NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
टीवी न्यूज़ की राम लीलाएं किस तरह सच्चाई से छेड़छाड़ कर रही हैं
हाल में हुए कुछ न्यूज़ डिबेट इस भ्रम को तोड़ते हैं कि न्यूज़ चैनलों का विश्लेषण निष्पक्ष और लोकतान्त्रिक होता है I
टिकेंदर सिंह पंवार
15 Jan 2018
Translated by ऋतांश आज़ाद
supreme court

चालीस साल या उससे अधिक आयु वाले उत्तर भारतीयों को मोहल्लों में होने वाली राम-लीला याद होंगी I बड़े शहरों की मोहल्ला सभाएँ और सामुदायिक समूह इन रामलीलाओं के लिए बड़े स्टेज और शानदार बंदोबस्त किया करते थे I इनके दर्शक खासकर बच्चे अपने प्रिय पात्रों के लिए जयकार लगाया करते थे I माता-पिता नाटकों के अंत में लोकप्रिय पात्रों को टिप दिया करते थे I

जिन अभिनताओं को राम, रावण, सीता और हनुमान के किरदार निभाने होते थे उन्हें बड़े-बड़े वाक्य याद करने पड़ते थे और इसी वजह से उन्हें स्टेज के पीछे से सकेतों के ज़रिये मदद मिलती रहती थीI लेकिन जबसे टेलीविज़न का उभार हुआ है ऐसा लगता है कि राम लीला की चमक कुछ फ़ीकी पड़ गयी है I टेलीविज़न ने एक नए सांस्कृतिक पटल (कलचरल स्पेस) को पैदा किया है I इसी वजह से मोहल्लों में बसने वाली त्यौहारों की संस्कृति को काफी धक्का लगा है I

आज की नयी राम-लीला वो महाकाव्यात्मक मंचन नहीं रहा जिसके खेले जाने के दौरान जब अभिनेता अपना संवाद भूल जाते थे तो परदे के पीछे मदद के लिए देखते थे I आज की नयी राम-लीला न्यूज़ स्टूडियोज़ में खेली जाती है, जहाँ एंकर सूट पहनकर और मेकअप लगाकर इयरफ़ोनों में आदेश लिया करते हैं I इनमें से कुछ एंकर लोगों की चेतना पर काफी गहरा प्रभाव डालते हैं I पर वो जितना भी स्वाभाविक लगें लाखों लोगों तक पहुँचने वाले उनके संवाद कहीं और से तैयार होकर आते हैं I जो बहसें और चर्चाएँ दिखने में लोकतान्त्रिक लगतीं हैं वो इनके मालिकों द्वारा इसने करवायी जाती हैं I विभिन्न घटनाओं, विचारों और आन्दोलनों को तोड़-मरोड़कर इस तरह पेश किया जाता है जिससे जो कहानी चैनल दर्शाना चाहे, वही दिखे I इस पूरी प्रक्रिया में वो लोगों की चेतना को अपनी तरफ मोड़ने में कामयाब हो जाते हैं I

बड़े मीडिया घरानों ने बहसों को इस तरह का कर दिया है कि वो एक ही तरह के विचारों एक पक्ष में खड़े हुए दिखती हैं I इतिहासकार जिल लेओपोर के हिसाब से “ब्रॉडकास्टर मुनाफा कमाने वाली कंपनियाँ हैं जो कि एक अति प्रतिस्पर्धात्मक माहौल में काम करती हैं, जहाँ रेटिंग्स सबसे ज़रूरी होती हैं I अपने कैंपेन के लिए वे बहस का मखौल बनाने से भी नहीं चूकते I हमें ये लगता है कि जो खबरें बयान करते हैं उन्हें समाचार बनाना नहीं चाहिएI”

हाल में हुए कुछ न्यूज़ डिबेट इस भ्रम को तोड़ते हैं कि न्यूज़ चैनलों का विश्लेषण निष्पक्ष और लोकतान्त्रिक होता है I सुप्रीम कोर्ट के जजों द्वारा चीफ जस्टिस को लिखे गए ख़त को इस तरह दर्शाया गया जैसे ये एक देश विरोधी कार्य हो और जैसे ये एक तख्तापलट की कोशिश होI इस बात पर बहस की जा सकती है कि जजों को अपने गुस्से को किसी और तरीके से ज़ाहिर करना चाहिए था या नहीं, पर इस घटना को तख्तापलट की कोशिश कहना तर्क की सीमाओं के परे लगता है I जब पैनल में किसी ने दूसरा पक्ष रखने का प्रयास किया तो उनकी बात को बहुत जल्दी और चालाकी से दबा दिया गया I

इस नयी राम लीला में आप का स्वागत है I पुराने समय में जहाँ लोग सीटियाँ बजा सकते थे, जयकारे लगा सकते थे और किसी के ख़राब अभिनय की निंदा भी कर सकते थे, यहाँ न्यूज़रूमों में लोगों को एक ही तरह के मत को मानना पड़ता है, जिसे बहस होने से पहले ही तय कर लिया जाता है I पूर्वाग्रहों से ग्रसित एंकर लोगों के अनुभव को प्रभावित करते हैं जो फिर सच्चाई को इसी नज़रिए से देखते हैं I हालांकि उनकी सच्चाई अपने आप में एक मिथ्या हो सकती I

Supreme Court
supreme court judges
Chief justice of India
ram leela
News Anchors
Mainstream Media

Related Stories

ज्ञानवापी मस्जिद के ख़िलाफ़ दाख़िल सभी याचिकाएं एक दूसरे की कॉपी-पेस्ट!

आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल

राज्यसभा सांसद बनने के लिए मीडिया टाइकून बन रहे हैं मोहरा!

मायके और ससुराल दोनों घरों में महिलाओं को रहने का पूरा अधिकार

जब "आतंक" पर क्लीनचिट, तो उमर खालिद जेल में क्यों ?

विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश : सेक्स वर्कर्स भी सम्मान की हकदार, सेक्स वर्क भी एक पेशा

तेलंगाना एनकाउंटर की गुत्थी तो सुलझ गई लेकिन अब दोषियों पर कार्रवाई कब होगी?

मलियाना कांडः 72 मौतें, क्रूर व्यवस्था से न्याय की आस हारते 35 साल


बाकी खबरें

  • अजय कुमार
    महामारी में लोग झेल रहे थे दर्द, बंपर कमाई करती रहीं- फार्मा, ऑयल और टेक्नोलोजी की कंपनियां
    26 May 2022
    विश्व आर्थिक मंच पर पेश की गई ऑक्सफोर्ड इंटरनेशनल रिपोर्ट के मुताबिक महामारी के दौर में फूड फ़ार्मा ऑयल और टेक्नोलॉजी कंपनियों ने जमकर कमाई की।
  • परमजीत सिंह जज
    ‘आप’ के मंत्री को बर्ख़ास्त करने से पंजाब में मचा हड़कंप
    26 May 2022
    पंजाब सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती पंजाब की गिरती अर्थव्यवस्था को फिर से खड़ा करना है, और भ्रष्टाचार की बड़ी मछलियों को पकड़ना अभी बाक़ी है, लेकिन पार्टी के ताज़ा क़दम ने सनसनी मचा दी है।
  • virus
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या मंकी पॉक्स का इलाज संभव है?
    25 May 2022
    अफ्रीका के बाद यूरोपीय देशों में इन दिनों मंकी पॉक्स का फैलना जारी है, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में मामले मिलने के बाद कई देशों की सरकार अलर्ट हो गई है। वहीं भारत की सरकार ने भी सख्ती बरतनी शुरु कर दी है…
  • भाषा
    आतंकवाद के वित्तपोषण मामले में कश्मीर के अलगाववादी नेता यासीन मलिक को उम्रक़ैद
    25 May 2022
    विशेष न्यायाधीश प्रवीण सिंह ने गैर-कानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत विभिन्न अपराधों के लिए अलग-अलग अवधि की सजा सुनाईं। सभी सजाएं साथ-साथ चलेंगी।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    "हसदेव अरण्य स्थानीय मुद्दा नहीं, बल्कि आदिवासियों के अस्तित्व का सवाल"
    25 May 2022
    हसदेव अरण्य के आदिवासी अपने जंगल, जीवन, आजीविका और पहचान को बचाने के लिए एक दशक से कर रहे हैं सघंर्ष, दिल्ली में हुई प्रेस वार्ता।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License