NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
पाकिस्तान
विदेश नीति: अलग-थलग कौन है
यह स्वदेशी उग्रवाद नहीं है जो कट्टरपंथी है और भारत के लिए ख़तरा है। अल कायदा और आईएस ही वास्तविक ख़तरा है।
गौतम नवलखा
26 Jul 2019
विदेश नीति

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का बयान कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो हफ्ते पहले उनसे कहा था कि वह कश्मीर विवाद पर "मध्यस्थ बनें"। यह चौंकाने वाला बयान था। कुछ ही घंटों के भीतर ही भारत सरकार ने ट्रम्प के दावे को नकार दिया। विदेश मंत्री ने राज्य सभा को एक बयान जारी किया कि मोदी ने ऐसा कोई अनुरोध नहीं किया है। सरकार ने भारत के इस रुख की भी पुष्टि की कि पाकिस्तान के साथ सभी "लंबित" मुद्दों पर केवल द्विपक्षीय तरीके से चर्चा की जाएगी।

"मध्यस्थता" के लिए अनुरोध के दावे को लेकर सरकार ने बड़ी ही सतर्कता से बयान दिया है। जो भी लंबित मुद्दे हैं उसके लिए पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय वार्ता की आवश्यकता है। वास्तव में, किसी भी "लंबित" द्विपक्षीय मुद्दों को हल करने के लिए दोनों पक्षों को एक ही मंच पर आना चाहिए।

मुद्दा यह है कि भारत और पाकिस्तान सार्वजनिक घोषणाओं के बावजूद सैकड़ों बार बातचीत कर चुके हैं। इस तरह की आख़िरी बातचीत मनमोहन सिंह और परवेज़ मुशर्रफ सरकार के बीच हुई थी, जिसमें आधार "चार सूत्रीय फॉर्मूला" था। भारत सरकार का पाकिस्तान के लिए सार्वजनिक रुख और लोगों की भीड़भाड़ से दूर पिछले दरवाजे से हुआ द्विपक्षीय बातचीत के बीच का अंतर कोई नया नहीं है।

कश्मीर पर भी भारत के सार्वजनिक रुख में अंतर मौजूद है और इसमें में भी अस्पष्टता रहती है। एक तरफ, भारत का कहना है कि पाकिस्तान के साथ चर्चा करने के लिए एकमात्र मुद्दा सीमा पार आतंकवाद या छद्म युद्ध और 1947-48 में कब्जा किए गए क्षेत्र की वापसी है। वहीं दूसरी ओर, भारत इस बात पर जोर देता है कि जम्मू-कश्मीर भारत का एक अभिन्न अंग है और बाहरी लोगों का इस मामले से कोई लेना देना नहीं है।

इस भिन्नता के बावजूद इस सच्चाई से इनकार नहीं किया जा सकता है कि कश्मीर को लेकर दोनों देशों के बीच मौजूद विशाल खाई को न ही द्विपक्षीय और न ही एकपक्षीय प्रक्रिया ने अपने 72 साल पुराने विवाद को हल किया है। इस विवाद को हल करने में ये असमर्थता मौजूदा दृष्टिकोणों से दूर होने का एक बाध्यकारी वजह है जो निर्णायक होने में विफल रहे हैं।

यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि द्विपक्षीय प्रक्रिया सफल नहीं हुई है क्योंकि दोनों में से कोई भी पक्ष एक दूसरे पर भरोसा नहीं करता है। जहां तक एकपक्षीय प्रक्रिया की बात है तो इस विवाद को नामुनासिब तरीके से हल करने के मामले ने स्थिति को बदतर बना दिया है। सत्तारूढ़ दल मस्जिद, मदरसा और मीडिया पर अधिक नियंत्रण के लिए ज़ोर दे रहा है। यह वैसा ही है जो फरवरी 2017 में गृह मंत्रालय द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट में कही गई थी।

हालांकि भारत सरकार ने इस बात की चर्चा की है कि समाधान होने की संभावना बेहद निकट है और यह कि ज़मीनी स्थिति गंभीर बनी हुई है ऐसे में अन्य कारकों को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

उनमें से सबसे ज़्यादा बाध्यकारी यह है कि जहां तक अफगान शांति प्रक्रिया का संबंध है संयुक्त राज्य अमेरिका-रूस-चीन और पाकिस्तान एक ही मंच पर हैं। भारत का दावा कि इसने पाकिस्तान को अलग-थलग कर दिया है ऐसे में भारत को ही अलग थलग कर दिया गया है।

भारत की 'अफगान के अधिकार वाली और अफगान के नेतृत्व वाली' शांति प्रक्रिया ध्वस्त हो गई है। अफगानिस्तान में 3 बिलियन डॉलर के निवेश के लिए इस पर की गई तारीफ के बाद भारत का अलगाव एक और हालिया विकास से स्पष्ट होता है। अफगान शांति प्रक्रिया पर अमेरिका के विशेष दूत ने भारत को जानकारी नहीं दी। इसके बजाय भारत को जर्मन दूत की तरफ से दी जा रही जानकारी से संतोष करना पड़ा। और अफगान शांति प्रक्रिया में जर्मनी की केवल नाम मात्र की भूमिका है।

तालिबान के मामले में यह पाकिस्तान का प्रभाव है जिसने अमेरिका को अपने साथ संबंध सुधारने के लिए मजबूर किया है। विरोधाभासी ढ़ंग से पाकिस्तान का महत्व तब बढ़ गया जब ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों को लागू करने के मामले में भारत झुक गया। इन प्रतिबंधों ने न केवल ईरान से अपेक्षाकृत सस्ते तेल की आपूर्ति में कटौती की बल्कि अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (आईएनएसटीसी) के लिए भारत की प्रक्रिया को मुश्किल में डाल दिया है।

ये गलियारा भारत को यूरेशिया में बढ़ते व्यापार और वाणिज्य के बेहद क़रीब लाएगा लेकिन अमेरिकी दबाव के कारण चाबहार बंदरगाह और चाबहार के ईरानी बंदरगाह के जरिए भारत को अफगानिस्तान से जोड़ने वाले मार्ग भी संकट में पड़ गए हैं। ईरान के ख़िलाफ़ अमेरिकी कार्रवाई में ढील नहीं दिए जाने के कोई संकेत न मिलने के साथ भारत को अफगानिस्तान और पाकिस्तान से होकर मध्य एशिया के लिए सड़क का संपर्क खोलने पर विचार करना होगा।

अफगान शांति प्रक्रिया के लिए अमेरिका, रूस, चीन और पाकिस्तान की तरफ से कदम उठाए गए हैं। इस बीच भारत इस प्रक्रिया से अलग नजर आ रहा है। पाकिस्तान पर अपनी नीति को लेकर फिर से विचार करने के लिए भारतीय नीति निर्माताओं के सामने यह एक अन्य कारण है।

पाकिस्तान से बातचीत का बेहद ज़रुरी कारण अफगानिस्तान में अलकायदा और आईएस या इस्लामिक स्टेट से जुड़े 7,000-8,000 विदेशी आतंकवादियों की मौजूदगी है। रूस और चीन दोनों विदेशी आतंकियों को नियंत्रित करने के क्रम में तालिबान को बेहतर दांव मानते हैं, ऐसा न हो कि ये विदेशी आतंकी दोनों देशों में शिनजियांग और / या चेचन्या के लिए अपना रास्ता तैयार कर ले। सच्चाई यह है कि तालिबान विदेशी ताकतों को निकालना चाहता है। खासकर अल क़ायदा और आईएस का सामना करने और हराने के लिए उनके साथ मुकाबला करने का एक ठोस कारण माना जा रहा है।

यह भारत के लिए भी सही है। भारत सरकार विवाद का समाधान करने के लिए पूरी कोशिश कर रही है। भारत की कश्मीर नीति मुसलमानों के बीच विभाजन करने की दिशा में बढ़ रही है। ये विभाजन वर्गीय या नस्लीय आधार जैसे शिया, बकरवाल, गुर्जर, पहाड़ी और अन्य आधार पर हो रहा है।

ठीक इसी समय राष्ट्रपति शासन के अधीन सैन्य कार्रवाई तेज़ हो गई है। स्वायत्तता-समर्थक और आज़ादी-समर्थक नेताओं और एक्टिविस्ट को या तो "टेरर-फंडिंग" मामलों में गिरफ्तार किया जा रहा है या दमन का विरोध करने और उनका मुकाबला करने में उनकी भूमिका के लिए गिरफ्तार किया जा रहा है।

इन सबके पीछे वास्तविक उद्देश्य जम्मू-कश्मीर में बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार के लिए रास्ता तैयार करना है। राज्य के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ बार बार गुस्सा जाहिर किया है लेकिन उनका व्यवस्था प्रशासन कश्मीर में नए पावर ब्रोकर्स और पावर-विल्डर्स का चयन करने या निर्माण करने के लिए एक अन्य नीति का खुलासा कर रहा है।

जब यथास्थिति बाधित हो जाती है और प्रशासन और सेना राज्य में बीजेपी सरकार लाने में लग जाते हैं तो इस बात से कोई इंकार नहीं किया जा सकता है कि यह अलकायदा और आईएस के आतंकवादियों को निशाना बनाने के लिए जमीन तैयार करेगा। कश्मीर को लेकर अल कायदा और आईएस के बयानों ने इस परिदृश्य की संभावना को बढ़ाता है।

भारत के सुरक्षा और रणनीतिक विशेषज्ञों का दावा है कि वे इस खतरे का सामना करने के लिए तैयार हैं। लेकिन वे साथ-साथ अफगानिस्तान में सक्रिय अलकायदा और आईएस तत्वों द्वारा उत्पन्न खतरे को लेकर चेतावनी भी देते रहे हैं।

मुश्किल यह है कि भारत में वैचारिक रूप से संचालित सरकार यह मानने से इंकार कर रही है कि कश्मीर में जो वह शुरू कर रही है वह खतरे से भरा है। इससे सत्तारूढ़ दल को फायदा हो सकता है लेकिन देश को अपूरणीय क्षति हो सकती है। मसूद अजहर और हाफ़िज़ सईद को लेकर पाकिस्तान के कथित अलगाव को लेकर भारतीयों को निराशा हुई। अफगान शांति प्रक्रिया में आज हम अलग-थलग पड़ गए हैं यह महसूस करने के लिए हमारी रफ्तार सुस्त थी।

कश्मीर में किसी प्रकार की मध्यस्थता की भूमिका निभाने वाले अमेरिका से सावधान रहने के कई कारण हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि भारत यह स्वीकार नहीं कर सकता कि जम्मू-कश्मीर में अलकायदा और आईएस को ज़मीन हासिल करने से रोकने के लिए तीसरे देश की सहायता की आवश्यकता है। ऐसा हुआ तो आज़ादी ’या स्वायत्तता की लड़ाई को इस्लामिक खिलाफत स्थापित करने की लड़ाई से बदल जाएगा। दूसरे शब्दों में यह भारत से स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाला स्वदेशी उग्रवाद नहीं है जो कट्टर है और भारत के लिए संभावित रूप से अस्तित्व के लिए खतरा है। यह अलकायदा और आईएस के उप-महाद्वीप में फैलने की संभावना है जो कि वास्तविक खतरा है।

अच्छी समझ होनी चाहिए, भारत के नेताओं को पाकिस्तान से बातचीत की उपयुक्तता का एहसास करना होगा और इसकी आवश्यकता भी है।

लेखक के विचार निजी हैं।

India
Kashmir
Jammu and Kashmir
Militancy in Kashmir
al Qaeda
IS
Indo Pak Relations
Pakistan

Related Stories

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

कश्मीर में हिंसा का नया दौर, शासकीय नीति की विफलता

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल

भारत में तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से हर साल 1.3 मिलियन लोगों की मौत

कश्मीरी पंडितों के लिए पीएम जॉब पैकेज में कोई सुरक्षित आवास, पदोन्नति नहीं 

यासीन मलिक को उम्रक़ैद : कश्मीरियों का अलगाव और बढ़ेगा

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आईपीईएफ़ पर दूसरे देशों को साथ लाना कठिन कार्य होगा


बाकी खबरें

  • sedition
    भाषा
    सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह मामलों की कार्यवाही पर लगाई रोक, नई FIR दर्ज नहीं करने का आदेश
    11 May 2022
    पीठ ने कहा कि राजद्रोह के आरोप से संबंधित सभी लंबित मामले, अपील और कार्यवाही को स्थगित रखा जाना चाहिए। अदालतों द्वारा आरोपियों को दी गई राहत जारी रहेगी। उसने आगे कहा कि प्रावधान की वैधता को चुनौती…
  • बिहार मिड-डे-मीलः सरकार का सुधार केवल काग़ज़ों पर, हक़ से महरूम ग़रीब बच्चे
    एम.ओबैद
    बिहार मिड-डे-मीलः सरकार का सुधार केवल काग़ज़ों पर, हक़ से महरूम ग़रीब बच्चे
    11 May 2022
    "ख़ासकर बिहार में बड़ी संख्या में वैसे बच्चे जाते हैं जिनके घरों में खाना उपलब्ध नहीं होता है। उनके लिए कम से कम एक वक्त के खाने का स्कूल ही आसरा है। लेकिन उन्हें ये भी न मिलना बिहार सरकार की विफलता…
  • मार्को फ़र्नांडीज़
    लैटिन अमेरिका को क्यों एक नई विश्व व्यवस्था की ज़रूरत है?
    11 May 2022
    दुनिया यूक्रेन में युद्ध का अंत देखना चाहती है। हालाँकि, नाटो देश यूक्रेन को हथियारों की खेप बढ़ाकर युद्ध को लम्बा खींचना चाहते हैं और इस घोषणा के साथ कि वे "रूस को कमजोर" बनाना चाहते हैं। यूक्रेन
  • assad
    एम. के. भद्रकुमार
    असद ने फिर सीरिया के ईरान से रिश्तों की नई शुरुआत की
    11 May 2022
    राष्ट्रपति बशर अल-असद का यह तेहरान दौरा इस बात का संकेत है कि ईरान, सीरिया की भविष्य की रणनीति का मुख्य आधार बना हुआ है।
  • रवि शंकर दुबे
    इप्टा की सांस्कृतिक यात्रा यूपी में: कबीर और भारतेंदु से लेकर बिस्मिल्लाह तक के आंगन से इकट्ठा की मिट्टी
    11 May 2022
    इप्टा की ढाई आखर प्रेम की सांस्कृतिक यात्रा उत्तर प्रदेश पहुंच चुकी है। प्रदेश के अलग-अलग शहरों में गीतों, नाटकों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का मंचन किया जा रहा है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License