NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
लॉकडाउन में न्यायापालिका
सुप्रीम कोर्ट ने हाल में स्वत: संज्ञान लेते हुए वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण पर उनके ट्वीट को लेकर अवमानना की कार्रवाई शुरू की है।
प्रणव सचदेवा
08 Aug 2020
न्यायापालिका
Image Courtesy: Reuters

सुप्रीम कोर्ट ने हाल में स्वत: संज्ञान लेते हुए वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण के ट्वीट्स पर ‘कोर्ट की अवमानना’ की प्रक्रिया शुरू कर दी। कहा जा रहा है कि उनके एक ट्वीट में भारत के मुख्य न्यायधीश पर महामारी के दौर में न्याय व्यवस्था को लॉकडाउन में रखने से संबंधित टिप्पणी की गई थी। यहां लेखक महामारी में बतौर जरूरी सेवा, न्यायिक प्रक्रियाओं को जारी रखने में सुप्रीम कोर्ट के प्रयासों का परीक्षण कर रहा है। लेख में इन न्यायिक सेवाओं का संवैधानिक लोकतंत्र पर पड़ने वाले प्रभाव का भी परीक्षण किया जा रहा है। लेख में लेखक वह रास्ते भी बताता है, जिनसे थमी हुई न्यायिक प्रक्रियाओं को दोबारा चालू किया जा सके।

————-

विख्यात वकील प्रशांत भूषण के ट्वीट्स ने सुप्रीम कोर्ट को इतना नाराज़ कर दिया है कि कोर्ट ने उन्हें अवमानना का नोटिस थमा दिया है। ट्वीट में भूषण ने शिकायत करते हुए कहा था कि एक तरफ तो मुख्य न्यायाधीश महंगी मोटरसाइकिल पर बिना मास्क और हेलमेट के पोज दे रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ उन्होंने कोर्ट को लॉकडाउन में रखा है।

भले ही कोर्ट अपनी क्षमता के काफ़ी कम हिस्से का इस्तेमाल कर रहे हों, लेकिन उन्होंने यह तय किया है कि न्याय देने वाली व्यवस्था महामारी के दौरान पूरी तरह से ठप न हो पाए। अगर कोर्ट ने मार्च से ही अपनी रोजोना चलने वाली प्रक्रियाओं को लंबित ना किया होता, तो इसमें कोई शक की बात नहीं है कि वकीलों, बाबुओं, कोर्ट के कर्मचारियों और जजों में यह वायरस जंगल की आग की तरह फैला होता।

राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन में कुछ जरूरी सेवाओं की ही छूट दी गई थी। इनमें जल आपूर्ति, हॉस्पिटल, ऊर्जा, टेलीकम्यूनिकेशन, मीडिया और पुलिस शामिल थे। इस सूची में न्याय व्यवस्था शामिल नहीं थी। लॉकडाउन में सुप्रीम कोर्ट ने 26 मार्च को अपनी कार्रवाई जारी रखने का फैसला लिया, लेकिन इस दौरान सिर्फ जरूरी मामलों को ही लिए जाने की व्यवस्था की गई।

यह संदेश स्पष्टता से दिया गया कि न्याय व्यवस्था लॉकडाउन में नहीं है और अपनी संवैधानिक कर्तव्यों का पालन जारी रखेगी।

ई-सिस्टम में परिवर्तन

कई वकीलों ने नई व्यवस्था को बहुत अच्छे ढंग से लिया और कागज़रहित व्यवस्था बनाने में बहुत तेजी दिखाई। कागजी खानापूर्ति को ई-फिलिंग से बदल दिया गया। पुरानी धूल खा रही फाइलों की जगह डिजिटल टेबलेट आ गए। वहीं समन और नोटिस, ईमेल और वॉट्सऐप के ज़रिए भेजे जाने लगे।

इससे न केवल एक बहुत बड़ी मात्रा में कागज की बचत हुई, बल्कि बहुत कीमती वक़्त भी बचा, जो यात्राएं करने में खर्च होता था। पहले वकील कोर्ट में भौतिक फाइल से याचिका लगाते थे, इसके बाद उन्हें सूचीबद्ध कराने के लिए कोर्ट रजिस्ट्री में लगातार जाते थे। दिल्ली से बाहर के वकीलों के लिए राजधानी की लंबी यात्राएं करनी पड़ती थीं और उन्हें शहर के होटलों में कई दिनों तक रुकना पड़ता था, ताकि वरिष्ठ वकीलों से मशविरा किया जा सके और उनकी कोर्ट में दलीलों को पेश करते वक़्त मदद की जा सके।

सबसे विवादास्पद तौर पर, सशरीर कोर्ट में होने वाली सुनवाई को अब वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से बदल दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट अब छोटे और जटिल, दोनों तरह के मामले, जिनमें संवैधानिक महत्ता वाले अहम केस भी शामिल हैं, उन्हें आभासी सुनवाईयों के ज़रिए निपटा रहा है। वकीलों पर अपनी मौखिक सुनवाईयों को छोटा करने का दबाव बढ़ा, क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक मीडियम में लंबे तर्कों के लिए बेहतर जगह नहीं है। याचिकाकर्ता अपने घर से बैठे-बैठे कोर्ट की कार्रवाई में हिस्सा ले रहे हैं। देश के कई उच्च न्यायालयों और खंडपीठों ने सुप्रीम कोर्ट के रास्ते का पालन किया है।

इसमें कोई शक की बात नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट और मुख्य न्यायाधीश को रातोंरात ऑनलाइन सिस्टम वाली आभासी प्रक्रिया पर स्थानांतरित होने के लिए बधाई देनी चाहिए।

लेकिन अब कुछ महीने निकल चुके हैं और सबकुछ ठीक नहीं है।

व्यवस्था के साथ दिक्कतें

इस बात को लगभग सभी मानते हैं कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से होने वाली सुनवाईयां संतोषजनक नहीं होतीं। कनेक्शन हमेशा दिक्कत पैदा करते रहते हैं, फिर कई बार ऑडियो-वीडियो में गिरावट दर्ज की जाती है। इस बात की ज़्यादा गुंजाइश बनी होती है कि सशरीर होने वाली सुनवाईयों की तुलना में आभासी सुनवाईयों में कई बार न्याय न मिल पाए।

जैसे-जैसे वकीलों की आय खत्म होती जा रही है, एक बड़ी संख्या पुरानी व्यवस्था को दोबारा लागू करवाना चाहती है। उच्च न्यायालय और पीठों में एक स्तर तक काम हो रहा है, लेकिन जिला न्यायालयों में रोज होने वाले काम बंद हैं।

सभी वकीलों के पास अच्छे लैपटॉप के साथ अच्छे कैमरे और माइक्रोफोन की व्यवस्था नहीं होती। कई लोग तो टेक्स्ट और पीडीएफ डॉक्यूमेंट के साथ सहज भी नहीं हैं, उन्हें क्लाउड पर अपलोड करने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इसलिए सभी बार एसोसिएशन ने प्रस्ताव पारित कर सामान्य काम चालू करवाने की मांग की है।

याचिकाकर्ताओं की हालत खराब

याचिकाकर्ताओं की स्थिति तो और भी ज़्यादा खराब है। न्यायपालिका द्वारा ऑनलाइन सिस्टम बनाए जाने के बावजूद, ज़्यादातर कोर्ट में काम बंद है। जो लोग जेल में हैं, उन्हें बेल नहीं मिल पा रही है, आपराधिक सुनवाईयां आगे नहीं बढ़ रही हैं, दीवानी के मामले अटके हुए हैं और रिट पेटिशन थमी हुई हैं। एक तरफ अमीर लोग प्रभावशाली वकीलों या लॉ फर्म के ज़रिए अपने मामलों को सूचीबद्ध करवा ले रहे हैं, वहीं सामान्य याचिकाकर्ता इतना भाग्यशाली नहीं है।

ज़ाहिर तौर पर भूषण ने जब कहा कि लोगों को न्याय हासिल करने के मूलभूत अधिकार से दूर रखा जा रहा है, तब वे इसी स्थिति की तरफ इशारा कर रहे थे। सुप्रीम कोर्ट में 142 पेज के अपने काउंटर एफिडेविट में भूषण ने अपने ट्वीट्स का बचाव किया है। उन्होंने कहा कि यह ट्वीट, पिछले तीन महीने से सुप्रीम कोर्ट की भौतिक कार्रवाई के रुके रहने पर उनका गुस्से का इज़हार हैं। भूषण ने तर्क दिया कि इस तरह की स्थिति बनने से हिरासत में बंद लोगों, अपने हाल पर छोड़ दिए लोगों और गरीब़ लोगों के मौलिक अधिकारों से जुड़े मामलों का समाधान नहीं हो पा रहा है।

16 लाख फॉलोवर्स वाले अपने ट्विटर अकाउंट से भूषण ने मार्च से कई ऐसे ट्वीट्स किए हैं, जो न्यायपालिका की कड़ी आलोचना करते हैं। इनमें कोरोना के दौर में प्रवासियों का मुद्दा समेत कश्मीर और नागरिकता संशोधन अधिनियम पर न्यायपालिका के रवैये की आलोचना है। कोर्ट ने यह अच्छा किया कि इन ट्वीट के लिए उन्हें अवमानना का नोटिस नहीं दिया।

भूषण एक अहम सार्वजनिक संस्थान के क्रियान्वयन पर अपने भलमनसाहत वाले विचारों को साझा करते हुए, अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का इस्तेमाल कर रहे थे। आखिरकार भूषण द्वारा मुख्य न्यायाधीश की एक तस्वीर का अपने ट्वीट में इस्तेमाल करने पर, जिसके ज़रिए मुख्य न्यायाधीश को कोर्ट बंद करने पर निशाना बनाया गया था, जबकि उन्होंने कोर्ट के सतत् चालू रहने के लिए कई प्रावधान किए थे, इस पर सुप्रीम कोर्ट नाराज़ हो गया। उस तस्वीर में मुख्य न्यायाधीश अपने गृहनगर में व्यक्तिगत शौक आजमा रहे थे, जिसके तहत मुख्य न्यायाधीश एक महंगी मोटरसाइकिल पर सवार थे।

आगे का रास्ता

हमें आशा है कि सुप्रीम कोर्ट उदारता दिखाएगा और अवमानना का मामला रद्द कर देगा। इसी बीच भूषण का संदेश भी साफ पहुंचना चाहिए। कोर्ट कोई रोजाना की कार्रवाई शुरू करनी चाहिए और जितने हो सकें, उतने मामलों का निराकरण करना चाहिए।

एक जरूरी सेवा होने के नाते, कोर्ट एक मिली-जुली व्यवस्था को बना सकते हैं। इसके तहत कुछ मामलों की सशरीर सुनवाई होगी और कुछ मामलों में ई-सुनवाई करवाई जाए। सशरीर होने वाली सुनवाई के लिए कोर्ट नया तंत्र बना सकता है और भीड़ से निपटने के लिए समयसूची भी विकसित कर सकता है। कोर्ट मास्क का उपयोग भी अनिवार्य कर सकता है। कोरोना के इस दौर में काम करने के लिए हमें तकनीकी स्तर पर जो चीजें हासिल हुईं, उन्हें हमें नहीं खोना चाहिए।

जस्टिस वीआर कृष्ण अय्यर ने एक बार कहा था, ‘जजों को मिलने वाली गाली-गलौज का जवाब, अवमानना के लिए बार-बार या कठोर सजा नहीं हो सकता, इसका जवाब बेहतर प्रदर्शन है।’

एक ऐसे वक्त में जब पूरे देश में स्वतंत्र संस्थानों में गिरावट आ रही है, देश में कार्यपालिका की निरंकुशता और बहुसंख्यकवाद में बेइंतहां इज़ाफा हो रहा है, तब न्यायपालिका ही नागरिकों की आखिरी उम्मीद बचती है। न्यायपालिका एक जरूरी सेवा है, भले ही सरकार के 24 मार्चे के आदेश में कुछ और इशारा किया गया हो। हाल में जब सरकार लॉकडाउन को ढीला कर रही थी, तो उसने कहा था कि “लोगों को इस वायरस के साथ जीना सीख लेना चाहिए”, क्योंकि यह यहां रहने के लिए ही आया है।

अब वक़्त आ गया है कि न्यायपालिका को भी वायरस के साथ चलना सीख लेना चाहिए और अपने पैरों पर वापस खड़ो हो जाना चाहिए।

(प्रणव सचदेवा सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड हैं। उन्होंने प्रशांत भूषण के साथ कुछ सालों तक काम भी किया है। वे यात्राएं करना, रहस्यमयी फ़िल्में देखना, विज्ञान से जुड़ी किताबें पढ़ना और कंप्यूटर्स के बारे में पढ़ना पसंद करते हैं। इस लेख में उनके निजी विचार हैं।)

इस लेख के मूल आलेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

The Judiciary in Lockdow

Supreme Court
prashant bhushan
Coronavirus Pandemic
Chief justice of India
Judiciary
Fundamental right
Citizenship Amendment Act

Related Stories

ज्ञानवापी मस्जिद के ख़िलाफ़ दाख़िल सभी याचिकाएं एक दूसरे की कॉपी-पेस्ट!

आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल

मायके और ससुराल दोनों घरों में महिलाओं को रहने का पूरा अधिकार

जब "आतंक" पर क्लीनचिट, तो उमर खालिद जेल में क्यों ?

विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश : सेक्स वर्कर्स भी सम्मान की हकदार, सेक्स वर्क भी एक पेशा

तेलंगाना एनकाउंटर की गुत्थी तो सुलझ गई लेकिन अब दोषियों पर कार्रवाई कब होगी?

मलियाना कांडः 72 मौतें, क्रूर व्यवस्था से न्याय की आस हारते 35 साल

क्या ज्ञानवापी के बाद ख़त्म हो जाएगा मंदिर-मस्जिद का विवाद?


बाकी खबरें

  • left
    अनिल अंशुमन
    झारखंड-बिहार : महंगाई के ख़िलाफ़ सभी वाम दलों ने शुरू किया अभियान
    01 Jun 2022
    बढ़ती महंगाई के ख़िलाफ़ वामपंथी दलों ने दोनों राज्यों में अपना विरोध सप्ताह अभियान शुरू कर दिया है।
  • Changes
    रवि शंकर दुबे
    ध्यान देने वाली बात: 1 जून से आपकी जेब पर अतिरिक्त ख़र्च
    01 Jun 2022
    वाहनों के बीमा समेत कई चीज़ों में बदलाव से एक बार फिर महंगाई की मार पड़ी है। इसके अलावा ग़रीबों के राशन समेत कई चीज़ों में बड़ा बदलाव किया गया है।
  • Denmark
    पीपल्स डिस्पैच
    डेनमार्क: प्रगतिशील ताकतों का आगामी यूरोपीय संघ के सैन्य गठबंधन से बाहर बने रहने पर जनमत संग्रह में ‘न’ के पक्ष में वोट का आह्वान
    01 Jun 2022
    वर्तमान में जारी रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में, यूरोपीय संघ के समर्थक वर्गों के द्वारा डेनमार्क का सैन्य गठबंधन से बाहर बने रहने की नीति को समाप्त करने और देश को ईयू की रक्षा संरचनाओं और सैन्य…
  • सत्यम् तिवारी
    अलीगढ़ : कॉलेज में नमाज़ पढ़ने वाले शिक्षक को 1 महीने की छुट्टी पर भेजा, प्रिंसिपल ने कहा, "ऐसी गतिविधि बर्दाश्त नहीं"
    01 Jun 2022
    अलीगढ़ के श्री वार्ष्णेय कॉलेज के एस आर ख़ालिद का कॉलेज के पार्क में नमाज़ पढ़ने का वीडियो वायरल होने के बाद एबीवीपी ने उन पर मुकदमा दर्ज कर जेल भेजने की मांग की थी। कॉलेज की जांच कमेटी गुरुवार तक अपनी…
  • भारत में तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से हर साल 1.3 मिलियन लोगों की मौत
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    भारत में तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से हर साल 1.3 मिलियन लोगों की मौत
    01 Jun 2022
    मुंह का कैंसर दुनिया भर में सबसे आम ग़ैर-संचारी रोगों में से एक है। भारत में पुरूषों में सबसे ज़्यादा सामान्य कैंसर मुंह का कैंसर है जो मुख्य रूप से धुआं रहित तंबाकू के इस्तेमाल से होता है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License