NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
साहित्य-संस्कृति
भारत
राजनीति
तीन लेखक संगठनों का साझा कार्यक्रम : “सर जोड़ के बैठो कोई तदबीर निकालो”
तीन लेखक संगठनों जलेस, दलेस और जसम ने एक बार फिर साथ बैठकर प्रगतिशीलता की विरासत पर विचार किया और अपनी ख़ूबियों-ख़ामियों और चिंताओं को रेखांकित करते हुए एकजुटता के साथ आगे बढ़ने की ज़रूरत पर बल दिया।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
01 Sep 2019
विचार गोष्ठी

सर जोड़ के बैठो कोई तदबीर निकालो

हर बात पे ये मत कहो शमशीर निकालो

हालात पे रोने से फ़क़त कुछ नहीं होगा

हालात बदल जाएँ वो तदबीर निकालो

                              -ओमप्रकाश नदीम

बिल्कुल इसी वास्ते, इसी मकसद से तीन लेखक संगठन जलेस (जनवादी लेखक संघ), दलेस (दलित लेखक संघ) तथा जसम (जन संस्कृति मंच) एक बार फिर साथ बैठे। तीनों ने अपने संयुक्त कार्यक्रमों के सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए शुक्रवार, 30 अगस्त को दिल्ली के कनॉट प्लेस स्थित संत रविदास सभागार में ‘प्रगतिशील आंदोलन की विरासत और हमारा समय’ विचार गोष्ठी का आयोजन किया।

इस गोष्ठी में अध्यक्ष मंडल के सदस्य मुरली मनोहर प्रसाद सिंह ने कहा कि अब यह बात स्वीकार कर लेनी चाहिए कि वाम आंदोलन के आरंभिक दौर में दलित और स्त्रियों के सवाल पीछे धकेल दिए गए थे| उन्होंने कहा कि इस आंदोलन को केवल लेखकों तक सीमित न करके फिल्मकारों, चित्रकारों और रंगकर्मियों के आंदोलन के रूप में देखा-समझा जाना चाहिए।

अध्यक्ष मंडल के दूसरे सदस्य अशोक भौमिक  ने कहा कि हम वामपंथियों का पिछला इतिहास समझौतों का इतिहास है। हमने विभाजन के वक़्त अपनी भूमिका न ठीक से पहचानी न अपने दायित्व का निर्वाह किया। नास्तिकता हमारी ज़मीन हो सकती थी लेकिन हम ऐसा करने से बचते रहे।

अध्यक्ष मंडल के तीसरे सदस्य रवि सिन्हा ने ‘कॉमनसेंस’ को प्रश्नांकित करने की जरूरत बताई। उन्होंने कहा कि समाज पूँजीवादी नहीं है बल्कि पूँजीवाद एक व्यवस्था है जो किसी भी समाज के साथ अपना तालमेल बैठा लेती है। यह कहना कि केवल पूँजीवादी आधुनिकता ही संभव है, सही नहीं है।

अध्यक्ष मंडल के सदस्य हीरालाल राजस्थानी ने कहा कि प्रगतिशीलों ने डॉ. आंबेडकर को नहीं समझा। उन्होंने कहा कि दलित आंदोलन में संगठन तो खूब बने हैं लेकिन लोग संगठित नहीं हुए हैं| उनका कहना था कि समान सोच वाले संगठनों में एकता होनी ही चाहिए।

jsm3_7.jpg

इस विचार गोष्ठी की प्रस्तावना करते हुए प्रेम तिवारी ने विरासत के प्रश्न को बड़े दायरे में देखने की जरूरत बताई। प्रमुख वक्ताओं में आशुतोष कुमार ने कहा कि लेकिन अब हमारे लेखकों की पहचान बदली जा रही है। चाहे सूरदास हों , निराला हों, उनसब को ‘हिन्दू राष्ट्रवादी’ सिद्ध किया जा रहा है। उन्होंने आंदोलन को आंबेडकरी बनाने और आंबेडकर (विचार) को रेडिकल बनाने की आवश्यकता बताई।

इसी कड़ी में धीरेन्द्र नाथ के पर्चे का वाचन संजीव कुमार ने किया। धीरेन्द्र ने उन स्रोतों की तरफ फिर से जाने की बात की जिन्हें हम अति प्रगतिशीलता के दबाव में अनदेखा करते आए हैं| जैसे गांधी का संदर्भ लिया जा सकता है। मुक्तिबोध की वैचारिकी को दर्शनशास्त्र से जोड़ते हुए उन्होंने कांट के असर को रेखांकित किया|  प्रमुख नवगीतकार जगदीश पंकज ने कहा कि प्रगतिशीलता को मार्क्सवादी विचारों तक सीमित नहीं किया जा सकता है। बुद्ध, फुले, अछूतानन्द, नरेन्द्रदेव, लोहिया आदि के विचारों को मानने वाले भी इस प्रक्रिया में शामिल हैं। उनका कहना था कि दलित साहित्य को धराशायी करने की कोशिश के बाद उसे मरे मन से स्वीकार गया है।

रंगकर्मी नूर ज़हीर ने इप्टा के इतिहास पर रोशनी डालते हुए कहा कि इसकी शुरुआत महिला आत्मरक्षा समिति (मार्स) से हुई है| उन्होंने प्रगतिशील आंदोलन को महिलाओं और दलितों से जोड़ने की जरूरत बताई|

सुभाष गाताडे ने साम्प्रदायिक फासीवाद को नए ढंग से देखने का प्रस्ताव किया| उनका कहना था कि हम मानवद्रोही ताकतों से भी सीख सकते हैं। क्रांति की यांत्रिक समझ नुकसानदायक साबित हुई है|

रेखा अवस्थी का मानना था कि आज रामराज्य के विरुद्ध जोर से बोलना चाहिए| भूस्वामित्व का सवाल नेपथ्य में ठेल दिया गया था| उसे सामने लाने की कोशिश होनी चाहिए|

कवि-आलोचक चंचल चौहान ने  कहा कि कोई आंदोलन, संगठन व्यक्ति से नहीं बनता। वह समय की हलचलों से पैदा होता है। आज तार्किक प्रक्रिया को ख़त्म किया जा रहा है|  हमें इसी समय के विरुद्ध लड़ना है|

कार्यक्रम में स्वागत वक्तव्य के. पी. चौधरी ने दिया| उन्होंने कहा कि लेखकों, कलाकारों को निर्भय होकर जनजागरण करना चाहिए| धन्यवाद ज्ञापन करते हुए दलेस के महासचिव कर्मशील भारती ने कहा कि संगठनों के संयुक्त कार्यक्रम नियमित रूप से होने चाहिए| विचारगोष्ठी का संचालन बजरंग बिहारी ने किया। इस मौके पर जलेस, दलेस और जसम से जुड़े कवि, लेखक, बुद्धिजीवी बड़ी संख्या में मौजूद रहे।  

 

writer
writer's role
writers and society
progressive hindi writer
जनवादी लेखक संघ
दलित लेखक संघ
जन संस्कृति मंच
Save Democracy

Related Stories

मन्नू भंडारी; सादगी का गहरा आकर्षण: वो जो खो गया

नहीं रहे अली जावेद: तरक़्क़ीपसंद-जम्हूरियतपसंद तहरीक के लिए बड़ा सदमा

जन्मशतवार्षिकी: हिंदी के विलक्षण और विरल रचनाकार थे फणीश्वरनाथ रेणु 

बोलने में हिचकाए लेकिन कविता में कभी नहीं सकुचाए मंगलेश डबराल

स्मृति शेष: वह हारनेवाले कवि नहीं थे

मंगलेश डबराल नहीं रहे

लेखक-कलाकारों की फ़ासीवाद-विरोधी सक्रियता के लिए भी याद रखा जाएगा ये चुनाव

मंगलेश डबराल: हत्यारों का घोषणा पत्र और अन्य कविताएँ

“लिखो, कि अभी सपने देखने की मनाही नहीं हुई है”

स्मृति शेष : कलम और कूँची के ‘श्रमिक’ हरिपाल त्यागी


बाकी खबरें

  • भाषा
    कांग्रेस की ‘‘महंगाई मैराथन’’ : विजेताओं को पेट्रोल, सोयाबीन तेल और नींबू दिए गए
    30 Apr 2022
    “दौड़ के विजेताओं को ये अनूठे पुरस्कार इसलिए दिए गए ताकि कमरतोड़ महंगाई को लेकर जनता की पीड़ा सत्तारूढ़ भाजपा के नेताओं तक पहुंच सके”।
  • भाषा
    मप्र : बोर्ड परीक्षा में असफल होने के बाद दो छात्राओं ने ख़ुदकुशी की
    30 Apr 2022
    मध्य प्रदेश माध्यमिक शिक्षा मंडल की कक्षा 12वीं की बोर्ड परीक्षा का परिणाम शुक्रवार को घोषित किया गया था।
  • भाषा
    पटियाला में मोबाइल और इंटरनेट सेवाएं निलंबित रहीं, तीन वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का तबादला
    30 Apr 2022
    पटियाला में काली माता मंदिर के बाहर शुक्रवार को दो समूहों के बीच झड़प के दौरान एक-दूसरे पर पथराव किया गया और स्थिति को नियंत्रण में करने के लिए पुलिस को हवा में गोलियां चलानी पड़ी।
  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    बर्बादी बेहाली मे भी दंगा दमन का हथकंडा!
    30 Apr 2022
    महंगाई, बेरोजगारी और सामाजिक विभाजन जैसे मसले अपने मुल्क की स्थायी समस्या हो गये हैं. ऐसे गहन संकट में अयोध्या जैसी नगरी को दंगा-फसाद में झोकने की साजिश खतरे का बड़ा संकेत है. बहुसंख्यक समुदाय के ऐसे…
  • राजा मुज़फ़्फ़र भट
    जम्मू-कश्मीर: बढ़ रहे हैं जबरन भूमि अधिग्रहण के मामले, नहीं मिल रहा उचित मुआवज़ा
    30 Apr 2022
    जम्मू कश्मीर में आम लोग नौकरशाहों के रहमोकरम पर जी रहे हैं। ग्राम स्तर तक के पंचायत प्रतिनिधियों से लेकर जिला विकास परिषद सदस्य अपने अधिकारों का निर्वहन कर पाने में असमर्थ हैं क्योंकि उन्हें…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License