NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
नज़रिया
भारत
राजनीति
तिरछी नज़र : ज़रूरत है एक नई राजभाषा की!
राज करने की भाषा कम से कम लोगों को आती हो तो उसके अनेकों लाभ हैं। पहला लाभ तो यही है कि अगर राजभाषा कम लोगों को आती है तो सरकारी गोपनीयता बनी रहती है। शुरू में अंग्रेजी ऐसी ही भाषा थी। सब कुछ गोपनीय रहता था। पर अब अंंग्रेजी सब को आ गई है अतः कुछ भी गोपनीय नहीं रहता है। न राजनेताओं के कारनामे और न अफसरों की करतूतें। इसलिए अब अंग्रेजी को राज करने की भाषा के पद से हटाना ही पड़ेगा।
डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
15 Sep 2019
Hindi
साभार : इंडियन एक्सप्रेस

14 सितंबर को राजभाषा हिन्दी दिवस था। पर मुझे लगता है कि हमें एक नई राजभाषा की जरूरत है। आपको लगेगा कि मैं सनकी हूँ। राजभाषा तो हमारे पास है ही। आज से नहीं पिछले सत्तर साल से है और एक नहीं, दो-दो हैं। एक नाम की राजभाषा और एक काम की राजभाषा। अब फिर कहाँ से एक और नई राजभाषा की जरूरत आन पड़ी। मैं आपको समझाता हूँ।

जब हमारा देश स्वतंत्र हुआ तब भी जरूरत पड़ी थी एक राजभाषा की। पर तब के सनकी और अदूरदर्शी बुजुर्गों के चलते संविधान में हिन्दी को राजभाषा बना दिया गया। पर हिन्दी तो आम जनता की भाषा थी, वह राज करने की भाषा तो थी ही नहीं। यह बात हमारे संविधान लागू करने वाले नेता भी समझते थे, अतः उन्होंने संवैधानिक राजभाषा हिन्दी को बनाने के साथ साथ राज करने की भाषा अंग्रेजी ही बनी रहने दी।

tirchi najar after change new_35.png

राज करने की भाषा कम से कम लोगों को आती हो तो उसके अनेकों लाभ हैं। पहला लाभ तो यही है कि अगर राजभाषा कम लोगों को आती है तो सरकारी गोपनीयता बनी रहती है। शुरू में अंग्रेजी ऐसी ही भाषा थी। सब कुछ गोपनीय रहता था। पर अब अंंग्रेजी सब को आ गई है अतः कुछ भी गोपनीय नहीं रहता है। न राजनेताओं के कारनामे और न अफसरों की करतूतें। इसलिए अब अंग्रेजी को राज करने की भाषा के पद से हटाना ही पड़ेगा।

यदि जनता की भाषा में ही राज-काज चलने लगे तो हानि यह होती है कि उच्च सरकारी नौकरियों में शुचिता कायम नहीं रह पाती है। हर ऐरा-गैरा नत्थू खैरा ऊंचे से ऊंचा पद प्राप्त कर सकता है। अंग्रेजी को राज करने की भाषा इसीलिए बनाया गया था कि केवल खानदानी और अमीर ही आई.ए.एस., आई.एफ.एस. व आई.पी. एस. जैसे उच्च पदों को सुशोभित कर पाएं।

शुरू में ऐसा हुआ भी, पर अब ऐसा नहीं होता है। अब गरीब भी मतलबी हो गए हैं। देशप्रेम छोड़, अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ाने लगे हैं। अंग्रेजी अब वह शुचिता कायम नहीं रख पा रही है कि सिर्फ अमीर और खानदानी लोग ही अंंग्रेजी पढ़ सकें। इसलिए अब राज करने की नई भाषा ढूंढनी ही पड़ेगी। हिन्दी या अंंग्रेजी नहीं, ऐसी भाषा जो सबको न आती हो।

राजभाषा आम लोगों को न आती हो तो कुछ छोटे छोटे लाभ और भी हैं। मसलन बहुत सारे लोग सरकारी फॉर्म आदि जो जनता की समझ में न आते हों, उनको भरने का काम धंधा संभाल लेते हैं। कुछ लोग राजभाषा में अर्जी आदि लिखने का काम भी करने लगते हैं। इससे बेरोजगारी भी कम हो जाती है और आजकल बेरोजगारी फैल भी बहुत ही रही है।

पर यह देश का दुर्भाग्य है कि अब धीरे-धीरे सभी लोग अंग्रेजी भी समझने लगे हैं। इसलिए अब जरूरत है ऐसी राज करने की भाषा की जिसे सब न समझ सकें। संवैधानिक राजभाषा भले ही हिंदी रहे पर असली राजभाषा के पद से अब अंग्रेजी को हटाना ही पड़ेगा।

अब अंंग्रेजी को राज करने की भाषा से हटाने पर सबसे बडा़ दावा बनता है संस्कृत का। देश में सरकार भी है और माहौल भी। और संस्कृत सबको आती भी नहीं है। संस्कृत के साथ यह भी विशेषता है कि, शास्त्रों के अनुसार, सभी लोग संस्कृत नहीं सीख सकते हैं।  संस्कृत अगर एक बार राजभाषा बन गई तो वह दोनों काम कर सकती है। हिन्दी को भी उसके स्थान से हटा सकती है और अंंग्रेजी को भी। सारे देशभक्त भी खुश हो जायेंगे।

मोदी सरकार भी अपने दूसरे कार्यकाल के दूसरे सौ दिन की पहली उपलब्धि हासिल कर लेगी। पर संस्कृत के साथ एक दिक्कत है। यदि किसी को गाली भी दी जाए तो लगेगा कि उसकी स्तुति की जा रही है। किसी की ट्रोलिंग की जायेगी तो लगेगा कि उसका गुणगान किया जा रहा है। ट्रोलर्स की सारी मेहनत बेकार जायेगी। इसी एक दिक्कत के कारण संस्कृत राजभाषा बनने के काबिल नहीं है। न संवैधानिक राजभाषा बनने के और न राज करने की असली राजभाषा बनने के।

आजकल का जमाना बहुर्राष्ट्रीय कंपनियों का जमाना है। सब कुछ आयात किया जा सकता है, यहाँ तक कि घी, दालें और तेल भी। इसीलिए मेरा सुझाव है कि हम अपनी काम करने की (कार्यकारी) राजभाषा को भी आयात कर लें। 

यदि सरकार तमिल और बांग्ला भाषा के क्लेम से निबट ले, तो मेरा सुझाव है कि फ्रेंच को काम करने की (कार्यकारी) राजभाषा घोषित कर किया जाए। मोदी जी फ्रांस के राष्ट्रपति जी के मित्र भी हैं और फ्रांस हमें राफाल विमान भी दे रहा है। तो फिलहाल फ्रेंच का क्लेम रूसी, चीनी और स्पैनिश भाषा से अधिक बनता है।फ्रेंच के राजभाषा बनने से केवल अमीर और खानदानी बच्चे ही पेरिस जा कर असली फ्रेंच पढ़ सकेंगे।

ठीक उसी तरह जिस तरह से उन्नीसवीं सदी के अंत और बीसवीं सदी की शुरुआत में अंग्रेजी पढने अमीर और खानदानी बच्चे कैम्ब्रिज व ऑक्सफ़ोर्ड जाया करते थे। यदि यहाँ भी गिने चुने स्कूल सारी पढाई फ्रेंच भाषा के माध्यम से शुरू कर भी देंगें तो उनमें इतनी डोनेशन या सोर्स चलेगी कि हर ऐरा-गैरा तो उनमें पढने से रहा। सरकारी नौकरियों में शुचिता तो कायम हो ही जाएगी, सरकारी गोपनीयता भी बनी रहेगी। और फिर अगर चालीस-पचास साल में सब फ्रेंच सीख भी गए तो हमारा क्या, हम रूसी, चीनी या स्पेनिश भाषा को अपनी कार्यकारी राजभाषा घोषित कर देंगे। पर निश्चिन्त रहें, संवैधानिक राजभाषा हमेशा ‘हिन्दी’ ही रहेगी।

(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

tirchi nazar
Official language
hindi
Indian government
modi sarkar
English Language
Importance of official language
languages in Indian constitution

Related Stories

तिरछी नज़र: ओमीक्रॉन आला रे...

विचार-विश्लेषण: विपक्ष शासित राज्यों में समानांतर सरकार चला रहे हैं राज्यपाल

तिरछी नज़र: प्रश्न पूछो, पर ज़रा ढंग से तो पूछो

अबकी बार, मोदी जी के लिए ताली-थाली बजा मेरे यार!

तिरछी नज़र: सरकार जी का बर्थ-डे और एक और नया ‘वर्ल्ड रिकॉर्ड’

बात बोलेगी : सहकारिता मंत्रालय के पीछे RSS के विस्तार की रणनीति !

मोदी मंत्रिमंडल फेरबदलः चुनावी तीर के साथ नाकामी छुपाने के लिए मेकअप

इंदिरा निरंकुशता से मोदी निरंकुशता तक

तुम कौन सी इमरजेंसी के बारे में पूछ रहे थे?

खोज़ ख़बर: गंगा मइया भी पटी लाशों से, अब तो मुंह खोलो PM


बाकी खबरें

  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?
    22 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने पत्रकार और मेरठ दंगो को करीब से देख चुके कुर्बान अली से बात की | 35 साल पहले उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हुए बर्बर मलियाना-…
  • Modi
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक
    22 May 2022
    हर बार की तरह इस हफ़्ते भी, इस सप्ताह की ज़रूरी ख़बरों को लेकर आए हैं लेखक अनिल जैन..
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'
    22 May 2022
    बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।
  • diwakar
    अनिल अंशुमन
    बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका
    22 May 2022
    बिहार के चर्चित क्रन्तिकारी किसान आन्दोलन की धरती कही जानेवाली भोजपुर की धरती से जुड़े आरा के युवा जन संस्कृतिकर्मी व आला दर्जे के प्रयोगधर्मी चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर को एक जीवंत मिसाल माना जा…
  • उपेंद्र स्वामी
    ऑस्ट्रेलिया: नौ साल बाद लिबरल पार्टी सत्ता से बेदख़ल, लेबर नेता अल्बानीज होंगे नए प्रधानमंत्री
    22 May 2022
    ऑस्ट्रेलिया में नतीजों के गहरे निहितार्थ हैं। यह भी कि क्या अब पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन बन गए हैं चुनावी मुद्दे!
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License