रॉय की 250वी वर्षगांठ है। राजा राम मोहन राय ने ही देश में अंतर धर्म सौहार्द और शान्ति की नींव रखी थी जिसे आज बर्बाद किया जा रहा है। क्या अब वक्त आ गया है उनकी दी हुई सीख को अमल…
  • अरविंद दास
    ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली
    29 May 2022
    प्रख्यात निर्देशक का कहना है कि फिल्मी अवसंरचना, जिसमें प्राथमिक तौर पर थिएटर और वितरण तंत्र शामिल है, वह मुख्यधारा से हटकर बनने वाली समानांतर फिल्मों या गैर फिल्मों की जरूरतों के लिए मुफ़ीद नहीं है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License