NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
क्या यूक्रेन ने हार मान ली है?
बड़ा तथ्य यह है कि यूक्रेन-रूस वार्ता को अब विदेश मंत्री के स्तर तक बढ़ा दिया गया है, उम्मीद है कि इससे कुछ तो हल निकल सकता है।
एम.के. भद्रकुमार
10 Mar 2022
Translated by महेश कुमार
क्या यूक्रेन ने हार मान ली है?

पश्चिमी मीडिया की भविष्यवाणियों पर विश्वास किया जाए तो यूक्रेन में रूस अपने विशेष अभियान के तहत राजनीतिक और राजनयिक मार्ग पर एक सफल अंत के खेल में प्रवेश कर गया है, किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि वह इतना जल्दी सब कर लेगा।

रविवार की रात बेलारूस में तीसरे दौर की शांति वार्ता के परिणाम को करीब से देखने पर यह आभास होता है कि यूक्रेन के वार्ताकारों ने युद्धविराम के मामले में रखी गई रूसी शर्तों पर पूर्ण प्रतिक्रिया देने के लिए कुछ और समय मांगा है।

यूक्रेन ने नाटो की सदस्यता से इनकार किया है और एक तटस्थ देश बने रहने की इच्छा का संकेत दिया है। मुख्य मुद्दे निम्न हैं: ए) क्रीमिया को रूस के हिस्से के रूप में मान्यता देना; और, बी) लुगांस्क और डोनेट्स्क की संप्रभुता को बरकरार रखना।

इन मांगों से नीचे कोई समझौता नहीं हो सकता है। लेकिन उक्त मांगे यूक्रेनी नेतृत्व के लिए एक कड़वी गोली हैं। यूक्रेनी रुख अभी तक यही है कि ये मांगें "व्यावहारिक रूप से" असंभव हैं।

रविवार की बातचीत के बावजूद रूसी पक्ष उत्साहित महसूस कर रहा है, यदपि कोई ठोस परिणाम अभी तक नहीं निकला है। वे बड़े सैन्य हमलों में जल्दबाजी करने की जल्दी में नहीं हैं।

वास्तव में, पूरे पैटर्न में नज़र ये आ रहा है कि रूसी जनरल, मास्को के उद्देश्य को हासिल करने के लिए समानांतर राजनीतिक/राजनयिक पर काम करना जारी रखे हुए हैं और इस तरह के तालमेल बनाए रखने के लिए वे जबरदस्त सैन्य शक्ति को लागू नहीं करेंगे (जो क्षेत्रीय विजय के बारे में नहीं है।)

पश्चिमी विश्लेषकों ने उम्मीद की थी कि रूसी सेनापति के पैटर्न को देखते हुए या मैकआर्थर की तरह कीव पर बड़े पैमाने पर हमले करेंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं और विश्व ने इसके बजाय एक भ्रमित रूसी रणनीति देखी – जिसमें धीमी गति के हमले, सैन्य अभियान को रोकना, अत्यधिक बल के इस्तेमाल से बचना और प्रतिरोध को दबाने से बचना और उन्हे बायपास करके लड़ाई से बचते हुए अन्य  प्राथमिकताओं पर दबाव बनाना। 

पुतिन ने रविवार को खुलासा किया कि "यह भी तय किया गया था की जबर्दस्ती भर्ती किए सैनिकों को शत्रुता में भाग नहीं लेनी देगी और वे कभी भाग लेंगे भी नहीं, और रिजर्व सैनिकों को भी लड़ाई के लिए नहीं बुलाया जाएगा... मिशन को पूरा केवल पेशेवर सैनिकों द्वारा ही किया जाएगा।"

बेलारूस में तीसरे दौर की बातचीत के बाद, उन्होंने आश्वासन दिया है कि समझौता होने तक बातचीत जारी रहेगी! उनके शब्दों में जो कहा गया वह निम्न है,

"आज तीसरे दौर की वार्ता बेलारूस में हुई, और मैं कहना चाहूँगा यह 'तीसरी और अंतिम' वार्ता है, लेकिन हम यथार्थवादी हैं। इसलिए, हम बात करेंगे, हम बातचीत पर जोर देंगे जब तक कि हम अपने लोगों को यह बताने का कोई तरीका नहीं ढूंढ लेते, 'इस तरह हम शांति हासिल कर पाएंगे।'"

रूसियों को कोई जल्दी नहीं है। वे विजयवाद से बचना चाहते हैं, और इसके बजाय यूक्रेनी पक्ष को आत्मसमर्पण पर कुछ कठिन निर्णय लेने के लिए पर्याप्त समय देना चाहते हैं – इसके साथ ही कीव पर सैन्य दबाव भी बनाए रखा जाएगा। विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया ज़खारोवा ने कल कहा, "हमने राजनयिक विकल्पों के लिए दरवाजे खुले रखे हुए हैं। जैसे ही संकेत मिलेंगे, हम उन पर तुरंत कार्रवाई करेंगे।”

महत्वपूर्ण रूप से, दोनों पक्ष मानवीय गलियारे बनाने के लिए एक रोडमैप पर सहमत हुए हैं और रूसी पक्ष ने युद्धविराम की घोषणा की है। साथ ही इन गलियारों को हॉटलाइन के जरिए करीबी तालमेल से संचालित किया जाएगा।

रूसी बयान में कहा गया है कि "नागरिकों और विदेशी नागरिकों की निकासी की तैयारी और कार्यान्वयन के बारे में सूचनाओं के आपसी आदान-प्रदान के लिए रूसी और यूक्रेनी पक्षों के बीच  निरंतर संचार लिंक स्थापित किया जाएगा।"

रूसी पक्ष ने तभी से विदेशी दूतावासों, उपयुक्त संयुक्त राष्ट्र और ओएससीई एजेंसियों, रेड क्रॉस की अंतर्राष्ट्रीय समिति और अन्य संबंधित अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को सभी प्रासंगिक विवरणों से अवगत करा दिया है। मानवीय गलियारे निम्न होंगे:

  • कीव और आस-पास के क्षेत्रों से गोमेल (बेलारूस) तक;

  • सुमी से पोल्टावा (मध्य यूक्रेन) और ये रूस के लिए दो मार्गों के साथ होंगे;

  • खार्कोव से रूस या लवॉव, उज़गोरोड और इवानो-फ्रैंकोवस्क (तीनों पश्चिमी यूक्रेन में); तथा,

  • मारियुपोल से रूस और ज़ापोरोज़े (दक्षिणपूर्वी यूक्रेन में नीपर नदी पर) के दो मार्गों के साथ ये गलियारे होंगे।

इस संयुक्त कार्य और लड़ाई में खामोशी ने गुरुवार को तुर्की के अंताल्या रिसॉर्ट में रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव और उनके यूक्रेनी समकक्ष कुलेबा के बीच महत्वपूर्ण बैठक के लिए मंच तैयार कर दिया है। तथ्य यह है कि वार्ता को विदेश मंत्री स्तर तक बढ़ा दिया गया है, उम्मीद है कि एक महत्वपूर्ण समाधान निकल सकता है।

अमेरिका और नाटो के विश्वासघात से पूरी तरह निराश ज़ेलेंस्की अब मास्को के साथ समझौते की ओर बढ़ रहे हैं। परिणाम का पहले से अंदाज़ा लगाना व्यर्थ है, लेकिन यह एक गेम चेंजर है। प्रमुख यूरोपीय देशों - यूके, फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड - ने रूस के तेल निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के वाशिंगटन के आक्रामक प्रस्ताव को खारिज कर दिया है।

तेल निर्यात रूस की आय का प्रमुख स्रोत है, इसलिए, यह रूस को अलग-थलग करने के वाशिंगटन के प्रयासों की एक मजबूत अस्वीकृति है। फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रोन ने रविवार को अपनी टिप्पणी के ज़रिए पश्चिमी हवा को रुख देते हुए कहा कि:

"यदि रूस हमारे महाद्वीप के प्रति व्यापक सुरक्षा वास्तुकला के निर्माण में भाग नहीं लेता है, तो स्थायी शांति का निर्माण करना असंभव है, क्योंकि इतिहास और भूगोल इसे अनिवार्य बनाते हैं। हमारी जिम्मेदारी उन सभी संबंधों को बनाए रखना है जिन्हें हम संरक्षित कर सकते हैं। हमें रूसी और बेलारूसी लोगों के साथ बातचीत जारी रखनी चाहिए। हमें संस्कृति की दुनिया के प्रतिनिधियों, वैज्ञानिक और तकनीकी समुदाय, गैर-सरकारी संगठनों की मदद से ऐसा करने की जरूरत है।"

रविवार को, न्यू यॉर्क टाइम्स में एक लेख में, यूके के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने भी लिखा: "हमें रूसी लोगों के प्रति कोई शत्रुता नहीं है, और हमें एक महान राष्ट्र और विश्व शक्ति पर आरोप लगाने की कोई इच्छा नहीं है। निकट भविष्य में यूक्रेन को नाटो सदस्यता देने की कोई गंभीर संभावना नहीं है। यह नाटो का संघर्ष नहीं है, और यह नाटो का संघर्ष बनेगा भी नहीं।"

इस बीच, प्रमुख यूरोपीय देश, विशेष रूप से जर्मनी, यूक्रेन को यूरोपीयन यूनियन की सदस्यता देने से इंकार कर रहा है, जो भी हो - विडंबना यह है कि 2014 में कीव में अमेरिका समर्थित तख्तापलट का मुद्दा था, जिसने रूस को विनाशकारी संघर्ष में शामिल होने पर मजबूर कर दिया।

Ukraine-Russia talks
NATO membership
Vladimir Medinsky
United States
Boris Johnson

Related Stories

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ‘पार्टीगेट’ मामले को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का करेंगे सामना

बाइडेन ने यूक्रेन पर अपने नैरेटिव में किया बदलाव

कटाक्ष : बुलडोज़र के डंके में बज रहा है भारत का डंका

डोनबास में हार के बाद अमेरिकी कहानी ज़िंदा नहीं रहेगी 

बुलडोजर पर जनाब बोरिस जॉनसन

यमन में ईरान समर्थित हूती विजेता

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री इस महीने के अंत में भारत आ सकते हैं

भारत को अब क्वाड छोड़ देना चाहिए! 

यूक्रेन युद्ध: क्या हमारी सामूहिक चेतना लकवाग्रस्त हो चुकी है?

'सख़्त आर्थिक प्रतिबंधों' के साथ तालमेल बिठाता रूस  


बाकी खबरें

  • Kejriwal
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे पीछे: हिंदुत्व की प्रयोगशाला से लेकर देशभक्ति सिलेबस तक
    09 Jan 2022
    देश में हर रोज़ हो रहीं घटनाओं के बीच बहुत सी ख़बरें आगे-पीछे हो जाती हैं। ख़बरों के इस राउंड-अप में पुरानी ताजी ख़बरों को एक साथ बताया गया है। जिसमें आर्थिक-राजनीतिक सब तरह की ख़बरें हैं।
  • lynching
    अनिल अंशुमन
    झारखंड: भाजपा कार्यकर्ताओं ने मुस्लिम युवक से की मारपीट, थूक चटवाकर जय श्रीराम के नारे लगवाए
    09 Jan 2022
    मुख्यमंत्री ने पुलिस को जांच के आदेश देते हुए अपने ट्वीट में कहा है, कि अमन चैन से रहने वाले झारखंडवासियों के इस राज्य में वैमनस्य कि कोई जगह नहीं है।
  • cartoon
    न्यूज़क्लिक डेस्क
    बना रहे रस: वे बनारस से उसकी आत्मा छीनना चाहते हैं
    09 Jan 2022
    सुब्ह-ए-बनारस में सूरज की लालिमा के साथ अपनी सांसों को आवाज़ बनाकर शहनाई के जरिए रंग भरने वाले बिस्मिल्लाह खां को गंगा का किनारा आज भी ढूंढता है। बनारस में जो नदी आठों पहर अमनपसंद लोगों का पांव पखारती…
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: खाली कुर्सियों का डर न कहो इसको!
    09 Jan 2022
    अब यह तो विपक्ष वालों की सरासर बेईमानी है कि पीएम जी के संदेश में से थैंक्यू को छोडक़र, ‘जिंदा लौट आया’ को ही पकडक़र बैठ गए हैं।… और प्लीज, पीएम जी की नहीं हुई सभा में खाली कुर्सियों के ताने मारना बंद…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता: किस चीज़ से डरते हैं वे?
    09 Jan 2022
    गोरख पाण्डेय ने 43 साल पहले देश के हाकिमों से पूछा था कि “किस चीज़ से डरते हैं वे/तमाम धन-दौलत/ गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज के बावजूद?”, आज भी ये सवाल मौज़ू है और साथ ही उसका जवाब भी।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License