NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
विशेषज्ञों के मुताबिक उच्च शिक्षा आयोग संस्थानों की स्वायत्तता को प्रभावित करेगा
यूजीसी की जगह नए निकाय की स्थापना इस क्षेत्र में निजी खिलाड़ियों को शिक्षा के क्षेत्र में खुले खेल की छूट देगीI
रवि कौशल
30 Jun 2018
Translated by महेश कुमार
UGC

केंद्र सरकार ने बुधवार को 'भारत के उच्च शिक्षा आयोग अधिनियम 2018' का एक मसौदा जारी कियाI इसके तहत विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की जगह एक न्य निकाय लाया जायेगा जिसके पास कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को धन देने का अधिकार नहीं होगी। उसकी जगह मानव संसाधन विकास मंत्रालय अब निधि मंजूर करेगा। केंद्र सरकार की मंशा है कि संसद के मानसून सत्र में इससे जुड़ा अधिनियम पेश किया जाये। अकादमिक मानकों को निर्धारित करने और उच्च शिक्षा के लिए नीतियाँ तैयार करने के अलावा, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग वर्तमान में केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कॉलेजों और विभागों को निधि प्रदान करता है।

अस्पष्ट और अनावश्यक कदम

जबकि सरकारी अधिकारियों ने कहा कि नया निकाय अकादमिक मानकों में सुधार करने पर अधिक ध्यान केंद्रित करेगा, अन्य हितधारकों को यह विश्वास नहीं है कि यह कदम उच्च शिक्षा क्षेत्र के संकट को हल करने में मदद करेगा।

दिल्ली यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन (डीयूटीए) ने एक गंभीर बयान देते हुए कहा कि यह स्पष्ट नहीं है कि नया बदलाव उच्च शिक्षा की ज़रूरतों को कैसे संबोधित करेगा।

डूटा ने कहा कि "मौजूदा ढाँचे के संस्थापक लक्ष्यों, उपलब्धियों, कमियों और संभावित कारणों और यूजीसी के स्वास्थ्य में सुधार के लिए आवश्यक सुधारात्मक उपायों का विस्तृत अध्ययन किए बिना पूरी तरह से बदला जा रहा है।"

बयान में कहा गया कि, "सरकार को विपक्ष के कारण ‘हीरा’ [उच्च शिक्षा सशक्तिकरण विनियमन एजेंसी] बनाने के प्रस्ताव को रोकना पड़ा था, फिर भी एक नई एजेंसी बनाने के लिए यूजीसी को खत्म करना उसी दिशा में एक जल्दबाज़ी में लिया बौखलाहट भरे कदम लगता है।" यूईआरसी और ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन को बदलने के लिए ‘हीरा, का इस आधार पर विरोध किया गया था कि इससे इस क्षेत्र के प्रभावी विनियमन को रोका जा सकेगा और निजी क्षेत्र को खुली छूट दी जायेगी।

बयान में आगे जोर दिया गया कि प्रस्तावित कमीशन में सामाजिक रूप से हाशिए वाले समूहों का कोई प्रतिनिधित्व नहीं होगा। "12 सदस्यीय आयोग में एससी/ एसटी/ ओबीसी/ पीडब्ल्यूडी/ महिला वर्गों से कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। उच्च शिक्षा में सुधारों को शिक्षा को सार्वभौमिक करने, उसकी पहुँच और गुणवत्ता की आवश्यकता पर ज़ोर देना होगा। सुधारों को सामाजिक ज़िम्मेदारी का भी जवाब देना चाहिए और यह महत्वपूर्ण निर्णय लेने वाले निकाय में विभिन्न वर्गों का प्रतिनिधित्व होना चाहिए”।

प्रस्तावित बिल ने अपनी सीमा से राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों को निकाल दिया है। एस.ऍफ़.आई. के  महासचिव विक्रम सिंह ने कहा कि नए बिल ने इन संस्थानों के अस्तित्व को चुनौती दी क्योंकि यह स्पष्ट नहीं था कि वे यूजीसी की अनुपस्थिति में कैसे कार्य करेंगे। "उन्हें धन कैसे मिलेगा और किससे वे संबद्ध होंगे- ये सभी प्रश्न अनुत्तरित हैं। सरकार के हस्तक्षेप की अनुपस्थिति में, उनके निजी क्षेत्र पर वित्त पोषण के लिए निर्भर होने की संभावना है। इससे उच्च शिक्षा पर निजी क्षेत्र का नियंत्रण बढ़ जायेगा” सिंह ने कहा।

एक खतरनाक उदहारण

सिंह ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय के वित्त पोषण शक्तियों के प्रावधान को भी चुनौती दी। "यह राजनीतिक दलों द्वारा संस्थानों के प्रत्यक्ष नियंत्रण को सुनिश्चित करने का एक प्रयास है। यदि एक विभाग अपनी पत्रिका में नीति को मापने पर सरकार की आलोचना करते हुए एक पत्र प्रकाशित करता है, तो इसके वित्त पोषण को कम किया जा सकता है।"

"यूजीसी के सदस्यों के पास अकादमिक पृष्ठभूमि है और वे धन की ज़रूरतों और उपयोग को अच्छी तरह से जानते हैं, मंत्रालय के अधिकारी विभिन्न विभागों की आवश्यकताओं को नहीं जानते हैं। इससे संस्थानों की गुणवत्ता पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।" सिंह ने कहा।

विशेषज्ञों ने नोट किया कि यूजीसी ने अक्सर शैक्षिक संस्थानों में सरकारों के प्रत्यक्ष हस्तक्षेप को रोक दिया था। दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व कार्यकारी परिषद की सदस्य आभा देव हबीब ने कहा कि यदि यह प्रस्ताव लागू किया गया, तो विश्वविद्यालय भी सत्ता में बैठे लोगों से अनौपचारिक आदेशों का पालन करना शुरू कर देंगे।

उन्होंने कहा, "पिछले कुछ समय से, हमने नीतिगत बनाने के दायरे से बाहर शिक्षाविदों को रखते हुए अकादमिक संरचनाओं, उद्देश्य और शिक्षा का ध्यान केंद्रित करने में सरकारों की बढ़ती हस्तक्षेप देखी है।"

यूजीसी सरकारों के प्रत्यक्ष हस्तक्षेप और प्रभाव को रोक सकता है। लेकिन जब संस्थागत प्रमुखों का मानना है कि वित्त पोषण मंत्रालय के प्रत्यक्ष नियंत्रण में है, तो उन्हें अनौपचारिक रूप से उनसे क्या कहा जाता है, उन्हें पूरा करने के लिए मजबूर किया जाएगा। हबीब ने कहा, "यह देखने की बात है यह परिवर्तन आने वाले वर्षों में क्या गुल खिलायेगा।"

नया निकाय को वर्गीकृत स्वायत्तता के मानदंड निर्दिष्ट करने के लिए भी कहा जाएगा। इस पर टिप्पणी करते हुए हबीब ने कहा कि इससे केवल शिक्षा को आगे और ज्यादा निजीकरण की ओर अग्रसर किया जाएगा। "मान्यता और वर्गीकृत स्वायत्तता की अवधारणाओं को उच्च शिक्षा के निजीकरण से जोड़ा जाता है। ग्रेडियड स्वायत्तता पर हालिया विनियम रेटिंग और रैंकिंग के आधार पर विश्वविद्यालयों को स्तरीकृत करते हैं। 'स्वायत्तता' की इतनी मंजूरी दी जाती है कि नए पाठ्यक्रम, अनुसंधान, ऊष्मायन केंद्र शुरू करें और विश्वविद्यालय समाज संबंध केंद्र, बशर्ते कि वे इन परियोजनाओं के लिए व्यय उत्पन्न कर सकें। विश्वविद्यालयों के मामले में, इसका मतलब केवल फीस में वृद्धि होगी। इन परिवर्तनों को लागू करने के लिए मान्यता एक नई चाबुक बन गई है।" हबीब ने कहा।

 

UGC
विश्विद्यालय अनुदान आयोग
उच्च शिक्षा
मोदी सरकार
मानव संसाधन विकास मंत्रालय

Related Stories

कॉमन एंट्रेंस टेस्ट से जितने लाभ नहीं, उतनी उसमें ख़ामियाँ हैं  

नेट परीक्षा: सरकार ने दिसंबर-20 और जून-21 चक्र की परीक्षा कराई एक साथ, फ़ेलोशिप दीं सिर्फ़ एक के बराबर 

यूजीसी का फ़रमान, हमें मंज़ूर नहीं, बोले DU के छात्र, शिक्षक

नई शिक्षा नीति ‘वर्ण व्यवस्था की बहाली सुनिश्चित करती है' 

45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में दाखिले के लिए होगी प्रवेश परीक्षा, 12वीं में प्राप्त अंकों के आधार पर प्रवेश खत्म

शिक्षाविदों का कहना है कि यूजीसी का मसौदा ढांचा अनुसंधान के लिए विनाशकारी साबित होगा

नगालैंड में AFSPA 6 महीने बढ़ा, नफ़रती कालीचरण गिरफ़्तार और अन्य ख़बरें

उत्तराखंड: असिस्टेंट प्रोफेसर पदों पर भर्ती की शर्तों का विरोध, इंटरव्यू के 100 नंबर पर न हो जाए खेल!

रचनात्मकता और कल्पनाशीलता बनाम ‘बहुविकल्पीय प्रश्न’ आधारित परीक्षा 

किसान आंदोलन के नौ महीने: भाजपा के दुष्प्रचार पर भारी पड़े नौजवान लड़के-लड़कियां


बाकी खबरें

  • रवि कौशल
    डीयूः नियमित प्राचार्य न होने की स्थिति में भर्ती पर रोक; स्टाफ, शिक्षकों में नाराज़गी
    24 May 2022
    दिल्ली विश्वविद्यालय के इस फैसले की शिक्षक समूहों ने तीखी आलोचना करते हुए आरोप लगाया है कि इससे विश्वविद्यालय में भर्ती का संकट और गहरा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    पश्चिम बंगालः वेतन वृद्धि की मांग को लेकर चाय बागान के कर्मचारी-श्रमिक तीन दिन करेंगे हड़ताल
    24 May 2022
    उत्तर बंगाल के ब्रू बेल्ट में लगभग 10,000 स्टाफ और सब-स्टाफ हैं। हड़ताल के निर्णय से बागान मालिकों में अफरा तफरी मच गयी है। मांग न मानने पर अनिश्चितकालीन हड़ताल का संकेत दिया है।
  • कलिका मेहता
    खेल जगत की गंभीर समस्या है 'सेक्सटॉर्शन'
    24 May 2022
    एक भ्रष्टाचार रोधी अंतरराष्ट्रीय संस्थान के मुताबिक़, "संगठित खेल की प्रवृत्ति सेक्सटॉर्शन की समस्या को बढ़ावा दे सकती है।" खेल जगत में यौन दुर्व्यवहार के चर्चित मामलों ने दुनिया का ध्यान अपनी तरफ़…
  • आज का कार्टून
    राम मंदिर के बाद, मथुरा-काशी पहुँचा राष्ट्रवादी सिलेबस 
    24 May 2022
    2019 में सुप्रीम कोर्ट ने जब राम मंदिर पर फ़ैसला दिया तो लगा कि देश में अब हिंदू मुस्लिम मामलों में कुछ कमी आएगी। लेकिन राम मंदिर बहस की रेलगाड़ी अब मथुरा और काशी के टूर पर पहुँच गई है।
  • ज़ाहिद खान
    "रक़्स करना है तो फिर पांव की ज़ंजीर न देख..." : मजरूह सुल्तानपुरी पुण्यतिथि विशेष
    24 May 2022
    मजरूह सुल्तानपुरी की शायरी का शुरूआती दौर, आज़ादी के आंदोलन का दौर था। उनकी पुण्यतिथि पर पढ़िये उनके जीवन से जुड़े और शायरी से जुड़ी कुछ अहम बातें।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License