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उत्तर प्रदेश: प्राथमिक स्कूलों में सत्र शुरू होने के चार महीने बाद भी किताब पहुँचाने में विफल
रिपोर्ट के अनुसार प्राथमिक स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों में से 1.5 करोड़ बच्चों को प्रदेश सरकार किताब, यूनिफॉर्म व बैग उपलब्ध नहीं करवा पाई है।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
04 Aug 2018
school

सर्व शिक्षा अभियान की धज्जियाँ उड़ाना उत्तर प्रदेश राज्य के लिए कोई नई बात नहीं है। प्रदेश में एक बार फिर से शिक्षा व्यवस्था को ताक पर रखने का मामला सामने आया है। दरअसल, हज़ारों वायदें करने वाली प्रदेश सरकार, प्राथमिक स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के पास किताबें भी पहुँचाने में कामयाब नहीं हो पा रही है। ज्ञात हो कि इस सत्र की शुरूआत अप्रैल में ही हो चुकी है लेकिन अब तक बच्चों के पास किताबें नहीं पहुँची है, ऐसे में उन बच्चों की पढ़ाई कैसे हो पा रही है यह बड़ा सवाल है।

पिछले साल स्वेटर बाँटने में विफल भाजपा सरकार इस वर्ष तो बच्चों के भविष्य के साथ खेल रही है। सवाल यह है कि बच्चों ने बिना स्वेटर के सर्दी तो काट ली,लेकिन बिना किताब के वह अपनी पढ़ाई ठीक ढ़ंग से कैसे कर पाएंगे?

शिक्षा के अधिकार कानून के तहत प्रदेश के स्कूलों में सारी चीज़ें सरकार को निशुल्क उपलब्ध करवानी होती है। प्रदेश में किताबों के अलावा भी कई ऐसी मूलभूत सुविधायें हैं जो बच्चों को सरकार समय पर नहीं मुहैया करवा पा रही है। बेसिक शिक्षा विभाग के अनुसार प्रदेश के प्राथमिक स्कूलों में तक़रीबन 1 करोड़ 73 लाख बच्चे पढ़तें हैं। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार अभी तक इस सत्र में पढ़ने वाले बच्चों में से कुछ को ही किताबें मिल पाई हैं। बच्चों को मिलने वाले बैग व यूनिफॉर्म का भी हाल कुछ ऐसा ही है। तक़रीबन 1.5 करोड़ बच्चे इन सारी सुविधाओं से दूर हैं।

यह भी पढ़ें-  शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई): इतने वर्षों बाद भी क्या हम इसके उद्देश्यों को पूरा कर पाए?

1 अप्रैल से शुरू हुए इस सत्र को चार महीने बीत चुके हैं। मीडिया में हुई आलोचना के बाद भाजपा सरकार ने 31 अगस्त तक प्राथमिक स्कूलों में किताबें पहुँचाने का वायदा किया है। आपको बता दें कि यहाँ के प्राथमिक स्कूलों में 9 महीने पढ़ाई होती है। देश का भविष्य कहे जाने वाले बच्चों को 9 महीने में से केवल 4 महीने ही किताबें पढ़ने को मिलेगी। अब यहाँ सवाल यह उठता है कि 4 महीनों में अपने पूरे साल का सिलेबस बच्चे कैसे पूरा कर पाएगें यह सोच का विषय है?

हैरान करने वाली बात तो यह है कि सत्र की शुरूआत अप्रैल में होने के बावजूद सरकार ने स्वंय तय किया था कि वह बच्चों को 31 जुलाई तक किताबें व बेसिक चीजें मुहैया कराएगी। सत्र के शुरू होने के चार महीने बाद भी योगी सरकार प्राथमिक शिक्षा पर ध्यान नहीं दे रही है, विभाग के अफसरों को न ही टेंडर के बारे में जानकारी है और न ही यह पता है कि वह बच्चों को किताब कब तक मुहैया करवा पाएंगें।

इस बार हुई देरी की वजह टेंडर विवाद बताया जा रहा है। सरकार ने सत्र शुरू होने के दो महीने बाद जून के पहले सप्ताह में किताब के लिए प्रकाशकों के साथ करार किया गया था।

यह भी पढ़ें-  प्राथमिक विफलता ? शिक्षा अधिकार कानून के नौ साल बाद

पिछली सरकार के शासनकाल में बने हुए करोड़ो बैगों को वर्तमान सरकार नहीं बाँटना चाह रही हैं। बेसिक शिक्षा मंत्री का कहना है कि जब वर्तमान सरकार ने इसका नया टेंडर दे दिया है तो पहले के बने हुए बैगों का वितरण क्यों किया जाए, जबकि जानकारों का कहना है कि पिछली सरकार के समय मिलने वाले बैग पर उस समय के मुख्यमंत्री का फोटो लगा हुआ था इसलिए भाजपा सरकार उसे बच्चों को देने में कतरा रही है। गौर करने वाली बात यहाँ यह है कि बैग को बनाने में करोड़ों का खर्च हुआ होगा लेकिन अब उस बैग की कोई अहमियत नहीं रह गई।

सवाल केवल भाजपा सरकार में शिक्षा व्यवस्था में मूलभूत सुविधाएँ देर से पहुँचने का ही नहीं है, सवाल कई सारे है जो आए दिन मीडिया के द्वारा उठाए जाते रहते हैं लेकिन तमाम सरकारें चुप्पी साधे हुए रहती हैं। पिछले वर्ष आई कैग की रिपोर्ट के अनुसार सरकार 2011 से 2016 के बीच छह लाख से भी अधिक बच्चों को सही समय पर किताब मुहैया करवाने में विफल रही है। वहीं 97 लाख बच्चों को सही समय पर यूनीफार्म व बैग उपलब्ध कराने में भी विफल रही है।

कैग की 2017 में आई रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ कि प्रदेश में 2011 से 2016 के बीच 8वीं कक्षा तक पहुँचते-पहुँचते एक करोड़ 21 लाख 29 हज़ार 657 बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया। स्वच्छ भारत अभियान की खिल्लि उड़ाता प्रदेश जहाँ 1,191 स्कूलों में लड़कों व 543 स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालय तक उपलब्ध नहीं है।2,978 स्कूल में पीने के पानी की समुचित व्यवस्था भी नहीं है।

यह कहावत यहाँ पूर्ण रूप से साबित होती हुई दिख रही है कि बिना गुरू भारत बनेगा विश्व गुरू। क्योंकि मूलभूत सुविधाओं के अलावा 2017 के आँकड़ों पर अगर नज़र डाली जाए तो यहाँ गुरूओं की संख्या में भी काफी कमी है।

प्रदेश में 759,958 शिक्षकों की प्रस्तावित पदों में से केवल 585,232 पदों पर अभी शिक्षक कार्यरत हैं, मतलब कि यहाँ शिक्षकों के 174,726 पद अभी भी खाली हैं। प्रदेश की प्राथमिक शिक्षा की बदहाली का एक नमूना यह भी है कि यहाँ के प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों में से 15,082 स्कूल एक शिक्षक के हवाले है।

सरकार की पूरी व्यवस्था चौपट है लेकिन इस व्यवस्था को चौकस करने वाले लोग चोकसी को देश से भगाने (कथित तौर पर) में लगे हुए हैं। प्रदेश के भविष्य का यह हाल अतयंत दुखद है। सरकार को अगर वाकई में प्रदेश के बच्चों के भविष्य की चिंता है तो उसे इस मसले पर जल्द से जल्द चौकसी दिखानी होगी और तभी प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था का हाल चौकस हो पाएगा।

यह भी पढ़ें-  दिल्ली: निगम के 6 लाख छात्रों अबतक क्यों नहीं मिली नोटबुक?

Primary education
Uttar pradesh
Yogi Adityanath
CAG
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