NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
अपराध
आंदोलन
संस्कृति
समाज
सोशल मीडिया
भारत
राजनीति
'बॉयज़ लॉकर रूम' जैसी घटनाओं के लिए कौन ज़िम्मेदार है?
लड़के या पुरुषों के लिए बलात्कार को लेकर बातें करना या जोक्स बनाना, लड़कियों को ‘माल’ की तरह देखना, औरतों के वजूद और इंसानियत को नकार देना। ये सब एक तरह से बहुत आम चलन में है। आज जब एक चैट ग्रुप में हमें ये सब बातें दिखाई दे रही हैं तो लोगों में इसे लेकर गुस्सा है। लेकिन हमें अक्सर कॉमेडी शो, कॉफी विद करण और फिल्मों में यही सब देखने को मिलता है।
सोनिया यादव
06 May 2020
NewsClick

“बॉयज़ लॉकर रूम' जैसी घटानओं के लिए हम सिर्फ़ कुछ लड़कों, लोगों या परिवारों को दोषी ठहरा कर बच नहीं सकते। एक समाज के तौर पर इसके लिए हमें अपने अंदर, अपनी व्यापक संस्कृति के अंदर झांकने की ज़रूरत है।”

 ये कहना है महिला अधिकारों के लिए सालों से संघर्षरत कविता कृष्णन का। कविता अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (ऐपवा) की राष्ट्रीय सचिव और भाकपा-माले की पोलित ब्यूरो सदस्य हैं। उनके अनुसार 'बॉयज़ लॉकर रूम' की वारदात एक ज्यादा व्यापक बलात्कार संस्कृति की ओर इशारा करती है, जो हमारे देश के साथ-साथ विदेशों में भी है और इस समाज में होने के नाते इसकी ज़िम्मेदारी हम सभी को लेनी चाहिए।

 क्या है पूरा मामला?

‘बड़ा फेमिनिस्ट बनना है न सबको। अब उन्हें पता चलेगा। कहीं मुंह दिखाने के लायक नहीं रहेंगी।’ ये बातें 'बॉयज़ लॉकर रूम' में लड़कों की चैट का एक छोटा सा हिस्सा है, लेकिन हमारे पितृसत्तामक समाज में औरतों के आवाज़ उठाने पर अक्सर कुछ ऐसा ही कमेंट सुनने को मिलता है। इस पुरुष प्रधान समाज में औरतों को मर्दो से कमतर समझा जाता है, बार-बार उन पर फब्तियां कसी जाती हैं, भद्दे मजाक बनाए जाते हैं और अगर महिला इन सब के खिलाफ खड़ी हो तो उसे चुप कराने के लिए बात-बात पर उसे इज़्ज़त का डर भी दिखाया जाता है। कुछ यही कहानी 'बॉयज़ लॉकर रूम' की भी थी, जहां एक सोशल मीडिया ऐप इंस्टाग्राम पर धड़ल्ले से लड़कियों के खिलाफ अश्लील बातें चल रही थी, गैंगरेप की योजनाएं बन रही थी लेकिन जैसे ही कुछ लड़कियों ने इस ग्रुप के खिलाफ हल्ला बोला उनकी न्यूड और ऑब्जेक्टीफाइड तस्वीरों को वायरल कर दिया गया।

#boislockerroom ट्रेंड

जैसे ही सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इंस्टाग्राम के 'बॉयज़ लॉकर रूम' ग्रुप से चैट के कुछ स्क्रीनशॉट लीक हुए। ट्विटर पर #boislockerroom ट्रेंड करने लगा। इस ग्रुप की चैट्स जिसने भी पढ़ा अपना माथा पकड़ लिया। कारण साफ है ये बातें ऐसी हैं, जिसे सभ्य समाज में पढ़ना तो दूर कोई सुनना भी बर्दाश्त न करे।

ऐसी क्या बातें हो रही थीं इस ग्रुप में?

ये नेटवर्क स्कूल गोइंग, लगभग 15 से 18 साल के लड़कों का था। जिसमें लड़कियों के बारे में घटिया बातें होती थीं। उनकी तस्वीरें एडिट करके शेयर की जाती थीं, जिस पर उनकी शारीरिक बनावट, लुक्स और शरीर के अंगों के बारे में मज़ाक बनते थे। इन नाबालिग लड़कियों का यौन शोषण, रेप और गैंगरेप करने जैसी भी बातें होती थी।

कुछ चैट्स के नमूने

  • एक लड़का लिखता है ‘जितनी भी लड़कियों ने स्टोरीज़ डाली हैं न, उनकी न्यूड्स लीक कर देते हैं। कुछ-कुछ की हैं मेरे पास।’
  • इसके जवाब में दूसरे लड़के ने लिखा, ‘मैं भेजता हूं। तब तक ये भेज दो किसी को। नया अकाउंट बनाओ। किसी को पता नहीं चलेगा। अब उन्हें पता चलेगा कि ये सब ब*** करने का क्या नतीजा होता है। अब मुंह बंद रखेगी ये सा*। बड़ा फेमिनिस्ट बनना है न सबको। उन्हें पता चलेगा। कहीं मुंह दिखाने के लायक नहीं रहेंगी।’
  • 'हम उसका आसानी से रेप कर सकते हैं’ और ‘जहां तुम कहोगे, मैं आ जाऊंगा। हम उसका गैंगरेप करेंगे’।

और इसके बाद लड़कों का एक और ग्रुप एक्टिव हो गया, जिसका नाम-Jai ka skirt skrt gang रखा गया। इसमें अब लड़कों ने स्क्रीनशॉट शेयर करने वाली लड़कियों से कैसे बदला लिया जाए इसकी प्लानिंग शुरू कर दी।

 महिलाओं पर घटिया जोक्स आम चलन बन गया है

 न्यूज़क्लिक से बातचीत में कविता कृष्णन कहती हैं, “लड़के या पुरुषों के लिए बलात्कार को लेकर बातें करना या जोक्स बनाना, लड़कियों को ‘माल’ की तरह देखना, औरतों के वजूद और इंसानियत को नकार देना। ये सब एक तरह से बहुत आम चलन में है। आज जब एक चैट ग्रुप में हमें ये सब बातें दिखाई दे रही हैं तो लोगों में इसे लेकर गुस्सा है। लेकिन हमें अक्सर कॉमेडी शो, कॉफी विद करण और फिल्मों में यही सब देखने को मिलता है। यहां तक कि स्कूलों में टीचर्स या प्रशासन के द्वारा लड़कियों को उनके कपड़ों के लिए शर्मिंदा किया जाता है, ये बहुत कॉमन है। शायद ही देश में कोई ऐसा स्कूल हो जहां आपको ये सुनने में न मिले। तो हम क्या सिखा रहे हैं, ये सोचने की बात है।”

 ‘बॉयज़ लॉकर रूम’ की घटना को लेकर पैरेंटिंग पर उठते सवालों पर कविता का कहना है कि ये सिर्फ पैरेंटिंग या परवरिश का मसला नहीं है। शायद ही कोई मां-बाप अपने बच्चों को ऐसी बातें सिखाता होगा। बच्चे जो सोचते या सीखते हैं उसमें घर के साथ-साथ बाहर के माहौल और समाज का भी बहुत योगदान होता है।

 हम महिला विरोधी सोच को पाल-पोस रहे हैं

 वो कहती हैं, “हम अक्सर कुछ लोगों पर किसी भी घटना का दोष मड़कर चलते बनते हैं। जबकि असल बात तो ये है कि समाज में इस तरह की घटना की जिम्मेदारी हम सभी को लेनी चाहिए। कुछ ही दिन पहले जब निर्भया के दोषियों को फांसी की सज़ा हुई तो कई लोगों ने इसका जश्न मनाया। ऐसा कहा गया कि ये फांसी समाज में एक मिसाल बनेगी, बलात्कार की संस्कृति को धक्का पहुंचेगा। लेकिन आज ये हम सब के सामने है कि कुछ लोगों की फांसी से ये सब नहीं रुकने वाला। क्योंकि हर रोज हम अपने समाज में महिला विरोधी सोच और संस्कृति को पाल-पोस रहे हैं।”

 टीवी शोज़स, फिल्में और स्टैंडअप कॉमेडी से बढ़ावा

कविता रोज़ाना महिलाओं के साथ होने वाली छोटी-बड़ी घटनाओं को सीमित दायरे में न रखकर इसे बड़ी अनहोनी की तैयारी के रूप में देखती हैं। टीवी शोज़स, फिल्में और स्टैंडअप कॉमेडी में महिलाओं पर अश्लील टिप्पणियां, जोक्स और छींटाकशी को एक बड़ा उकसावा बताती हैं।

अपनी मित्र शिवानी नाग के एक पोस्ट का जिक्र करते हुए कविता कहती हैं, “मेरी एक मित्र जो अम्बेडकर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं उन्होंने ‘कॉफी विद करण’ का एक वाक्या शेयर किया है। शो में हंसी-मजाक करते हुए ऐसी बातें होती हैं कि अगर आप एक हैट्रोसैक्सुअल पुरुष हैं और आपको अगर गनप्वाइंट पर किसी पुरुष के साथ सेक्स करना होता तो आप किसे चुनेंगे। हम सभी जानते हैं कि गनप्वाइंट पर क्या होता है लेकिन इन सब के बावजूद हम ऐसी बातों में बिना वजह हंसते हैं। कुछ नहीं बोलते। जबकि ये किसी लॉकर रूम का हिस्सा नहीं खुलेआम भद्दा और घटिया मज़ाक है। अगर किसी महिला ने आवाज उठा दी तो उसे फेमिनिस्ट या सेंसेटिव बता कर ताने मारना हमारी आदत बन गई है। लड़कियों को हर रोज कपड़ों को लेकर शर्मिंदा करना, उन पर छींटाकशी करना तो बहुत आम है। इसमें लगभग हर स्कूल प्रशासन से लेकर पुलिस और पॉलिटिकल पार्टिस तक इसमें शामिल हैं।” 

राजनीतिक संस्कृति से अलग नहीं

कविता के अनुसार बॉयज़ लॉकर रूम की बातचीत को हम राजनीतिक संस्कृति से काटकर नहीं देख सकते हैं। आए दिन पॉलिटिकल पार्टी के नेता महिला विरोधी बयान देते रहते हैं। उन पर कोई कार्रवाई तक नहीं होती।

सफूरा ज़रगर की प्रेगनेंसी का जिक्र करते हुए कविता बताती हैं, “अभी हाल ही में भाजपा के विधायक उम्मीदवार रहे कपिल मिश्रा ने सफूरा ज़रगर की प्रेगनेंसी को लेकर जिस तरह की टिप्पणी की है वो कितनी जायज है? ‘आई सपोर्ट नरेंद्र मोदी’ पेज़ से सफूरा को लेकर बकवास बातें की जा रही हैं। सफूरा की प्रेगनेंसी, उसके कपड़े, उसका हिजाब कई तरह की अनर्गल बातें हो रही हैं। तो ये सब क्या है, क्या इसे पॉलिटिकल बॉयज़ लॉकर रूम या संघी लॉकर रूम कहा जाए! जिसमें किसी भी महिला, जो सरकार के खिलाफ बोलती है, को निशाना बनाया जाता है। तो इस संस्कृति को हम क्या कहेंगे? मोदी जी जिनको फॉलो करते हैं वो लोग डेली इस तरह की बातें बोलते हैं तो वो किस लॉकर रूम की बातें हैं? डेली मुझे ऐसी बातें, रेप करने की धमकियां आती हैं। इन लोगों को भी पहचानने की जरूरत है। ये विदेशी संस्कृति नहीं है। ये हमारे देश के अंदर ही पनपी हुई मानसिकता है।”

गौरतलब है कि आईपीसी की धारा 354सी और आईटी अधिनियम की धारा 66ई के तहत तस्वीरों से छेड़छाड़ करना और निजी अंगों की तस्वीरें शेयर करना अपराध है। दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए दिल्ली पुलिस और इंस्टाग्राम दोनों को नोटिस जारी किया है और इस ग्रुप के सभी लड़कों को गिरफ्तार करने की मांग की है। जिसके बाद पुलिस ने कुछ गिरफ्तारियां भी की हैं, हालांकि ये सवाल अभी भी बरकरार है कि ऐसी कुछ घटनाओं पर जन आक्रोश उमड़ कर फिर अगले ही दिन सब नार्मल क्यों हो जाता है?

Kavita Krishnan
Bois Locker Room
crimes against women
Social Media
Delhi Commission for Women
swati maliwal
All India Progressive Women's Association

Related Stories

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

तेलंगाना एनकाउंटर की गुत्थी तो सुलझ गई लेकिन अब दोषियों पर कार्रवाई कब होगी?

यूपी : महिलाओं के ख़िलाफ़ बढ़ती हिंसा के विरोध में एकजुट हुए महिला संगठन

बिहार: आख़िर कब बंद होगा औरतों की अस्मिता की क़ीमत लगाने का सिलसिला?

बिहार: 8 साल की मासूम के साथ बलात्कार और हत्या, फिर उठे ‘सुशासन’ पर सवाल

मध्य प्रदेश : मर्दों के झुंड ने खुलेआम आदिवासी लड़कियों के साथ की बदतमीज़ी, क़ानून व्यवस्था पर फिर उठे सवाल

बिहार: मुज़फ़्फ़रपुर कांड से लेकर गायघाट शेल्टर होम तक दिखती सिस्टम की 'लापरवाही'

यूपी: बुलंदशहर मामले में फिर पुलिस पर उठे सवाल, मामला दबाने का लगा आरोप!

दिल्ली गैंगरेप: निर्भया कांड के 9 साल बाद भी नहीं बदली राजधानी में महिला सुरक्षा की तस्वीर

असम: बलात्कार आरोपी पद्म पुरस्कार विजेता की प्रतिष्ठा किसी के सम्मान से ऊपर नहीं


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License