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शिक्षा
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यूपी सरकार का अध्यादेश: उच्च शिक्षा संस्थानों को नियंत्रित करने की कोशिश? 
निजी विश्वविद्यालयों के लिए लाया गया योगी कैबिनेट का नया अध्यादेश गुमराह करने वाला है और इसका आसानी से दुरुपयोग किया जा सकता है। 
अमित सिंह
20 Jun 2019
फाइल फोटो
Image Courtesy: nationalherald

उत्तर प्रदेश में निजी विश्वविद्यालयों के लिए योगी कैबिनेट नया अध्यादेश लाई है। अब निजी विश्वविद्यालयों को शपथपत्र देना होगा कि वह किसी भी प्रकार की राष्ट्र विरोधी गतिविधि में शामिल नहीं होंगे और परिसर में इस तरह की गतिविधियाँ नहीं होने दी जाएंगी।

विश्वविद्यालयों को शपथपत्र में यह भी देना होगा कि वे अपने विश्वविद्यालय का नाम किसी भी राष्ट्र विरोधी गतिविधि में इस्तेमाल नहीं होने देंगे। अगर ऐसा हुआ तो यह क़ानून का उल्लंघन माना जाएगा और सरकार उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई कर सकती है। 

उत्तर प्रदेश में इस समय 27 निजी विश्वविद्यालय हैं। इन सभी को उत्तर प्रदेश निजी विश्वविद्यालय अध्यादेश 2019 के अनुसार नियमों का पालन करने के लिए एक साल का समय दिया गया है। यह नया अध्यादेश मंगलवार को राज्य मंत्रिमंडल द्वारा पारित किया गया। अध्यादेश अब 18 जुलाई से शुरू होने वाले विधानसभा सत्र में रखा जाएगा। 

सरकार ने शैक्षिक व्यवस्था की पवित्रता बनाये रखने के लिहाज से प्रस्तावित अध्यादेश को महत्वपूर्ण क़रार दिया है। उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने इस कदम को शिक्षा के मंदिर की पवित्रता बनाये रखने के लिए बड़ा फ़ैसला क़रार दिया। 

हालांकि वहीं कांग्रेस पार्टी ने इस अध्यादेश को 'आरएसएस की विचारधारा थोपने वाला' बताया।

उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महासचिव एवं प्रवक्ता द्विजेन्द्र त्रिपाठी ने कहा कि इस क़ानून के पीछे जो छिपा हुआ उददेश्य है, वह आरएसएस की विचारधारा को थोपने के लिहाज से शैक्षिक संस्थानों पर दबाव और भय पैदा करना है।

उन्होंने कहा, "जब यह क़ानून लागू होगा तो विश्वविद्यालय निरंतर मान्यता रद्द होने के ख़तरे का सामना करेंगे। यह एक तरह की तानाशाही है। त्रिपाठी ने कहा कि अगर सरकार संस्थाओं को नियंत्रित करती है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है तो शैक्षिक प्रणाली नहीं सुधरेगी। निजी विश्वविद्यालयों और शैक्षिक व्यवस्था पर अधिक नियंत्रण रखने के मक़सद से योगी आदित्यनाथ सरकार ने यह प्रयास किया है। कानून में राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को लेकर स्पष्टता का अभाव है।"

हालांकि सिर्फ़ कांग्रेस ही नहीं उत्तर प्रदेश के अलग-अलग विश्वविद्यालयों के शिक्षक, कई पत्रकार और छात्र नेताओं ने भी सरकार के इस क़दम की आलोचना की है। 

न्यूज़क्लिक से बातचीत में अलीगढ़ विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर नजमुल इस्लाम ने कहा, "इस अध्यादेश की क्या ज़रूरत थी। अगर कोई व्यक्ति राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में संलिप्त होता है तो उससे निपटने के लिए पहले से तमाम क़ानून मौजूद हैं। क्या मौजूदा क़ानून भी दोषी के ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाने के लिए बहुत हल्के हैं!"

वो आगे कहते हैं, "वैश्विक अनुभव हमें बताता है कि अनुसंधान केवल उन संस्थानों में कामयाब हो सकता है जहाँ शैक्षणिक मामलों में सरकार का हस्तक्षेप न्यूनतम है।"

वहीं, लखनऊ विश्वविद्यालय में दर्शनशस्त्र के प्रोफ़ेसर राकेश चंद्रा कहते हैं, "एक विश्वविद्यालय से सिर्फ़ डॉक्टर और इंजीनियर ही नहीं बनते हैं। उस उद्देश्य के लिए हमारे पास दूसरे संस्थान हैं। एक विश्वविद्यालय एक ऐसा स्थान है जो एक आलोचनात्मक दृष्टिकोण के साथ नागरिकों की समझ बनाता है.... हम देश, राष्ट्र-राज्य आदि के बारे में विभिन्न सिद्धांतों को सिखाते हैं। क्या इसका मतलब यह है कि हमें इन विषयों को पढ़ाना बंद कर देना चाहिए? मुझे लगता है, सरकार को यह समझना चाहिए कि आलोचना करने को राष्ट्र-विरोधी नहीं कहा जा सकता।"

कुछ ऐसा ही मानना इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र नेता रमेश यादव का है। वो कहते हैं, "इस अध्यादेश के हिसाब से लगता है कि विश्वविद्यालय के छात्र, शिक्षक और दूसरे स्टाफ़ भारत के नागरिक ही नहीं है। अगर नागरिक हैं तो फिर अलग से क़ानून बनाने की क्या ज़रूरत है। भारत के हर नागरिक राष्ट्र विरोधी गतिविधियों के तहत बनाए गए क़ानूनों के अंतर्गत ही आते हैं।"

वो आगे कहते हैं, "इस पूरे अध्यादेश में राष्ट्र विरोधी गतिविधि के बारे में स्पष्ट नहीं किया गया है। इस लिहाज़ से योगी कैबिनेट का नया अध्यादेश गुमराह करने वाला है और इसका आसानी से दुरुपयोग किया जा सकता है। फ़िलहाल अभी तक इसका मक़सद समझ में नहीं आया है।"

रमेश यादव के इस बात से वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश भी सहमत नजर आते हैं। उन्होंने राष्ट्र विरोधी गतिविधि को लेकर फेसबुक पर एक पोस्ट लिखा है। 

अपने फ़ेसबुक पोस्ट में उन्होंने लिखा, "राष्ट्र-विरोधी गतिविधि! यूपी में अब निजी क्षेत्र के विश्वविद्यालयों को इसका हलफ़नामा देना होगा कि वे 'इस तरह की किसी गतिविधि' में शामिल नहीं हैं या कि उनके परिसर में 'ऐसा कुछ' नहीं होता या भविष्य में भी नहीं होगा! है न कुछ दिलचस्प! सिर्फ़ विश्वविद्यालयों को ही क्यों? सीमेंट, स्टील या सुगर मिल वालों को क्यों नहीं? सबसे अहम सवाल है, राष्ट्रविरोधी गतिविधि किसे कहा जाय? इसकी परिभाषा क्या हो? यूपी सरकार को अब इस पर एक श्वेतपत्र जारी कर देना चाहिए। ऐसा नहीं करने से राष्ट्रविरोधी गतिविधि के व्याख्याकार गली-गली, सड़क-सड़क और मोहल्ला-मोहल्ला पैदा हो जाएंगे। सरकार के सामने एक नया संकट पैदा हो जायेगा! समाज और स्वयं शासन के समक्ष संकट पैदा करने के लिए सरकार कुछ कम है क्या?"

वो आगे लिखते हैं, "फिर भी सरकार को‌ परिभाषा तो बता ही देनी चाहिए! टृेन, बस, मेटृो और अख़बार-टीवी में विज्ञापन देकर इस परिभाषा का प्रचार किया जाना चाहिए! विदेशी मीडिया में भी विज्ञापन प्रसारित होना जाना चाहिए कि यूपी वाले राष्ट्रविरोधी-गतिविधि किसे मानते हैं! यूपी देश का सबसे बड़ा राज्य है। जो परिभाषा यूपी तय करेगा, वही देश भी मान लेगा! यह तत्काल होना चाहिए ताकि समाज के किसी 'गणमान्य व्यक्ति' को इसे स्वयं परिभाषित करने का मौक़ा नहीं मिले! सरकार से तनिक भी विलंब हुआ तो वो सामने वाले मैदान में झंडा गाड़ कर बच्चों के बीच अपनी गढ़ी कथाओं को इतिहास बताने वाले पड़ोस के मिडिल-पास अमुक जी, इंटर-फ़ेल तमुक जी और कुछ बड़े मामलों में अपनी ताक़त दिखा चुके झमुक साहब(तीनों पात्रों के नाम काल्पनिक हैं!) राष्ट्रविरोधी-गतिविधि की अपनी-अपनी परिभाषा देने लगेंगे! फिर यही लोग राष्ट्रविरोधी-गतिविधि का सर्टिफ़िकेट देने की एजेंसी भी खोल लेंगे! सरकार के एकाधिकार को उसके अपने खास लोग ही चुनौती देने लगेंगे! यह सब अच्छा नहीं लगेगा! इसलिए सरकार हमारी सलाह माने, राष्ट्रविरोधी गतिविधि की परिभाषा पर एक श्वेतपत्र जल्दी जारी कर दे!"

हालांकि निजी विश्वविद्यालयों की एसोसिएशन ने हालांकि इस कदम का स्वागत किया है। उन्हें इसमें कुछ नया नहीं दिखता। यूपी प्राइवेट यूनीवर्सिटीज़ एसोसिएशन के सचिव पंकज अग्रवाल ने कहा कि क़दम का स्वागत है लेकिन इसमें कुछ नया नहीं है।

अग्रवाल ने कहा कि हमारे विश्वविद्यालय के संविधान में ये बिंदु हैं और हम उनका पालन करते हैं। शैक्षिक संस्थान इसके प्रति संवेदनशील हैं और इसे सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक क़दम भी उठाते हैं। 

अग्रवाल ने कहा कि सभी चाहते हैं कि कोई राष्ट्र विरोधी गतिविधि ना हो। "मैं मानता हूँ कि शैक्षिक व्यवस्था के माध्यम से राष्ट्रभक्ति और नैतिक मूल्य भी बताये जाने चाहिए।" उन्होंने कहा कि स्वायत्तता और गुणवत्ता को लेकर हमारी चिन्ताओं का सरकार ने समाधान किया है और हमें इसके बारे में आश्वस्त किया गया है।

वहीं, लखनऊ विश्वविद्यालय की छात्र नेता और समाजवादी पार्टी से जुड़ी पूजा शुक्ला कहती हैं, "जब से यूपी में नई सरकार आई है तब से उसको सबसे ज़्यादा विरोध छात्रों का ही झेलना पड़ा है। छात्रों के इस विरोध को दबाने के लिए योगी सरकार ये नया अध्यादेश लेकर आई है। हम सभी छात्र नेता इस अध्यादेश का विरोध करते हैं। अभी राज्य के बाक़ी विश्वविद्यालयों के छात्र नेताओं के साथ हमारी बातचीत चल रही है। इस अध्यादेश को लेकर हम मंथन कर रहे हैं। जल्द ही हम इसे लेकर विधानसभा का घेराव करेंगे।"

(रवि कौशल के सहयोग के साथ) 

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